Thursday 24 March 2022

जेल में जाने के बाद भी मंत्री क्यों नहीं छोड़ते पद

मुंबई की एक विशेष अदालत ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार के मंत्री एवं राकांपा नेता नवाब मलिक की न्यायिक हिरासत चार अप्रैल तक बढ़ा दी है और उन्हें जेल में एक बिस्तर, गद्दा और कुर्सी का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। मलिक को प्रवर्तन निदेशालय ने भगोड़े गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम और उसके सहयोगियों से जुड़े धनशोधन जांच के सिलसिले में 23 फरवरी को गिरफ्तार किया था। मलिक सात मार्च तक ईडी की हिरासत में थे और बाद में उन्हें 21 मार्च तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। सोमवार को नवाब मलिक को एक विशेष अदालत में पेश किया गया जिसे धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए निर्दिष्ट किया गया था। विशेष न्यायाधीश आरएन रोकॉडे ने उनकी न्यायिक हिरासत चार अप्रैल तक बढ़ा दी। जेल में होने के बावजूद उन्होंने न तो मंत्री पद से इस्तीफा दिया और न ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने उनसे इस्तीफा मांगा है। महाराष्ट्र में सत्ताधारी गठबंधन ने घोषणा की है कि वह मलिक से इस्तीफा नहीं मांगेंगे, क्योंकि उन पर लगे आरोप राजनीति से प्रेरित हैं और उन्हें परेशान करने के लिए ऐसा किया गया है। दलीलें कुछ भी हों, सीधा सवाल यह है कि क्या कोई व्यक्ति जेल जाने के बाद भी मंत्री बना रह सकता है? ऐसा क्या है कि मलिक एक महीने से ज्यादा जेल में रहने के बावजूद मंत्री पद पर काबिज हैं और सत्ताधारी दल सीना ठोककर उनकी तरफदारी कर रहा है? विशेषज्ञों की मानें तो इसके पीछे नियम कानून की शून्यता है। जेल में बंद दागी मंत्री को पद से हटाने के बारे में न तो कानून है, न ही कंडक्ट रूल में कुछ कहा गया है। एक सरकारी कर्मी अगर दो-चार दिन जेल में रहता है तो वह निलंबित हो जाता है, लेकिन एक मंत्री एक महीने से ज्यादा जेल में हेने के बावजूद पद पर काबिज है। देखा जाए तो इस स्थिति से निपटने के दो ही तरीके हैंöकानून बने या फिर अदालत व्यवस्था दे। कोर्ट किसी मुद्दे को तब तक परिभाषित नहीं करता या व्यवस्था नहीं देता है, जब तक उसके समक्ष कोई मामला नहीं आता। ऐसे मामलों में कोर्ट स्वत संज्ञान लेकर व्यवस्था नहीं देता। दूसरा तरीका है कि विधायिका ही इस पर कानून बनाए। लेकिन सवाल है कि राजनीतिक निहितार्थ के ऐसे मुद्दे पर क्या राजनेता एक होंगे? लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधानविद् सुभाष कश्यप कहते हैं कि जेल में एक मंत्री को पद पर रहना चाहिए या नहीं, यह बात कम से कम कोड ऑफ कंडक्ट में आनी चाहिए। मौजूदा स्थिति यह है कि जब तक अदालत से किसी को दोषी नहीं ठहराया जाता, तब तक वह निर्दोष माना जाता है। मौजूदा कानून में अंडर ट्रायल के तौर पर जेल में रहते हुए मंत्री बने रहने पर रोक नहीं है। हालांकि नैकिता का तकाजा है कि जेल जाने पर इस्तीफा दे देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में सांसदों-विधायकों को भी पब्लिक सर्वेंट बताए जाने पर कश्यप कहते हैं कि वह फैसला बहस का विषय है। अभी तक तय नहीं है कि किस-किस मुद्दे पर वह पब्लिक सर्वेंट माने जाएंगे? मौजूदा कानून में तो दोषी ठहराए जाने और सजा होने पर ही सांसद या विधायक अयोग्य हैं और उनकी सदस्यता जाती है।

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