Saturday, 26 February 2022

देश की ऊंची प्रतिमाएं चीन निर्मित क्यों हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में कुछ दिन पहले 11वीं-12वीं सदी के महान हिन्दू संत रामानुजाचार्य की प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी का अनावरण किया। 216 फुट ऊंची इस प्रतिमा का डिजाइन भले ही भारत में तैयार किया गया, लेकिन इसे चीनी कंपनी ने बनाया है। इसे बनाने में सात हजार टन पंचलोहे का इस्तेमाल किया गया। वहीं करीब सवा तीन साल पहले गुजरात के केवड़िया में लगी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को बनाने में भी चीनी कंपनियों का योगदान रहा। देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की यह प्रतिमा 597 फुट ऊंची है। साल 2017 में तेलंगाना सरकार ने भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार डॉक्टर बीआर अंबेडकर की 125 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा स्थापित करने के इरादे से तब के उपमुख्यमंत्री कादियान श्रीहरि के नेतृत्व में एक दल चीन भेजा था। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत को बड़ी प्रतिमाएं स्थापित करने के लिए आखिर चीन की मदद क्यों लेनी पड़ती है? क्या इन्हें भारत में ही नहीं बनाया जा सकता? तेलंगाना में लगने वाली अंबेडकर की यह प्रतिमा आखिर चीन से क्यों बनवाई गई? विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की कंपनियों को विशाल प्रतिमाएं बनाने में महारथ हासिल है। उन्हें विशाल कांस्य प्रतिमाओं के निर्माण के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। चीन की कंपनियां ढलाई के पारंपरिक तरीके के साथ आधुनिक तकनीक मिलाकर बड़े पैमाने पर मूर्तियां बना रही हैं। चीन में ढलाई के बड़े-बड़े कारखाने हैं, जिसके चलते मूर्तियों के टुकड़ों को बहुत कम समय में ढालकर उनकी डिलीवरी कर पाना संभव है। चीन में प्रिंगटेंपल बुद्धा जैसी कई विशाल प्रतिमाएं इसके उदाहरण हैं। यही वजह है कि विशाल प्रतिमाओं के लिए हर कोई चीन की कंपनियों का ही रुख करते हैं। डिजाइन भारत में और निर्माण चीन में। भारत में विभिन्न धातुओं से मूर्तियां बनाने की कला काफी पुरानी है। यहां सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान बनी कांस्य प्रतिमाएं भी मिली हैं। भारत में धातु से बनीं देवी-देवताओं की मूर्तियां बड़े पैमाने पर बनाई जाती हैं। विदेशों तक इसका निर्यात किया जाता है। हालांकि उनका आकार ज्यादा बड़ा नहीं होता। इसलिए इन्हें ज्यादातर घरों में ही रखा जाता है। वहीं सैकड़ों फुट ऊंची प्रतिमाओं को बनाने के लिए विशेष तकनीक और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है। राजकुमार वोडेमार जैसे मूर्तिकारों का कहना है कि भारत में बुनियादी ढांचे की भारी कमी है। उन्होंने कहा कि यहां भी विशाल प्रतिमाएं बनाई जा सकती हैं। यदि सरकार इसके निर्माण को प्रोत्साहित करे और जरूरी सुविधाएं प्रदान करे। वोडेमार ने बताया कि ऑर्डर देने वाले यह भी देखते हैं कि भारत के मूर्तिकारों के पास करोड़ों की बड़ी परियोजनाएं शुरू करने लायक जरूरी वित्तीय साधन हैं या नहीं? इसके चलते छोटी फर्मों के लिए आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है। इसलिए हमें चीन से मूर्तियां बनवानी पड़ रही हैं। -अनिल नरेन्द्र

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