Wednesday, 26 January 2022
लखनऊ से होकर जाता है दिल्ली का रास्ता
एक पुरानी राजनीतिक कहावत है कि रायसीना हिल्स का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। साउथ ब्लॉक में जिन 14 पुरुषों और एक महिला ने प्रधानमंत्री के तौर पर काम किया है उनमें से आठ उत्तर प्रदेश से आते हैं। अगर आप नरेंद्र मोदी को भी जोड़ दें तो यह संख्या नौ हो जाती है। इस सूची में नरेंद्र मोदी को भ शामिल करने के पीछे तर्क यह है कि वह वाराणसी से चुनकर लोकसभा में पहुंचे हैं। वह आसानी से गुजरात से चुनकर लोकसभा में पहुंच सकते थे लेकिन उनको भी अंदाजा था कि भारत की राजनीति में उत्तर प्रदेश का जितना सांकेतिक महत्व है उतना शायद किसी और राज्य का नहीं। देश की सबसे बड़ी विधानसभा और लोकसभा में 80 सांसद भेजने वाला प्रदेश न सिर्फ भारत की जनसंख्या का सातवां हिस्सा यहां रहता है बल्कि अगर यह एक स्वतंत्र देश होता तो आबादी के हिसाब से चीन, भारत, अमेरिका, इंडोनेशिया और ब्राजील के बाद उसका दुनिया में छठा नम्बर होता। लेकिन बात सिर्फ आबादी की नहीं है, जाने-माने स्तम्भकार और इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक सईद नकवी कहते हैं, त्रिवेणी उत्तर प्रदेश में, काशी उत्तर प्रदेश में, मथुरा, अयोध्या और गंगा और यमुना उत्तर प्रदेश में एक तरह से प्री-इस्लामिक संस्कृति का जो गढ़ उत्तर प्रदेश की सरजमीं रहा है, इसको एक तरह से भारत की सियासत का मेल्टिंग पॉटया सैलैड बोल (सलाद की कटोरी) कह सकते हैं। अहम यह नहीं कि यहां से 80 सांसद जाते हैं। अहम यह है कि 5000 साल पुराने देश को यह चूंकि एक सिविलाइजेशनल हैल्थ मानी सभ्यता गत गहराई प्रदान करती है। पड़ोसी राज्यों की भी राजनीति को प्रभावित करती है और उत्तर प्रदेश की राजनीतिक हिन्दी हार्टलैंड का केंद्रबिन्दु होने के कारण उसका चुनाव परिणाम इससे सटे हुए इलाकों को भी प्रभावित करते हैं। गोविंद बल्लभ पत सामाजिक संस्थान के प्रोफेसर बदरी नारायण उत्तर प्रदेश के प्रतीकात्मक महत्व की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, एक तो जनतंत्र में संख्या का बहुत महत्व होता है। दूसरे इसका प्रतीकात्मक महत्व भी है क्योंकि यहां से लगतार पीएम होते रहे हैं। हिन्दी क्षेत्र होने के कारण न सिर्फ 80 सीट बल्कि आसपास के इलाके जैसे बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान की भी राजनीति पर असर डालते हैं। दूसरे यूपी में जो क्षेत्रीय दलों की राजनीति है, उसके बड़े पुरोधाओं मुलायम सिंह यादव और मायावती का भी यह क्षेत्र है जिसकी वजह से विपक्ष की राजनीति में भी उत्तर प्रदेश का दखल साफ दिखता है। उत्तर प्रदेश में मिली भाजपा को सबसे बड़ी ताकत 1989 तकज़िस दल ने उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक सीटें जीतीं, उसने केंद्र में सरकार बनाई। इस ट्रेंड को बदला 1991 में नरसिंह राव ने जो उत्तर प्रदेश में 84 में से सिर्फ पांच सीट जीत पाए लेकिन इसके बावजूद देश के प्रधानमंत्री बनें। भाजपा की राजनीति में उत्तर प्रदेश हमेशा एक धुरी की तरह रहा है। पूरे राम मंदिर आंदोलन के दौरान इसका उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूरा दबदबा रहा। 1991, 1996 और 1998 लगातार तीन लोकसभा चुनावों में पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 50 से अधिक सीटें जीतीं। 2004 और 2009 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा के मामूली प्रदर्शन क नतीजा यह रहा कि वो सत्ता की दौड़ में कांग्रेस से काफी पिछड़ गई। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजबा की जबरदस्त जीत की इबादत उत्तर प्रदेश में एक बार फिर शानदार प्रदर्शन की वजह से लिखी गई। उत्तर प्रदेश विधानसभा में 403 सदस्य हैं और यह देश की सबसे बड़ी विधानसभा है। करीब दो दशक तक त्रिशंकु विधानसभा देने के बाद यह चलन 2007 में बदला जब प्रदेश की जनता ने पहले बहुजन समाज पार्टी को पूर्ण बहुमत दिया फिर 2012 में सत्ता की बागडोर समाजवादी पार्टी के हाथ में सौंपी जबकि 2017 में प्रदेश में हाशिये पर चली गई। भारतीय जनता पार्टी ने तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया। इसीलिए तो कहता हूं कि दिल्ली का रास्ता खनऊ से होकर जाता है।
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