Tuesday, 22 March 2022
द कश्मीर फाइल्स दर्शाती है कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का सच
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्राr की ताशकंद में हुई मौत के रहस्य पर द ताशकंद फाइल्स बना चुके फिल्म डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री की बीते दिनों रिलीज हुई द कश्मीर फाइल्स को भी जनता ने उनकी पहली फिल्म की तरह ही समझा, लेकिन ताशकंद फाइल्स बनाने वालों की द कश्मीर फाइल्स को शुरुआत से ही दर्शकों ने हिट बनाने का मन बना लिया था। सोशल मीडिया और वॉट्सएप पर फिल्म की रिलीज होने से पहले ही चर्चाएं शुरू हो गई थीं। मैंने भी फिल्म देखने का मन बना लिया और बृहस्पतिवार को आईमैक्स पर जाकर फिल्म देखी। फिल्म में कश्मीरी पंडितों की दर्दनाक कहानी बहुत अच्छे से दर्शाई गई है। दरअसल 1990 में कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के दर्दनाक विस्थापन व नरसंहार के बारे में हर किसी ने सुना है। लेकिन उसके बारे में पूरी जानकारी नहीं थी। फिल्म सुपर हिट हुई है और करोड़ों का बिजनेस कर रही है। द कश्मीर फाइल्स एक सच्ची कहानी पर आधारित है। फिल्म में पंडितों के विस्थापन के सही कारणों और इसके बाद उनकी आवाज को किस तरह से दबाया गया, यह सब बताया गया है। उस समय कश्मीरी लोगों के साथ जो हुआ उस पर तब की सरकार ने पर्दा डाला था। बता दें कि उस समय श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे और भाजपा सरकार का समर्थन कर रही थी। कश्मीर के गवर्नर जगमोहन थे जो भाजपा के थे। डॉ. फारुख अब्दुल्ला कश्मीर के मुख्यमंत्री थे और मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे। कुछ लोगों का मानना है कि मुफ्ती की बेटी रुबिया सईद के अपहरण में छोड़े गए खूंखार आतंकवादियों के कारण से ही घाटी में आतंकवाद की शुरुआत हुई थी। कटु सत्य यह भी है कि सच दुनिया के सामने नहीं आने दिया गया। पंडितों की आवाज को दबा दिया गया। एक कश्मीरी पंडित दर्शक के अनुसार द कश्मीर फाइल्स अधूरी कहानी बयां करती है। प्यारे लाल पंडित जो अपने परिवार के साथ 2011 से जम्मू में विस्थापित टाउनशिप में रह रहे हैं उन्होंने बीबीसी को बताया कि इस फिल्म में कश्मीर की अधूरी कहानी बयां की गई है। कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ कश्मीर के मुस्लिम और सिख समुदाय से जुड़े लोग भी मारे गए थे और विस्थापित हुए थे लेकिन इस फिल्म में उनका कहीं कोई भी जिक्र नहीं है। एक कश्मीरी विस्थापित शादी लाल पंडित ने बीबीसी को बताया कि कश्मीरी पंडितों के साथ जुल्म हुआ जिसकी वजह से हमें वहां से निकलना पड़ा। उस समय न तो कश्मीर सरकार (जगमोहन) ने और न ही भाजपा समर्थित केंद्र सरकार ने हमें रोकने की कोशिश की। अगर श्रीनगर में ही एक टाउनशिप बना देते जिसको सेना गार्ड करती तो शायद पंडितों को अपने घरों से विस्थापित न होना पड़ता। हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि आप कहते हैंöपहले की सरकारों ने कश्मीरी पंडितों को उजाड़ा, लेकिन जब से भाजपा केंद्र में सरकार चला रही है तब से आपने भी कश्मीरी पंडितों की सुध नहीं ली है। कश्मीरी पंडितों का शोषण किया। हम रिलीफ मांगते हैं, जवानों के लिए नौकरियां मांगते हैं। फिल्म का हवाला देते हुए कहा कि 2024 के चुनावों की तैयारी हो रही है। यह दुनिया को बताएं कि कश्मीरी पंडितों के साथ क्या जुल्म हुआ। इसको चुनावी मुद्दा बनाया जाएगा। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित दहशतगर्दी ने हमें टारगेट बनाया न कि कश्मीरी मुस्लिमों ने। भाजपा वाले कुछ दिनों से सबको बता रहे हैं, यह सब कांग्रेस ने किया है, लेकिन उस समय सरकार तो आपके समर्थन से चल रही थी। उस समय नेशनल फ्रंट की सरकार ने हमारी रक्षा क्यों नहीं की? एक पीड़ित का कहना था कि इस फिल्म को देखने के बाद न तो कश्मीर में रह रहे पांच हजार कश्मीरी पंडित अब सुरक्षित हैं और न ही हम कभी वापस जा सकेंगे।
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