Sunday 13 December 2020

तेलंगाना से उत्साहित भाजपा की नजर अब पूरे दक्षिण भारत पर

दक्षिण भारत के एकमात्र राज्य कर्नाटक में मजबूती के साथ स्थापित होने के बाद भी पास के तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भाजपा की कमजोरी हमेशा से पार्टी को सालती रही है। हाल कुछ ऐसा रहा है कि पिछले छह वर्षों में जहां भाजपा अपनी बदली सोच, क्षमता और कर्मठता के कारण उत्तर और पूर्वोत्तर में शिखर पर पहुंच गई, वहीं तेलंगाना में दो दशक में एक कदम भी नहीं बढ़ पाई है। 1999 में भी पार्टी के चार सांसद थे और 2019 में भी चार सांसद हैं। ऐसे में हैदराबाद नगर निगम चुनाव नतीजे ने यह बता दिया है कि अब तेलंगाना के जरिये भाजपा का निशाना पूरे दक्षिण भारत पर है। भाजपा अब उस घोषित स्वर्णिमकाल की ओर बढ़ने की रणनीति में जुटी हुई है, जहां पंचायत से लेकर राज्य की सत्ता तक भाजपा की इतनी धमक रहे कि वह अपनी विचारधारा को विस्तार दे सके। उस वक्त सवाल उठे थे, हैरत जताई गई थी जब एक हफ्ते पहले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत बड़े दिग्गज हैदराबाद नगर निगम चुनाव प्रचार में उतर गए थे। दरअसल भाजपा ने सभी राजनीतिक दलों के सामने नेतृत्व की कार्यशैली का बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। यह फिर से समझा दिया है कि राजनीतिक दल के शीर्ष नेतृत्व को भी नीचे तक जाने और वर्करों के साथ खड़े होने में हिचक नहीं दिखानी चाहिए बल्कि शीर्ष नेतृत्व की मौजूदगी विचारधारा को स्थापित करने में मददगार होती है। रोचक बात यह है कि यह तत्परता उस कांग्रेस में नहीं दिखी जहां लगातार नेतृत्व को लेकर अंदर से ही सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यही कारण है कि भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव ने भी यह चुटकी लेने में देर नहीं की कि टीआरएस के सामने कांग्रेस ने वीआरएस ले लिया। हैदराबाद के नतीजों ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव पहले से अलग होंगे। भाजपा बहुत मजबूत विकल्प बनकर उभरी है। वह चार से बढ़कर 40 के ऊपर पहुंच गई, जबकि असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम अपने सीमित कट्टर समर्थक वर्गों में सिमट कर रह गई है। हैदराबाद चुनाव में वह लगभग वहीं खड़ी है। यह नतीजा यह भी बताता है कि राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के साथ बिहार के बाद बंगाल के लिए बढ़ रहे ओवैसी को फिलहाल खारिज नहीं किया जा सकता है। जाहिर तौर पर हैदराबाद के नतीजे ममता बनर्जी को परेशान जरूर कर रहे होंगे। अगर तेलंगाना व दक्षिण भारत की बात की जाए तो भाजपा कर्नाटक दोहराने की कोशिश करेगी। यह बात याद दिलाने की कोशिश भी होगी कि स्वतंत्र तेलंगाना के प्रतीक भले ही टीआरएस नेता के. चन्द्रशेखर राव बन गए हों, लेकिन इसकी सोच जनसंघ नेताओं ने डाली थी। कर्नाटक से अलग तेलंगाना में भाजपा को विस्तार के लिए जनता दल जैसा कंधा तो नहीं मिल सकता है, लेकिन टीआरएस के प्रति सत्ता विरोधी लहर का संकेत भाजपा के लिए उत्साहवर्द्धक जरूर है। अब भाजपा की नजरें पूरे दक्षिण भारत के राज्यों पर कब्जा करने की लग रही हैं। तेलंगाना परिणामों ने भाजपा की महत्वाकांक्षा को बढ़ाया है। आने वाले दिनों में हम देखेंगे कि दक्षिण भारत में भाजपा ज्यादा सक्रिय दिखेगी।

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