Tuesday 25 January 2022

उग्रवाद, राजनीतिक अस्थिरता के बीच होगा चुनाव

मणिपुर में उग्रवाद-राजनीतिक अस्थिरता के बीच दो चरणों में 23 फरवरी और तीन मार्च को एक नई विधानसभा के लिए वोट डालेगा, जहां पिछले पांच वर्षों में कई बार विधायकों ने पाला बदल लिया है। वहीं चुनाव ऐसे समय हो रहा है जब सुरक्षा बलों और विद्रोहियों के बीच झड़पों में कई बार राज्य की शांति भंग हुई है। इस बार के सियासी समर में मणिपुर की चर्चा खास है, क्योंकि 2017 में राज्य एक ऐसे राजनीतिक करिश्में से गुजरा है, जब विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी सत्ता हासिल नहीं कर सकी। 2017 के चुनावों में कांग्रेस 60 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। फिर भी भाजपा जिसने 26 सीटें जीतीं, नेशनल पीपुल्स पार्टी के चार विधायकों, तृणमूल कांग्रेस और लोक जनशक्ति पार्टी के एक-एक विधायक और एक निर्दलीय के समर्थन से सरकार बनाने में सफल रही। इसके बाद कांग्रेस ने राज्य में अपना आधार खोना शुरू कर दिया, कई अन्य विधायकों ने या तो भाजपा का पक्ष लिया था या विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। पिछले वर्ष अगस्त में एक बदलाव तब हुआ जब राज्य इकाई के प्रमुख गोविंद दास कोंथैमय के चुने जाने के बाद पांच कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस के पास अब 14 विधायक रह गए हैं, जबकि विधानसभा चुनाव में भाजपा की संख्या 25 हो गई है। मणिपुर में हाल में हुए उग्रवादी हमलों को देखते हुए इस बार शांतिपूर्ण चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती है। पिछले कुछ महीनों में असम राइफल्स के जवानों पर कातिलाना हमले हुए हैं। पांच जनवरी को कौबल जिले में बम विस्फोट में एक जवान शहीद हो गया था।

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