Sunday, 9 January 2022

सीएम को शुक्रिया कहना, मैं जिंदा लौट पाया

बठिंडा-पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला बुधवार को सुरक्षा में बड़ी चूक के कारण 20 मिनट तक प्रदर्शनकारी किसानों के जाम में फंसा रहा। काफिले को बीच रास्ते से बठिंडा एयरपोर्ट लौटना पड़ा। हवाई अड्डे पर पहुंच कर पीएम मोदी ने अफसरों से कहाöअपने सीएम को शुक्रिया कहना कि मैं जिंदा लौट पाया हूं। गृह मंत्रालय ने इसे बड़ी व गंभीर चूक बताते हुए पंजाब सरकार से रिपोर्ट तलब की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई चूक से पूरा देश स्तब्ध है। कोई सोच भी नहीं सकता था कि अपने ही देश में प्रधानमंत्री के साथ ऐसी अप्रिय घटना घटित हो सकती है कि उनके काफिले को किसी फ्लाईओवर पर 20 मिनट के लिए रुकना पड़े। अगर यह किसी प्रकार की हत्या करने का प्रयास था तो इसकी चिंता सभी को होनी चाहिए। मैं किसी एक घटना के जवाब में दूसरी घटना को याद करके उदाहरण देने का पक्षधर नहीं हूं। मगर लोकतंत्र में जब विरोध को साजिश और खतरा कहा जाने लगे तो कुछ बातें इतिहास के पन्नों से निकालना चाहिए। बात 26 अप्रैल 2009 की है जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह गुजरात के अहमदाबाद में थे जहां उन पर जूता फेंक दिया गया था। यह पीएम की सुरक्षा में चूक थी। कहने के लिए हम कह सकते हैं कि जूते की जगह बम भी हो सकता था, क्योंकि छह माह पूर्व ही भारत में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ था और जिस प्रकार से हाल ही में धर्म संसद में एक धार्मिक नेता ने कहा कि अगर मैं संसद में होता, मेरे पास बंदूक होती तो मैं डॉक्टर मनमोहन सिंह को गोली मार देता तो इससे भी साफ होता है कि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के दुश्मन कम नहीं थे। जूता फेंकने की घटना के बाद पीएम मनमोहन सिंह ने न तो गुजरात की मोदी सरकार पर आरोप लगाया और न ही यह कहा कि धन्यवाद कहना सीएम को, मैं जिंदा बच गया। सबसे अच्छी बात यह थी कि मनमोहन सिंह ने उस युवक को माफ करते हुए किसी भी प्रकार का केस दर्ज न करने की अपील की। यह होता है लोकतंत्र में निडर और मजबूत प्रधानमंत्री। निडर प्रधानमंत्री की बात से याद आया कि फरवरी 1967 के चुनावों की बात है, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी देशभर में चुनाव प्रचार कर रही थीं, वह देश के दूरदराज के हिस्सों में जा रही थीं। लाखों की भीड़ खुद-ब-खुद उनका भाषण सुनने के लिए इकट्ठा होती थी। ऐसे ही प्रचार के सिलसिले में जब वो ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर गईं तो वहां भीड़ में कुछ उपद्रवी भी थे। वो माइक पर बोल रही थीं कि उपद्रवियों ने पथराव शुरू कर दिया लेकिन इंदिरा भी डटी रहीं। इसी पथराव के बीच एक पत्थर का टुकड़ा आकर उनकी नाक पर लगा और नाक से बुरी तरह खून बहने लगा, सुरक्षा अधिकारी उन्हें मंच से हटा लेना चाहते थे, स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता भी यही अनुरोध करने लगे कि वो मंच के पिछले हिस्से में जाकर बैठ जाएं, मगर इंदिरा जी ने किसी की नहीं सुनी और खून से भीगी नाक को रूमाल से दबाया और निडरता से क्रुद्ध भीड़ के सामने खड़ी रहीं। उन्होंने अपना भाषण पूरा किया, अपने स्टाफ और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से कहा कि प्रधानमंत्री होने के नाते मैं देश का प्रतिनिधित्व करती हूं। मेरा भागना देश और दुनिया में गलत संदेश देता। इसके बाद वो अगली जनसभा के लिए कोलकाता रवाना हो गईं और चोटिल नाक पर पट्टी लगवा कर कोलकाता में भाषण दिया पर कहीं भी उन्होंने यह नहीं कहा कि जान बच गई तो जिंदा लौट आई। खैर! पीएम मोदी के साथ हुई घटना की बारीकी से जांच होनी चाहिए और कसूरवारों की लापरवाही और जवाबदेही तय होनी चाहिए। इस तरह की लापरवाही और चूक की गहन जांच होनी चाहिए ताकि ऐसी घटना दोबारा न हो। प्रधानमंत्री का इस तरह 20 मिनट तक सड़क पर खड़ा रहना एसपीजी की भूमिका पर भी संदेह पैदा करता है।

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