Wednesday, 23 December 2020

पीड़िता के साथ हुआ था गैंगरेप और फिर उसकी हत्या

गांव बूलगढ़ी की किशोरी के साथ हैवानियत और उसकी हत्या के बहुचर्चित मामले की पिछले 69 दिनों से जांच कर रही सीबीआई ने शुक्रवार को हाथरस की एससी/एसटी कोर्ट में चारों आरोपियों के खिलाफ दो हजार पन्नों का आरोप पत्र दाखिल कर दिया। इस मामले में चारों आरोपियों पर युवती के साथ बलात्कार करने और उसकी हत्या करने का आरोप लगाया है। आरोपियों के वकील ने अदालत के बाहर बताया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो ने संदीप, लवकुश, रवि और रामू के खिलाफ सामूहिक बलात्कार एवं हत्या के आरोप लगाए हैं। इस मामले की पहली तारीख चार जनवरी लगी है। कोतवाली चंदपा के गांव बूलगढ़ी में 14 सितम्बर को एक दलित युवती के साथ गैंगरेप और शारीरिक हिंसा की वारदात हुई। अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में उपचार के दौरान पीड़िता ने अपने बयान में सामूहिक दुष्कर्म की बात कही थी। पीड़िता के बयान पर पुलिस ने संदीप, रवि, लवकुश और रामू को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 29 सितम्बर को दिल्ली में पीड़िता की उपचार के दौरान मौत हो गई थी। रात को गांव में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। परिजनों ने पुलिस पर जबरन अंतिम संस्कार का आरोप लगाया था। इस पर एसपी, सीओ सहित पांच पुलिसकर्मी निलंबित हुए थे। प्रदेश सरकार ने बहुचर्चित मामले की जांच के लिए पहले एसआईटी गठित की। इसी बीच केस सीबीआई को सौंप दिया गया। 63 दिन की गहन जांच-पड़ताल के बाद सीबीआई ने उसी थ्योरी को आगे बढ़ाया, जिस पर स्थानीय पुलिस काम कर रही थी। इसमें युवती का 22 सितम्बर को अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में पुलिस के विवेचना अधिकारी सीईओ सादाबाद के समक्ष दिया गया बयान ही मुख्य आधार रहा। हाथरस मामले की हकीकत पर पुलिस शुरू से ही परदा डालने की कोशिश करती रही। उसका प्रयास था कि किसी तरह मामला रफा-दफा हो जाए। इसीलिए पहले प्राथमिकी दर्ज करने से बचती रही, फिर युवती के इलाज में भी लापरवाही बरती गई। जब मामला तूल पकड़ने लगा तो पुलिस और प्रशासन तरह-तरह की कहानियां गढ़कर आरोपियों को बचाने का प्रयास करते देखे गए। पुलिस ने पहले तो युवती के परिजनों को डरा-धमका कर चुप रहने का प्रयास किया। फिर किसी तरह साबित करने की कोशिश की गई कि युवती को परिवार वालों ने ही मारने की कोशिश की थी। जब विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया तो उन्हें हाथरस पहुंचने, पीड़ित परिवार से मिलने से रोकने की पूरी कोशिश की गई। यहां तक कि वहां के जिलाधिकारी पर भी आरोप लगे कि वह पीड़ित परिवार को धमका कर चुप कराने का प्रयास कर रहे थे। यह हैरान करने वाला प्रकरण था कि जिन लोगों पर न्याय दिलाने की जिम्मेदारी है, वही अन्याय की तरफ खड़े थे। उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था को लेकर पहले ही काफी अंगुलियां उठती रही हैं। हाथरस मामले में तो पुलिस-प्रशासन के रवैये ने उस आग में घी का ही काम किया। इससे पुलिस-प्रशासन की साख पर जबरदस्त चोट पहुंची है। जिन लोगों पर सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। अगर वही किसी आग्रह या प्रभाव में आकर अन्याय का साथ देंगे तो फिर कानून-व्यवस्था को लेकर कितना भरोसा किया जा सकता है, उत्तर प्रदेश पुलिस का यह चेहरा भयभीत करने वाला है। तभी तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि उत्तर प्रदेश में जंगलराज है।

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