Sunday 27 December 2020

मोदी को मुंहबोला भाई मानने वाली करीमा बलोच नहीं रहीं

बलूचिस्तान की जानी-मानी राजनीतिक कार्यकर्ता और बलोच स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन की पूर्व अध्यक्ष करीमा बलोच का शव कनाडा के टोरंटो में पाया गया है। टोरंटो की पत्रकार सबा एतजाज ने बीबीसी को बताया कि पुलिस ने इस बात की पुष्टि की है। करीमा बलोच के परिवार और दोस्तों ने बताया है कि उनका शव पुलिस कस्टडी में है जिसे शव की जांच के बाद लौटाया जाएगा। फिलहाल करीमा बलोच की मौत के कारणों का पता नहीं चल सका है। वहीं करीमा बलोच की मौत की खबर आते ही सोशल मीडिया पर मामले की जांच की मांग की जाने लगी। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ट्वीट किया, सामाजिक कार्यकर्ता करीमा बलोच की टोरंटो में मौत होना बेहद दुखद है और इसकी तुरन्त व प्रभावी तरीके से जांच होनी चाहिए और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। 37 साल की करीमा बलोच कनाडा में एक शरणार्थी के तौर पर रह रही थीं। बीबीसी ने उन्हें दुनिया की 100 सबसे अधिक प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया था। करीमा बलोच साल 2005 में बलूचिस्तान के शहर तुर्वत में तब चर्चा में आई थी जब उन्होंने गायब हो चुके एक नौजवान शख्स गहराम की तस्वीर हाथ में पकड़ी थी। यह शख्स उनका नजदीकी रिश्तेदार था। उस वक्त कुछ ही लोग जानते थे कि नकाब पहने हुए यह महिला कौन है। बीबीसी संवाददाता रियाज सोहेल के मुताबिक करीमा बलोच के माता-पिता गैर-राजनीतिक थे लेकिन उनके चाचा और मामा बलोच राजनीति में काफी सक्रिय रहे हैं। बीएसओ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जाकिर मजीद के लापता होने के बाद करीमा को संगठन का अध्यक्ष बनाया गया। वो बीएसओ की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। संगठन के लिए वो मुश्किल समय था जब उसके नेता अचानक लापता हो रहे थे। कुछ छिप गए थे और कुछ ने रास्ते अलग कर लिए थे। बलूचिस्तान की आजादी की मांग करने वाले एक छात्र संगठन बीएसओ आजाद पर पाकिस्तान की सरकार ने साल 2013 में प्रतिबंध लगा दिया था। इन हालात में भी करीमा बलोच ने संगठन की सक्रियता बनाए रखी और बलूचिस्तान के दूरस्थ इलाकों में संगठन की पहचान बनाए रखी। करीमा बलोच ऐसी पहली महिला नेता मानी जाती हैं, जिन्होंने नई परंपरा शुरू की और विरोध प्रदर्शनों को तुर्वत से क्वेटा तक सड़कों पर लाईं। करीमा बलोच ने बीबीसी को दिए गए साक्षात्कार में कहा था कि उनका विरोध लोगों को जबरन गायब करने और राज्य की कार्रवाइयों के खिलाफ है। साल 2008 में तुर्वत में इसी तरह की एक रैली के दौरान उन पर पहली बार आतंकवाद विरोधी कानून के तहत आरोप लगाए गए। बाद में उन्हें भगोड़ा करार दिया गया और उन पर फ्रंटियर कॉर्प्स से राइफल छीनने और लोगों को उकसाने का आरोप लगाया गया। जब पाकिस्तान में हालात बहुत खराब हो गए तो वह कनाडा चली गईं, जहां उन्होंने राजनीतिक शरण ली। बलूच नेशनल मूवमेंट ने करीमा बलोच की मौत पर 40 दिनों का शोक की घोषणा की है। करीमा बलोच ने कुछ साल पहले रक्षाबंधन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद की अपील भी की थी। बलोचिस्तान नेशनल पार्टी के नेता सनाउल्लाह बलोच ने ट्वीट कियाöकरीमा बलोच की आकस्मिक मौत होना एक राष्ट्रीय त्रासदी से कम नहीं। दुनिया के सबसे सुरक्षित देश कनाडा में एक बलोच बेटी के गायब होने और हत्या से जुड़े सारे तथ्य सामने आने चाहिए। करीमा बलोच गायब होने वालों की मजबूत आवाज, हमारे साथ नहीं रहीं। इस दुख के लिए शब्द नहीं हैं। -अनिल नरेन्द्र

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