Sunday, 27 March 2022
हर तीसरी महिला घरेलू हिंसा की शिकार
महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम कायदे-कानून खासकर सख्त घरेलू हिंसा कानून-2005 होने के बावजूद देश में हर तीन महिलाओं में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार है। घरों में होने वाली इस तरह की हिंसा के अधिकतर मामलों की रिपोर्ट नहीं होती। इसकी वजह महिला का आर्थिक रूप से पति या परिवार पर निर्भर होना है। वहीं घरेलू हिंसा मामलों के बारे में अनभिज्ञ होना भी इसका एक बड़ा कारण है। यह बात विधि स्पीक्स के सर्वे में सामने आई है जिसमें एनसीआरबी और नेशनल फैमिली हेल्थ रिपोर्ट के आंकड़ों को आधार बनाया गया है। इसकी वजह महिलाओं से जुड़े अपराधों में दंड नहीं मिलना भी एक कारण है। आपराधिक कानून के विशेषज्ञ डॉ. एमपी शर्मा कहते हैं कि घरेलू हिंसा के मामले अधिकतर तो रिपोर्ट ही नहीं होते। इस हिंसा के वही मामले रिपोर्ट होते हैं, जिनमें हिंसा गंभीर किस्म की होती है। पत्नी के साथ घर में मारपीट, प्रताड़ना और समान रूप से व्यवहर नहीं होना घरेलू हिंसा है, लेकिन इसे रिपोर्ट नहीं किया जाता है। ऐसे मामले मेट्रो शहरों में तो सामने आ जाते हैं लेकिन छोटे शहरों, कस्बों और गांवों से इस तरह के मामले रिपोर्ट नहीं होते। उन्होंने कहा कि यह भी देखा गया है कि कानून की जानकारी होने के बावजूद तथा यह जानने पर भी कि उसे प्रताड़ित किया जा रहा है, महिलाएं अपराध को रिपोर्ट नहीं करतीं। यह ज्यादातर ऐसे मामलों में होता है जहां महिला आर्थिक रूप से पति या परिवार पर निर्भर है। दूसरे समाज का रुख भी एक महत्वपूर्ण कारक है। पति या परिवार की शिकायत लेकर पुलिस में जाने वाली महिला को समाज में अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता। यदि फिर भी शिकायत करती है तो उसे कोई समर्थन नहीं मिलता और वह अकेली पड़ जाती है। कई बार पुलिस भी ऐसे घरेलू मामलों को रफा-दफा करने का प्रयास करती है और ऐसे मामलों में कार्रवाई करने में संकोच करती है। हां, अगर गंभीर मामला हो तो ही पुलिस हरकत में आती है। इन कारणों से पीड़ित महिला के पास समझौता करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं होता। महिलाओं के खिलाफ अपराधों में दंड दिए जाने की दर महज 23.7 प्रतिशत है। वहीं इस तरह के मामलों के लंबित होने का प्रतिशत 91.2 प्रतिशत है। इसका कारण विशेष अदालतों की कमी, पुलिस जांच में ढिलाई, गवाहों का सामने नहीं आना है।
-अनिल नरेन्द्र
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