Saturday, 30 April 2016

तलाक, बहुविवाह व्यवस्था में सुधार की पहल करें उलेमा

एक साथ तीन बार `तलाक' कहकर तलाक देने और बहुविवाह पर रोक लगाने की बहस के बीच देश के कई मुस्लिम संगठनों की प्रतिनिधि संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस--मुशावरत ने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तथा उलेमा इसमें सुधार के लिए पहल करें, लेकिन सरकार और अदालतों का दखल नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में सायरा बानो नामक महिला की ओर से `एक साथ तीन तलाक' और बहुविवाह के खिलाफ दायर याचिका पर शीर्ष अदालत द्वारा केंद्र सरकार से जवाब मांगे जाने पर यह बहस छिड़ गई है। मुशावरत के अध्यक्ष नावेद हमीद ने कहा कि इस मामले पर एक साथ तीन तलाक पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को गहराई से सोचना चाहिए। ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों में इस पर बातचीत हुई और बदलाव हुआ है। उन्होंने कहा कि एक साथ तीन बार तलाक कहकर तलाक देने की व्यवस्था मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में है। पाकिस्तान में कानून के जरिये इसमें बदलाव हुआ लेकिन अभी जमीन पर यह अमल में नहीं आया। हामिद ने कहा कि उलेमाओं को इस पर गौर करना चाहिए कि कुरान और शरीयत के दायरे में रहकर इसमें क्या सुधार हो सकता है। मुस्लिम समाज के एक हिस्से की यह अपील ऐसे वक्त आई है जब सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले में बहस चल रही है। गौरतलब है कि इस याचिका के जरिये सायरा बानो नामक महिला ने पति के द्वारा तीन बार तलाक बोलकर तलाक देने और बहुविवाह की व्यवस्था को गैर-कानूनी करार देने की मांग की है। अदालत ने भी कहा कि इस तरह का एकतरफा तलाक नाइंसाफी है और इस प्रक्रिया की समीक्षा की जानी चाहिए। उधर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक साथ तीन तलाक को जायज करार दिया है। बोर्ड ने तीन तलाक, गुजारा भत्ता, चार शादियों जैसे मामलों में शरीयत कानून के खिलाफ आ रहे अदालती फैसले को पर्सनल लॉ में दखलंदाजी माना है। साथ ही बोर्ड उत्तराखंड की सायरा बानो व एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपनी पैरवी खुद करेगा। पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह फैसला गत शनिवार को लखनऊ के नदवा कॉलेज के चेयरमैन मौलाना सैयद राबे हसनी नदवी की अध्यक्षता में कार्यकारिणी की बैठक में लिया गया। लोग चाहेंगे कि सुधार की पहल उलेमाओं की तरफ से हो, पर वे आनाकानी करेंगे तो खुद को अप्रासंगिक ही साबित करेंगे। यों तो स्त्रियों की दशा सभी समुदायों में शोचनीय है पर मुस्लिम महिलाओं की हालत कहीं ज्यादा खराब है। संगठित होकर अपनी आवाज उठाना उनके लिए ज्यादा मुश्किल रहा है। कहने का अर्थ यह है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव की आशंका या मांग मजहब में दखलंदाजी के तौर पर देखने के बजाय इस मसले पर छिड़ी बहस को एक अवसर के रूप में देखा जाए।

-अनिल नरेन्द्र

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन बरकरार, अदालत ने पूछे सवाल

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन जारी रहेगा और 29 अप्रैल को विधानसभा में होने वाले फ्लोर टेस्ट पर भी रोक बरकरार रही। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपनी सुनवाई के दौरान उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने के नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले पर लगी रोक को जारी रखने का निर्णय लिया। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। पीठ ने कहा कि लाख टके का सवाल है कि क्या विधानसभा की कार्रवाई के आधार पर केंद्रीय कैबिनेट उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है? राज्यपाल के रोल पर भी सवाल उठाए गए और साफ-साफ शब्दों में कहा गया है कि क्या राज्यपाल ने आर्टिकल 175(2) के तहत फ्लोर टेस्ट रोकने का संदेश भेजा था? और क्या राज्यपाल ऐसा कर सकते हैं? यह भी सवाल किया गया कि फ्लोर टेस्ट में देरी होना क्या राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार हो सकता है? क्या मनी बिल गवर्नर के पास भेजने में देरी राष्ट्रपति शासन का आधार हो सकता है? राज्य में बिल पास हुआ था या नहीं, क्या दिल्ली से तय किया जाएगा? इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि स्टिंग ऑपरेशन सही है तो भी यह राष्ट्रपति शासन का आधार नहीं हो सकता। पहले ही एसआर बोम्मई और रामेश्वर प्रसाद के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि किसी भी परिस्थिति में फ्लोर टेस्ट ही एक रास्ता है। अगर ऐसा हुआ तो यह कांग्रेस सहित विपक्ष की जीत मानी जाएगी। केंद्र सरकार को इसके लिए अब काफी होमवर्प करना होगा और ऐसे सबूत पेश करने होंगे, जिनके आधार पर अदालत को महसूस हो कि हालात बिल्कुल बेकाबू हो गए थे और उस दौरान राष्ट्रपति शासन ही एकमात्र हल बचा था। राष्ट्रपति शासन वाली अधिसूचना को संसद की मंजूरी दिलानी होगी और जिस तरह उत्तराखंड मामले में कांग्रेस के समर्थन में सारा विपक्ष एकजुट हो गया, उससे तो लगता नहीं है कि कम से कम राज्यसभा में केंद्र सरकार अपने मकसद में कामयाब हो पाएगी। संविधान विशेषज्ञों का साफ-साफ कहना है कि सरकार के लिए यह बाध्यकारी है कि वह दो माह के अंदर अधिसूचना को संसद में मंजूर करवाए। हां, नई सरकार के गठन का अगर रास्ता खुलता है तभी केंद्र संसद मंजूरी की फजीहत से बच सकता है यानि केंद्र सरकार के समक्ष फ्लोर टेस्ट ही विकल्प बचता है, जिसकी मांग विपक्ष कांग्रेस से करता रहा है। अगर फ्लोर टेस्ट हुआ तो फिर यह भी ध्यान देने वाली बात है कि विधानसभा स्पीकर गोविंद सिंह पुंजवाल ने नौ कांग्रेस विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया था। अगर कोर्ट का फैसला पक्ष में नहीं आया तो विधानसभा का अंक-गणित पूरी रह बदल जाएगा। कांग्रेस ने उन नौ विधायकों को अयोग्य ठहराने के स्पीकर के फैसले से 70 सदस्यीय विधानसभा में संख्या 61 ही रह जाएगी। कांग्रेस के इन नौ बागी विधायकों ने रावत के खिलाफ बगावत कर भाजपा से हाथ मिला लिया था और अगर इनकी सदस्यता खत्म हो जाती है तो यह कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगा और भाजपा के लिए नुकसानदेह। कांग्रेसियों को उम्मीद थी कि फैसला उनके पक्ष में आएगा और भाजपा यह उम्मीद लगाए बैठी थी कि मामला संवैधानिक पीठ के हवाले हो जाएगा, लेकिन दोनों की ही हसरत पूरी नहीं हुई। भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने स्तर पर 29 अप्रैल के शक्ति-परीक्षण पर जुटी हुई थीं और इसी लिहाज से रणनीति भी बन रही थी। लेकिन पूरे मामले में एक और तारीख मिलने के बाद स्थिति अब पलट गई है। अब सप्ताहभर तक राजनीतिक दलों की गतिविधियों का शोर थमने के आसार हैं। यूं कहें कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई तारीख सप्ताहभर तक प्रदेश की सियासी गतिविधियों के लिए स्पीड ब्रेकर बन गई है।

Friday, 29 April 2016

राजधानी में बढ़ते हिट एंड रन हादसे

दिल्ली में एक तरफ हिट एंड रन के मामले बढ़ रहे हैं तो उधर रोड रेज के मामले अकसर सुर्खियों में रहते हैं। हमारी राजधानी की सड़कें कब्रगाह बनती जा रही हैं। दिल्ली में हिट एंड रन के कारण 2015 में 1567 लोग मारे गए, जबकि साल 2014 में 1671 की जान गई। इनमें 50 फीसदी से ज्यादा मामले हिट एंड रन के थे। इनकी अहम वजह तेज गति और शराब पीकर गाड़ी चलाना है। हाल ही में धौलाकुआं पर एक अज्ञात वाहन की टक्कर से बाइक सवार तीन युवकों की मौत हो गई। इन्हीं दिनों दिल्ली के सिविल लाइंस इलाके में एक नाबालिग ने अपनी मर्सीडीज से एक सड़क पर चलते युवा को कुचल दिया। केंद्रीय परिवहन विभाग की शोध रिपोर्ट के मुताबिक हिट एंड रन के ज्यादातर केस रात में होते हैं। चूंकि रात को सभी मार्गों पर लोकल पुलिस और ट्रैफिक पुलिस नहीं रहती, इस वजह से आरोपी चालक मौके पर एक्सीडेंट करके फरार हो जाता है। हिट एंड रन में वैसे भी सजा बहुत कम है। आरोपी के खिलाफ लापरवाही से हुई मौत का मामला दर्ज होता है और इसमें अधिकतम दो वर्ष की सजा होती है। नए मोटर वाहन अधिनियम के मसौदे में आरोपी चालकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की कोई बात नहीं कही गई है। केवल पीड़ित परिजनों को केंद्र सरकार एक तय राशि बतौर मुआवजा देगी। घायलों के इलाज के लिए मोटर दुर्घटना कोष बनेगा। 2015 में 765 पैदल यात्री ऐसी दुर्घटनाओं में मारे गए। कानूनी अड़चनों का फायदा उठाकर खासकर नाबालिगों को गंभीरतम आरोपों में शामिल होने के मामले लगातर सामने आ रहे हैं। कुछ में तो बड़े अपराधी इनका इस्तेमाल भी करते हैं। सिविल लाइंस इलाके में तेज रफ्तार मर्सीडीज कार से कुचलकर युवक की जान लेने वाले नाबालिग के पिता पर उकसाने का मुकदमा दर्ज कर दिल्ली पुलिस ने सकारात्मक काम किया है। आपराधिक मामलों के एक वकील ने कहा है कि पुलिस ने पिता पर आईपीसी की धारा 109 (वारदात करने के लिए उकसाना) का मुकदमा दर्ज कर एक मिसाल पेश की है। बीते कुछ वर्षों में नाबालिगों द्वारा हिट एंड रन के हादसों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। मामला नाबालिग से जुड़ा होने के कारण अमूमन पुलिस के हाथ बंध जाते हैं। यह पहली बार है जब पुलिस ने स्वयं आगे बढ़कर आरोपी के पिता पर कार्रवाई की है। कानून इस तरह के मामलों में पिता पर सीधे कार्रवाई का अधिकार नहीं देता है परन्तु अपने नाबालिग बच्चे के हाथ में वाहन की चाबी देने पर पिता के खिलाफ उकसाने की कार्रवाई की जा सकती है। हिट एंड रन मामलों में कानून की धाराओं को और सख्त बनाने की जरूरत है। गैर इरादतन हत्या पर दो साल की सजा पर्याप्त नहीं है।
-अनिल नरेन्द्र

हेलीकाप्टर डील रिश्वत देने वाले जेल में और लेने वाले?

अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर सौदे में इटली की एक अदालत की ओर से रिश्वत देने वालों को दोषी करार देने के फैसले से भारत की सियासत में एक नया तूफान स्वाभाविक ही है। अगस्ता वेस्टलैंड कांग्रेस के लिए कहीं दूसरा बोफोर्स कांड न बन जाए। फैसले में इसका ब्यौरा है कि 12 हेलीकाप्टरों की डील में करोड़ों रुपए की दलाली दी गई। बता दें कि अगस्ता वेस्टलैंड की मूल कंपनी इटली की फिनमैकेनिका ने 3600 करोड़ रुपए की लागत पर 12 वीवीआईपी हेलीकाप्टरों का सौदा किया था। 2010 में हुए सौदे में इटली की जांच एजेंसी ने रिश्वतखोरी का आरोप लगाते हुए वहां की अदालत में केस दायर किया। बाद में जांच की आंच भारत तक पहुंची। मामले का संज्ञान लेते हुए तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी ने 2013 में सीबीआई की जांच करने का आग्रह किया था। आरोप है कि सौदे में हेलीकाप्टर की क्षमता का मानक बदलने तथा सौदे को अंतिम रूप दिलाने के क्रम में भारतीय अफसरों, नेताओं को घूस दी गई। आरोप है कि पूर्व वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल एसपी त्यागी और उनके रिश्तेदारों को नियम बदलने व ढील देने की एवज में मोटी रकम बतौर रिश्वत दी गई। 65 से 100 करोड़ रुपए की रिश्वत दी गई। जिस तरह से फैसले के 17 पृष्ठों में त्यागी का जिक्र है, उससे उनकी सक्रियता का संकेत मिलता है। सिग्नोरा (यानि श्रीमती) गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भी नाम हैं। इसमें सिग्नोरा, सौदे की मुख्य कारक है। यह श्रीमती गांधी कौन हो सकती हैं? भाजपा कहती है कि यह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर खरीद के सौदे को मनमोहन सिंह सरकार के समय अंतिम रूप दिया गया था। कुछ समय बाद यह सामने आया कि इस सौदे में दलाली का लेन-देन हुआ है। इस पर तत्कालीन सरकार ने न केवल हेलीकाप्टर सौदे को रद्द किया, बल्कि यह भी स्वीकार किया कि किसी ने रिश्वत ली है। यह स्वीकारोक्ति खुद तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटोनी की ओर से की गई थी। हालांकि इस सौदे में दलाली के लेन-देन की जांच सीबीआई के साथ-साथ प्रवर्तन निदेशालय की ओर से भी की जा रही है। लेकिन दोनों ही एजेंसियां अभी तक मामले की तह तक नहीं पहुंच सकी हैं। चूंकि इटली की अदालत की ओर से यह कहा गया कि दलाली भारतीयों को दी गई और जांच-पड़ताल के दौरान ऐसे दस्तावेज सामने आए थे जिनमें यह दर्ज था कि इस सौदे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अहम भूमिका होगी इसलिए भाजपा का कांग्रेस के प्रति हमलावर होना समझ आता है, लेकिन बात तब बनेगी जब भारतीय जांच एजेंसियां पुख्ता प्रमाण जुटाने में समर्थ साबित होंगी। मंगलवार को ही राज्यसभा के नामित सदस्य के रूप में शपथ लेने वाले सुब्रह्मण्यम स्वामी ने बुधवार को नियम 267 के तहत इस डील में रिश्वत का लाभ उठाया और उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का नाम लिया तो उस पर हंगामा हो गया। कांग्रेस के सदस्य राज्यसभा अध्यक्ष के आसन के समीप पहुंच गए और सदन को एक घंटे तक चलने नहीं दिया। खुद सोनिया गांधी ने बुधवार को इस केस में रिश्वत लेने के आरोपों को खारिज कर दिया। उन्हें और अपनी पार्टी को इससे जोड़ने के प्रयासों को पूरी तरह से आधारहीन करार देते हुए कहा कि मुझे कोई डर नहीं है। सोनिया ने सरकार से सवाल किया कि इस मुद्दे पर पिछले दो वर्षों के दौरान सरकार ने क्या किया? साथ ही उन्होंने पूरे मामले की समग्र निष्पक्ष जांच कराने की मांग की। अगस्ता  प्रसंग बड़ी राजनीतिक कीमत के रूप में आया है, जो मोदी सरकार के विरुद्ध मुद्दे चुन-चुन कर विपक्ष के रूप में जिन्दा रहने की कांग्रेस कोशिश कर रही थी। हालांकि राज्यसभा में वह तथ्यों को रखने के बजाय हंगामे का सहारा ले रही है, उससे उसकी मुश्किलें आसान नहीं होंगी। इटली के दो नाविकों की रिहाई के बदले सोनिया का नाम मामले में शामिल करने के लिए इटली-भारत के प्रधानमंत्रियों के बीच सौदेबाजी भी इसी तरह की प्रतीत होती है। रिश्वत देने वाले तो जेल पहुंच गए हैं और रिश्वत लेने वाले अभी जांच के दायरे में ही हैं।

Thursday, 28 April 2016

घाटी में सेना को बदनाम करने में काम आ रहा है खाड़ी का धन

जिस पकार कश्मीर घाटी में पिछले एक अरसे से अलगाववादी तथा आतंकवादी गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं उससे यह लगता है कि कुछ तत्व ऐसे हैं जो युवाओं को भड़का रहे हैं। घाटी में मौजूद आतंकी नेटवर्प खून-खराबे के बजाए लोगों को भड़का कर सेना तथा सुरक्षा बलों को बदनाम करने की सुनियोजित रणनीति पर काम कर रहा है। खुफिया एजेंसियों ने गृहमंत्रालय को भेजी रिपोर्ट में कहा है कि हंदवाड़ा की घटना आतंकी और अलगाववादी नेटवर्प का नतीजा है। रिपोर्ट के मुताबिक घाटी में मौजूद केंद्र विरोधी धड़ा जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-भाजपा सरकार को दबाव में रखने के लिए इन करतूतों में बराबर का भागीदार है। उधर खाड़ी के देशों से आ रहा हवाला का धन कश्मीर घाटी में हमारे सुरक्षा बलों की दिक्कतें बढ़ा रहा है। क्योंकि खबर है कि ज्यादातर अवैध धन का उपयोग सदियों पुरानी सूफी परंपरा से नौजवानों को हटाकर उन्हें चरमपंथ की तरफ लाने के लिए ढांचा बनाने में हो रहा है। कश्मीर घाटी के कई हिस्सों में नई धार्मिक संस्थाएं उभर रही हैं। सुरक्षा आकलनों के अनुसार ये सस्थाएं ज्यादातर युवाओं को आकर्षित कर रही हैं और इनमें धर्म के उस रूप को पेश किया जा रहा है, जिस पर पतिबंधित आईएसआईएस और अल-कायदा जैसे आतंकी समूह चल रहे हैं। इस नए रुझान से बहुत से धार्मिक नेता परेशान हैं, क्योंकि वह महसूस कर रहे हैं कि नौजवानों की नई पीढ़ी को कश्मीर घाटी की सदियों पुरानी सूफी परंपरा से हटाया जा रहा है। नई मस्जिदों के लिए वित्त पोषण पर उठते सवाल के बीच सेना, पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि खाड़ी देशों से अवैध धन की विशाल राशि घाटी में भेजी जा रही है। कोष छोटी राशियों में आता है ताकि उसका पता न चल सके। संसद में एक सवाल पर दिए गए जवाब के अनुसार पिछले साल 82 लड़के आतंकवाद की गिरफ्त में आए। सुरक्षा अधिकारियों ने इसे एक खतरनाक रुझान करार दिया है और कहा है कि 1990 के दशक के आतंकवाद और आज के आतंकवाद में बुनियादी फर्प यह है कि अभी के आतंकवादी समूहों का विचारधारात्मक विश्वास पहले की तुलना में ज्यादा उच्च पवृत्ति का है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कश्मीर ``अखिल इस्लामीकरण'' से गुजर रहा है और नौजवान यह बात जान कर भी आतंकवाद का रास्ता अपना रहे हैं। यह जानते हुए भी कि ऐसा करने से वह अपनी मौत को ललकार रहे हैं। एक खुफिया अधिकारी ने बताया कि खाड़ी देशों में अपने पतिष्ठान रखने वाले कुछ कारोबारी घराने अपने उत्पादों की कीमत बढ़ा-चढ़ा कर ओवर इन्वाइस पेश कर रहे हैं और अतिरिक्त धन भेज रहे हैं। भारत सरकार को अविलंब ऐसी धनराशि पर पाबंदी लगाने के तरीके सोचने होंगे।
-अनिल नरेन्द्र


घायल अख्तर खान को छोड़ बाकी पुलिस भागी

उत्तर पदेश की पुलिस की साख पर एक बार फिर बट्टा लगा है। हौसला बुलंद बदमाशों ने सोमवार को तड़के दादरी कोतवाली स्थित नई आबादी में हिस्ट्रीशीटर के घर दबिश में गए दरोगा अख्तर खान (48) को गोली से उड़ा दिया। इंस्पेक्टर होम सिंह यादव के नेतृत्व में गई पुलिस पार्टी साथी दरोगा को गोली लगते ही मौके से फरार हो गई। शहीद दरोगा के मामा का आरोप है कि डेढ़ घंटे तक अख्तर मौके पर लहूलुहान पड़े रहे। बाद में स्थानीय लोगों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया जहां उन्हें मृत घोषित किया गया। अख्तर दादरी कोतवाली की कोट चौकी के पभारी थे। वारदात स्थल कोतवाली से मुश्किल से चार सौ मीटर की दूरी पर है। बदमाश जावेद व फुरकान अपने तीन साथियों के साथ फरार हो गया। मूलरूप से अलीगढ़ के फिरदोस कॉलोनी पुरानी चुंगी निवासी अख्तर खान सिपाही से पदोन्नत होकर दरोगा बने थे और कोट चौकी पर छह महीने से तैनात थे। रविवार रात पुलिस को नई आबादी मोहल्ले में हिस्ट्रीशीटर बदमाश जावेद के पास भारी मात्रा में हथियार होने की जानकारी मिली। सोमवार तड़के चार बजे इंस्पेक्टर होम सिंह यादव के नेतृत्व में 12 पुलिसकर्मियों की टीम ने छापेमारी की। जावेद अपने साथी फुरकान के घर में छिपा हुआ था। पुलिस टीम के फुरकान के घर का दरवाजा खुलवाते ही भीतर मौजूद पांच बदमाशों जावेद, औरंगजेब, फुरकान, तोता और वसीम ने पुलिस टीम पर हमला कर दिया। दरोगा अख्तर खान को गर्दन और पीठ में गोली लगी। अख्तर को गोली लगते देख पुलिस टीम  के अन्य पुलिसकर्मी जिसमें इंस्पेक्टर भी शामिल था मौके से भाग गए। डेढ़ घंटे बाद पुलिस टीम फिर से मौके पर पहुंची और तब तक बदमाश फरार हो चुके थे। मुख्य आरोपी हिस्ट्रीशीटर जावेद पर हत्या और लूट के 15 मुकदमे दर्ज हैं। ज्यादातर मामले दिल्ली में दर्ज हैं। शहीद हुए सब इंस्पेक्टर अख्तर खान के घर वाले इस मामले में साथी पुलिसकर्मियों पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। ऐसी स्थिति में आरोप लगाना स्वाभाविक भी है। हमेशा आगे रहने वाले एक जांबाज को गोली लगने के बाद टीम में शामिल बाकी पुलिसकर्मी अकेला छोड़कर क्यों भाग गए यह सबसे बड़ा सवाल है। जब टीम पूरी तैयारी के साथ गई थी तो बदमाशों का मुकाबला क्यों नहीं किया गया? कोतवाली भी मुश्किल से कुछ मीटर दूरी पर थी। बताया जा रहा है कि दबिश देने गई टीम में सबसे आगे अख्तर खान ही थे। इस बार भी बदमाश चकमा देकर फरार होने में सफल रहे। आसपास के लोगों की बातों पर गौर करें तो जब स्थानीय लोगों ने देखा कि अख्तर खान खून से लथपथ पड़े हैं और बाकी पुलिस टीम मौके से भाग खड़ी हुई तो उन्होंने ही अख्तर खान को अस्पताल पहुंचाया। यह भी चर्चा है कि अख्तर खान किसी साजिश के शिकार तो नहीं हुए?

Wednesday, 27 April 2016

अवैध धार्मिक स्थलों के पीछे आस्था नहीं पैसा कमाना है

सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में सड़कों और फुटपाथों पर अनधिकृत पूजा स्थलों की मौजूदगी पर अधिकारियों की निक्रियता को लेकर नाराजगी जताते हुए कहा है कि यह भगवान का अपमान है। न्यायमूर्ति वी. गोपाल गौड़ा और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ ने कहाöआपको इस तरह के ढांचों को गिराना होगा। हमें पता है कि आप कुछ नहीं कर रहे हैं। पीठ ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि सड़कों और फुटपाथों पर अवैध रूप से बने धार्मिक स्थलों के पीछे लोगों की आस्था जैसी कोई बात नहीं है बल्कि लोग इसकी वजह से पैसे कमा रहे हैं। करीब सात साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने खाली जमीन पर कब्जा कर अवैध रूप से बनाए गए पूजा स्थलों के खिलाफ सख्त दिशानिर्देश जारी किए थे। तब अदालत ने कहा था कि सड़कों, गलियों, पार्कों, सार्वजनिक जगहों पर मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारों के नाम पर अवैध निर्माण की इजाजत नहीं दी जा सकती। लेकिन इतने साल बाद भी अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल सुनिश्चित नहीं हो सका है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? किसको इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाए? ऐसा लगता है कि राज्य सरकारों के पास ऐसा न करने का कोई न कोई बहाना तैयार रहता है। वैसे भी यह ठीक नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट किसी मामले में निर्देश दे और उस पर सालोंसाल अमल न हो। यह सही है कि औसतन भारतीय धार्मिक होते हैं और अपनी-अपनी तरह से पूजा-पाठ करते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर खाली जगह देखकर वहां अवैध तरीके से धार्मिक स्थल बना दिए जाएं। आखिर ऐसे स्थलों पर ईश्वर की आराधना का क्या औचित्य है जो नियम-कानूनों की अनदेखी कर बने हों? अधिकतर ऐसे धार्मिक स्थलों के कारण आम लोगों को परेशानी भी होती है। धर्म और आस्था ऐसा संवेदनशील मामला है कि इससे जुड़ी कोई भी बात दखल से परे मान ली जाती है। भले ही उसमें व्यक्ति या समूह का निजी स्वार्थ ही क्यों न निहित हो, बल्कि इसे तब भी सही ठहराने की कोशिश की जाती है जब उससे देश के कानूनों का उल्लंघन होता हो। देशभर में बनाए गए अवैध पूजा-आराधना स्थलों के बारे में यही सच है। अमूमन हर शहर या मोहल्ले में सड़कों के किनारे लोग बिना इजाजत के धार्मिक स्थलों का निर्माण कर लेते हैं। इसमें न सिर्प सड़कों के किनारे फुटपाथों या दूसरी जगहों पर कब्जा जमा लिया जाता है बल्कि इससे कई बार तो रास्ता भी अवरुद्ध होता है। होना तो यह चाहिए कि सभी समुदायों के धर्मगुरु आगे आएं और अपनी ओर से उन धार्मिक स्थलों को हटाने की पहल करें जो नियम-कानूनों के विपरीत बने हैं और जिनकी वजह से जनता को समस्या होती है। यह सभी धर्मों के नेताओं को करना चाहिए। साथ ही जनप्रतिनिधियों को इसमें मदद करनी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

9/11 हमलों को लेकर अमेरिका- सऊदी अरब आमने-सामने

अमेरिका को कुछ महीनों बाद नया राष्ट्रपति मिलने वाला है, लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा के सामने शायद अपने कैरियर की सबसे बड़ी चुनौती सामने आ खड़ी हुई है। मसला 9/11 आतंकी हमले से जुड़ा है, जिसमें हमलावरों को मदद पहुंचाने में सऊदी अरब की भूमिका सामने आई है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या अमेरिकी संसद में वह बिल पारित होगा, जिसमें सऊदी अरब के खिलाफ अमेरिकी कोर्ट में मुकदमे की बात शामिल है। अमेरिका की राजनीति में राष्ट्रपति चुनाव की इन दिनों चर्चाएं जरूर हैं, लेकिन उससे कहीं अधिक गंभीर विचार-विमर्श ओबामा प्रशासन को सऊदी अरब के खिलाफ अमेरिकी कोर्ट में मुकदमे पर करना पड़ रहा है। अमेरिकी संसद के निचले सदन `कांग्रेस' में ऐसा बिल लाने की तैयारी है, जिसमें सऊदी अरब को 9/11 न्यूयॉर्प हमलों में आतंकवादियों की मदद करने के लिए संदेह भरी नजरों से देखा जा रहा है। उसमें स्पष्ट उल्लेख है कि सऊदी अरब ने अपने चैनल के जरिये अमेरिका में मौजूद आतंकवादियों को न केवल प्रशिक्षण में मदद दिलाई, बल्कि उन्हें वित्तीय सहायता भी पहुंचाई। यही बड़ा कारण है कि हमले के 15 साल बाद भी 9/11 हमले के कारण, उसके जिम्मेदार और मददगारों पर कार्रवाई की प्रक्रिया चल रही है। कांग्रेस में यह बिल इसलिए लाया जा सकता है, क्योंकि 9/11 की जांच रिपोर्ट में 28 पन्ने ऐसे हैं जिन्हें अभी सार्वजनिक नहीं किया गया जो सऊदी अरब के 9/11 हमले से संबंधित हैं। यह जानकारी सामने आई है कि हमलावरों को सऊदी अरब से मदद मिली थी। इसे अमेरिका में 9/11 हमले के पीड़ितों और उनके परिवारों को न्याय दिलाने के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसे में अगर बिल पारित करके सऊदी अरब के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा चलता है तो अमेरिका और सऊदी अरब रिश्तों में निश्चित रूप से तनाव आ जाएगा। विश्व में अमेरिका ही ऐसा देश है, जिसकी डिप्लोमैटिक, आर्थिक और सैन्य गतिविधियां विदेशों में अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा होती हैं। अगर देशों को मुकदमे से छूट के सिद्धांत का हनन होता है, तो अन्य देशों की तुलना में अमेरिका के खिलाफ ज्यादा मुकदमे कायम होंगे। विदेश नीति के कारण भी अमेरिका सबसे आकर्षक और हाई-प्रोफाइल टारगेट बन जाएगा। इस कारण अमेरिका लंबे समय से किसी अन्य देश के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के झंझटों से बचा हुआ है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि उदाहरण के तौर पर सीरिया में अमेरिका ने उन विद्रोहियों का सहयोग किया, जिन्होंने असद सरकार की सेना से संघर्ष करने के दौरान आम लोगों की भी जान ली। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका पर आतंक को बढ़ावा देने और मदद करने पर भी मुकदमा चल सकता है। यही नहीं, अमेरिकी सेना अलकायदा और इस्लामिक स्टेट के आतंकियों पर हमले करती है तो उसे कई देश मानते हैं कि यह कार्रवाई भी आतंकवाद जैसी है।

Tuesday, 26 April 2016

कांग्रेस के भगवा आतंकवाद की निकलती हवा

कांग्रेस की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। इशरत जहां मामले के बाद समझौता धमाके मामले में एक नए खुलासे से कांग्रेस एक बार फिर बैकफुट पर आने पर मजबूर है। दरअसल राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मंगलवार को सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि समझौता एक्सप्रेस धमाके मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं है और न ही पुरोहित को कभी आरोपी बनाया गया था। बावजूद इसके पुरोहित का नाम जानबूझ कर मामले में घसीटा गया। एनआईए ने कहा है कि हालांकि पुरोहित के खिलाफ मालेगांव धमाका मामले में जांच अभी जारी है। बता दें कि 18 फरवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत के पास अटारी एक्सप्रेस (समझौता एक्सप्रेस) में हुए बम धमाकों में आठ लोगों को आरोपी बनाया गया था। इन धमाकों में 68 लोगों की जान चली गई थी। एनआईए निदेशक शरद कुमार ने कहाöसमझौता धमाका मामले में कोई सबूत नहीं है। पुरोहित कभी आरोपी था ही नहीं। मुझे हैरानी है कि उसका नाम समझौता धमाका मामले से क्यों जोड़ा गया? कर्नल पुरा]िहत ने इस महीने के शुरू में रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को पत्र लिखकर कहा कि उनके खिलाफ इस मामले में कोई सबूत नहीं है, इसके बावजूद बेवजह उन्हें जेल में बंद रखा गया है। ऐसे में उन्हें रिहा किया जाए और साथ ही उनका सम्मान, पदवी और वेतन सभी बहाल किए जाएं। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने गुरुवार को माना कि उन्होंने सेना से कहा है कि लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को सभी दस्तावेज मुहैया करवाए जाएं जो उन्होंने मांगे हैं ताकि मालेगांव विस्फोट मामले में खुद को निर्दोष साबित कर सकें। पर्रिकर ने कहा कि मामला अदालत में है और वे मामले के गुण-दोष पर निर्णय नहीं कर सकते। भगवा आतंकवाद मामले में कांग्रेस ने बड़े जोर से हल्ला मचाया था। हकीकत कुछ और ही है। अक्तूबर 2007 में हुए अजमेर दरगाह ब्लास्ट और फरवरी 2007 में समझौता ब्लास्ट मामले में कांग्रेसी अभियान की हवा निकलती जा रही है। इन दोनों मामलों में अब तक 40 गवाह अपने बयान से मुकर चुके हैं। गवाहों के पलटने का यह सिलसिला 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद शुरू हुआ। ऐसा ही एक जबरन बनाया गया केस साध्वी प्रज्ञा का भी है जिन्हें बिना वजह, बिना किसी ठोस सबूत के जेल में बंद कर रखा है। हालांकि वह बुरी तरह पीड़ित हैं फिर भी उनको जमानत नहीं दी जा रही है। गवाहों का कहना है कि पहले उन्होंने दबाव में बयान दिया था। बदले बयान में स्वामी असीमानंद को भी निर्दोष बताया गया है। कांग्रेस की भगवा आतंकवाद के झूठे आरोप की हवा निकल रही है।

-अनिल नरेन्द्र

प्रधानमंत्री नवाज शरीफ बनाम सेना प्रमुख राहील शरीफ

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और प्रभावशाली सेना प्रमुख राहील शरीफ के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है। तख्तापलट की आशंका के बीच नवाज शरीफ ने जनरल शरीफ को नाटकीय तरीके से चुनौती दी है। अपनी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने वालों पर बरसते हुए नवाज ने कहा है कि उनका सिर सिर्प अल्लाह और अवाम के सामने झुकता है। एक नाटकीय टीवी संबोधन में शरीफ ने कहाöमेरी जवाबदेही सिर्प अल्लाह और अवाम के प्रति बनती है। उन्होंने यह भी कहा कि पनामा पेपर्स लीक में अपने और अपने परिवार के सदस्यों के नाम आने की अफवाह से मैं आहत हूं। इस मामले में किसी भी जांच के लिए पूरी तरह से तैयार हूं। पाक सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ द्वारा छह वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रष्टाचार के आरोप में निकालने के बाद नवाज शरीफ ने नेशनल टीवी के जरिये अपनी सफाई दी। आर्मी चीफ ने अधिकारियों को बर्खास्त करते हुए कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई भ्रष्टाचार के रहते नहीं जीती जा सकती। माना जा रहा है कि राहील शरीफ का इशारा नवाज शरीफ की तरफ था। उन्होंने कहा कि आतंक के खिलाफ जारी हमारी जंग भ्रष्टाचार के रहते जीती नहीं जा सकती, इसलिए भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने की खातिर हम सबको अपनी जवाबदेही तय करनी ही होगी। जनरल शरीफ का यह निशाना सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए माना जा रहा है। इधर सेना प्रमुख का दबाव तो उधर विपक्षी दलों का। विपक्षी दल पनामा पेपर्स को लेकर प्रधानमंत्री के इस्तीफे पर अड़े हैं। नवाज के संबोधन के बाद नेशनल असेम्बली में विपक्ष के नेता खुर्शीद शाह ने जमात--इस्लामी के मुखिया और तहरीक--इंसाफ के महमूद कुरैली से बात भी की। गौरतलब है कि पनामा पेपर्स के लीक दस्तावेजों में नवाज शरीफ के दो बेटों हसन और हुसैन तथा बेटी मरियम को विदेशी कंपनियों का मालिक बताया गया है। शुरुआत में नवाज ने इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के किसी रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में विशेष आयोग से कराने की पेशकश ठुकरा दी थी। इस मामले को लेकर उन पर कितना दबाव है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि इस महीने वे दो बार टीवी के माध्यम से देश को संबोधित कर चुके हैं। पाकिस्तान के अंदरुनी हालात ठीक नहीं हैं। सिविल सरकार और सेना के बीच तनातनी बढ़ रही है। पाकिस्तान में नवाज शरीफ और उनके परिवार के भ्रष्टाचार को लेकर जनता काफी नाराज है। सेनाध्यक्ष जनरल राहील शरीफ ने सेना के जनरल स्तर के अफसरों को भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर इसे और हवा दी है। इससे भी नवाज शरीफ की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है।

Monday, 25 April 2016

US Senators want to hold Saudi Arabia responsible for 9/11 attacks

Since past few days tension has been building up between the US and Saudi Arabia. In fact two American Senators, John Carnine and Charles Sumer have prepared a draft bill. The bill talks about the justice for terror effected victims against the sponsors of terrorism. It will also include prosecution of the nations supporting the terrorism by the victims of September 2011 i.e. 9/11 attack and other terrorist attacks. In the 9/11 terrorist attack on the US most of the attackers were Saudi citizens so Saudi Arabia is being held accountable. Saudi Arabia has threatened the US and the US senators not to go ahead with the proposed bill in any manner for 9/11 attacks. It has said that if the US Senator tries to confiscate the existing Saudi property in the US it will sell it before this can happen. The said property costs about 750 Billion Dollars. Obama Administration is battling to prevent this resolution from being passed in the US Congress. As per reports of New York Times, the US Congress wants to pass a bill regarding the 9/11 attacks in which Saudi Arabia is also to be held accountable and guilty for it. Saudi Arabia fears that the US might confiscate its property in that country. On the other hand the economists believe that it will not be easy for Saudi Arabia to sell the property in the US since it will also affect its economy. But it will be more profitable however to sell the property before it is confiscated. Because of this possibility relations between the US and the Saudi Arabia are very tense. Obama is busy in persuading the Senators to drop the proposed bill. Saudi Arabia is the largest oil exporter and the largest buyer of the US weapons. Obama Administration, Pentagon and the Department of Foreign Affairs have warned its senators that the passing of the bill may not only affect the diplomatic relations with Saudi Arabia but it may hit the US economy also. The Saudi Arabian Foreign Minister Zuber had informed about the threat to the US leaders on behalf of his country during the US visit last month. In fact after passing of this new US law, the victims of 9th September 2011 will be allowed to lodge a case against Saudi Arabia.

-         Anil Narendra

Sunday, 24 April 2016

मेरा अगला टारगेट है रियो ओलंपिक्स में मैडल जीतना

22 साल की जिम्नास्ट दीपा कर्माकर ने कुछ महीने बाद होने वाले रियो 2016 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करके इतिहास रच दिया है। यही नहीं, इस भारतीय जिम्नास्ट ने अगले ही दिन ओलंपिक परीक्षण प्रतियोगिता की वाल्त्स स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला भी बन गई हैं। 52 साल में पहली बार किसी भारतीय ने जिम्नास्टिक में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया है। आखिरी बार 1964 में ऐसा हुआ था। दीपा ने यहां तक पहुंचने के लिए लंबा व कठिन संघर्ष किया है। दीपा छह साल की थी तभी से उसके पिता ने सोच लिया था कि वो इसे जिम्नास्ट बनाएंगे। लेकिन इसमें एक दिक्कत थी। दीपा के पैर के तलवे सपाट थे। ऐसे पैरों के कारण एथलीट के लिए पैर जमाना, भागना या कूदना आसान नहीं होता। पैरों में घुमाव लाना भी असंभव होता है। बावजूद इसके दीपा की जिद थी कि कुछ भी हो जाए, वो जिम्नास्टिक नहीं छोड़ेगी। अंतत दीपा के पिता ने जो भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) में वेट-लिफ्टिंग कोच थे, ने उसे अगरतला के विवेकानंद जिम में ट्रेनिंग के लिए भेजा। लेकिन इस जिम में ढंग के इक्विपमेंट भी नहीं थे। मैट लगाकर वॉल्ट की तैयारी करनी पड़ती थी। जिम में बारिश में पानी भर जाता। चूहे और काकरोच भी आ जाते। बावजूद इसके वो अपने हुनर को संवारती रहीं। दीपा की मां गौरी ने बताया कि बेटी ने अपनी पहली जिम्नास्टिक स्पर्धा में उधार की कॉस्ट्यूम पहनी। इतना ही नहीं, उस वक्त उसके पास जूते भी नहीं थे। बावजूद इसके दीपा ने वहां सभी को चौंकाया। वर्षों की कड़ी मेहनत, तपस्या ने आखिर रंग दिखा दिया। आज उसने अपना वो वादा पूरा कर दिखाया। आजादी के बाद ओलंपिक में अब तक सिर्प 11 भारतीय जिम्नास्टों ने हिस्सा लिया है, जिनमें से दो ने 1952, तीन ने 1956 और छह ने 1964 में भाग लिया था पर यह सब पुरुष थे। दीपा कर्माकर का क्वालीफाई करने के बाद अब कहना है कि उनकी नजरें अब रियो ओलंपिक में मैडल जीतने की है। असल में आपका इरादा पक्का हो तो कई बुराइयां भी ताकत बन जाती हैं। दीपा ने यह कर दिखाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दीपा कर्माकर के मुरीद हो गए हैं। उन्होंने मंगलवार को कहा कि इस जिम्नास्ट ने अपने दृढ़ संकल्प से पूरे देश को गौरवान्वित किया है। पीएम ने कहा कि देश की बेटी ने ओलंपिक्स के जिम्नास्टिक्स स्पर्धा के लिए जगह अपने दृढ़ संकल्प से हासिल की है। संसाधनों की कमी को अपने आड़े नहीं आने दिया। हम दीपा को बधाई देने के साथ-साथ उनसे उम्मीद करते हैं कि वह रियो में जिम्नास्टिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनें।

-अनिल नरेन्द्र

राष्ट्रपति राजा नहीं, उनके फैसलों की भी समीक्षा हो सकती है

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले की सुनवाई कर रहे नैनीताल उच्च न्यायालय द्वारा राष्ट्रपति शासन की अधिसूचना को रद्द कर देने के बाद हरीश रावत सरकार की बहाली तो हो गई लेकिन यह फैसला केंद्र सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। राष्ट्रप]ित शासन से पूर्व की स्थिति बहाल करने से हाई कोर्ट के आदेश में लोकतंत्र और हमारी संसदीय तथा संघीय व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के कई सबक हैं। ये सबक खासकर ऐसे दौर में जरूरी हो गए हैं जब हमारी संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था कई तरह के सवालों से घिरती जा रही है। सियासी बढ़त हासिल करने की होड़ इस कदर कटुता का माहौल पैदा कर रही है कि स्थापित मर्यादाओं और संस्थाओं का ख्याल रखने की जरूरत भी नहीं समझी जा रही है। बेशक केंद्र सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी पर इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि इस फैसले से मोदी सरकार और भाजपा को धक्का लगा है। भाजपा के प्रबंधक यह कहकर अपना बचाव नहीं कर सकते कि यह कांग्रेस का अंदरूनी मामला है। हकीकत तो यह है कि विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत के नेतृत्व में हरीश रावत के खिलाफ हुई बगावत के बाद भाजपा उत्तराखंड में अरुणाचल प्रदेश जैसी स्थिति की पुनरावृत्ति देख रही है, जहां कांग्रेस के बागियों को साथ लेकर वह सरकार बनाने में सफल हुई है। उत्तराखंड में जैसे विनियोग विधेयक पर विधानसभा अध्यक्ष के कथित तौर पर पक्षपातपूर्ण रवैये को निरस्त करने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाने और केंद्र से विनियोग अध्यादेश जारी करने के लिए संसद का बीच में सत्रावसान करने का तरीका अपनाया गया, उसकी मिसाल अपवादस्वरूप ही मिलती है। हाई कोर्ट ने इसे बेहद आपत्तिजनक और केंद्र का बेमानी हस्तक्षेप माना। फिर अगर हरीश रावत की सरकार विधायकों की खरीद-फरोख्त और भ्रष्टाचार में लिप्त थी तो यह कोई मासूम ही मान सकता है कि कांग्रेसी बागी और भाजपा नेतृत्व विशुद्ध लोकतांत्रिक मर्यादाओं के तहत जुटे थे। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को अदालतें बेहद गंभीरता से लेती हैं और इस मामले में जरा भी कोताही उसे मंजूर नहीं है। अदालत ने तो मोदी सरकार पर लोकतंत्र की जड़ें काटने तक का आरोप लगा दिया। इतना ही नहीं, अदालत ने कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की सदस्यता खत्म करने के स्पीकर के फैसले को भी सही करार देते हुए हरीश रावत को 29 अप्रैल को विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने का आदेश दिया। इस फैसले के बाद कांग्रेस में खुशी की लहर फैल गई और नैनीताल हाई कोर्ट का फैसला पार्टी के लिए संजीवनी बनकर आया है। कांग्रेसी रणनीतिकार महसूस कर रहे हैं कि फैसले के बाद राज्य में कांग्रेस प्लस में आ गई है। लोगों की सहानुभूति अब हरीश रावत के साथ होगी। यह भी कि सुप्रीम कोर्ट में चाहे जो भी फैसला हो, लेकिन आम लोगों में यह संदेश चला गया है कि उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार को गलत तरीके से हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया गया। लोगों में गए इस संदेश का कांग्रेस को बड़ा फायदा होने की उम्मीद है। हमें भाजपा के रणनीतिकारों की समझ नहीं आई। वैसे भी अगले साल तो उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने ही थे। रावत की चुनी हुई सरकार को इतनी जल्दी में हपड़छपड़ में गिराने का क्या तुक था? लोगों की सहानुभूति अब कांग्रेस और हरीश रावत के साथ होगी और ऐसे में रावत यदि निकटभविष्य में या समय पर भी चुनाव का ऐलान कर देते हैं तो कांग्रेस को फायदा मिल सकता है। यदि 29 अप्रैल को हरीश रावत अपना बहुमत साबित कर लेते हैं तो भाजपा और केंद्र सरकार की नए सिरे से किरकिरी होगी, लेकिन यदि किसी कारणवश ऐसा नहीं होता तो भाजपा को अपनी और साथ ही लोकतंत्र की जीत का दावा करने का मौका तो मिलेगा ही, उच्च न्यायालय के फैसले का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। वैसे बेहतर होता कि हाई कोर्ट महामहिम पर टिप्पणी न करता। नए राजनीतिक घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर 27 अप्रैल तक स्थगन लगा दिया है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह की पीठ ने संक्षिप्त आदेश जारी कर भारतीय संघ सुनवाई की अगली तारीख तक राष्ट्रपति शासन की घोषणा रद्द नहीं करेगा।

Saturday, 23 April 2016

इशरत जहां मामले में बुरे फंसे चिदम्बरम

इशरत जहां मामले में पूर्व गृहमंत्री पी. चिदम्बरम की पोल खुल गई है। यह बेहद शर्मनाक है कि तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने ही पहले उस हलफनामे को मंजूरी दी थी जिसमें इस युवती को आतंकी बताया गया था और फिर बाद में उसे वापस लेकर वह हलफनामा तैयार कराया गया था जिसमें उसे निर्दोष करार दिया गया था। ताजा दस्तावेजों से साफ हुआ है कि इशरत को आतंकी बताने वाले पहले हलफनामे को गृहमंत्री रहते हुए चिदम्बरम ने ही हरी झंडी दी थी। मगर एक माह बाद दूसरे हलफनामे में उसे निर्दोष बताया था। गृह मंत्रालय की फाइल के मुताबिक इशरत जहां के आतंकी होने और उसके लश्कर के आत्मघाती दस्ते का सदस्य होने का दावा करने वाले हलफनामे को खुद चिदम्बरम ने 29 जुलाई 2009 को हरी झंडी दी थी। लेकिन एक माह के भीतर ही नया हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया। दूसरे हलफनामे में उन्होंने व्यक्तिगत रूप से बदलाव किए थे। इस मामले की गहन जांच ही होनी चाहिए बल्कि इसकी भी कि वे ऐसा फर्जीवाड़ा आखिरकार कैसे कर सके? ऐसा इसलिए जरूरी भी है क्योंकि यदि देश का गृहमंत्री किसी मुख्यमंत्री का, वरिष्ठ पुलिस व सुरक्षा अफसरों का कैरियर तबाह करने के लिए इस हद तक जा सकता है तो फिर अन्य किसी के खिलाफ तो वह हर तरह का कुचक्र रच सकता है। इस फर्जीवाड़ा के कारण भारत की दो प्रमुख जांच एजेसियां आईबी और सीबीआई आमने-सामने आ गईं। इसके कारण वरिष्ठ गुजरात पुलिस के डीजी वंजारा को आठ वर्ष जेल में रहना पड़ा। वोट बैंक की खातिर कांग्रेस कितनी गिर सकती है इससे पता चलता है। चिदम्बरम ने जो कुछ किया उसमें पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी की रजामंदी भी रही होगी। एक आतंकी को निर्दोष बताना, ईमानदार अफसरों को झूठ के पुलिंदे में जबरन लपेटना छल-कपट के साथ-साथ आपराधिक कृत्य भी है। क्या इससे लज्जाजनक और कुछ हो सकता है कि सत्तारूढ़ सरकार और उसके वरिष्ठ मंत्री ही संवैधानिक गरिमा को तार-तार करें? चिदम्बरम ने इतना ही नहीं किया। उन्होंने अंध नरेंद्र मोदी विरोध से ग्रस्त होकर एक तरह से आतंकी संगठन लश्कर--तैयबा के मन मुताबिक काम किया, क्योंकि वह भी यही चाहता था कि इशरत जहां को आतंकी के तौर पर न जाना जाए। चिदम्बरम के साथ-साथ मीडिया के कुछ लोगों का भी इस षड्यंत्र में पर्दाफाश हो गया है। इन लोगों ने मिलकर पिछले कुछ वर्षों से भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाया है वह सबके सामने है। कांग्रेस पार्टी और चिदम्बरम इतना कुछ साबित होने के बावजूद अपने आपको निर्दोष बता रहे हैं। इसलिए मामले की पूरी सच्चाई सामने आनी चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र

सऊदी अरब की धमकी, खबरदार जो हमें 9/11 का दोषी बताया

पिछले कुछ दिनों से अमेरिका और सऊदी अरब के बीच तनाव पैदा हो गया है। दरअसल अमेरिका के दो सीनेटरों जॉन कॉरनिन और चार्ल्स सुमेर ने एक विधेयक तैयार किया है। विधेयक में आतंकवाद को प्रायोजित करने के खिलाफ न्याय की बात की गई है। इसमें सितम्बर 2011 यानि 9/11 हमले तथा अन्य आतंकी घटनाओं के पीड़ितों को आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति भी होगी। अमेरिका में 9/11 के आतंकी हमले में चूंकि हमलावरों में अधिकतर सऊदी अरब नागरिक थे इसलिए सऊदी अरब को दोषी ठहराया जा रहा है। इस प्रस्ताव को लेकर सऊदी अरब अब अमेरिका को धमकियां दे रहा है। सऊदी अरब ने अमेरिका और अमेरिकी सांसदों को धमकी दी है कि उसे 9/11 के हमलों के लिए किसी भी तरह से दोषी मानने की कोशिश न करे। उसने कहा है कि अमेरिकी सांसद ने अमेरिका में मौजूद सऊदी अरब की सम्पत्ति को जब्त करने की कोशिश की तो वह पहले से ही अपनी सम्पत्ति बेच देगा। यह सम्पत्ति करीब 750 अरब डॉलर की है। धमकी के बाद ओबामा प्रशासन अमेरिकी सांसदों की संसद में प्रस्ताव पारित होने से रोकने की कोशिश में जुट गया है। न्यूयॉर्प टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी संसद 9/11 के हमलों के संबंध में एक बिल पास करना चाहती है। इसमें सऊदी अरब को भी उसके लिए जिम्मेदार व दोषी ठहराया जाना है। सऊदी अरब को आशंका है कि अमेरिका उस देश में उसकी सम्पत्ति जब्त न कर ले। दूसरी ओर अर्थशस्त्रियों का मानना है कि अमेरिका में सम्पत्ति बेचना सऊदी अरब के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि उससे उसकी अर्थव्यवस्था को भी नुकसान होगा। लेकिन सम्पत्ति जब्त होने से उसे बेचने में ज्यादा फायदा रहेगा। परन्तु उसके बाद सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्तों में और ज्यादा तनाव आ जाएगा। ओबामा सांसदों को मनाने में लगे हैं। सऊदी अरब सबसे बड़े तेल निर्यातक और अमेरिकी हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार भी है। ओबामा प्रशासन, पेंटागन तथा विदेश विभाग ने अपने सांसदों को चेतावनी दी है कि बिल पारित होने से न केवल सऊदी अरब के साथ राजनयिक संबंध बिगड़ेंगे बल्कि आर्थिक व्यवस्था भी बिगड़ सकती है। सऊदी अरब के विदेश मंत्री जुबेर ने पिछले महीने अमेरिकी दौरे के समय अपने देश की ओर से अमेरिकी नेताओं को धमकी की जानकारी दी थी। असल में इस नए अमेरिकी कानून के पारित होने के बाद नौ सितम्बर 2011 के पीड़ितों को सऊदी अरब के खिलाफ मामला दर्ज करने की अनुमति होगी।

Friday, 22 April 2016

कोट लखपत जेल कब्रगाह बनकर रह गई है

पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से शायद ही कभी बाज आए। बस सवाल यही है कि वह कितना गिर सकता है। मानवता नाम की तो कोई चीज पाकिस्तान के बर्ताव में कोई स्थान नहीं रखती है। कोट लखपत जेल में भारतीय कैदी कृपाल सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के 10 दिन बाद उसने मंगलवार को उसका शव भेजा। 21 साल से भारत की वापसी की राह देख रहे कृपाल सिंह परदेसी ने 11 अप्रैल को कोट लखपत जेल में आखिरी सांस ली थी। भारत पहुंचने पर कृपाल के शव का अमृतसर मेडिकल कॉलेज में पोस्टमार्टम किया गया। इसमें पता चला कि पाक डाक्टरों ने शव से पहले ही दिल व लीवर निकाल लिया था। शव का लाहौर में भी पोस्टमार्टम हुआ था। पाक ने कृपाल की मौत हार्ट अटैक से  बताई थी, जिसके लिए हार्ट व लीवर निकाला गया। अंदरूनी अंगों का बिसरा निकालकर लैब में भेज दिया गया, जहां स्पष्ट होगा कि उन्हें जहर देकर तो नहीं मारा गया? मई 2013 में पाकिस्तान ने सरबजीत सिंह का शव भी दिल और दोनों किडनी निकालकर भेजा था। कृपाल सिंह के भतीजे अश्विनी ने दावा किया कि उसके चाचा कोट लखपत जेल में सरबीजत सिंह पर हुए हमले के चश्मदीद गवाह थे। पाकिस्तान सरकार को आशंका थी कि कृपाल सिंह की रिहाई के बाद सरबजीत पर हुए हमले का सच बाहर आ जाएगा, इसलिए एक षड्यंत्र के तहत कृपाल सिंह की हत्या की गई है। दरअसल पाकिस्तान की कोट लखपत जेल कब्रगाह बनकर रह गई है। यहां पिछले तीन वर्षों में तीन भारतीयों की निर्मम हत्या हुई है। जनवरी 2013 में जम्मू-कश्मीर के पुंछ निवासी चमेल सिंह की इसी जेल में कैदियों ने पीट-पीटकर हत्या की थी। सरबजीत सिंह की भी कोट लखपत जेल में हमला कर हत्या की गई थी। आशंका है कि अब कृपाल को भी जेल में पीट-पीटकर ही मारा गया है। पाकिस्तान सरकार ने चमेल सिंह की मौत का कारण हार्ट अटैक बताया था और अब कृपाल सिंह की मौत भी हार्ट अटैक से बताई जा रही है। शव की हालत देख कृपाल के परिजनों ने पाक के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। परिवार ने कृपाल की हत्या की आशंका जताई है। उनका कहना है कि शव के चेहरे और शरीर पर चोट के निशान हैं। पाकिस्तान जेल में मरे कृपाल सिंह के शव के साथ आए सामान में एक खत भी मिला, जो उसने मौत से पहले परिवार को लिखा था पर पोस्ट नहीं कर पाया। खत में वह परिवार से अपील कर रहा था कि उससे मिलने आओ या उसे यहां से निकालने के लिए कोई वकील करो। वह बेकसूर है और उसे जबरन फंसाया जा रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

सुषमा स्वराज का तेहरान-मास्को दौरा

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की ईरान, रूसी व चीनी नेताओं से बातें कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। चाहे मामला ईरान से तेल का रहा हो या फिर चीन से मसूद अजहर का रहा हो। अंतर्राष्ट्रीय नीतियां किसी नैतिकता और सिद्धांत की बजाय शुद्ध भू-राजनीतिक हितों पर आधारित होती हैं और मसूद अजहर के मामले में चीन के पाकिस्तान के प्रति झुकाव को इसी संदर्भ में देखना होगा। लंबे समय से आतंकवाद से जूझ रहे भारत का हमेशा से यही मानना रहा है कि आतंकवाद को खत्म करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को इस पर दोहरा रुख खत्म करना होगा। रूस, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मास्को में हुई बैठक में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने देश के इसी रुख को दोहराया है और आगाह किया है कि आतंकवाद पर दोहरा रुख उनके लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए हमें इस बात से संतोष जरूर मिला है कि सुषमा जी ने मास्को में इकट्ठे हुए विदेश मंत्रियों की बैठक से अलग चीन के विदेश मंत्री वांग वी से अलग मिलकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई। मसूद अजहर और लखवी के मामले में भारत के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को चीन धता बताता रहा है और ऐसा करने के पीछे साफ तौर पर पाकिस्तान को समर्थन देना है। जब मुंबई पर 26/11 का आतंकी हमला हुआ था और भारत पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर निशाना लगाने की सोच रहा था तब भी चीन के प्रतिनिधि बिना बुलाए भारत आए थे और शांति और संयम से काम लेने की सलाह दे गए थे। उसी हमले के सिलसिले में जब लखवी की रिहाई का भारत ने विरोध किया था तो भी चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया था। हाल ही में पठानकोट में हुए हमले के मुख्य साजिशकर्ता और जैश--मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में डालने का प्रयास किया तो इसे सिर्प इसलिए नाकाम कर दिया गया क्योंकि चीन ने इस पर वीटो कर दिया था। इसलिए यह अच्छा है कि सुषमा जी ने चीन को भारत के दृष्टिकोण से अवगत करा दिया है। मास्को से पहले सुषमा जी ईरान की राजधानी तेहरान गई थीं। ईरान भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंध हटाए जाने के बाद ईरान के साथ ऊर्जा क्षेत्र में संबंधों के विस्तार के लिए तेल एवं गैस क्षेत्र समेत पेट्रो रसायन और उर्वरक खंड में ईरान भारत के लिए महत्वपूर्ण है। सुषमा स्वराज ने ईरान के सर्वोच्च नेता सैयद अली खोमैनी के सलाहकार अली अकबर विलायती, विदेश मंत्री जावेद शरीफ से सभी मुद्दों पर बातचीत की। भारत ईरान से तेल का आयात बढ़ाने का भी इच्छुक है जो फिलहाल 3,50,000 बैरल प्रतिदिन का है। ईरान की सीमा अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लगी हुई है। ईरानी नेताओं ने क्षेत्रीय मुद्दों विशेष तौर पर अफगानिस्तान और आतंकवाद की चुनौती पर भारत के साथ निकट परामर्श की भी उम्मीद जताई। ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने स्वराज से कहाöभारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक तौर पर बेहद गहरे सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। इससे दोनों देशों के बीच पर्यटन और जनता के बीच सम्पर्प का बेहतर भागीदारी बढ़ाने का रास्ता बन सकता है। भारत और ईरान ने चाबहार परियोजना की प्रगति की समीक्षा की। भारत और ईरान में इस बात की सहमति भी बनी कि चाबहार के लिए व्यावसायिक अनुबंध और चाबहार बंदरगाह के लिए 15 करोड़ डॉलर के वित्त पोषण के तौर पर जल्द दस्तख्त किए जाएंगे। कुल मिलाकर चाहे मुद्दा आतंकवाद का रहा हो या भारत की ऊर्जा जरूरतों का रहा हो, सुषमा स्वराज का दौरा सफल रहा। ईरान से भारत के रिश्ते हमेशा से अच्छे रहे हैं और कुछ समय बाद प्रधानमंत्री का भी ईरान जाने का कार्यक्रम है। सुषमा जी ने सही ग्राउंड वर्प किया है।

Thursday, 21 April 2016

कम उम्र के युवा पिएं शराब तो लाइसेंस रद्द हो

सड़क सुरक्षा के प्रति गंभीर केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजमार्गों से स्पीड ब्रेकर हटाने का गंभीरता से विचार कर रही है। केंद्र ने राज्य सरकारों और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को स्पीड ब्रेकर हटाने के लिए युद्ध स्तर पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। साथ यह भी निर्देश दिया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर बने स्पीड ब्रेकर हटाने और उनकी जगह पर रंबल स्ट्रिप बनाने के लिए चिन्हित स्थानों का ब्यौरा 10 दिनों के भीतर उपलब्ध कराएं। समझा जाता है कि इसी महीने तक सभी राज्य सरकारें और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण स्पीड ब्रेकर के संबंध में अपनी रिपोर्ट केंद्रीय सडक, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को सौंप देंगे। गौरतलब है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर बने ऊंचे और खतरनाक स्पीड ब्रेकर तेज रफ्तार में आने वाले वाहनों के लिए दुर्घटना का कारण बनते हैं। रात में स्पीड ब्रेकरों पर चमकदार पेंट न होने की दशा में अक्सर वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। इससे जानमाल का नुकसान होता है। लिहाजा इंडियन रोड कांग्रेस की संस्तुति के बाद राष्ट्रीय राजमार्गों पर ऊंचे स्पीड ब्रेकर की जगह रंबल स्ट्रिप बनाने की शुरुआत की गई है। कुछ वर्षों से केंद्र सरकार की ओर से लगातार कोशिश की जा रही है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर रंबल स्ट्रिप का निर्माण किया जाए लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाया है। कुछ जोनल अथॉरिटी की ओर से राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्पीड ब्रेकर बनाने की वजह से दुर्घटनाएं होती रहती हैं। सड़क सुरक्षा की जब बात कर रहे हैं तो दिल्ली और देश के अन्य शहरों में कम उम्र के बच्चों द्वारा शराब पीकर गाड़ी चलाने की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। बार, रेस्तरां, लाउंज को ड्रंकन ड्राइEिवग की भयावहता की समझ नहीं है और न ही बड़े पैमाने पर जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी है तो ऐसे बार लाउंजों, रेस्तरां की निगरानी की सख्त जरूरत है जहां 25 वर्ष की उम्र से कम युवाओं को शराब परोसी जाती है। यदि बारों, रेस्तराओं में 25 वर्ष से कम की उम्र के युवाओं को शराब पीते हुए पाया जाता है तो इनके लाइसेंस रद्द कर दिए जाने चाहिए। यह टिप्पणी दिल्ली की एक अदालत ने एक 19 वर्षीय युवक के ड्रंकन ड्राइविंग के मामले में सुनवाई करते हुए की। युवक को मजिस्ट्रेटी अदालत ने तीन दिन की सजा सुनाई। इस फैसले को सत्र अदालत में चुनौती दी जहां सत्र अदालत ने उसकी तीन दिन की सजा में संशोधन करते हुए उसे सात दिन गुरुद्वारे में सेवा करने का आदेश दिया है। तीस हजारी अदालत के विशेष न्यायाधीश हिमानी मल्होत्रा ने ड्रंकन ड्राइविंग के मामले में मजिस्ट्रेटी अदालत द्वारा सुनाई गई तीन दिन जेल में नरमी को लेकर सुनाई। अर्जी 19 वर्षीय युवक गुरसिमर सिंह की ओर से पेश की गई थी। गुरसिमर जब वाहन चला रहा था तो उसके शरीर में न्यूनतम निर्धारित मात्रा से नौ गुना अधिक मात्रा में शराब मौजूद थी।

-अनिल नरेन्द्र

नीतीश का संघ-भाजपा मुक्त का नारा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद अपने पहले सार्वजनिक कार्यक्रम में देश को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से मुक्त करने का नारा दिया है। दरअसल नीतीश दिखाना चाहते हैं कि वे अब सिर्प बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बल्कि राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर रहे प्रधानमंत्री बनने लायक हैं। अभी तक विपक्षी दल कांग्रेस को निशाने पर रखकर अलग मोर्चा बनाने की बात करते थे। पर अब वह समीकरण बदल गया लगता है। हालांकि नीतीश ने यह संकेत तो अभी नहीं दिया कि किन दलों को एक झंडे के नीचे लाने का प्रयास होना चाहिए, पर जाहिर है कि उनकी मुराद समाजवादी विचारधारा में यकीन करने वाले और कुछ बड़े क्षेत्रीय दलों को जोड़ने से होगी। वैसे बता दें कि यह पहला मौका नहीं है जब अलग मोर्चा बनाने की बात उठी है। कई बार ऐसे प्रयास हो चुके हैं। कुछ मौकों पर तो ऐसे गठबंधनों को केंद्रीय सत्ता संभालने का मौका भी मिला, मगर हकीकत यह है कि विचार व्यवहार में उतना सफल नहीं हो सका। दो साल पहले लोकसभा चुनाव के समय मुलायम सिंह यादव ने भी तमाम छोटे दलों को जोड़कर भाजपा और कांग्रेस के सामने तीसरा मोर्चे के रूप में सशक्त चुनौती पेश करने की पहल की थी, पर वह सिरे नहीं चढ़ा। अब नीतीश कुमार भाजपा का भय दिखाकर सभी पार्टियों को जोड़ने की बात कर रहे हैं तो निश्चित रूप से इसके पीछे दो प्रमुख कारण हो सकते हैं। पहला बिहार विधानसभा चुनाव में बने गठबंधन का प्रभाव और दूसरा बड़े रणनीतिकार प्रशांत किशोर। बीते साल मिशन बिहार में नीतीश को राजग पर बड़ी बढ़त दिलाने वाले रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अब बिहार के मुख्यमंत्री के लिए मिशन 2019 की पटकथा लिखने का सिलसिला शुरू कर दिया है। अगले लोकसभा चुनाव में तीन साल बाकी हैं, लेकिन भावी चुनावी जंग को नीतीश बनाम मोदी में तब्दील करने की तैयारी अभी से शुरू हो गई है। इस क्रम में नीतीश भाजपा के राष्ट्रवाद के जवाब में धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की पिच पर बैटिंग करते दिखेंगे। इसके लिए बीते लोकसभा चुनाव में कभी भाजपा को कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाले प्रशांत ने नीतीश को संघ मुक्त भाजपा मुक्त भारत का नारा दिया है। पहली बार जद (यू) की कमान संभालकर केंद्र की राजनीति में मोदी विरोधी राजनीति का केंद्र बनने की कोशिशों में जुटे नीतीश पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा विरोधी ताकतों को एकजुट करने की मुहिम छेड़ेंगे। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि भाजपा मुक्त देश की बात करने वाले नीतीश कुमार के साथ आएगा कौन? अगले साल बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। नीतीश कुमार की नजर यहां के चुनाव पर लगनी स्वाभाविक ही है। यहां भाजपा के खिलाफ दो पार्टियां हैंöसपा और बसपा। यह दोनों पार्टियां नीतीश की अपील पर एक मंच पर आएंगी यह संभव नहीं लगता। यही स्थिति वामदलों की है। वह कई राज्यों में मजबूत तो हैं पर वहां उनका विरोध भाजपा व क्षेत्रीय दलों के साथ है। बंगाल में ममता बनर्जी और वामदल आमने-सामने हैं। तमिलनाडु में जयललिता और करुणानिधि एक दूसरे के कट्टर विरोधी हैं। केरल में तो नीतीश की सहयोगी पार्टी कांग्रेस और वामदल तो बिल्कुल आमने-सामने हैं। ऐसे में यह संभव नहीं लगता कि भाजपा विरोध के नाम पर नीतीश के साथ आ पाएंगे। फिर यह भी है कि हर क्षेत्रीय दल या फिर कांग्रेस-भाजपा से अलग पार्टी के अपने समीकरण हैं। सबने जाति, क्षेत्र, वर्ग आदि की अस्मिता के नाम पर अपना जनाधार बना रखा है, इसलिए जब वे एक साथ होते हैं तो उनके स्वार्थ टकराने लगते हैं। नीतीश कुमार खुद इससे पहले भाजपा के सहयोग से सत्ता में रह चुके हैं। ऐसे में वैकल्पिक राजनीति का विचार तब तक स्थायी रूप नहीं ले सकता जब तक विपक्षी दल अपने राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर एक बड़े सिद्धांत के लिए वचनबद्ध नहीं होते।

Wednesday, 20 April 2016

क्या असम में भाजपा सरकार बना लेगी?

भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद है कि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल विधानसभा चुनावों में रणनीतिक प्रचार के कारण इन तीनों राज्यों के सदनों में पार्टी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी। पार्टी के अंदरूनी आंकलन के अनुसार वोट प्रतिशत के मामले में वह बीते लोकसभा की सफलता से आगे निकल जाएगी। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पश्चिम बंगाल में दो और तमिलनाडु में एक सीट जीती थी। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के सबसे ज्यादा उम्मीद वाले राज्य असम में मतदान हो चुका है और बाकी चार विधानसभा चुनाव में वह अपनी प्रभावी मौजूदगी के लिए कड़ा संघर्ष कर रही है। पश्चिम बंगाल की 294 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा अपने दम पर चुनाव मैदान में है। अंदरूनी आंकलन में भाजपा यहां पर 10 से 12 सीटों पर जीत की संभावना देख रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में उसे 17.02 प्रतिशत वोट मिले थे जो कि 2011 में महज 4.06 प्रतिशत थे। भाजपा ने पुडुचेरी की 30 में से 16 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करने के साथ ही स्पष्ट कर दिया कि वह अकेले ही विधानसभा चुनावों में उतरेगी। तमिलनाडु में पांच कोणीय संघर्ष है, लेकिन मुख्य मुकाबला अन्नाद्रमुक और द्रमुक के बीच है। किसी बड़े गठबंधन का हिस्सा नहीं होने और स्थानीय प्रमुख दलों के साथ भी गठबंधन नहीं होने से भाजपा कमजोर है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 2.22 प्रतिशत वोट मिले थे और 204 में छह उम्मीदवार ही जमानत बचा सके थे। केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काफी मजबूत है, लेकिन भाजपा वहां अभी तक लोकसभा, विधानसभा में भी खाता नहीं खोल सकी है। इस बार पार्टी सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश में है। लोकसभा चुनावों में उसका वोट प्रतिशत 10.45 तक पहुंच गया था और निकाय चुनावों में भी सफलता मिली थी। असम में बहरहाल भाजपा को पूरी उम्मीद है कि इस बार वह पूर्ण बहुमत के साथ आकर सरकार बनाने की स्थिति में होगी। एबीपी न्यूज और नीलसन के ओपिनियन पोल ने तो यही आंकलन पेश किया है। चैनल पर प्रसारित पोल के मुताबिक भाजपा और उसके सहयोगी दल असम की 126 सदस्यीय विधानसभा में 78 सीटें जीत सकती है और सरकार बना सकती है। वहीं पोल में कांग्रेस को महज 36 सीटों पर सिमटता हुआ दिखाया गया है। एआईयूडीएफ को महज 10 सीटों पर और अन्य दलों को दो सीटों पर सफलता मिल सकती है। अगर हम साल 2011 के चुनावों की बात करें तो असम में कांग्रेस ने 68 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि भाजपा को महज छह सीटें मिली थीं। उस साल एआईयूडीएफ को 18 सीटें मिली थीं। राज्य में 52 प्रतिशत लोग मानते हैं कि बांग्लादेश शरणार्थियों का मुद्दा अहम होगा।

-अनिल नरेन्द्र

गर्मी ने तोड़ा 5 साल का रिकार्ड, अप्रैल में जून की गर्मी

सूरज की तपिश ने अभी से लोगों के पसीने छुड़ाने शुरू कर दिए हैं। समूचा उत्तर भारत अप्रैल में जून महीने की गर्मी से झुलस रहा है। शनिवार को दिल्ली और जमशेदपुर में सीजन का सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया। राजधानी दिल्ली में तो पिछले पांच सालों में 16 अप्रैल का दिन सबसे गरम रहा। यहां पारा 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया जो सामान्य से लगभग छह डिग्री अधिक था। दिल्ली-एनसीआर सहित देश के कई हिस्सों में लू ने लोगों को घरों में बंद रहने को मजबूर कर दिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत कई स्थानों पर रविवार को भी लू चलने के आसार सामने आए। मौसम विभाग की ओर से अप्रैल की शुरुआत में पूर्वानुमान जारी किया गया था। इसमें अप्रैल, मई और जून में अधिक गर्मी और लू चलने की बात कही गई थी। बीते पांच सालों में 16 अप्रैल को तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं रहा। अधिकतम के साथ-साथ न्यूनतम तापमान भी इस अवधि में सर्वाधिक रहा। आने वाले सप्ताह में 22 अप्रैल तक पारा 39 डिग्री सेल्सियस रहने की संभावना है, वहीं न्यूनतम तापमान  में भी एक से दो डिग्री सेल्सियस की गिरावट होगी। राजधानी में अभी से ही गरम हवाओं से चेहरे झुलसने लगे हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि अप्रैल में ही हीट स्ट्रोक का खतरा बढ़ गया है। इसलिए इस गर्मी से बचकर रहें। पानी और तरल पदार्थ का इस्तेमाल अधिक करें ताकि शरीर में पानी की कमी न हो। ऐसे मौसम में शरीर में पानी की कमी खतरनाक साबित हो सकती है। डाक्टर कहते हैं कि शरीर का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस होता है। सर्दियों में तापमान नियंत्रित करने के लिए शरीर अपने अंदर गर्मी उत्पन्न करता है। गर्मी में तापमान अधिक होने पर पसीना शरीर को ठंडक देता है। यदि मौसम का तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाए तो शरीर को तापमान के अनुरूप ढालने में दिक्कत होती है। इसके चलते अधिक देर धूप में रहने के कारण हीट स्ट्रोक की आशंका रहती है। यह मस्तिष्क को सबसे अधिक प्रभावित करता है। इसके प्रभाव से जान भी जाने का खतरा रहता है। गर्मी के प्रभाव से कई लोगों को बुखार के साथ-साथ पसीना आता है। यदि गर्मी तेज हो और पसीना आना बंद हो जाए तो यह खतरे की घंटी है। यह हीट स्ट्रोक के लक्षण होते हैं। सर्दियों की तुलना में गर्मी में अधिक पानी पीना चाहिए। गर्मी से बचाव के लिए नींबू पानी का सेवन जरूर करें। यदि थकान महसूस हो तो तुरन्त पानी पी लें। गर्मी के असर से डिहाइड्रेशन की परेशानी भी होती है। इससे बचाव के लिए हर तीन घंटे में पानी पीते रहें। घर से बाहर निकलने पर धूप से बचने के लिए छतरी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

Tuesday, 19 April 2016

माल्या पर कसता शिकंजा

9400 करोड़ रुपए से ज्यादा के लोन डिफॉल्टर विजय माल्या पर सरकार ने अंतत शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। शुक्रवार को माल्या का डिप्लोमैटिक पासपोर्ट चार हफ्ते के लिए सस्पेंड कर दिया गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की सलाह पर विदेश मंत्रालय ने यह कदम उठाया है। माल्या को बाकायदा एक हफ्ते का नोटिस भी जारी किया गया जिसमें पूछा गया है कि क्यों न उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया जाए या रद्द कर दिया जाए? माल्या के खिलाफ कार्रवाई इसलिए भी की गई है क्योंकि सरकार जानबूझ कर कर्ज न चुकाने वालों और धोखेबाजों की ओर से बैंकों का पैसा हड़पने के मुद्दे पर अब चिंतित दिखती है। इस साल फरवरी तक किंगफिशर एयरलाइंस पर 9432 करोड़ रुपए का कर्ज है और उसने जानबूझ कर 13 बैंकों का कर्ज चुका पाने में अपनी अक्षमता जाहिर की थी। एयरलाइंस के अहम फैसले लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले विजय माल्या सीधे जिम्मेदार हैं। धन शोधन रोकथाम कानून के तहत जांच अधिकारियों के बार-बार समन जारी करने के बावजूद माल्या का पेश न होना जानबूझ कर इसे धता बताने के बराबर है और इसमें जांच की प्रक्रिया जानबूझ कर बाधित करने की मंशा नजर आ रही है। सूत्रों ने बताया कि मोदी सरकार जानबूझ कर कर्ज न चुकाने वालों पर मुकदमा चलाने और उनसे जनता का पैसा हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है। कर्ज के इस मामले में आपराधिक गबन, आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धाराओं के तहत सीबीआई जांच कर रही है जबकि गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआरओ) कानूनी कंपनी उल्लंघन की जांच कर रहा है। इसके अलावा ईडी पीएमएलए के तहत मामले की जांच कर रहा है। संकट में फंसे विजया माल्या की दिक्कतें उस समय और बढ़ गईं जब प्रवर्तन निदेशालय ने शुक्रवार को मुंबई की विशेष पीएमएलए अदालत में याचिका दायर करके 900 करोड़ रुपए आईडीबीआई ऋण धोखाधड़ी मामले में उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने की मांग की। माना जाता है कि विजय माल्या इन दिनों ब्रिटेन में हैं। संसद सदस्य होने के नाते माल्या ने डिप्लोमैटिक पासपोर्ट के सहारे दो मार्च को भारत छोड़ दिया था। अगर माल्या का पासपोर्ट रद्द या जब्त किया जाता है तो उन्हें भारत लौटना होगा। वह नहीं लौटे तो सरकार ब्रिटेन में उनके प्रत्यर्पण की कार्रवाई  शुरू कर सकती है। माल्या हालांकि ब्रिटेन के कोर्ट में अपील कर सकते हैं और अगर ब्रिटिश कोर्ट आदेश देती है तो उन्हें भारत प्रत्यर्पण से रोका भी जा सकता है। विजय माल्या की दिक्कतें लगातार बढ़ रही हैं। पर ललित मोदी की तरह वह भी ब्रिटेन में लंबे समय तक रह सकते हैं। सारा दारोमदार अब माल्या पर है अगर वह कभी भी भारत लौटना चाहते हैं तो उन्हें जांच एजेंसियों से सहयोग करना होगा।

-अनिल नरेन्द्र

क्या इस बार कामयाब होगा तम्बाकू पर बैन?

राजधानी में तम्बाकू, गुटखा, पान मसाला या कोई भी चबाने वाला तम्बाकू उत्पाद बेचने, रखने या बनाने पर प्रतिबंध को अगले एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है। दिल्ली के खाद्य सुरक्षा आयुक्त ने अधिसूचना जारी करके यह जानकारी दी है। खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार तम्बाकू किसी भी तरह का हो लोगों के स्वास्थ्य को खराब करता है और आने वाली पीढ़ियों की जैविक संरचना को भी प्रभावित कर सकता है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने कहा कि चूंकि गुटखे और तम्बाकू से कैंसर आदि जैसे भयावह रोग होते हैं इसलिए सरकार ने लोगों के हित और उच्च स्वास्थ्य के लिए यह फैसला लिया है। राजधानी में हालांकि तम्बाकू उत्पादों पर प्रतिबंध एक साल से है पर इसका कोई खास असर अभी देखने को नहीं मिल रहा है। सरकारी रोक के बावजूद दुकानों पर तम्बाकू यूं ही बिक रहा है जैसे कुछ हुआ ही नहीं यह बैन इस बार भी जमीनी हकीकत बन पाएगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन दिल्ली सरकार की यह कोशिश अगर कामयाब रही तो निश्चित रूप से इसका सीधा असर आम लोगों की सेहत पर होगा। पिछले साल मार्च में सरकार ने एक साल के लिए तम्बाकू पर बैन लगाया था, जिसके खिलाफ निर्माता कंपनियां कोर्ट गई थीं और स्टे के आदेश ले लिए थे। पिछले महीने यह स्टे खत्म हो गया और सरकार ने फिर से बैन लगाने के लिए ऑर्डर जारी कर दिया है। इस नोटिफिकेशन के आधार पर किसी भी तरह के चबाकर खाने वाले तम्बाकू, गुटखा, खैनी वगैरह पर तो बैन लग गया है पर इस नोटिफिकेशन में सिगरेट और बीड़ी पर अभी बैन नहीं है। पिछले कई सालों से चबाकर खाने वाले तम्बाकू पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन यह कामयाब नहीं रही। भारत में तम्बाकू कैंसर की बड़ी वजह से इंकार नहीं किया जा सकता। 90 फीसदी मुंह के कैंसर की वजह तम्बाकू ही है और अन्य पैंसर में भी 40 फीसद तम्बाकू ही वजह बनता है और इस पर इलाज के रूप में हर साल एक लाख करोड़ रुपए का खर्च होता है। इस नोटिफिकेशन के बाद निश्चित रूप से तम्बाकू निर्माता अदालत की शरण में  जाएंगे। जो लोग तम्बाकू उत्पादों का सेवन करते हैं उनका मानना है कि खाना या न खाना यह उनका व्यक्तिगत फैसला है और इसमें कोई सरकारी दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए। इनका मानना है कि सरकार का काम बस इतना है कि वह इन उत्पादों के सेवन से होने वाले नुकसानों को बताए प्रतिबंध न लगाए। फिर सरकार के पास ऐसी न तो कोई मशीनरी है और न ही मैन पॉवर है जो इस प्रतिबंध को लागू करा सके। फिर भी देखें कि इस बार इस प्रतिबंध का क्या होता है?

Sunday, 17 April 2016

एक का स्वदेशी नारा दूसरे का जैविक सहारा बाबाओं की मौज

देश में पैकेज्ड फूड क्षेत्र में 2015 में हमारी देसी कंपनियां विदेशी मल्टीनेशनल फूड्स कंपनियों पर भारी पड़ी हैं। मार्केट रिसर्चर यूरोमानिटर के सर्वेक्षण के अनुसार 2015 में अमूल, मदर डेयरी, ब्रिटानिया, रुचि सोया, पारले प्रॉडक्ट्स जैसी स्वदेशी कंपनियों का दबदबा रहा, जबकि स्विटजरलैंड की बड़ी कंपनी नेस्ले ओवरऑल रैकिंग में पांच पायदान नीचे गिर गई। मार्केट शेयर के लिहाज से केवल तीन मल्टीनेशनल कंपनियांöमोंडेलेज, नेस्ले और पेप्सिको ही टॉप-10 कंपनियों में जगह बना सकीं। स्वदेशी कंपनियों ने डिस्ट्रिब्यूशन बढ़ाने, ग्रामीण इलाकों में पहुंच बनाने और कम कीमत पर छोटे पैक उतारने का फायदा उठाया है। यूरोमॉनिटर के मुताबिक देश का पैकेज्ड फूड मार्केट पिछले कैलेंडर ईयर में 2572 अरब रुपए का था। 2014 से इसमें 14 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है। जब हम स्वदेशी कंपनियों की बात कर ही रहे हैं तो बिजनेसमैन बाबा धर्म अध्यात्म और योग के साथ व्यापार में उतरे बाबाओं के लिए भारत के अंदर एक बड़ा बाजार खुला है। योग गुरु बाबा रामदेव `स्वदेशी अपनाओ' और संत गुरमीत राम रहीम का ः जहर हटाओ, जैविक लाओ के नारे बहुत काम आ रहे हैं। इन ब्रैंड बाबाओं के लिए हरियाणा में कारोबारी परिस्थितियां भी अनुकूल हैं। हरियाणा रामदेव की जन्मस्थली है तो राजस्थान के गंगानगर में जन्में राम रहीम का कर्मक्षेत्र। भक्तों के इस खेल और कारोबार का सियासी कनैक्शन भी मजबूत है। दोनों के भक्तों की बड़ी संख्या इन्हें व्यापार बढ़ाने में मददगार हो रही है। पतंजलि के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि 2006 में शुरू हुई पतंजलि के आज देश में पांच हजार रिटेल स्टोर हैं। इनमें सर्वाधिक एक हजार हरियाणा में हैं। पतंजलि अकेले हरियाणा में 700 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार कर रही है। अगले साल पांच हजार करोड़ का निवेश कर कारोबार 10 हजार करोड़ तक पहुंचने का लक्ष्य है। एफएमसीजी कंपनियों की तुलना में पतंजलि और एमएसजी के ज्यादातर उत्पादों की कीमत 15 प्रतिशत तक कम है। एमएसजी ब्रांड (राम रहीम) के प्रवक्ता के अनुसार हरियाणा में 250 से ज्यादा ब्रैंड स्टोर खुल चुके हैं। 300 से ज्यादा डीलर बन चुके हैं। उनका लक्ष्य देश में 1500 स्टोर खोलने का है, बाबा के भक्तों के साथ आम लोग भी उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं। पतंजलि का तो प्रचार भी स्वदेशी भावनाओं के आधार पर रहा है। इनमें जड़ी-बूटियों, जैविक फसलों, गाय-भैंस के दूध शामिल करने का दावा किया जाता है। पतंजलि के 800 प्रॉडक्ट्स की लिस्ट है। मांग बढ़ने के बाद आपूर्ति के लिए आउटसोर्सिंग का सहारा भी लिया जा रहा है। खबर है कि श्री श्री रविशंकर भी श्री श्री उत्पाद के नाम से जल्द बाजार में आने वाले हैं।

-अनिल नरेन्द्र

कश्मीर में सेना को बेवजह बदनाम करने की साजिश

जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में चार नागरिकों की मौत के बाद भड़की हिंसा की आग में पूरा कश्मीर अब झुलसने लगा है। हंदवाड़ा में हिंसक घटनाओं के बाद से तनाव की स्थिति बनी हुई है। एहतियातन इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। वहीं लोगों की आवाजाही पर भी रोक लगा दी गई है। कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में हुई गोलीबारी में चार लोगों की मौत हो गई थी। गौरतलब है कि हंदवाड़ा के एक जवान पर कथित रूप से एक छात्रा के साथ छेड़खानी का आरोप लगा था। इसके बाद गुस्साए लोगों ने जमकर हंगामा किया, जिसके चलते सेना को फायरिंग करनी पड़ी थी। इस फायरिंग में एक उभरते हुए क्रिकेटर सहित चार लोगों की मौत हो गई थी, जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ लिया था। कुछ लोगों ने एक पुलिस पोस्ट को आग लगा दी। पहले से ही एनआईटी के विवाद ने घाटी और जम्मू के बीच की मानसिक खाई को और बढ़ाया है। इसी तरह हंदवाड़ा की घटनाओं से केंद्र के प्रति लोगों में असंतोष कम होने के बजाय और बढ़ा है। दिलचस्प संयोग है कि हाल के घटनाक्रम ने दुप्रचारों की असलियत सामने ला दी है। पाक अधिकृत कश्मीर में लोग सड़कों पर निकले हुए हैं। वे बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। वे बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान सरकार को जमकर कोस रहे हैं क्योंकि वहां जो भी थोड़ी-बहुत सरकारी नौकरियां निकलती भी हैं, उनमें भी पाकिस्तान के अन्य इलाकों से बेरोजगारों को भर दिया जाता है। इन प्रदर्शनों ने अधिकृत कश्मीर की बदहाली जिन्दगी की हकीकत उजागर कर दी है। इधर हंदवाड़ा में हुई घटना दर्शाती है कि सेना को बेवजह ही विलेन के रूप में पेश करना कितना आसान है। सेना द्वारा जारी किए गए वीडियो से एक बात तो साफ है कि अफवाह फैलाने वाले तंत्र ने बिना किसी बात के एक बतंगड़ रच दिया। खुद पीड़िता का कहना है कि सेना के किसी जवान ने उसके साथ कोई बदसलूकी नहीं की थी। उसका कहना तो यह है कि एक स्थानीय युवक ने उसका बैग छीनने की कोशिश की और उसके साथियों ने ही उसे चोट पहुंचाई थी। यह कितना दुर्भाग्य है कि करे कोई भरे कोई। चार निर्दोष इस झूठ के शिकार हो गए और सेना को बिना वजह विलेन बना दिया गया। कश्मीर में यह अलगाववादी जिनको पाकिस्तान से पूरा समर्थन मिलता है ऐसी अफवाहें फैलाकर भारत के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे रहते हैं। अब जब महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर की कमान संभाल ली है उम्मीद की जाती है कि वह इन अलगाववादियों और अफवाह फैलाने वालों पर नियंत्रण करेंगी। वैसे भी यह मामला सूबे की कानून व्यवस्था से जुड़ता है।

Saturday, 16 April 2016

क्या प्रॉपर्टी विवाद के कारण तंजील अहमद की हत्या हुई?

बहुचर्चित एनआईए डीएसपी तंजील अहमद हत्याकांड को यूपी पुलिस ने सुलझाने का दावा किया है। पुलिस के अनुसार सारा मामला प्रॉपर्टी विवाद का था न कि कोई आतंकी घटना का। पुलिस के अनुसार हिस्ट्रीशीटर मुनीर ने दो साथियों के साथ मिलकर तंजील पर ताबड़तोड़ गोलियां दागकर इस वारदात को अंजाम दिया। इस वारदात में तंजील अहमद की पत्नी फरजाना खातून भी बुरी तरह घायल हुई थीं। गोली लगने से घायल फरजाना खातून का एम्स के ट्रामा सेंटर में इलाज चल रहा था। एनआईए के एक बयान में कहा गया कि बुधवार को सुबह 10.45 बजे उन्होंने दम तोड़ दिया। जब हमलावरों ने तीन अप्रैल को हमला किया उस समय फरजाना अपने पति और बच्चों के साथ एक पारिवारिक कार्यक्रम से लौट रही थीं। पठानकोट आतंकी हमले की जांच कर रही टीम के सदस्य रहे एनआईए के इंस्पेक्टर तंजील अहमद को गोलियों से भून दिया गया था। बरेली जोन के आईजी विजय सिंह मीणा ने खुलासा किया कि हत्या का कारण प्रॉपर्टी विवाद, रंजिश और बैंक लूट की मुखबरी करने का शक था। मुनीर ने पहले पिस्टल से चार राउंड गोलियां चलाईं, फिर रिवाल्वर और दूसरी पिस्टल से दोनों हाथों से गोलियां चलाकर तंजील अहमद को छलनी कर दिया। मुनीर बाइक पर पीछे बैठा था। बाद में रेहान ने भी तंजील पर फायर किया। इस दौरान मुनीर ने रेहान से कहा कि बहुत मुखबिरी करता था। वारदात में शामिल मुनीर के दोनों साथियों रेहान और जैनी को गिरफ्तार कर लिया गया है। मुनीर अभी पकड़ा नहीं जा सका है। घटना के दिन रेहान अपने पिता के साथ स्योहारा बंधन मंडप में शादी पर गया था। करीब 10 बजे वहां से लौटा और योजना के तहत जैनी को लेकर सीबीजैड बाइक से सहसपुर के बाहर आ गया। वहां पहले से ही मुनीर इंतजार कर रहा था। कुछ देर बाद तंजील की गाड़ी निकलते ही दोनों बाइक से उनके पीछे लग गए। सहसपुर के पास कार को ओवर टेक किया। पुलिया के पास कार धीमी हुई तो मुनीर ने गोली चला दी। पिस्टल के खराब होने पर रिवाल्वर से गोलियां बरसा कर हत्या कर दी। आईजी ने बताया कि हत्या के कई कारण सामने आए हैं। रेहान ने बताया कि उसकी बुआ निखहत व फूफा तसलीम का दिल्ली के रंजीत नगर में पड़ोसी से झगड़ा हो गया था, जिसमें फूफा को जेल जाना पड़ा था, लेकिन तंजील ने कोई मदद नहीं की थी। हत्या का यह भी एक प्रमुख कारण बना। मुनीर को तंजील पर मुखबिरी करने का शक था। आईजी ने बताया कि मुनीर ने अपने साथी के साथ मिलकर धामपुर के पीएनबी की कैश वैन से 91 लाख रुपए लूटे थे। लूट के बाद सहसपुर के कुछ युवकों को हिरासत में लिया गया था। इन युवकों ने मुनीर को बताया था कि पुलिस लूट में उसका नाम ले रही है। यह काम तंजील के अलावा और कोई नहीं कर सकता। मुनीर ने यहीं से ठान ली कि तंजील को ठिकाने लगाना है। मुनीर को भड़काने में रेहान का हाथ था। रेहान तंजील से परिजनों को अपमानित व पीड़ित करने से नाराज था। इसके अलावा दो प्लाटों को लेकर भी मुनीर और तंजील के बीच विवाद था। इन तीनों वजह से इन सबने तंजील की हत्या की योजना बनाई। इस हत्याकांड की सबसे अहम कड़ी मानी जाने वाली तंजील की पत्नी फरजाना की मौत से इस हत्याकांड की जांच को तगड़ा झटका लगा है। फरजाना इस हत्याकांड में हत्यारों के ]िलए सबसे बड़ी गवाह थीं क्योंकि वारदात में उन्हें भी तीन गोलियां लगी थीं और उन्होंने हत्यारों को सबसे नजदीक से देखा था। एक बात समझ नहीं आ रही कि संभव है कि हत्यारों को तंजील अहमद से दुश्मनी हो, पर बीवी, बच्चों की मौजूदगी में इस तरह हत्या करना? हमले के समय दोनों बच्चे पिछली सीट पर बैठे थे? शुक्र है कि वह बच गए। क्या इस हत्याकांड की वजह शाहीन बाग की करोड़ों रुपए की एक दुकान से लूटी गई रकम और बैंक वैन से लूटी 91 लाख रुपए द्वारा कथित रूप से तंजील का हड़पना भी क्या एक कारण था? रेहान ने भी पुलिस के सामने खुलासा किया है कि तंजींल और मुनीर दोनों प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त के धंधे में साथ-साथ थे। धामपुर बैंक लूट की रकम मुनीर ने तंजील के जरिये प्रॉपर्टी में ही लगा दी थी। लेकिन यह सारी प्रॉपर्टी तंजींल ने किसके नाम से खरीदी, इस बात की जानकारी अभी तक नहीं मिल पाई है। पुलिस इस एंगल की भी तहकीकात कर रही है।
-अनिल नरेन्द्र



आसमान से आई खुशखबरी

देश के सूखा प्रभावित इलाकों के किसानों के लिए बादलों ने अच्छी खबर भेजी है। भारतीय मौसम विभाग ने अपने आरंभिक मानसून पूर्वानुमान में देश में सामान्य से अधिक बारिश की उम्मीद जताई है। उसके अनुसार इस साल एक जून से 30 सितम्बर तक औसतन 106 फीसद बारिश की संभावना है जो सामान्य से छह फीसद अधिक होगी। दो साल से लगातार खराब मानसून और सूखे से जूझ रहे देशवासियों के लिए यह अच्छी खबर है। हम मौसम विभाग व अन्य मौसम का हिसाब रखने वाली एजेंसियों की भविष्यवाणी पर इसलिए भरोसा कर सकते हैं क्योंकि इन दिनों मौसम की भविष्यवाणी की तकनीक व ज्ञान काफी बेहतर हो गया है और पिछले कई साल से मौसम की भविष्यवाणियां सही निकलती रही हैं। वैसे भी संतोष इस बात का भी है कि जब से मानसून का रिकार्ड रखना शुरू हुआ है तब से अब तक लगातार तीन साल खराब मानसून कभी नहीं रहा, जबकि लगातार दो साल खराब मानसून के कई उदाहरण हैं। इस साल मानसून शुरू होते-होते प्रशांत महासागर में अल नीनो प्रभाव भी खत्म हो जाएगा जिसकी वजह से पिछली बार अच्छी बारिश नहीं हुई थी। अल नीनो के बाद आने वाले मानसून में अमूमन सामान्य से ज्यादा बारिश होती है। इस साल बेहतर मानसून की खबर ने कारपोरेट जगत, शेयर बाजार और सरकार के साथ-साथ किसानों व आम आदमी के चेहरों को भी खिला दिया है। अब उम्मीद है कि फसलों के उत्पादन बढ़ने से महंगाई, विशेष रूप से खाद्य वस्तुओं की महंगाई वास्तविक स्तर पर आ जाएगी। मार्केट में खरीददार आएंगे तो डिमांड बढ़ेगी और साथ में देश का ग्रोथ रेट भी बढ़ेगा। बेहतर मानसून से खाद्य और दैनिक जरूरतों की चीजों की कीमतें कम होना तय है। इससे जमाखोरी भी कम होगी। मानवीय गतिविधियों की वजह से या प्रकृति के अपने कारणों से मौसम लगातार अनियमित होता जा रहा है। लेकिन हमने इसके लिए तैयारी भी तो नहीं की है। यह कहना गलत नहीं होगा कि मौसम की अनियमितता के साथ-साथ हमारी लापरवाही भी बढ़ी है। अगर हम साल दर साल उत्तराखंड, कश्मीर व बिहार की बाढ़ या महाराष्ट्र और बुंदेलखंड का सूखा झेल रहे हैं तो इसमें मौसम से ज्यादा हमारी खराब प्लानिंग और लापरवाही भी दोषी है। इस साल अगर ज्यादा बारिश हुई तो कई जगह बाढ़ का खतरा रहेगा और हमें उम्मीद करनी चाहिए कि कोई बाढ़ पहले की तरह भयानक न हो। बाढ़ और सूखा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जो जल प्रबंधन की हमारी कमजोरी दर्शाते हैं। अगर बारिश के पानी को सही ढंग से संचित करने और व्यवस्थित निकासी के इंतजाम हों तो सूखे की स्थिति में पानी की तंगी और बारिश के ज्यादा होने से बाढ़ के प्रकोप दोनों से बचा जा सकता है।

Friday, 15 April 2016

मुख्यमंत्री नीतीश अब पार्टी अध्यक्ष भी बने

जनता दल (यूनाइटेड) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने नीतीश कुमार को पार्टी का नया अध्यक्ष चुन लिया है, जिसकी पुष्टि औपचारिक तौर पर इसी महीने होने वाली पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में भी कर दी जाएगी। विगत एक दशक से भले ही वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव जनता दल (यू) के अध्यक्ष थे, मगर यह पार्टी का मुखौटा समान थे, असल में कमान तो नीतीश कुमार के हाथों में ही थी। पार्टी के इस कदम से नीतीश का पूरा वर्चस्व पार्टी पर हो गया है। कुछ लोगों का मानना है कि इस सारी कवायद के पीछे प्रशांत किशोर का शातिर दिमाग है। माना जा रहा है कि 2019 के आम चुनाव में मोदी के मुकाबले खड़े होने की तैयारी कर रहे सुशासन कुमार उर्प नीतीश कुमार के लिए अपनी पार्टी पर पूरा नियंत्रण जरूरी था और इसे उसी कवायद के रूप में देखा जा रहा है। प्रशांत किशोर की यह शैली वही है जो 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी को उन्होंने सुझाई थी। यह इन्हीं का आइडिया था कि मोदी को पार्टी की कमान अपने हाथ में रखनी चाहिए। यह दूसरी बात है कि प्रधानमंत्री होते हुए नरेंद्र मोदी पार्टी पर उतनी कड़ी पकड़ व नजर नहीं रख सकते थे, इसलिए उन्होंने अपने सबसे ज्यादा विश्वासपात्र अमित शाह को पार्टी की कमान थमा दी। अब भाजपा में सारे महत्वपूर्ण फैसले मोदी-शाह की जोड़ी ही करती है। यह किसी से छिपा नहीं है कि नीतीश देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। खुद नीतीश भी कह रहे हैं कि जनता चाहेगी तो वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे। चर्चा तो यह भी है कि शरद यादव अध्यक्ष पद नहीं छोड़ना चाहते थे। अंदरखाते नीतीश और शरद के बीच शीतयुद्ध की स्थिति बनी हुई है। बिहार विधानसभा चुनाव में जद (यू), राजद और कांग्रेस गठबंधन को महत्वपूर्ण जीत दिलाने वाले नीतीश और उनके राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर इस जीत को अन्य राज्यों में भी ले जाना चाहते हैं। सूत्र बताते हैं कि नीतीश को पार्टी की कमान संभालने की सलाह प्रशांत किशोर ने तुरन्त चुनाव के बाद दी थी। जद (यू) में अजीत सिंह के नेतृत्व वाली रालोद और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी के झारखंड विकास मोर्चा के विलय के बारे में बातचीत चल रही है और शरद यादव के हस्तक्षेप के कारण कई निर्णयों को लागू करने में नीतीश को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। शरद यादव ने लालू के साथ गठबंधन का भी विरोध किया था, लेकिन नीतीश के कड़े तेवर के बाद शरद यादव ने भारी मन से लालू का साथ स्वीकार किया। इस बात की भी चर्चा रही कि शरद के पर्दे के पीछे शह के कारण ही मांझी ने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोला था।

-अनिल नरेन्द्र

15-20 हजार पर जमीनें बेचने पर मजबूर किसान, अमीर अरबों हड़प जाते हैं

आमतौर पर बैंक से लोन लेने का मतलब होता है कि आपको आसान किश्तों पर ब्याज के साथ कर्जा मिल जाता है जो आपको लौटाना होता है। इसके लिए लोन लेते वक्त बैंकों द्वारा इतनी कागजी कार्यवाही की जाती है कि अगर कर्ज लेने वाला इन शर्तों को पढ़ ले तो शायद वह लोन लेने के बारे में 10 बार सोचे। पर शायद ही इन कागजों में लिखी शर्तों को पढ़ता है। यह मानकर चला जाता है कि इन कागजों में कर्ज लेने वाला अगर डिफॉल्ट करे तो सख्त कार्यवाही बैंक कर सकता है। आप व आपके इस लोन के गारंटर से पैसा किसी भी तरह वसूला जा सकता है। अगर सीधे-सीधे कहें तो बैंक लोन तभी देता है, जब उसे भरोसा हो जाता है कि राशि वापस ले सकता है। लेकिन ऐसा देखा जा रहा है कि ऊंची पहुंच वाले, रसूखदार लोग बैंक लोन अदायगी में भी अपनी मर्जी चलाते हैं जबकि साधारण नागरिक ऐसा कभी सोच भी नहीं सकता। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए भारतीय रिजर्व बैंक को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि एक ओर जहां 15-20 हजार रुपए का कृषि लोन चुकता न कर पाने पर गरीब किसानों को जमीनें बेचनी पड़ती हैं, आत्महत्या करनी पड़ती है वहीं हजारों करोड़ रुपए का लोन न लौटाने वालों की खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर की पीठ ने कहा कि आरबीआई का काम बैंकों पर नजर रखना भी है, इसलिए उसे पता होना चाहिए कि बैंक आम जनता का पैसा किसे कर्ज के रूप में दे रहे हैं। दरअसल पीठ ने गत माह एक मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लिया था। इसमें कहा गया था कि 2013-15 के दौरान 1.14 लाख करोड़ का कर्ज सरकारी बैंकों ने माफ किया है। पीठ ने कहा कि ऐसे कई लोग जो हजारों करोड़ रुपए लोन लेते हैं और भाग जाते हैं, उनकी खबर लेने वाला कोई नहीं है। बैंक उनके लोन को भी माफ कर देता है। वहीं किसान द्वारा 15-20 हजार का लोन चुकता न करने पर उन्हें उनकी जमीनों को बेचने के लिए बाध्य किया जाता है, यह ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई से छह सप्ताह के अंदर ऐसी कंपनियों की सूची पेश करने को भी कहा है जिनके लोन पर कारपोरेट लोन संबंधी विभिन्न योजनाओं के तहत राहत दी गई है। दरअसल एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन ने याचिका में सरकारी बैंकों की ओर से कुछ कंपनियों को दिए गए लोन का मुद्दा उठाया था। संगठन का कहना है कि 2015 में ही 40 हजार करोड़ रुपए के कारपोरेट लोन को माफ कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई को कठघरे में खड़ा करते हुए सवाल किया कि करोड़ों रुपए के लोन लेने वाले डिफॉल्टरों का नाम क्यों नहीं सार्वजनिक किया जाता है और साथ ही गलत तरीके से लोन देने पर बैंक पर क्यों कार्यवाही नहीं की जाती है? कई मामलों में तो बैंकों के अधिकारियों की संलिप्तता भी सामने आई है और इस तरह के मामलों में माना जाता है कि बैंक अधिकारियों की मिलीभगत के बिना इस तरह का गोरखधंधा किया ही नहीं जा सकता है। आरबीआई रेगुलेटर बैंक है, इसलिए उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह यह देखे कि जनता का पैसा कहां जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि बड़े लोन वापसी के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं? आपको लोन डिफॉल्टरों के नामों का खुलासा करने में क्या दिक्कत है और अगर आपको यह गोपनीय मामला लगता है तो एनपीए (नॉन परफार्मिंग एसेट्स) के कुल रकम के खुलासे का क्या हुआ? बोलचाल की भाषा में कहें तो एनपीए यानि ऐसा कर्ज जो वसूला नहीं जा सकता। हमारा भी मानना है कि जो बड़े लोग अपने रसूख व धन-बल पर बैंकों को चूना लगा रहे हैं उनका नाम सार्वजनिक करने की जरूरत है, जो सामाजिक जीवन में तो खुद को बड़ा बनाए हुए हैं, लेकिन अंदर खाते हैं कुछ और। आखिर जनता के पैसों को यूं बंदरबांट करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। जनता को यह जानने का पूरा-पूरा हक है कि आखिर किस वजह से पैसे डूबे और कौन-कौन लोग इसके जिम्मेदार हैं।