Tuesday, 11 January 2022
सार्वजनिक छुट्टी मौलिक अधिकार नहीं है
छुट्टियों का प्रावधान इसलिए किया गया था कि लोग रोजमर्रा की भागदौड़ से फुरसत पाकर अपने ढंग से जीवन बिता सकें, अपने पर्व-त्यौहारों पर उल्लास मना सकें। मगर दुख से कहना पड़ता है कि हमारे देश में अवकाश को बहुत सारे लोगों ने अपना कानूनी अधिकार मान लिया है, तो कई लोग इसे लेकर राजनीतिक रोटियां भी सेंकने का प्रयास करते देखे जाते हैं। कई राज्यों में बहुत सारी छुट्टियां इसलिए अनावश्यक रूप से सूची में शामिल होती गई हैं कि उन्हें राजनीतिक दलों ने किन्हीं वर्गों को अपने पक्ष में करने की गरज से लागू किया या कराया। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक अवकाश का किसी के पास मौलिक अधिकार नहीं है। वैसे भी हमारे देश में काफी सार्वजनिक छुट्टियां हैं। संभवत अब इन छुट्टियों की संख्या बढ़ाने की बजाय इनको कम करने का समय आ गया है। किसी दिन को सार्वजनिक छुट्टी घोषित करना अथवा उसे वैकल्पिक अवकाश बनाना सरकार का नीतिगत मामला है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि किसी दिन को सार्वजनिक छुट्टी करने से किसी के मौलिक अधिकार का हनन होता है। न्यायमूर्ति गौतम पटेल व न्यायमूर्ति माधव नामदार की खंडपीठ ने यह बात लिवासा निवासी किशन भाई घुटिया की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए गुरुवार को कही। घुटिया की याचिका में मांग की गई थी कि दो अगस्त को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि इसी दिन 1954 में केंद्र शासित प्रदेश दादर एवं नागर हवेली ने पुर्तगाल शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। इससे पहले 29 जुलाई 2021 को दो अगस्त के सार्वजनिक अवकाश को खत्म कर दिया गया था। याचिका में कहा गया कि यदि 15 अगस्त को देश का स्वतंत्रता दिवस होने के चलते सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जा सकता है तो दो अगस्त को दादर एवं नागर हवेली के लिए सार्वजनिक छुट्टी क्यों नहीं घोषित की जा सकती है? खंडपीठ ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया और कहा कि सार्वजनिक अवकाश कोई मौलिक अधिकार नहीं है। भारत एक विकासशील देश है जहां उत्पादन बढ़ाना अति आवश्यक है। वैसे भी हमारे देश में बहुत छुट्टियां होती हैं। इनमें कटौती होनी चाहिए। बढ़ाने का तो सवाल ही नहीं।
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