Thursday, 17 December 2020
कोहरे और ठंड में कांपते किसान, इरादे अब भी मजबूत
पिछले दो-तीन दिनों से दिल्ली की सड़कों पर जबरदस्त कोहरा है, ठंड बढ़ गई है। कड़कती ठंड के बीच लोगों का चन्द मिनट भी सड़क पर रह पाना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। कोहरे की वजह से सड़कों पर विजिबिलिटी इतनी कम हो गई है कि चन्द कदम देख पाना भी मुश्किल है। दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन पैदल चलने पर महज 10 कदमों पर ही कोई सड़कों के किनारे ट्रॉली के नीचे तो, कोई ट्रॉली के अंदर सोया दिखाई दे रहा है। यह नजारा है सिंघु बॉर्डर पर। धरना स्थल पर दिनभर चहल-पहल के बाद रोज रात लोग अपने-अपने जगहों पर पहुंच जाते हैं, जहां उन्होंने अपने रुकने का ठिकाना बनाया हुआ है। कुछ किसान गांव से लाए हुए ट्रॉलियों में सोने की व्यवस्था कर रहे हैं तो कोई जिन बसों में बैठकर आए थे, वहां पर सोने पर मजबूर हैं। लेकिन बहुत से ऐसे किसान हैं जिन्हें अब भी धरना स्थल पर सोने की जगह नसीब नहीं होती है। उन किसानों के लिए सर्द हवाएं मानों किसी मुसीबत से कम नहीं, इसके बावजूद प्रदर्शन कर रहे किसानों के जज्बे में कोई कमी देखने को नहीं मिली है। धरना स्थल के करीब 200 मीटर आगे कुंडली की तरफ खालसा एड की तरफ से अस्थायी रैन बसेरा दिखाई देती है। यहां पर करीब 400 लोगों के रहने की व्यवस्था की गई है। वहां पहुंचने में हमने देखा कि ब़ड़ी तादाद में लोग रजाई-गद्दे के बीच सोए हुए थे। वहां मौजूद इंचार्ज से बात करने पर पता चला कि यह वह लोग हैं जो कि धरना स्थल पर प्रदर्शन करने आए हुए हैं, यानि किसान। सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसान कई किलोमीटर तक फैले हुए हैं। सड़क पर ही ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के बीच किसान रात को बेफिक्र होकर अपनी रात गुजारते हैं तो उनके पीछे नौजवानों का कड़ा पहरा होता है। यह नौजवान वालंटियर के रूप में 24 घंटे काम करते हैं। हालांकि इस काम के लिए वालंटियर्स की शिफ्ट भी बनी हुआ है। बीते 18 रातों से कड़कड़ाती ठंड में यह अलग-अलग दिनों में अलग-अलग चेहरे के रूप में यहां मुस्तैद दिखाई देते हैं। दरअसल सिंघु बॉर्डर पर एक मुख्य मंच बना हुआ है जोकि अब करीब 10 फुट ऊंचा और 30-40 फुट चौड़ा है। इसके सामने दिन में बड़ी तादाद में किसान बैठकर धरना और नारेबाजी करते हैं। जबकि इस मंच के पीछे कई तरह के स्टॉल, टेंट, खाने-पीने के लिए लंगर उपलब्ध हैं। बीच-बीच में ट्रॉलियों, बसों और कारों के अंदर किसान रात में सोते हैं। वह सड़क पर बेफिक्र होकर सो सकें इसके लिए वालंटियर्स दिन-रात पहरा देते हैं। वालंटियर का काम करने वाले जसवीर सिंह ने बताया कि वह यहां पर सेवादार के रूप में अपनी सेवा देते हैं। वह कहते हैं कि लाखों किसानों के बीच कोई पुलिस वाला मौजूद नहीं होता है। कुलविंदर सिंह (किडा) ने बताया कि वह भी एक सेवादार के रूप में मौजूद हैं। वह कबड्डी-प्रेमी के नाम से भी जाने जाते हैं और यहां पर आए कबड्डी टीम के सदस्यों के साथ वह अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हम किसानों के जज्बे को सलाम करते हैं। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वह अपने मोर्चे पर डटे हैं। वाहे गुरु जी दा खालसा वाहे गुरु जी दी फतेह।
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