Thursday, 31 March 2022

नीतीश पर हमला ः सुरक्षा व्यवस्था में भारी चूक

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सुरक्षा में रविवार को एक बड़ी चूक का मामला सामने आया है। उनके पैतृक शहर पटना जिले के बख्तियारपुर में एक विक्षिप्त युवक ने पीछे से उन पर हमले का प्रयास किया। शाम पांच बजे के करीब यह घटना उस समय हुई, जब मुख्यमंत्री द्वारा स्वतंत्रता सेनानी पंडित शीलभद्र माजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने जा रहे थे। मुख्यमंत्री इन दिनों अपने पुराने लोकसभा क्षेत्र बाढ़ में विभिन्न जगहों पर पुराने लोगों से मिल रहे हैं। इसी कड़ी में वह बख्तियारपुर पहुंचे थे। इस पूरे कार्यक्रम से जुड़े कई वीडियो वायरल हो रहे हैं। घटना के संबंध में बताया गया कि मुख्यमंत्री बख्तियारपुर के सीढ़ी घाट के समीप अपने समर्थकों से मिलने के बाद एनएच पर स्थित अपने घर चले गए। घर पर कुछ समय रहने के बाद वह बख्तियारपुर बाजार की ओर निकले। वहां स्वास्थ्य केंद्र परिसर में स्वतंत्रता सेनानी पंडित शीलभद्र माजी की प्रतिमा लगी है। तय कार्यक्रम के तहत उन्हें प्रतिमा पर माल्यार्पण करना था। मुख्यमंत्री अपने सुरक्षा कर्मियों और अधिकारियों के साथ परिसर में पहुंचे तो गेट को बंद कर दिया गया। कुछ फोटोग्राफरों के साथ हमलावर युवक परिसर में प्रवेश कर गया मुख्यमंत्री जब प्रतिमा के चबूतरे पर चढ़ने लगे तो युवक तेज गति से बढ़कर उनके समीप पहुंच गया और मुख्यमंत्री की पीठ की ओर हमले का जबरदस्त प्रयास किया। मुख्यमंत्री भौचक्के रह गए। सुरक्षा कर्मियों ने तुरन्त हमलावर युवक को अपने कब्जे में कर लिया और चबूतरे से हटा दिया। मुख्यमंत्री माल्यार्पण के कार्यक्रम के बाद वहां से निकल गए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने ऊपर हमला करने का प्रयास करने वाले युवक पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि जिस युवक ने यह कोशिश की वह मानसिक रूप से विक्षिप्त है। अधिकारी उसकी समस्या को सुलझाने में मदद करें। एडीजी जितेन्द्र सिंह ने कहा कि जिस आदमी ने हरकत की है, उसे सुरक्षा कर्मियों ने तुरन्त हिरासत में ले लिया है। प्रथम दृष्ट्या युवक विक्षुब्ध प्रतीत हो रहा है। जिस तरह यह युवक मुख्यमंत्री तक पहुंचकर उन पर हमला करने में कामयाब हो गया, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सुरक्षा में इस चूक का नतीजा क्या हो सकता था। आखिर वहां विशेष रूप से मुख्यमंत्री के लिए ही तैनात सुरक्षा कर्मियों के होते हुए वह युवक इतनी आसानी से नीतीश कुमार तक कैसे पहुंच गया? गौरतलब है कि नीतीश कुमार की सुरक्षा में संबंधित एजेंसियों की यह लापरवाही तब सामने आई है, जब उन्हें निशाना बनाकर हमले की कोशिश इससे पहले भी की गई थी। कायदे से मुख्यमंत्री के स्तर की शख्सियत की सुरक्षा-व्यवस्था हर वक्त चाक-चौबंद होनी चाहिए, ताकि किसी भी आपराधिक मानसिकता वाले व्यक्ति को कोई आवंछित हरकत करने के बारे में सोचने तक का मौका नहीं मिले। लेकिन अकसर ऐसा देखा जाता है कि आशंकाओं के बावजूद कई बार सुरक्षा के लिए तैनात लोग आसपास के माहौल की सहज देखकर सब कुछ सुरक्षित होने के प्रति आश्वस्त हो जाते हैं। जबकि कोई हमलावर ऐसे माहौल को ताक में हो सकता है जब सुरक्षा कर्मी अपनी ड्यूटी को लेकर थोड़े लापरवाह हो जाएं। यह देखने की जरूरत है कि नीतीश पर हमले की यह कोशिश समूचे खुफिया और सुरक्षा तंत्र की लापरवाही और चूक का नतीजा है।

अधिकारियों के हाथों में होगी कमान

एकीकृत दिल्ली नगर निगम की कमान वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के हाथों में रहेगी। इसके अलावा नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारी भी विभागों के प्रमुख बने रहेंगे। अभी तीनों नगर निगमों में वरिष्ठ पदों पर उनके कनिष्ठ अधिकारियों के अलावा युवा आईएएस और गैर आईएएस अधिकारी नियुक्त हैं। दरअसल एकीकृत नगर निगम के समय पार्षद रहे अधिकतर नेता बुजुर्ग हो चुके हैं और उनमें से अधिकतर राजनीति से तौबा कर चुके हैं। इस तरह नगर निगम में अधिकतर पार्षद नए युवा होने की संभावना जताई जा रही है, मगर नगर निगम के अधिकारियों का काफी अनुभवी एवं वरिष्ठ होने का अनुमान है। वर्ष 2012 में नगर निगम का विभाजन होने तक उसके तमाम प्रमुख पदों पर वरिष्ठ अधिकारी नियुक्त थे। सूत्रों के अनुसार पहले की तरह नगर निगम के आयुक्त के पद पर एक बार फिर सचिव स्तर के आईएएस अधिकारी को नियुक्त किया जाएगा। इसी तरह अतिरिक्त आयुक्त, उपायुक्त और निदेशक के पदों पर उनकी गरिमा के तहत आईएएस अधिकारी ही नियुक्त होंगे। इन पदों पर नगर निगम के कोटे के वरिष्ठ अधिकारियों को भी नियुक्त किया जाएगा। माना जा रहा है कि पहले की तरह नगर निगम में आईएएस अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर आने में रुचि लेंगे। इस तरह केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और दूसरे राज्यों से अन्य सेवाओं के अधिकारियों को नगर निगम में प्रतिनियुक्ति पर जगह मिलनी मुश्किल हो जाएगी। तीनों नगर निगमों में आयुक्त पदों पर कनिष्ठ आईएएस अधिकारी नियुक्त हैं। इसके अलावा उपायुक्त पदों को कुछ ही कनिष्ठ आईएएस अधिकारी संभाले हुए हैं। तीनों निगमों में अतिरिक्त आयुक्त केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार एवं अन्य राज्यों से विभिन्न सेवाओं के अधिकारी नियुक्त हैं। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 30 March 2022

योगी आदित्यनाथ से उम्मीदें

योगी आदित्यनाथ ने बीते शुक्रवार शाम को लखनऊ के इकाना स्टेडियम में भारतीय जनता पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओं, दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश के 22वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेना कई मायनों में ऐतिहासिक है। पिछले करीब चार दशकों में योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करके फिर मुख्यमंत्री बने हैं। उन्होंने दशकों पुराने नोएडा जाना मुख्यमंत्री पद के लिए मनहूस होता है, जैसे मिथक को भी तोड़ दिया। नई सरकार में नए चेहरों के रूप में पूर्व आईएएस अधिकारी असीम अरुण, पूर्व आईएएस अधिकारी अरविन्द शर्मा से लेकर दानिश आजाद अंसारी जैसे नए चेहरों को जगह मिली है। इसके साथ ही पिछली सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे दिनेश शर्मा से लेकर सतीश महाजन, सिद्धार्थ नाथ सिंह, आशुतोष टंडन जैसे बड़े नेताओं और मंत्री रहे कुल 22 नेताओं को इस बार कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है। चुनाव के नतीजे आने के बाद से भाजपा नेता कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की जनता ने उनके काम को देखते हुए एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है। इन 22 नेताओं में से कई लोगों को मंत्रिमंडल में नहीं रखे जाने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। उन्होंने चुनाव में ठीक से ध्यान नहीं दिया। ज्यादातर लोगों को स्थानीय स्तर पर नाराजगी थी। बड़ी मुश्किल से मोदी और योगी के नाम पर यह जीतकर आए हैं। शिकायतें तो इनके खिलाफ पहले से थीं, लेकिन कोरोना की वजह से सब टल गई। संदेश साफ था कि या तो अच्छा प्रदर्शन करिए या फिर किनारे बैठ जाइए। जो अच्छा प्रदर्शन करेगा वो रहेगा, जो नहीं करेगा उसे जाना होगा। सिद्धार्थ नाथ सिंह का विभाग बदला गया था, इसी से उन्हें संकेत दिया गया था। स्वास्थ्य मंत्रालय से उन्हें हटाया गया। पार्टी वही कर रही है जो किसी भी राजनीतिक दल में होना चाहिए। जैसे विधायक के रूप में आपका प्रदर्शन कैसा है, चुनाव क्षेत्र के लोग आपसे कितने संतुष्ट हैं, अगर आप सरकार में हैं तो आपका प्रदर्शन कैसा रहा, आपकी छवि कैसी है? उत्तर प्रदेश की पिछली सरकार में योगी आदित्यनाथ के करीबी माने जाने वाले महेंद्र सिंह की बात करें, सिद्धार्थ नाथ सिंह की बात करें या श्रीकांत शर्मा की इन तीनों को मंत्रिमंडल से बाहर रखने की एक ही वजह है कि इन तीनों पर आर्थिक घोटाले जैसे आरोप थे। आय के लिए कृषि पर अत्याधिक निर्भरता और पूर्वी व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बीच आर्थिक असमानता के अलावा भी श्रम भागीदारी दर और युवा बेरोजगारी के मोर्चे पर उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन राष्ट्रीय प्रदर्शन से कमतर है। जिस पर इस साल भी अगर सरकार की कल्याणकारी योजनाएं प्रभावी ढंग से लागू की गईं तो निश्चित रूप से योगी उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदल सकते हैं। घोषणा पत्र के अनुरूप किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली उपलब्ध कराई गई, तो मौजूदा वित्त वर्ष में उत्तर प्रदेश का कर्ज बढ़कर उसके जीडीपी का एक-तिहाई हो जाएगा। ऐसे में ज्यादा राजनीतिक ताकत के साथ लौटे योगी से सूबे की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने की उम्मीद भी स्वाभाविक रूप से और बढ़ गई है। चुनाव में जो एक मुद्दा ज्यादा छाया रहा वह था राज्य में कानून-व्यवस्था और महिलाओं की सुरक्षा। योगी जी से बहुत उम्मीदें हैं। उन्हें जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना ही होगा। फिर 2024 के चुनाव में यूपी की अहम भूमिका होगी।

गोबर का बजट ब्रीफकेस

मंगलवार का दिन रायपुर में बजट का ब्रीफकेस बनाने वाली स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए तब यादगार बन गया जब स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हें विधानसभा स्थित अपने कार्यालय में बुलाकर सम्मानित किया। मुख्यमंत्री से सम्मानित होने पर स्वयं सहायता समूह की दीदियां भावुक हो गईं और कहा कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके काम का सम्मान स्वयं मुख्यमंत्री करेंगे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने स्वयं सहायता समूह की दीदियोंöनीलम अग्रवाल, नोमिन पाल इत्यादि को मिठाई भी भेंट की। मुख्यमंत्री ने दीदियों से कहा कि आपके द्वारा गोबर से बनाए गए ब्रीफ केस की चर्चा पूरे देश में हो रही है। आपका यह कार्य मौलिक तो है ही, साथ ही हमारे गोधन का भी सम्मान है। नोमिन ने मुख्यमंत्री को बताया कि हम लोग गोबर से पेंट बनाने की तैयारी कर रहे हैं, साथ ही गोबर की ईंट बनाकर छत्तीसगढ़ महतारी का मंदिर बनाने की भी योजना है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि आपके प्रयासों में हम पूरा सहयोग करेंगे। समूह की नोमिन पाल ने बताया कि पति के निधन के बाद घर चलाना मुश्किल हो गया था, छह महीने बहुत दिक्कत हुई, लेकिन अब गौठान के जरिये गोबर से निर्मित हुए कई सामान बना रहे हैं और महीने में लगभग 15 हजार रुपए कमा लेते हैं। होली में गोबर से निर्मित 150 किलो से ज्यादा गुलाल बेच चुके हैं, दिल्ली से भी गुलाल का ऑर्डर मिला लेकिन समय की कमी के चलते हमने मना कर दिया है। गोबर की लकड़ी, दीये, मूर्ति, चप्पल भी बड़ी संख्या में बना रहे हैं। आपको बता दें कि बजट ब्रीफकेस नगर पब्लिक निगम रायपुर के गोकुल धाम गौठान में कार्य करने वाली एक पहल महिला स्वयं सहायता समूह की एचएमजी दीदी नोमिन पाल द्वारा बनाया गया था। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 29 March 2022

तो क्या लोकसभा चुनाव के साथ होंगे नगर निगम चुनाव?

दिल्ली में एकीकृत नगर निगम चुनाव जल्द होने की उम्मीद नहीं है। विधेयक में वार्डों की अधिकतम संख्या 250 करने का प्रावधान है। इससे नए सिरे से वार्ड बनाने होंगे। इस प्रक्रिया में एक वर्ष तक का समय लग सकता है। दूसरी ओर केंद्र सरकार ने विधेयक में कहा है कि नगर निगम बनने के बाद जो जनगणना होगी, उसके आधार पर दिल्ली के वार्डों की संख्या तय होगी। विशेषज्ञों के अनुसार केंद्र सरकार ने विधेयक में प्रावधान किया है कि वार्ड का परिसीमन नई जनगणना के आधार पर होगा। अभी 2021 की जनगणना पूरी नहीं हुई है। एक अनुमान के अनुसार जनगणना की रिपोर्ट आने में दो साल का वक्त लग सकता है। इस सूरत में दो साल पहले नए सिरे से वार्ड नहीं बनाए जा सकते। असल में माना जा रहा है कि 2011 की जनगणना के आधार पर वार्डों का परिसीमन करना न्यायसंगत नहीं होगा। वार्डों में वर्ष 2011 की जनगणना से अधिक मतदाताओं की संख्या हो चुकी है। इस कारण जनसंख्या एवं मतदाताओं के मामले में वार्डों की स्थिति एक समान नहीं हो सकेगी। उधर दिल्ली राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने बताया कि जनगणना रिपोर्ट मिलने के बाद नए सिरे से वार्ड बनाने में कम से कम एक वर्ष का समय लगेगा। वर्ष 2016 में वार्डों का परिसीमन करने में पूरा एक वर्ष लग गया था। वार्ड बनाने में जनगणना विभाग से आंकड़े लेने पड़ते हैं। इसके बाद वार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। वार्डों के क्षेत्र का प्रारूप बनाने के बाद राजनीतिक दलों के अलावा आम जनता से आपत्ति एवं सुझाव प्राप्त किए जाते हैं। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद वार्डों के क्षेत्रों को अंतिम रूप दिया जाता है। संविधान विशेषज्ञ और दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने कहा कि अगर वार्डों की मौजूद संख्या 272 से घटाई जाती है तो इसके लिए परिसीमन प्रक्रिया की आवश्यकता होगी और उसमें बहुत लंबा समय लगेगा। बता दें कि दिल्ली के नगर निगमों (तीनों) का कार्यकाल 22 मई को खत्म हो रहा है। निगम भंग होने के साथ ही इनकी कमान स्पेशल ऑफिसर के हाथ में सौंप दी जाएगी। जो सीधे दिल्ली के उपराज्यपाल को रिपोर्ट करेंगे। पेश बिल के बारे में कहा गया है कि उन्हें नगर निगम की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करने का पूरा अधिकार होगा। इस बिल से सरकार दिल्ली में मेयर-इन-काउंसिल प्रणाली लागू करने में मौन है। इस बिल में इस तरह की कोई चर्चा नहीं की गई। हालांकि कहा गया है कि इसकी जानकारी गजट नोटिफिकेशन में दी जाएगी। बिल में डायरेक्ट लोकल बॉडीज की व्यवस्था को जारी रखने की बात जरूर कही गई है।

अखिलेश ने विधायकी को क्यों चुना?

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर यह तो साफ कर दिया है कि उनका अब पूरा ध्यान यूपी की सियासत पर होगा। उन्हें सरकार बनाने का भले ही मौका न मिला हो पर वह सदन में भाजपा सरकार को मजबूत विपक्ष की भूमिका का एहसास जरूर कराएंगे। इस इस्तीफे को वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है। अखिलेश यादव, आजम खान, माता प्रसाद पांडेय और शिवपाल यादव वरिष्ठ विधायक हैं। इनमें नेता विरोधी दल अखिलेश होंगे। अखिलेश करहल सीट से पहली बार विधायक चुने गए हैं। सीट को बचाकर उन्होंने संदेश देने की कोशिश की है कि पारिवारिक व परंपरागत सीट से उनका सियासी लगाव है और बना रहेगा। आजम खान इस चुनाव में रामपुर से 10वीं बार विधायक चुने गए हैं और जेल में हैं। विधानसभा में उनकी भूमिका जेल से आने के बाद ही शुरू हो पाएगी। अखिलेश जब सांसद थे तो उनका ज्यादा वक्त दिल्ली में गुजर रहा था। इस्तीफे के सहारे वह यह संदेश भी देना चाहते हैं कि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद भी वह यूपी की सियासत पर ध्यान देंगे। सपा का आजमगढ़ की विधानसभा सीटों पर अच्छा प्रदर्शन रहा है। ऐसे में अखिलेश को भरोसा है कि उपचुनाव में यह सीट फिर से सपा के खाते में आ जाएगी। अखिलेश आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य में पांच साल तक मुख्यमंत्री रहे हैं। उनका पूरा खानदान राजनीति में है। पिता मुलायम सिंह यादव तो देश के राजनीतिक महारथियों में शुमार किए जाते हैं। अखिलेश को हालांकि यूपी विधानसभा चुनाव परिणाम से समझ आ चुका है कि पार्टी के हित में उनका यूपी में रहना जरूरी है बजाय दिल्ली में रहने के। अब वह यूपी विधानसभा में रहकर योगी सरकार की नीतियों पर कड़ी नजर रख पाएंगे और हर उस मौके को अपनी पार्टी के हित में भुनाएंगे जहां योगी सरकार थोड़ी-सी भी कमजोर दिखेगी।

सीबीआई के पास 1000 से अधिक मामले लंबित

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के पास जांच के लिए लंबित 1000 से अधिक मामलों का जिक्र करते हुए संसद की एक समिति ने कहा कि न्याय में देरी होना न्याय नहीं होने के समान है। मामलों को दशकों तक नहीं लटकाया जा सकता। समिति ने सीबीआई से लंबित मामलों के निस्तारण के लिए एक खाका तैयार करने को कहा। कार्मिक, प्रशिक्षण विभाग की अनुदान मांगों (2022-23) पर कार्मिक, लोक शिकायत एवं कानून व्यवस्था पर विभाग संबंधी संसदीय समिति ने संसद में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबित मामलों के सवाल पर सीबीआई ने एक लिखित जवाब में कहा कि साल 31 जनवरी को 1025 मामलों की जांच लंबित है, जिनमें से 66 पांच साल से अधिक समय से लंबित हैं। उससे लगता है कि अगर मानव संसाधन की जरूरत पर ध्यान दिया जाए तो लंबित मामलों को प्रभावी तरीके से कम किया जा सकता है। समिति ने यह सिफारिश भी की कि सीबीआई पर निर्भरता कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए। पुलिस पर निर्भरता ज्यादा हो। -अनिल नरेन्द्र

Sunday, 27 March 2022

महंगाई का मार्च

पांच राज्यों में चुनाव के कारण 137 दिन स्थिर रहीं पेट्रोल-डीजल की कीमतें लगातार दूसरे दिन भी 80 पैसे प्रतिलीटर बढ़ा दी गईं। यानि दो दिन में 1.60 रुपए प्रति लीटर की वृद्धि। कूड ऑयल 115 डॉलर प्रति बैरल के पार हो चुका है। चार नवम्बर को यह 81.6 डॉलर प्रति बैरल था। तेल कंपनियां 13 रुपए प्रति लीटर तक दाम बढ़ा सकती हैं। पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी अभी प्री कोविड से आठ और डीजल पर छह रुपए ज्यादा है। देश की सबसे बड़ी तेल कंपनी इंडियन ऑयल ने 166 दिन बाद घरेलू गैस सिलेंडर 50 रुपए तक महंगा कर दिया है। मध्य प्रदेश, यूपी, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ के 11 शहरों में सिलेंडर एक हजार रुपए के पार हो गया है। दिल्ली में रेट 949.50 रुपए है। एक मार्च 2021 को 819 रुपए था। यानि सालभर में ही करीब 140 रुपए महंगा हो गया है। रूस-यूकेन युद्ध से कूड करीब 40 प्रतिशत महंगा हो चुका है। यह 185 डॉलर तक भी जा सकता है। ऐसे में जरूरी चीजों की कीमतें और बढ़ने की आशंका है। मार्च महीने में महंगाई के मार्च का यह हाल है कि पेट्रो पदार्थों के साथ ही दूध, कॉफी, मैगी और सीएनजी भी महंगी हुई हैं। अमूल, मदर डेयरी और पराग ने दूध दो रुपए प्रति लीटर महंगा कर दिया है। वहीं मध्य प्रदेश में सांची मिल्क ने पांच रुपए की वृद्धि की। मैगी भी दो से तीन रुपए महंगी हुई। छोटे पैक पर दो रुपए और बड़े पैक पर तीन रुपए की बढ़ोतरी हो गई है। नेस्कैफे क्लासिक व कॉफी और ताजमहल चाय की कीमतों में भी तीन से सात प्रतिशत बढ़ाई गई हैं। दिल्ली में सीएनजी 50 पैसे प्रति किलो तक महंगी हो गई है। पिछले कुछ समय से रोजमर्रा की जरूरतों के सामान की कीमतें आम लोगों की पहुंच से दूर होती जा रही हैं। खाने-पीने की चीजों तक के दाम लंबे समय से जिस स्तर पर हैं, उससे बहुत सारे लोगों के सामने अलग-अलग स्तर पर मुश्किलें खड़ी हो रही हैं। विचित्र बात यह है कि अगर कभी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आती है, तो शायद ही खुले बाजार में पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी की जाती है। सवाल यह है कि अगर बड़े वाहनों, व्यावसायिक परिसरों, हवाई अड्डों और औद्योगिक इस्तेमाल में खपत के लिए ऊंची कीमत पर डीजल खरीदना पड़े तो क्या इसका असर इनसे संबंधित व्यावसायों पर नहीं पड़ेगा? क्या थोक में महंगे तेल की वजह से माल ढुलाई, यात्री किराया नहीं बढ़ेगा? दरअसल बीते दिनों में पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रहे थे। माना जा रहा था कि इसके पीछे विधानसभा चुनाव बड़ी वजह रहे, जिससे महंगाई का असर वोटों पर पड़ सकता था। अब पांच राज्यों में चूंकि चुनाव खत्म हो गए हैं, इसलिए कीमतें बेलगाम बढ़ रही हैं। सरकार को चाहिए कि कम से कम रोजमर्रा की चीजों की कीमतों पर तो नियंत्रण करे। गरीब आदमी, रोज कमाने-खाने वाला किस हालत में जी रहा है यह भी तो जानें।

हर तीसरी महिला घरेलू हिंसा की शिकार

महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम कायदे-कानून खासकर सख्त घरेलू हिंसा कानून-2005 होने के बावजूद देश में हर तीन महिलाओं में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार है। घरों में होने वाली इस तरह की हिंसा के अधिकतर मामलों की रिपोर्ट नहीं होती। इसकी वजह महिला का आर्थिक रूप से पति या परिवार पर निर्भर होना है। वहीं घरेलू हिंसा मामलों के बारे में अनभिज्ञ होना भी इसका एक बड़ा कारण है। यह बात विधि स्पीक्स के सर्वे में सामने आई है जिसमें एनसीआरबी और नेशनल फैमिली हेल्थ रिपोर्ट के आंकड़ों को आधार बनाया गया है। इसकी वजह महिलाओं से जुड़े अपराधों में दंड नहीं मिलना भी एक कारण है। आपराधिक कानून के विशेषज्ञ डॉ. एमपी शर्मा कहते हैं कि घरेलू हिंसा के मामले अधिकतर तो रिपोर्ट ही नहीं होते। इस हिंसा के वही मामले रिपोर्ट होते हैं, जिनमें हिंसा गंभीर किस्म की होती है। पत्नी के साथ घर में मारपीट, प्रताड़ना और समान रूप से व्यवहर नहीं होना घरेलू हिंसा है, लेकिन इसे रिपोर्ट नहीं किया जाता है। ऐसे मामले मेट्रो शहरों में तो सामने आ जाते हैं लेकिन छोटे शहरों, कस्बों और गांवों से इस तरह के मामले रिपोर्ट नहीं होते। उन्होंने कहा कि यह भी देखा गया है कि कानून की जानकारी होने के बावजूद तथा यह जानने पर भी कि उसे प्रताड़ित किया जा रहा है, महिलाएं अपराध को रिपोर्ट नहीं करतीं। यह ज्यादातर ऐसे मामलों में होता है जहां महिला आर्थिक रूप से पति या परिवार पर निर्भर है। दूसरे समाज का रुख भी एक महत्वपूर्ण कारक है। पति या परिवार की शिकायत लेकर पुलिस में जाने वाली महिला को समाज में अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता। यदि फिर भी शिकायत करती है तो उसे कोई समर्थन नहीं मिलता और वह अकेली पड़ जाती है। कई बार पुलिस भी ऐसे घरेलू मामलों को रफा-दफा करने का प्रयास करती है और ऐसे मामलों में कार्रवाई करने में संकोच करती है। हां, अगर गंभीर मामला हो तो ही पुलिस हरकत में आती है। इन कारणों से पीड़ित महिला के पास समझौता करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं होता। महिलाओं के खिलाफ अपराधों में दंड दिए जाने की दर महज 23.7 प्रतिशत है। वहीं इस तरह के मामलों के लंबित होने का प्रतिशत 91.2 प्रतिशत है। इसका कारण विशेष अदालतों की कमी, पुलिस जांच में ढिलाई, गवाहों का सामने नहीं आना है। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 26 March 2022

पुतिन की बौखलाहट ने बढ़ा दी परमाणु हमले की संभावना

रूस और यूकेन के बीच पिछले एक महीने से जारी जंग में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आहट फिर सुनाई देने लगी है। इतने दिन बाद भी रूस की सेना को जमीनी रास्ते से आगे बढ़ने में संघर्ष करना पड़ रहा है। उसे दक्षिण यूकेन में लगातार यूकेन की सेना से जवाब मिल रहा है। युद्ध लंबा खिंचने और दुनिया में दरकिनार किए जाने से रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की बौखलाहट बढ़ती जा रही है। उम्मीद के मुताबिक सफलता न मिलने से हताश रूस ने फिर धमकी भरे अंदाज में कहा कि जीने-मरने का सवाल हुआ तो हम परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से पीछे नहीं हटेंगे। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने स्वीकार किया कि रूस ने अभी तक यूकेन में किसी भी सैन्य लक्ष्य को हासिल नहीं किया है। उन्होंने परमाणु हथियारों की मदद लेने से इंकार तो किया, साथ ही कहाöयदि जीने-मरने का सवाल खड़ा हुआ तो रूस परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं हटेगा। राष्ट्रीय सुरक्षा की हमारी एक अवधारणा है और यह सार्वजनिक है। आप देख सकते हैं कि किन हालात में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की बात की गई है। यूकेन पर हमले के चन्द दिन बाद ही पुतिन ने रणनीतिक तौर पर अहम हथियारों, जिनमें परमाणु हथियार भी शामिल हैं, को विशेष अलर्ट पर रखने के आदेश दिए थे। उन्होंने कहा थाöइससे फर्प नहीं पड़ता कि कौन हमारे देश व लोगों के लिए खतरा पैदा करता है। उसे पता होना चाहिए कि रूस तत्काल जवाब देगा और नतीजा ऐसा होगा, जो किसी ने धरती के पूरे इतिहास में कभी नहीं देखा होगा। अमेरिकी विशेषज्ञ भी जता रहे हैं कि पुतिन अब छोटे परमाणु हमले कर सकते हैं। वह परमाणु हमले की चेतावनी लगातार दे रहे हैं और उन्होंने अपनी परमाणु टुकड़ी को अलर्ट पर रखा हुआ है। रूसी सेना परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर हमले कर रही है। इस मसले पर नाटो की बैठकें हो रही हैं। बैठक में इस पर भी चर्चा होगी कि अगर रूस कैमिकल, बायोलॉजिकल, साइबर या परमाणु हथियारों की तरफ जाता है, तो उसे कैसा जवाब दिया जाए? वैसे दूसरे विश्वयुद्ध के समय जब अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर हमला किया था, तब भी रूस के पास ज्यादा क्षमता थी। आज अमेरिका के पास परमाणु क्षमता हिरोशिमा पर गिराए गए बम से 1000 गुना, तो रूस के पास 3000 गुना क्षमता के एटम बम हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने कहा कि यह बेतुका युद्ध अजय है। इसे शांति से मेज पर ही हल किया जा सकता है। इस संघर्ष से भूख और वैश्विक संकट की प्रतिध्वनि सुनाई दे रही है। एक करोड़ यूकेनी लोग अपने घरों से पलायन को मजबूत हो गए हैं।

2024 में मोदी के सामने कौन ममता या केजरीवाल?

पांच राज्यों में कांग्रेस की करारी हार के बाद से राष्ट्रीय राजनीति में भी यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि मोदी के मुकाबले कौन? इन चुनावों में खराब प्रदर्शन का असर जहां कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर पड़ना तय माना जा रहा है, वहीं लोकसभा चुनाव की सियासी लड़ाई में भी इसके साइड इफैक्ट अभी से दिखने शुरू हो गए हैं। विपक्ष के अंदर इस बात को लेकर मंथन शुरू हो गया है कि लोकसभा के समर में कांग्रेस की अगुवाई में नहीं जाया जा सकता है। ऐसे में सवाल यह है कि केंद्र की राजनीति में मोदी के मुकाबले में विपक्ष का कौन नेता दमखम ठोक सकता है। पिछले दिनों तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का नाम सबसे आगे चल रहा था, लेकिन पंजाब में ऐतिहासिक प्रदर्शन करने के बाद से आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविन्द केजरीवाल के नाम पर विपक्ष के दिग्गज गंभीरता से मंथन करने लगे हैं। दोनों ही सीधे मुकाबले में भाजपा का सामना कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल में जहां ममता ने मोदी-शाह का पूरी ताकत झोंकने के बाद अपने विजय रथ को जारी रखा, तो वहीं दिल्ली में लगातार दो बार सीधे मुकाबले में अरविन्द केजरीवाल ने भाजपा को मात दी। अब पंजाब में उन्होंने जिस तरह से कांग्रेस के सत्ता के वापसी के अरमानों पर पानी फेर दिया है, उसके बाद राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद बढ़ा है। दोनों ही संघर्ष का गजब का माद्दा ही उन्हें विपक्ष का अगुआ बनने के काबिल बनाता हैं। राजनीतिक पंडितों की नजर में भी मोदी-शाह को रोक पाने का दम उसी में हो सकता है, जो जनता के बीच उतर कर चुनौती देने का दम रखता हो। माना जा रहा है कि 2024 की लड़ाई विपक्ष तीसरे मोर्चे के झंडे तले लड़ने की रणनीति बना रहा है। इसकी अगुवाई के लिए ममता और केजरीवाल का दावा मजबूत दिखाई पड़ रहा है। यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस राष्ट्रीय राजनीति में अपने रुतबे को खोने की ओर अग्रसर है। राहुल अब किसी को स्वीकार नहीं हैं।

दिग्गजों को हराने वाले कई विधायकों को नहीं मिली जगह

पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रतिद्वंद्वी दलों के राजनीतिक दिग्गजों को हराकर बड़े विजेताओं के रूप में उभरे आम आदमी पार्टी (आप) के कई विधायकों को मुख्यमंत्री भगवंत मान के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई है। मंत्रिमंडल में जगह बनाने में असफल रहे आप के इन विधायकों में भदौड़ विधानसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को 37,558 मतों के अंतर से हराने वाले लाभ सिंह भी शामिल हैं। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल को उनकी पारंपरिक लांबी सीट पर 11,396 मतों से हराने वाले गुरमीत सिंह भी मंत्रिमंडल में जगह पाने में असफल रहे। लाभ सिंह आप में शामिल होने से पहले मोबाइल फोन की दुकान चलाते थे जबकि गुरमीत सिंह पुड्डिया पिछले साल कांग्रेस छोड़कर आप में शामिल हुए थे। अमृतसर पूर्व सीट से कांग्रेस की पंजाब इकाई के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और शिअद नेता बिक्रम सिंह मजीठिया को हराने वाली सामाजिक कार्यकर्ता जीवनजोत कौर (50 को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल सकी है। आप उम्मीदवार अजीत पाल सिंह कोहली ने पटियाला शहरी सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को हराया, जबकि जगदीप कंबोज ने जलालाबाद से शिअद प्रमुख सुखबीर सिंह बादल को हराया। यह दोनों नेता भी भगवंत मान के मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना सके। इसके अलावा ऐसे कई विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली जो दूसरी बार पंजाब विधानसभा में चुनकर पहुंचे हैं, उनमें अमन अरोड़ा, सरबजीत कौर माणुके, बलविंदर कौर और प्रिंसिपल बुध राम शामिल हैं। भगवंत मान के मंत्रिमंडल में कुल 11 में से आठ मंत्री हैं जो पहली बार विधायक बने हैं। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 24 March 2022

जेल में जाने के बाद भी मंत्री क्यों नहीं छोड़ते पद

मुंबई की एक विशेष अदालत ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार के मंत्री एवं राकांपा नेता नवाब मलिक की न्यायिक हिरासत चार अप्रैल तक बढ़ा दी है और उन्हें जेल में एक बिस्तर, गद्दा और कुर्सी का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। मलिक को प्रवर्तन निदेशालय ने भगोड़े गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम और उसके सहयोगियों से जुड़े धनशोधन जांच के सिलसिले में 23 फरवरी को गिरफ्तार किया था। मलिक सात मार्च तक ईडी की हिरासत में थे और बाद में उन्हें 21 मार्च तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। सोमवार को नवाब मलिक को एक विशेष अदालत में पेश किया गया जिसे धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए निर्दिष्ट किया गया था। विशेष न्यायाधीश आरएन रोकॉडे ने उनकी न्यायिक हिरासत चार अप्रैल तक बढ़ा दी। जेल में होने के बावजूद उन्होंने न तो मंत्री पद से इस्तीफा दिया और न ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने उनसे इस्तीफा मांगा है। महाराष्ट्र में सत्ताधारी गठबंधन ने घोषणा की है कि वह मलिक से इस्तीफा नहीं मांगेंगे, क्योंकि उन पर लगे आरोप राजनीति से प्रेरित हैं और उन्हें परेशान करने के लिए ऐसा किया गया है। दलीलें कुछ भी हों, सीधा सवाल यह है कि क्या कोई व्यक्ति जेल जाने के बाद भी मंत्री बना रह सकता है? ऐसा क्या है कि मलिक एक महीने से ज्यादा जेल में रहने के बावजूद मंत्री पद पर काबिज हैं और सत्ताधारी दल सीना ठोककर उनकी तरफदारी कर रहा है? विशेषज्ञों की मानें तो इसके पीछे नियम कानून की शून्यता है। जेल में बंद दागी मंत्री को पद से हटाने के बारे में न तो कानून है, न ही कंडक्ट रूल में कुछ कहा गया है। एक सरकारी कर्मी अगर दो-चार दिन जेल में रहता है तो वह निलंबित हो जाता है, लेकिन एक मंत्री एक महीने से ज्यादा जेल में हेने के बावजूद पद पर काबिज है। देखा जाए तो इस स्थिति से निपटने के दो ही तरीके हैंöकानून बने या फिर अदालत व्यवस्था दे। कोर्ट किसी मुद्दे को तब तक परिभाषित नहीं करता या व्यवस्था नहीं देता है, जब तक उसके समक्ष कोई मामला नहीं आता। ऐसे मामलों में कोर्ट स्वत संज्ञान लेकर व्यवस्था नहीं देता। दूसरा तरीका है कि विधायिका ही इस पर कानून बनाए। लेकिन सवाल है कि राजनीतिक निहितार्थ के ऐसे मुद्दे पर क्या राजनेता एक होंगे? लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधानविद् सुभाष कश्यप कहते हैं कि जेल में एक मंत्री को पद पर रहना चाहिए या नहीं, यह बात कम से कम कोड ऑफ कंडक्ट में आनी चाहिए। मौजूदा स्थिति यह है कि जब तक अदालत से किसी को दोषी नहीं ठहराया जाता, तब तक वह निर्दोष माना जाता है। मौजूदा कानून में अंडर ट्रायल के तौर पर जेल में रहते हुए मंत्री बने रहने पर रोक नहीं है। हालांकि नैकिता का तकाजा है कि जेल जाने पर इस्तीफा दे देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में सांसदों-विधायकों को भी पब्लिक सर्वेंट बताए जाने पर कश्यप कहते हैं कि वह फैसला बहस का विषय है। अभी तक तय नहीं है कि किस-किस मुद्दे पर वह पब्लिक सर्वेंट माने जाएंगे? मौजूदा कानून में तो दोषी ठहराए जाने और सजा होने पर ही सांसद या विधायक अयोग्य हैं और उनकी सदस्यता जाती है।

केंद्र के हस्तक्षेप के बिना हों चुनाव

राजधानी दिल्ली में होने वाले नगर निगम निकाय चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। पार्टी ने केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बिना दिल्ली में स्वतंत्र, निष्पक्ष और त्वरित तरीके से चुनाव कराने की मांग की है। ज्ञात हो कि पिछले हफ्ते प्रदेश चुनाव आयोग ने एमसीडी चुनाव की तारीखों का ऐलान आखिरी समय पर टाल दिया था। सुप्रीम कोर्ट में आम आदमी पार्टी (आप) ने कहा है कि चुनावों को तय वक्त पर कराया जाना चाहिए और चुनाव का शैड्यूल केंद्र से हुई बातचीत की वजह से टाला नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि केंद्र ने जो तीनों एमसीडी को एक करने की संभावना पर औपचारिक बातचीत की है उसका असर चुनावी शैड्यूल पर नहीं पड़ना चाहिए। आपको बता दें कि चुनाव की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले राज्य चुनाव आयोग को उपराज्यपाल के जरिये केंद्र सरकार की चिट्ठी मिली थी। चिट्ठी में कहा गया कि केंद्र सरकार तीनों नगर निगमों को फिर से एक करना चाहती है। इसको लेकर विधेयक जल्द ही संसद में पेश किया जाएगा। इसलिए अभी चुनाव नहीं कराए जाएं। राज्य चुनाव आयुक्त एसके श्रीवास्तव ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि केंद्र सरकार तीनों नगर निगमों को एक करना चाहती है। उन्होंने कहा कि संवैधानिक संस्था होने के नाते आयोग इस सुझाव को मानने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन यदि किसी पक्ष से कोई जानकारी प्राप्त हुई है तो उस पर विचार करना जरूरी है। अभी चुनाव कितने दिन के लिए टल गए हैं, यह स्पष्ट नहीं हैं, मगर ऐसा माना जाता है कि हो सकता है, चुनाव छह महीने के लिए टल गए हैं। केंद्र की सत्तासीन भाजपा तीनों नगर निगमों को एक किए जाने को दिल्ली के हित में मानती है। मगर आम आदमी पार्टी (आप) इससे इत्तेफाक नहीं रखती है। आप चाहती है कि चुनाव समय पर हों जिससे जनता अपना नेता चुन सके। सुप्रीम कोर्ट में अभी इस मामले की सुनवाई होनी है, मगर आप नेताओं को कोर्ट से उम्मीद है इसलिए कार्यकर्ताओं को निर्देश दे दिया गया है कि चुनाव को लेकर तैयारियां जारी रखें। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 23 March 2022

क्या इमरान की विदाई तय है?

11 मार्च को पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान के भाषण में सैन्य प्रतिष्ठान व उनके बीच चल रही तनातनी सामने आ गई है। उन्होंने जेयूआर-एफ नेता मौलाना फजलुर्रहमान का हवाला देते हुए कहा थाöमैं सेना प्रमुख जनरल बाजवा से बात कर रहा था। उन्होंने मुझसे कहा कि फजल को डीजल न कहें, मैं अकेला नहीं हूं जो ऐसा कह रहा हूं। लोगों ने उनका नाम डीजल रखा है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के विपक्षी दलों के 100 से ज्यादा सांसदों ने प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ आठ मार्च को अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। जिस पर नेशनल असेंबली में मतदान 28 मार्च को होने की संभावना है। सत्तारूढ़ पीटीआई के असंतुष्ट 25 सांसदों ने इस्लामाबाद के सिंध हाउस में डेरा डाल रखा है। असंतुष्ट सांसदों से नाराज पीटीआई कार्यकर्ता गेट तोड़ते हुए सिंध हाउस में प्रवेश कर गए। पुलिस ने 13 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के पंजाब प्रांत अध्यक्ष राणा सनातुल्ला ने बताया कि विपक्षी लांग मार्च करते हुए 27 मार्च को इस्लामाबाद में प्रवेश करेंगे और कांस्टीट्यूशन एवेन्यू के सामने धरना देंगे। लांग मार्च की शुरुआत 24 मार्च को लाहौर से होगी। इमरान खान ने संयुक्त विपक्ष की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के बीच शुक्रवार को सेना प्रमुख जनरल जावेद बाजवा से मुलाकात की। इस मुलाकात के एजेंडे को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। स्थानीय मीडिया का कहना है कि इमरान और बाजवा ने इस्लामिक देशों के संगठन के पाकिस्तान में आगामी शिखर सम्मेलन, बलूचिस्तान में हिंसा और इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाले मतदान को लेकर बातचीत की है। इमरान आर्मी का सपोर्ट चाहते हैं क्योंकि 27 मार्च को उनके खिलाफ लाए गए विपक्षी दलों के अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हो सकती है। वहीं पाकिस्तान के अखबार फ्राइडे टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा भी हो सकता है कि इमरान बाजवा को हटाना चाहते हों। वहीं विपक्षी नेता शहबाज शरीफ ने कहा है कि शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान देश में मौजूदा राजनीतिक संकट में किसी का पक्ष नहीं ले रहा है। समा टीवी के शो नदीम मलिक लाइव में शुक्रवार रात शरीफ ने कहा कि विपक्षी दल मुझे अंतरिम प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, लेकिन अंतिम फैसला पीएमएल-एन प्रमुख नवाज शरीफ ही करेंगे। इमरान खान की सरकार को वर्तमान में नेशनल असेंबली में केवल पांच वोटों की बढ़त है। इसके अलावा उनके अपने 24 सांसदों ने विपक्ष के साथ जाने की धमकी दी है। सरकार के मंत्री अपनी पार्टी के विद्रोही सदस्यों पर जबरदस्ती और रिश्वतखोरी का आरोप लगा रहे हैं। इमरान की पार्टी के रमेश कुमार का दावा है कि तीन संघीय मंत्रियों सहित सदन के 33 सदस्यों ने सत्तारूढ़ दल छोड़ दिया है। देश में आसमान छूती महंगाई जहां बिगड़े आर्थिक हालात का इशारा करती है, वहीं खान की पार्टी के भीतर फैली अशांति राजनीतिक अस्थिरता का साफ संकेत देती है। देखना है कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान की सियासत कैसी करवट लेती है।

बाइडन ने पुतिन को युद्ध अपराधी बताया

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूकेन पर किए जा रहे रूसी हमलों में आम आदमी, नागरिकों को निशाना बनाने और तबाही मचाने को लेकर रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को युद्ध अपराधी कहा। बाइडन ने कहाöपुतिन यूकेन में तबाही और आतंक फैला रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन के इस बयान पर रूस ने कड़ा विरोध जताया। बाइडन ने कहा कि रूस रिहायशी इमारतों, अस्पतालों, आम नागरिकों को निशाना बना रहा है। यह बहुत भयानक स्थिति है, यह घटना स्तब्ध करने वाली है। बाइडन ने पुतिन को युद्ध अपराधी कहने के बाद रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा कि अमेरिका जिसके बमों ने दुनियाभर के निर्दोष लोगों की जान ली है, उस देश के राष्ट्रपति ऐसा बयान दे रहे हैं, हम इसे खारिज करते हैं। युद्ध अपराधी कौन है? यह शब्द ऐसे किसी भी व्यक्ति पर लागू होता है, जो विश्व नेताओं द्वारा स्वीकृत उन नियमों का उल्लंघन करता है, जिन्हें सशस्त्र संघर्ष के कानून के तौर पर जाना जाता है। इससे यह तय होता है कि युद्ध के समय देश किस तरह का व्यवहार करता है। गंभीर उल्लंघनों में जानबूझ कर हत्या करना और व्यापक विध्वंस युद्ध अपराध के दायरे में आते हैं। जानबूझ कर नागरिकों को निशाना बनाना, मानव ढाल का इस्तेमाल करना और बंधक बनाना शामिल है। हत्या, तबाही, मौन गुलामी इसमें शामिल हैं। अब तक इन नेताओं पर चला है युद्ध अपराधी का मुकदमा। यूगोस्लाविया के पूर्व नेता स्लोबोडिन मिलोसेविक पर देश में संयुक्त राष्ट्र के एक न्यायाधिकरण ने खूनी संघर्षों को भड़काने के लिए मुकदमा चलाया था। अदालत के फैसले से पहले ही सेल में उनकी मौत हो गई। लाइबेरिया के प्लेटको पड़ोसी सियरा लियोन में अत्याचारों को प्रायोजित करने का दोषी ठहराया गया था। उन्हें 50 साल की सजा सुनाई गई थी। माड के पूर्व तानाशाह हिसीन हाबरे को भी दोषी ठहराया गया था। अब देखना यह है कि क्या ब्लादिमीर पुतिन को विश्व के देश युद्ध अपराधी ठहरा सकते हैं? आने वाले दिनों में इसका पता चलेगा? -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 22 March 2022

द कश्मीर फाइल्स दर्शाती है कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का सच

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्राr की ताशकंद में हुई मौत के रहस्य पर द ताशकंद फाइल्स बना चुके फिल्म डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री की बीते दिनों रिलीज हुई द कश्मीर फाइल्स को भी जनता ने उनकी पहली फिल्म की तरह ही समझा, लेकिन ताशकंद फाइल्स बनाने वालों की द कश्मीर फाइल्स को शुरुआत से ही दर्शकों ने हिट बनाने का मन बना लिया था। सोशल मीडिया और वॉट्सएप पर फिल्म की रिलीज होने से पहले ही चर्चाएं शुरू हो गई थीं। मैंने भी फिल्म देखने का मन बना लिया और बृहस्पतिवार को आईमैक्स पर जाकर फिल्म देखी। फिल्म में कश्मीरी पंडितों की दर्दनाक कहानी बहुत अच्छे से दर्शाई गई है। दरअसल 1990 में कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के दर्दनाक विस्थापन व नरसंहार के बारे में हर किसी ने सुना है। लेकिन उसके बारे में पूरी जानकारी नहीं थी। फिल्म सुपर हिट हुई है और करोड़ों का बिजनेस कर रही है। द कश्मीर फाइल्स एक सच्ची कहानी पर आधारित है। फिल्म में पंडितों के विस्थापन के सही कारणों और इसके बाद उनकी आवाज को किस तरह से दबाया गया, यह सब बताया गया है। उस समय कश्मीरी लोगों के साथ जो हुआ उस पर तब की सरकार ने पर्दा डाला था। बता दें कि उस समय श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे और भाजपा सरकार का समर्थन कर रही थी। कश्मीर के गवर्नर जगमोहन थे जो भाजपा के थे। डॉ. फारुख अब्दुल्ला कश्मीर के मुख्यमंत्री थे और मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे। कुछ लोगों का मानना है कि मुफ्ती की बेटी रुबिया सईद के अपहरण में छोड़े गए खूंखार आतंकवादियों के कारण से ही घाटी में आतंकवाद की शुरुआत हुई थी। कटु सत्य यह भी है कि सच दुनिया के सामने नहीं आने दिया गया। पंडितों की आवाज को दबा दिया गया। एक कश्मीरी पंडित दर्शक के अनुसार द कश्मीर फाइल्स अधूरी कहानी बयां करती है। प्यारे लाल पंडित जो अपने परिवार के साथ 2011 से जम्मू में विस्थापित टाउनशिप में रह रहे हैं उन्होंने बीबीसी को बताया कि इस फिल्म में कश्मीर की अधूरी कहानी बयां की गई है। कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ कश्मीर के मुस्लिम और सिख समुदाय से जुड़े लोग भी मारे गए थे और विस्थापित हुए थे लेकिन इस फिल्म में उनका कहीं कोई भी जिक्र नहीं है। एक कश्मीरी विस्थापित शादी लाल पंडित ने बीबीसी को बताया कि कश्मीरी पंडितों के साथ जुल्म हुआ जिसकी वजह से हमें वहां से निकलना पड़ा। उस समय न तो कश्मीर सरकार (जगमोहन) ने और न ही भाजपा समर्थित केंद्र सरकार ने हमें रोकने की कोशिश की। अगर श्रीनगर में ही एक टाउनशिप बना देते जिसको सेना गार्ड करती तो शायद पंडितों को अपने घरों से विस्थापित न होना पड़ता। हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि आप कहते हैंöपहले की सरकारों ने कश्मीरी पंडितों को उजाड़ा, लेकिन जब से भाजपा केंद्र में सरकार चला रही है तब से आपने भी कश्मीरी पंडितों की सुध नहीं ली है। कश्मीरी पंडितों का शोषण किया। हम रिलीफ मांगते हैं, जवानों के लिए नौकरियां मांगते हैं। फिल्म का हवाला देते हुए कहा कि 2024 के चुनावों की तैयारी हो रही है। यह दुनिया को बताएं कि कश्मीरी पंडितों के साथ क्या जुल्म हुआ। इसको चुनावी मुद्दा बनाया जाएगा। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित दहशतगर्दी ने हमें टारगेट बनाया न कि कश्मीरी मुस्लिमों ने। भाजपा वाले कुछ दिनों से सबको बता रहे हैं, यह सब कांग्रेस ने किया है, लेकिन उस समय सरकार तो आपके समर्थन से चल रही थी। उस समय नेशनल फ्रंट की सरकार ने हमारी रक्षा क्यों नहीं की? एक पीड़ित का कहना था कि इस फिल्म को देखने के बाद न तो कश्मीर में रह रहे पांच हजार कश्मीरी पंडित अब सुरक्षित हैं और न ही हम कभी वापस जा सकेंगे।

पाक आतंक प्रायोजक देश घोषित हो

अमेरिकी राज्य पेनस्लिवेनिया के एक सांसद ने पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजक देश के रूप में नामित करने की अपील की है। इसके लिए एक बिल पेश किया गया है। प्रतिनिधि स्कॉट पेरी ने आधिकारिक रूप से एक बिल पेश किया है, जो पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजित देश के रूप में नामित करने की मांग करता है। यह बिल अब अमेरिका के विदेश मामलों पर यूएस हाउस कमेटी के पास भेजा गया है। आतंकवाद प्रायोजक देश के रूप में नामित किए जाने के नतीजे के तौर पर चार प्रमुख श्रेणियों में प्रतिबंध लगते हैं। इनमें अमेरिकी विदेश सहायता पर रोक, सुरक्षा उपकरणों के निर्यात एवं बिक्री पर रोक, वस्तुओं के निर्यात पर कुछ नियंत्रण और अनेक प्रकार के आर्थिक एवं अन्य प्रतिबंध शामिल हैं। आतंकवाद प्रायोजक देश की उपाधि मिलने पर कानूनी पाबंदियों का सामना भी करना पड़ता है। अमेरिका के तीन प्रभावशाली सांसदों ने इन आरोपों की जांच कराने की मांग की है कि अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत के तौर पर चुने गए मसूद खान के आतंकवादियों और इस्लामिक संगठनों से संबंध हैं। पाक ने पिछले महीने कहा था कि अमेरिकी सरकार ने वाशिंगटन में राजदूत के तौर पर खान के नामांकन को मंजूरी दे दी है। इससे कुछ दिन पहले एक प्रतिष्ठित अमेरिकी सांसद ने राष्ट्रपति जो बाइडन को लिखित पत्र में उनका राजनयिक परिचय पत्र खारिज करने और उन्हें आतंकियों का सच्चा हमदर्द करार देने का अनुरोध किया था। पिछले साल अगस्त तक पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के राष्ट्रपति रहे खान को नवम्बर में अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत के तौर पर नामित किया गया। लिखे पत्र में कहा गया है कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह महत्वपूर्ण है कि सरकार राजदूत खान के संबंध में विदेश एजेंट पंजीकरण कानून के किसी संभावित उल्लंघन की जांच करे। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 16 March 2022

शुरू हो गई है 2024 चुनाव की रेस

जिन पांच राज्यों के चुनावों के नतीजे आए हैं, उनका असर महज उन राज्यों में सरकार बनाने तक सीमित नहीं रहने वाला है बल्कि यहां से रेस शुरू होती है 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए। इन राज्यों के सहारे अब सारा जोड़-घटाव लोकसभा चुनाव के लिए शुरू होना तय है। हालांकि इस बीच गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होंगे, लेकिन नजर 2024 पर ही होगी। इन पांच राज्यों के नतीजे इसलिए अहम हैं कि जिन राज्यों से 102 लोकसभा की सीटें आती हैं और भाजपा को केंद्र में 300 के पार पहुंचाने में इन राज्यों की महत्ती भूमिका थी। विपक्ष ने इन राज्यों के जरिये परिदृश्य में बदलाव की उम्मीद पाल रखी थी लेकिन अब वह नई रणनीति के साथ आगे बढ़ेगा। भाजपा के ]िलए संतोषजनक बात यह भर नहीं है कि उसने सबसे ज्यादा (80) लोकसभा सीट वाले राज्य में अपनी वापसी कर ली है बल्कि यह है, उसने अपना ऐसा एक मजबूत वोट बैंक तैयार कर लिया है जो विपक्ष के किसी भी तरह के गठबंधन से प्रभावित नहीं हो रहा। इस बार भी मोदी और योगी के चेहरे के आगे भाजपा के खिलाफ सभी फैक्टर बेअसर साबित हो गए और यहीं से योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता के पायदान पर नरेंद्र मोदी के बाद नम्बर दो पोजीशन में आने की चर्चा भी शुरू हो गई है। पंजाब में कांग्रेस का सत्ता से बेदखल होना उतनी बड़ी बात नहीं है, जितनी बड़ी बात आम आदमी पार्टी (आप) का वहां सत्ता में आना है। यह पहला मौका है जब किसी एक राज्य की पार्टी किसी दूसरे राज्य में सरकार बनाने जा रही है। आम आदमी पार्टी की जीत का मतलब यह नहीं है कि उसने पंजाब जीत लिया है, बल्कि यह है कि वह पंजाब का विकल्प बन रही है। दिल्ली के बाद पंजाब में उसका विस्तार दिखा। 2024 के मद्देनजर अब आम आदमी पार्टी गुजरात को लक्ष्य बना रही है। आम आदमी पार्टी का यह विस्तार कांग्रेस को और ज्यादा नुकसान पहुंचाएगा। अरविन्द केजरीवाल की कोशिश भी 2024 के चुनाव में प्रभावी चेहरा बनने की होगी। उत्तराखंड भी 2024 के नजरिये से भाजपा को सुकून देने वाला है। पिछले दो लोकसभा चुनाव से भाजपा यहां की सभी पांच सीटों पर जीत दर्ज करती आ रही है। इस बार जिस तरह से चुनाव पूर्व के आखिरी छह महीनों में पार्टी को अपने दो-दो सीएम बदलने के बाद धामी को लाना पड़ा उसका असर चुनाव पर पड़ना था लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

सामूहिक रूप से 81 लोगों को मृत्युदंड

सऊदी अरब ने हत्या और आतंकवादी समूहों से जुड़ाव समेत विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए 81 लोगों को सामूहिक रूप से शनिवार को मृत्युदंड दे दिया। सऊदी अरब के आधुनिक इतिहास में एक ही दिन में सामूहिक रूप से सबसे ज्यादा लोगों को मृत्युदंड दिए जाने का यह पहला मामला है। इससे पूर्व जनवरी 1980 में मक्का की बड़ी मस्जिद से संबंधित बंधक प्रकरण के दोषी ठहराए गए 63 चरमपंथियों को मृत्युदंड दिया गया था। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार ने मृत्युदंड देने के लिए शनिवार का दिन क्यों चुना। यह घटनाक्रम ऐसे वक्त हुआ है जब दुनिया का पूरा ध्यान यूकेन-रूस के युद्ध पर केंद्रित है। कोरोना वायरस के दौरान सऊदी अरब में मौत की सजा के मामलों की संख्या में कमी आई थी। हालांकि किंग सलमान और उनके बेटे क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के शासनकाल में विभिन्न मामलों के दोषियों का सिर कलम करना जारी रहा। सरकार नियंत्रित सऊदी प्रेस एजेंसी ने शनिवार को दिए गए मृत्युदंड की जानकारी देते हुए कहा कि उनमें पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या समेत विभिन्न अपराधों के दोषी शामिल थे। सऊदी प्रेस एजेंसी ने कहाöआरोपियों को वकील रखने की सुविधा दी गई थी और न्यायिक प्रक्रिया के दौरान सऊदी कानून के तहत उनके पूर्ण अधिकारों की गारंटी दी गई। इनमें से कइयों को जघन्य अपराधों का दोषी पाया गया था। कुछ घटनाओं में बड़ी संख्या में नागरिक और कानून प्रवर्तन अधिकारी मारे गए थे। खबर में कहा गयाöपूरी दुनिया की स्थिरता के लिए खतरा पैदा करने वाले आतंकवाद और चरमपंथी विचारधारा के खिलाफ सरकार कठोर रुख अपनाना जारी रखेगी। सरकार ने कहा कि मृत्युदंड दिए गए लोगों में से कुछ अलकायदा, इस्लामिक स्टेट और यमन के हुती विद्रोहियों के समर्थक थे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार को सत्ता बहाल करने के प्रयास में सऊदी के नेतृत्व वाला गठबंधन पड़ोसी यमन से 2015 से ईरान समर्थक हुती विद्रोहियों से जूझ रहा है। यह नहीं बताया गया कि मृत्युदंड किस जगह दिया गया। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 15 March 2022

आप पार्टी का राष्ट्रीय फलक पर उदय

आईआईटीयन, आयकर अधिकारी, आंदोलनकारी के बाद अब लगातार तीन बार से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल राजनीतिक दंगल के बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे हैं। राजनीति के मौजूदा परिवेश में कई क्षेत्रीय दलों ने एक राज्य के बाहर दूसरे राज्यों में सरकार बनाने की कई कोशिशें कीं, पर सफल नहीं हुए। लेकिन बीते एक दशक की राजनीति में आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने 2013, 2015 फिर 2019 में दिल्ली में सरकार बनाई। अब पंजाब में प्रचंड बहुमत के साथ आप वर्तमान में पहला क्षेत्रीय दल है, जिसने दूसरे राज्य में सरकार बनाई है। परंपरागत राजनीति को तोड़ते हुए वह एक ऐसी क्षेत्रीय पार्टी बन गई है, जिसकी एक साथ दो राज्यों में सरकार होगी, वहीं वह भी महज गठन के 10 सालों के भीतर। मौजूदा दौर में भाजपा और कांग्रेस के बाद यह अब ऐसा तीसरा दल हो जाएगा, जिसकी एक राज्य से ज्यादा राज्यों में सरकारें होंगी। लेकिन आप की जीत के मायने इतने तक सीमित नहीं हैं बल्कि इसमें कई और संदेश भी छिपे हैं, जो भाजपा और कांग्रेस दोनों की ओर महत्वपूर्ण इशारा करते हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पंजाब में जीत से आप को पहला फायदा यह होगा कि राज्यसभा में इसकी ताकत बढ़ेगी। पंजाब से राज्यसभा की सात सीटें हैं, जिनमें से पांच सीटों के लिए दो चरणों में इसी महीने के आखिर में चुनाव हैं। आप की 92 सीटें हैं इसलिए वह राज्यसभा की पांचों सीट पर जीत सकती है। दिल्ली से तीन सीटें उसकी पहले से हैं इस प्रकार आठ सीटें उसकी राज्यसभा में तो तत्काल हो जाएंगी। दो सीटें पंजाब में खाली होंगी। इस प्रकार आने वाले दिनों में आप राज्यसभा में आप-भाजपा-कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक के साथ सर्वाधिक सदस्यों वाले दलों में शुमार हो सकती है। आप की विजय कांग्रेस की विफलता तो है। यह भाजपा की निरंतर विजय यात्रा के लिए भी चुनौती है। चुनाव नतीजे दर्शाते हैं कि जहां मैदान में भाजपा और कांग्रेस मुकाबले में हैं, वहां लोग भाजपा को तरजीह दे रहे हैं और कांग्रेस को नकार रहे हैं। जबकि जहां कोई क्षेत्रीय दल विकल्प के रूप में है, उसे मौका दे रहे हैं। पंजाब में भी यह हुआ। बंगाल में भी ऐसा ही दिखा। उत्तर प्रदेश में भी यदि देखें तो भले ही सरकार भाजपा बना रही हो लेकिन प्रमुख क्षेत्रीय दल सपा का प्रदर्शन पिछले चुनाव से बेहतर रहा। पंजाब में आप की सरकार बनने से आने वाले समय में सबसे ज्यादा प्रभाव हरियाणा की राजनीति पर पड़ सकता है। दिल्ली-पंजाब के बीच का यह राज्य आप का अगला निशाना हो सकता है। दिल्ली-पंजाब की राजनीति हरियाणा को प्रभावित भी करती है। पंजाब पूर्ण राज्य है, वहां सत्ता मिलने से पार्टी की अपनी ताकत बढ़ेगी। उसे अन्य छोटे राज्यों गोवा, उत्तराखंड, हिमाचल आदि में भी नए सिरे से रणनीति बनाने का मौका मिलेगा। चुनाव की बात करें तो दिल्ली नगर निगम चुनाव आप के निशाने पर होगा।

पाकिस्तान सीमा में भारतीय मिसाइल गिरी

एक सनसनीखेज हादसे में दुर्घटनावश चली भारतीय सुपरसोनिक मिसाइल पाकिस्तान में जा गिरी। यह सीमा के 125 किलोमीटर अंदर खानेवाल जिले में मियां चक्क में गिरी थी। हालांकि इसमें किसी तरह का विस्फोटक नहीं होने से कोई जानमाल का नुकसान नहीं हुआ। सरकार ने इस मामले में गलती मान ली है। रक्षा मंत्रालय ने कहाöइस गंभीर चूक को लेकर केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए मामले की उच्चस्तरीय जांच (कोर्ट ऑफ इंक्वायरी) के आदेश दिए हैं। साथ ही घटना पर खेद भी जताया है। पाकिस्तानी सेना ने बृहस्पतिवार को दावा कियाöएक तेज रफ्तार मिसाइल भारत की ओर से उसकी वायुसीमा में दाखिल हुई और मियां चक्क के पास गिरी। भारत के रक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार देर शाम इस बारे में आधिकारिक बयान जारी कर स्थिति को स्पष्ट किया। इसमें कहा गया कि नौ मार्च 2022 को नियमित रखरखाव के दौरान तकनीकी गड़बड़ी हुई और एक मिसाइल गलती से चल गई। भारत सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है और उच्चस्तरीय जांच करवाने का आदेश दिया है। पता चला है कि यह मिसाइल पाकिस्तान में चली गई थी। यह घटना काफी खेदजनक है, लेकिन यह राहत की बात है कि इससे जानमाल का नुकसान नहीं हुआ। पाकिस्तान की तरफ से मामले को हवा देने की कोशिश के तहत विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की तरफ से एक बयान जारी कर भारत पर आरोप लगाया गया कि इससे सऊदी, कतर एयरलाइंस व दूसरी घरेलू उड़ानों को नुकसान भी पहुंच सकता था। उन्होंने कहा कि आगे का फैसला पूरे घटनाक्रम पर भारत के रवैये को देखते हुए किया जाएगा। उन्होंने इस बारे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्यों के राजदूतों को विदेश मंत्रालय बुलाकर जानकारी देने की बात कही। भारतीय सुपरसोनिक वस्तु 40 हजार फुट ऊंचाई पर थी और यात्री उड़ानें 35 से 42 हजार फुट की ऊंचाई के बीच रहती हैं। ऐसे में यह यात्रियों की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा हो सकती थी। शुक्र है कि कोई अप्रिय घटना नहीं हुई और मामला शांत हो गया है। -अनिल नरेन्द्र

Monday, 14 March 2022

राहुल और प्रियंका गांधी के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह

पांच राज्यों में कांग्रेस का सफाया होने के बाद कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ेंगी। इन परिणामों के बाद राहुल और प्रियंका गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कांग्रेस शासित पंजाब भी हाथ से फिसलने के बाद पार्टी के भविष्य को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। पांच राज्यों में से चार भाजपा और एक पर आम आदमी पार्टी (आप) की बढ़त ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। गुरुवार को शुरुआती रुझानों के बाद कांग्रेस खेमे में खामोशी दिखी। इसके बाद पंजाब में कांग्रेस के दिग्गजों को झटके लगने से बेचैनी और ब़ढ़ गई है। पिछले कई महीने से विशेषकर पंजाब और उत्तराखंड में चल रही गुटबाजी आखिरकार पार्टी को ले डूबी। यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर से लेकर गोवा में बेहतर प्रदर्शन की किरण नजर आई नहीं। खासकर यूपी और पंजाब में पार्टी बुरी तरह नाकाम रही। देश की सबसे पुरानी पार्टी के चुनावी नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक ही है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी लगातार यूपी न छोड़ने की बात कह रही थीं। जिस उम्मीद और रणनीति के साथ उन्होंने चुनावी ताना-बाना बुना था उसे लोगों ने नकार दिया। प्रियंका चुनावी लिटमस टेस्ट में फेल साबित हुई हैं। प्रियंका गांधी यूपी में उतनी सीट भी नहीं दिला सकीं जितनी पिछली विधानसभा में थीं। यूपी में यह कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। प्रियंका चुनाव में जोर-शोर से उतरीं और मेहनत भी की लेकिन सलाहकारों, रणनीतिकारों से घिरने के कारण चुनाव प्रदर्शन हवा-हवाई रह गया। प्रियंका के इर्दगिर्द जो चेहरे दिखाई दे रहे थे उनकी चमक भी कोई कमाल नहीं कर सकी। बताते हैं कि सलाहकारों और पार्टी नेताओं के बीच तालमेल की कमी ने भी कांग्रेस की फजीहत कराई है। प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में करीब 167 रैलियां और जनसभाएं कीं। करीब 42 जगहों पर रोड शो किए। राज्य की 403 में से 340 विधानसभाओं में वर्चुअल रैलियों के माध्यम से सम्पर्क किया। पांच राज्यों के नतीजों के बाद कांग्रेस के असंतुष्ट खेमे में कांग्रेस में स्थायी अध्यक्ष की मांग फिर जोर पकड़ रही है। हालांकि पार्टी सितम्बर तक चुनाव कराने की घोषणा कर चुकी है लेकिन चुनावी नतीजे राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने की राह में अड़ंगा डालेंगे। राहुल समर्थक नेता उनके कमान संभालने की इंतजार में हैं। वहीं एक खेमा प्रियंका गांधी वाड्रा में भविष्य देख रहा था। मगर उन्हें भी नतीजों ने निराश किया है। नतीजों के बाद राहुल और प्रियंका के नेतृत्व पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। असंतुष्ट नेताओं की बयानबाजी और सक्रियता बढ़नी तय है। कुछ नेताओं के पार्टी छोड़ने और कुछ को किनारे करने के बाद जिस जी-23 में खामोशी दिख रही थी उसमें अब कुछ नए सदस्यों के नाम भी जुड़ने की संभावना है। ऐसे में नतीजों ने राहुल-प्रियंका नेतृत्व के सामने खुद को साबित करने की चुनौती बढ़ा दी है। राहुल गांधी को अगर अध्यक्ष बना भी दिया जाए तो उनकी सबसे पहली और कठिन परीक्षा गुजरात में होगी, जहां साल के अंत में चुनाव होने हैं। नए अध्यक्ष के सामने एक और चुनौती पंजाब है, जहां आप के हाथों गंवाई जमीन पर लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना होगा। दिल्ली में सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस वहीं आज तक वापसी नहीं कर पाई है। राहुल गांधी के सामने एक और चुनौती यूपी के अमेठी के तौर पर होगी, जहां पर 2019 का चुनाव हारे हैं। पार्टी का जो खेमा राहुल के बदले प्रियंका गांधी वाड्रा में भविष्य देख रहा था, उन्हे भी नतीजों ने निराश किया है। राहुल गांधी की राह में अड़ंगा डालेंगे नतीजे, लिटमस टेस्ट में प्रियंका की रिपोर्ट भी नेगेटिव आई है।

पाबंदियों का असर रूसी नागरिकों पर

यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की आंच आम आदमी महसूस करने लगा है। देश में भुगतान तंत्र (पेमेंट सिस्टम) अब काम नहीं कर रहा है और नकदी निकासी को लेकर भी लोगों को दिक्कतें आ रही हैं। एक स्थानीय निवासी ने कहाöएप्पल पे कल से काम नहीं कर रहा है। इसके अलावा एक सुपर मार्केट ने भी प्रति व्यक्ति सामान खरीद की मात्रा सीमित कर दी है। एप्पल-पे ने घोषणा की है कि वह रूस में अपने आईफोन और अन्य उत्पाद बेचना बंद कर रहा है और साथ ही एप्पल-पे जैसी सुविधाओं को भी सीमित करेगा। बड़ी संख्या में विदेशी और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने रूस में कारोबार को बंद कर दिया है। कई लोगों ने बताया कि इन कदमों से उनकी दैनिक जिंदगी पर काफी असर पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि देश की मुद्रा रूबल को विदेशी मुद्रा में बदलने में मुश्किलें आ रही हैं, एटीएम के बाहर लंबी लाइनें हैं और कई बैंक के कार्ड को एटीएम नहीं स्वीकार कर रहे हैं अर्थात उनसे निकासी की सुविधा बंद है। खाने-पीने के सामान की कमी होने के अलावा दाम बेतहाशा बढ़ गए हैं। विपक्ष के नेता मूलिया गालमेविना ने फेसबुक पोस्ट में लिखाöदाम बढ़ने की समस्या का सामना कर रहे हैं, पेंशन भी रुकी हुई है। दवाइयों, चिकित्सा और साजो-सामान की कमी हो रही है। हम 1990 को अब कम खराब वक्त के तौर पर याद करेंगे। लेकिन मेरा प्रश्न है कि किसलिए? देश में बड़ी संख्या में लोग युद्ध के खिलाफ हैं और रोकने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं।

फिर फंसे संकट में इमरान खान

पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक वजीर-ए-आजम इमरान खान आजकल दबाव में हैं। जैसे-जैसे राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है और विपक्ष और हुकूमत के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को अंतिम रूप देता हुआ दिख रहा है। यह बात भी साफ हो रही है कि पीटीआई सरकार अपने अब तक के सबसे गंभीर संकट से मुकाबिल है। पीटीआई सरकार संघीय स्तर पर तो ह्रास महसूस कर ही रही है, पंजाब सूबे में भी इसके आगे एक बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है। सोमवार को असंतुष्ट जहांगीर खान तारीन गुट को उस समय बड़ी कामयाबी मिली, जब इमरान खान के करीबी सहयोगी और पंजाब के पूर्व वरिष्ठ मंत्री अब्दुल अलीम खान उसके साथ हो गए। असंतुष्ट खेमे के साथ बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए अलीम खान ने पीटीआई हुकूमत से अपने मोहभंग को छिपाने की कोई कोशिश नहीं की। जहांगीर खान तारीन गुट के बढ़ते संख्याबल को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि अगर उसने पंजाब की उस्मान बुजवार सरकार से समर्थन वापस ले लिया, तो यह गंभीर संकट में पड़ सकती है। केंद्र और पंजाब सरकार के खिलाफ एक साथ माहौल का गरमाना कोई संयोग नहीं है। विपक्ष विधानसभाओं में संख्याबल और रावलपिंडी से इस्लामाबाद तक पीपीपी के लंबे मार्च के जरिये सरकार पर अधिकतम दबाव बनाना चाहता है। प्रधानमंत्री इमरान खान ने चैलसी में जो भड़काऊ भाषण दिया, उसे इन बढ़ते दबाव का ही नतीजा माना जा रहा है। वजीर-ए-आजम ने अपने विरोधियों के खिलाफ जिस तल्ख जुबान का इस्तेमाल किया, वह इस ऊंचे ओहदे पर बैठे व्यक्ति के लिए कतई मुनासिब न था। फिर यूक्रेन पर हमले के हवाले से उन्होंने एक ऐसे वक्त पर यूरोपीय संघ और अमेरिका की आलोचना कर डाली, जब पश्चिम और रूस के बीच संतुलन साधने की दरकार है। एक प्रधानमंत्री का यूं अराजनयिक हमला करना पाकिस्तान के लिए समस्याएं खड़ी कर सकता है। वजीर-ए-आजम को समझना चाहिए कि उनके द्वारा बोले जाने वाले हर वाक्य को मुल्क की नीति के तौर पर देखा जा सकता है, इसलिए अपनी भावनाओं का इजहार करते हुए उन्हें खास एहतियाद बरतनी चाहिए। -अनिल नरेन्द्र

Friday, 11 March 2022

पीएम की अपील रंग लाई

यूकेन के शहर सूमी में फंसे 694 छात्रों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाए जाने की खबर वाकई बड़ी राहत देने वाली है, क्योंकि वहां हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। उन्हें मंगलवार को बसों में बिठाकर बॉर्डर एरिया की ओर रवाना कर दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन व यूकेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से बातचीत के अगले दिन युद्धग्रस्त सूमी से सभी 694 भारतीय छात्रों को सुरक्षित निकाल लिया गया। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बतायाöमंगलवार सुबह सुरक्षित मानवीय गलियारों के खुलने के तुरन्त बाद सभी भारतीय छात्रों को बसों से पोल्तावा शहर के लिए रवाना कर दिया गया। यूकेन की डिप्टी पीएम आइरिना वेटेसामुक ने कहाöरूसी सेना ने रेडक्रॉस को पत्र लिखकर युद्धविराम पर सहमति जताई। इसके बाद स्थानीय समयानुसार सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक गोले नहीं दागे गए। रूस ने भी कहाöउसने सूमी के अलावा कीव, चेर्निहाइव, खारकीव और मारियोपोल में गोलाबारी रोक दी है। इस गलियारे के जरिए मानवीय मदद का सामान भी युद्धग्रस्त सूमी में लाया जाएगा। वेटेसामुक ने दोहराया कि लोगों को रूस और बेलारूस के रास्ते निकालने का प्रस्ताव कतई मंजूर नहीं किया जाएगा। दो दिनों तक तो सुमी में जमकर गोलाबारी और भारी तबाही हुई है। पुतिन ने छात्रों की निकासी को लेकर पीएम मोदी को आश्वस्त किया था। संयुक्त राष्ट्र की जानकारी के मुताबिक पूरे यूकेन से 20 लाख लोग जा चुके हैं। सूमी में फंसे हजारों लोग खाना, पानी और दवाओं की कमी से जूझ रहे हैं। इन हालातों में 694 भारतीय छात्रों ने वीडियो के जरिए बताया था कि वह अब बैदल की तरफ बढ़ेंगे। हालांकि भारत सरकार ने उनसे वहीं रुकने की अपील करते हुए जल्द मदद पहुंचाने का दावा किया। इस बारे में सोमवार को पीएम मोदी ने यूकेन और रूस के राष्ट्रपति से भी बात की थी। यह सब दिखाता है कि युद्ध अंतत कितनी बड़ी मानवीय त्रासदी है। इन बच्चों ने युद्धग्रस्त इलाकों से निकलने पर राहत की सांस ली है।

नाटो युद्ध में घी डालने का काम कर रहा है

रूसी हवाई हमलों का मुकाबला करने के लिए नीदरलैंड्स यूकेन को रॉकेट लांचर दे रहा है। एस्टोनिया एंटी टैंक मिसाइल जैवलिन भेज रहा है। पोलिश व लातवियाई मिसाइल की आपूर्ति कर रहे हैं। चेक भी मशीन गन, स्नाइपर राइफल, पिस्तौल व अन्य हथियार भेज रहा है। यहां तक कि स्वीडन व फिनलैंड भी यूकेन को हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं। जर्मनी भी स्टिंगर्स जैसे रॉकेट लांचर भेज रहा है। कुल मिलाकर 20 देश रूस के खिलाफ लड़ाई के लिए यूकेन को हथियारों की मदद कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) या यूरोपीय संघ (ईयू) के सदस्य हैं। इस बीच नाटो ने सैन्य उपकरणों के साथ-साथ 22 हजार से ज्यादा सैनिकों को रूस व बेलारूस के सीमावर्ती सदस्य देशों में उतारा है। रूस पर यूकेन के हमले ने यूरोपीय संघ के देशों को करीब ला दिया है, क्योंकि उन्हें लगता है कि पुतिन उनके लिए भी खतरा बन सकते हैं। यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वोनडेर लेचन ने यूरोपीय संसद में मंगलवार को कहा था, पिछले छह दिनों में यूरोप की सुरक्षा व प्रतिरक्षा में इतना इजाफा किया गया, जितना पिछले दो दशकों में नहीं हुआ। ब्रुसेल्स, यूकेन को हथियार व धन देने के प्रयासों का यूरोपीयकरण कर रहा है। लेकिन यूरोपीय हथियार क्या यूकेन के युद्ध क्षेत्र में समय पर पहुंच पाएंगे? अभी यह निश्चित नहीं है। ऐसे में ब्रुसेल्स द्वारा किया जा रहा यह रणनीतिक प्रयास युद्ध के खतरों को विस्तार दे सकता है। यूकेन के सब-वे में लोग रूसी बमबारी से बचने के लिए शरण लिए हुए हैं। कीव के मेयर ने कहा था कि कम से कम 15 हजार लोग शहर के सब-वे में रहने को मजबूर हैं। अमेरिका ने रूसी लड़ाकू विमानों व हैलीकॉप्टरों को मार गिराने के लिए यूकेन को सैन्य सहायता के रूप में स्टिंगर मिसाइलें प्रदान की हैं। यह मिसाइलें यूकेन की वायुसेना को मजबूती प्रदान करेंगी। फिलहाल रूस ने अपनी वायुसेना को युद्ध में शामिल नहीं किया है। स्टिंगर एक पोर्टेबल मिसाइल है, जिसे कंधे पर रखकर दागा जा सकता है।

असम के मुख्यमंत्री के खिलाफ प्राथमिकी

असम में गुवाहाटी की एक अदालत ने पुलिस को कांग्रेस सांसद अब्दुल खालिक की शिकायत के आधार पर राज्य के मुख्यमंत्री हिम्मत बिस्व सरमा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है। वैसे ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री के खिलाफ अदालत एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दे। शिकायत में मुख्यमंत्री पर एक बेदखली अभियान के दौरान भड़काऊ टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया है। सरमा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से दिसपुर थाने के इंकार के बाद कांग्रेस सांसद खालिक ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। खालिक के वकील राशिद अहमद बरचुंमा ने सोमवार को यह जानकारी दी। उप-विभागीय न्यायिक मजिस्ट्रेट बिस्वदीप बरुआ की अदालत ने शनिवार को दिसपुर थाने को खालिक की शिकायत के आधार पर मामला दर्ज करने का निर्देश दिया। शिकायत में कहा गया है कि दरांग जिले के गोरुखखुर्द में चलाया गया अभियान साल 1983 में असम आंदोलन के दौरान हुई घटनाओं का बदला था, जिसमें कुछ युवक मारे गए थे। बरमुंसा ने एजेंसी को बताया कि खालिक ने 29 दिसम्बर को दिसपुर थाने में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन उसने कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की। सोमवार को उपलब्ध आदेश में अदालत ने कहा था कि कोसी दिसपुर को शिकायत में उल्लेखित आरोपों के आधार पर मामला दर्ज करने और मामले की निष्पक्ष जांच करने व जल्द से जल्द अंतिम फार्म जमा करने का निर्देश दिया जाता है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 10 March 2022

भारतीय रेलवे ने रचा इतिहास

दक्षिण मध्य रेलवे के लोको पायलट जीएम प्रसाद को शुक्रवार का दिन जीवनभर याद रहेगा। वह ट्रेन के इंजन में रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव और रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को बिठाकर 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर हैदराबाद से मुंबई रेलवे मार्ग पर तेजी से बढ़े जा रहे थे। मगर जिस पटरी पर यह ट्रेन चल रही थी, उसी पर गल्लागुड़ा सेक्शन के पास एक दूसरी ट्रेन का इंजन खड़ा था। पर लोको पायलट को ब्रेक नहीं लगाने के निर्देश थे। दूसरी ट्रेन के इंजन से 300 मीटर पहले ही कवच प्रणाली ने इस ट्रेन में ऑटोमैटिक ब्रेक लगा दी। यह देखकर लोको पायलट की जान में जान आई। उनके मुंह से निकला, ट्रेन की टक्कर नहीं हई, यानि कवच सफल रहा। यह परिदृश्य दोपहर को हैदराबाद-मुंबई मार्ग पर सिकंदराबाद से करीब 60 किलोमीटर दूर गल्लागुड़ा और चट्टिगुड़ा के बीच दो ट्रेनों की आमने-सामने से टक्कर को बचाने के परीक्षण का है। यह परीक्षण समाप्त होने के बाद रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि ट्रेन रुकने पर लोको पायलट जीएम प्रसाद के चेहरे की खुशी देखने लायक थी। उन्होंने प्रसाद को स्टेज पर बुलाकर पूछा कि कवच से आपके जीवन में क्या परिवर्तन आएगा? इस पर प्रसाद ने कहा कि वह बेहद घबराए हुए थे। उनका काम सुरक्षित तरीके से ट्रेन चलाना है। ट्रेन की टक्कर से बचाने के लिए हर पल चौकन्ना रहना होता है। कवच ने खुद ब्रेक लगाकर ट्रेन को रोक दिया, यह प्रणाली निश्चित रूप से यात्रियों की जान बचाएगी। लोको पायलट के लिए आसानी होगी। टेलीकॉम इंजीनियर प्रिया ने रेलमंत्री से कहा कि यह प्रणाली 60 हजार से अधिक लोको पायलट के लिए यह एक नायाब तोहफा है। अश्विनी वैष्णव ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के अभियान के तहत कवच तकनीक का देश में विकास किया गया है। यह तकनीक ट्रेन की टक्कर होने की घटनाएं रोकेगी। इस प्रणाली के तहत रेलवे क्रॉसिंग पर ऑटोमैटिक हॉर्न बजेगा व ट्रेन की स्पीड कम हो जाएगी। इंजन के भीतर ही दो से तीन किलोमीटर सिग्नल को देखा जा सकेगा। इस तकनीक में किसी भी खतरे का अंदेशा होने पर ट्रेन में अपने आप ब्रेक लग जाती है। इस तकनीक का मकसद यह है कि ट्रेनों की स्पीड चाहे कितनी भी हो, लेकिन कवच के चलते ट्रेनें टकराएंगी नहीं। रेलवे ने इतिहास रच दिया है। हम सब संबंधित अधिकारियों और भारतीय रेलवे की सराहना करते हैं।

किसान पहले राज बदलें फिर खुद की सरकार बनाएं

मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किसानों से कहा कि वह लड़ने के लिए पहले सवालों को तो समझें। उन्होंने किसानों से कहा कि वह सबसे पहले राज बदलें, फिर एकजुट होकर अपनी सरकार बनाएं। मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने रविवार को गांव कंडेला (जींद) के कंडेला, खाप एवं माजरा खास द्वारा आयोजित किसान सम्मान समारोह में कहा कि किसान खुद को ताकतवर बनाएं, लेकिन यह तभी संभव है जब दिल्ली के लाल किले पर खुद का झंडा फहराएंगे। उन्होंने कहा कि किसान एक साल से ज्यादा वक्त तक सड़कों पर दिल्ली में गर्मी, सर्दी तथा बारिश की परवाह किए बिना डटे रहे। उन्होंने कहा कि खापें हमारी ताकत हैं। जब भी खापों को जरूरत होगी, तो वह उनके साथ खड़े होंगे। उन्होंने ल़ड़कियों को पढ़ाने, सामूहिक भोज बंद करने और दहेज प्रथा पर रोक लगाने की अपील भी की। बता दें कि सत्यपाल मलिक भारत सरकार के मेघालय के राज्यपाल हैं। वह अपने विवादास्पद व सख्त टिप्पणियों के लिए भी जाने जाते हैं। पर यह ताजा बयान गंभीर है। चुनी हुई सरकार को बदलने का आह्वान करके मलिक साहब ने सारी हदें पार कर दी हैं। उनके ऐसे विवादास्पद बयानों के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

चुनाव लड़ने वाले 80… की जमानत जब्त हो जाती है

दो महीने तक चलने वाले सियासी संग्राम में वैसे तो हर दल और नेता अपनी जीत का दावा कर रहा है। पर जब चुनाव परिणाम आते हैं तो नजारा कुछ और ही होता है। 1989 से लेकर उत्तर प्रदेश में जितने भी विधानसभा चुनाव हुए हैं उसके आंकड़ों पर नजर डालें तो इनमें 80 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है। यानि चुनावों में करीब 20 प्रतिशत ही अपनी जमानत बचा पाते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 2022 के विधानसभा चुनावों में क्या होता है। जानकारों का मानना है कि इस विधानसभा चुनाव में मुख्य रूप से ज्यादातर सीटों पर दो दलों के बीच जीत-हार की लड़ाई है। ऐसे में इस बार ऐसे प्रत्याशियों की संख्या और अधिक हो सकती है। विधानसभा चुनाव 2022 में कुल 4441 प्रत्याशी मैदान में हैं। वहीं 2017 में 4853 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। इस बार सिर्फ चार सीटें ही ऐसी हैं, जहां 35 से अधिक प्रत्याशी मैदान में हैं। इस बार प्रत्याशियों की संख्या पिछले कई बार के मुकाबले काफी कम हैं। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए हर प्रत्याशी को पांच हजार रुपए की जमानत राशि जमा करनी होती है। यह जमानत राशि प्रत्याशी को तभी वापस मिलती है जब प्रत्याशी को अपनी विधानसभा सीट में पड़े कुल वैध मतों का छठा हिस्सा मिला हो। ऐसा न होने पर प्रत्याशी को जमानत की राशि नहीं दी जाती है। 1989 के बाद से उत्तर प्रदेश में जितने भी विधानसभा चुनाव हुए उसमें सबसे अधिक 1993 में प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी। 1993 में करीब 88.45 प्रतिशत प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे। 1996 में 4429 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, जिनमें 3244 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी। 2002 में 5533 कुल प्रत्याशी थे, जिनमें से 4422 अपनी जमानत बचाने में असफल रहे थे। इसी तरह 2007 में 6086 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, जिनमें से 5034 प्रत्याशी जमानत नहीं बचा पाए थे। वहीं 2012 में कुल 6839 प्रत्याशियों में से 5760 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी। 2017 में भी कुछ ऐसा ही हुआ। तब चुनाव मैदान में 4853 प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें से 3736 प्रत्याशियों को जमानत की राशि वापस नहीं मिल पाई थी। इन सबके बावजूद चुनाव लड़ने का शौक चरम पर है। जमानत राशि बढ़ाने पर चुनाव आयोग को विचार करना चाहिए। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 8 March 2022

न्यूक्लियर वॉर का बढ़ता खतरा

यूकेन में स्थित यूरोप के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर शुक्रवार को रूस ने कब्जा कर लिया। हमले के दौरान जैपोरिझिया संयंत्र की एक इमारत में बृहस्पतिवार रात आग लग गई। ऐसे में परमाणु रेडिएशन के रिसाव के डर से यूरोपीय महाद्वीप समेत पूरी दुनिया कई घंटे सांसत में रही। हालांकि आग को शुक्रवार सुबह बुझा दिया गया। यूकेनी अधिकारियों ने बताया है कि संयंत्र अब सामान्य रूप से काम कर रहा है। रूसी मंत्रालय ने इसकी पुष्टि की है। जैपोरिझिया परमाणु संयंत्र को रूसी कब्जे से बचाने के लिए यूकेनी सैनिकों और स्थानीय लोगों ने पूरा जोर लगाया लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। इस संयंत्र से यूकेन की बिजली जरूरतों के 20 प्रतिशत हिस्से की आपूर्ति होती है। वहीं रूस ने आरोप लगाया कि आग यूकेन ने खुद लगाई। रूस ने इसे दानवी कृत्य बताया। बाद में अधिकारियों ने बताया कि जैपोरिझिया परिसर में लगी आग दरअसल परीक्षण केंद्र की इमारत में लगी थी न कि संयंत्र में। संयंत्र में धमाके से चेर्नोबल-फुगुशिया जैसे हादसों का डर है। पुतिन ने बीते हफ्ते ही चेतावनी दी थी कि रूस की योजना में किसी ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो उसे ऐसे परिणाम भुगतने पड़ेंगे, जो इतिहास में कभी नहीं देखे गए। हाल ही में रूसी विदेश मंत्री ने एक इंटरव्यू में कहा कि अगर तीसरा विश्वयुद्ध होता है तो उसमें परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होगा, जो ज्यादा विध्वंसकारी होगा। भले ही उन्होंने यह कहकर अपने बयान को हल्का करने की कोशिश की कि परमाणु हमले की आशंका पश्चिम ने जताई है, रूस ने नहीं। इससे इसका आभास तो होता ही है कि रूस परमाणु धमकियां देकर अपनी सैन्य कार्रवाई जारी रखना चाहता है। कहा गया है कि अगर जैपोरिझिया परमाणु संयंत्र में विस्फोट होता है तो वह चेर्नोबल हादसे से 10 गुना ज्यादा विनाशकारी साबित हो सकता था। गनीमत रही कि आग जिस इमारत में लगी थी, उसमें ट्रेनिंग दी जाती थी। कोई संवेदनशील मशीनरी वहां नहीं थी। इस बात से थोड़ी राहत की सांस जरूर ली जा सकती है, लेकिन याद रखना होगा कि वहां हालात जस से तस ही नहीं, बल्कि बदत्तर हो रहे हैं। यूकेन में चार न्यूक्लियर पॉवर प्लांट हैं। रूसी हमले जारी हैं और इस पूरी घटना का उनके रुख पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। इसके बावजूद मौजूदा परिदृश्य में रूस की धमकी को हल्के में नहीं ले सकते, क्योंकि 1994 में हुए समझौते के तहत यूकेन ने अपने सभी परमाणु हथियार रूस को सौंपते हुए परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत भी किए थे। जबकि स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक दुनिया में सबसे अधिक परमाणु हथियार रूस के पास हैं, इसलिए रूसी आक्रमकता के बीच उसकी परमाणु धमकियों को गंभीरता से लेना होगा।

अलविदा वॉर्न

इंग्लैंड के खिलाफ 1993 में खेला जाने वाला ओल्ड ट्रेफर्ड टेस्ट था। शेन वॉर्न की ऑस्टेलिया से बाहर न तो कोई पहचान थी और न ही लेग स्पिन को टेस्ट क्रिकेट का प्रमुख हथियार माना जाता था। वहीं वॉर्न की सीधे हाथ की कलाई से माइक गैटिंग को फेंकी गई गेंद ऐसी गेंद निकलीं जो न सिर्प सदी की गेंद बनी बल्कि लेग स्पिन और इसके जादूगर के रूप में इस गेंदबाज को स्थापित कर गई। एशेज का यह इंग्लैंड का दौरा हो या फिर 1999 के विश्व कप का सेमीफानल और फाइनल, वॉर्न का चहलकदमी करता एक्शन और 60 डिग्री तक गेंद को घुमाना क्रिकेट में सफलता का पर्याय बन गया। वॉर्न ने 1993 के ओल्ड ट्रेफर्ड टेस्ट से पहले सिर्प 11 टेस्ट खेले थे। इस टेस्ट में उन्होंने माइक गैटिंग को लेग स्टम्प के काफी बाहर गेंदें फेंकी, गैटिंग इसे खेलने के मूड में नहीं थे, लेकिन यह इतनी टर्न हुई कि गैटिंग को बल्ले से छकाते हुए स्टम्प में जा घुसी। इसे सदी की गेंद बताया जाता है। सिर्प टेस्ट ही नहीं, जिताए वार्न ने बल्कि 2008 में राजस्थान रॉयल्स को पहला आईपीएल खिताब भी दिलाया। स्पिनरों की पहचान बनाने वाले शेन वॉर्न अब नहीं रहे। दुनिया के महानतम स्पिनर चल बसे। हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 5 March 2022

यूकेन में भारतीय छात्र की मौत

यूकेन के दूसरे बड़े शहर खारकीव में रूसी हमले में एक भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत अत्यंत दुखद है। कर्नाटक से मेडिकल की पढ़ाई करने गए नवीन के बारे में पता चला है कि वह खारकीव में कुछ जरूरी चीजें खरीदने के लिए बंकर से बाहर निकला था और फिर रूसी बमबारी की चपेट में आ गया। इस हमले में अनेक अन्य नागरिक भी मारे गए हैं और यूकेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने ठीक ही इसे युद्ध अपराध करार दिया है। यह हमला यह भी दिखा रहा है कि रूस को रोकने के लिए किस कदर लड़ाई छिड़ी हुई है। ऐसे में यह जरूरी है कि युद्ध क्षेत्र में फंसे भारतीय नागरिकों को जल्द से जल्द बाहर निकाला जाए। नवीन की मौत की खबर आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने छात्र की मौत पर दुख व्यक्त किया है और उनके परिजनों से फोन पर बात भी की है। नवीन के पिता ने अपने बेटे की मौत के बाद मीडिया से बात करते हुए मेडिकल शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। शेखरप्पा ने कहाöमेरे बेटे ने 97 प्रतिशत अंक हासिल किए थे लेकिन वो भारत में मेडिकल सीट हासिल नहीं कर सका और हमें मजबूरी में उसे पढ़ने के लिए यूकेन भेजना पड़ा। लेकिन अब हमने उसे गंवा दिया है। एमबीबीएस के चौथे वर्ष का छात्र नवीन कर्नाटक के हावेरी जिले के मलागेरी गांव के रहने वाले थे। उनके पिता ने मीडिया से कहाöमैं सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से अपील करता हूं कि वो इस मामले को देखें। एडमिशन के लिए डोनेशन बहुत बुरी बात है। भारत के बुद्धिमान छात्रों को पढ़ने के लिए विदेश जाना पड़ता है। उन्होंने कहाöयह बच्चे अब भारत में पढ़ना चाहते हैं तो उनसे मेडिकल सीट के लिए करोड़ों रुपए की डोनेशन मांगी जाती है। इससे अच्छा शिक्षा वो बाहर जाकर कम पैसों में हासिल कर लेते हैं। शेखरप्पा पेशे से मैकेनिक इंजीनियर हैं और रिटायरमेंट के बाद गांव में खेती करते हैं। उन्होंने अधिकतर समय हावेरी के बाहर बिताया है। यूकेन में मारे गए छात्र के साथी ने बतायाöकर्फ्यू के बाद खाना लेने गया, फिर नहीं लौटा। खारकीव में मारे गए नवीन के साथ रहने वाले एक छात्र ने बीबीसी को बताया है कि घटना के समय वो खाने-पीने का सामान लेने के लिए बाहर गए थे। श्रीकांत ने बताया कि मैंने पैसे ट्रांसफर कर दिए और 5-10 मिनट के भीतर उसे फोन किया लेकिन उसने फोन उठाया नहीं। इसके बाद मैंने उसके स्थानीय नम्बर पर फोन किया फिर भी उसने नहीं उठाया। उसके बाद किसी ने फोन उठाया और यूकेनी भाषा में बात करने लगा जो मुझे समझ नहीं आती। श्रीकांत बताते हैं कि नवीन एक नरम दिल इंसान था। वो पढ़ाई में भी तेज था। उसने यहां मेडिकल की तीसरे साल की पढ़ाई में 95 प्रतिशत नम्बर स्कोर किए थे। नवीन बहुत ही विनम्र स्वभाव का था। भारत सरकार ने यूकेन में फंसे भारतीय छात्रों को सुरक्षित लाने के लिए एक बड़ा अभियान ऑपरेशन गंगा चलाया हुआ है। इस अभियान में भारतीय वायुसेना के विमानों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत सरकार ने मंगलवार को यूकेन की राजधानी कीव में मौजूद सभी भारतीयों से तुरन्त शहर छोड़ने की अपील की थी। पूरा देश नवीन की मौत से दुखी है। हम नवीन की दर्दनाक मौत पर दुख व्यक्त करते हैं और विनम्र श्रद्धांजलि देते हैं और परिवार के दुख में शामिल हैं।

बहू को संयुक्त घर में रहने का अधिकार नहीं

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उन बुजुर्गों को बड़ी राहत की राह दिखाई है, जिनके शांतिपूर्ण जीवन में बेटे-बहू की चिकचिक से खलल पड़ता है। हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बहू को संयुक्त घर में रहने का अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि बहू-बेटे में झगड़ा होता रहे तो बुजुर्ग-मां-बाप को अधिकार है कि वो बहू को घर से बाहर निकाल सकते हैं। न्यायालय ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि ससुराल के बुजुर्गों (सास-ससुर) की ओर से बहू को संयुक्त घर से बेदखल किया जा सकता है, ताकि वह शांतिपूर्ण जीवन बिता सकें। कोर्ट ने कहा कि सास-ससुर को भी शांति से जीवन जीने का अधिकार है। जस्टिस योगेश खन्ना ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-19 के तहत आवास का अधिकार संयुक्त घर में रहने का एक अपरिहार्य अधिकार नहीं है। खासकर उन मामलों में जहां बहू ससुर-सास के खिलाफ मुकदमा लड़ रही है। न्यायालय ने बहू की ओर से निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की। निचली अदालत ने बहू को ससुराल के संयुक्त घर में रहने का अधिकार भी दिया था। न्यायालय ने फैसले में कहा कि एक संयुक्त घर के मामले में संबंधित सम्पत्ति के मालिक पर अपनी बहू को बेदखल करने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है। न्यायालय ने कहा कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो यह बेहतर और उचित होगा कि याचिकाकर्ता (बहू) को उसकी शादी जारी रहने तक कोई वैकल्पिक आवास प्रदान किया जाए। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में प्रतिवादी वरिष्ठ नागरिक हैं और वह शांतिपूर्ण जीवन जीने और बेटे-बहू के बीच के वैवाहिक विवाद से उपजे कलह से प्रभावित नहीं होने के हकदार हैं। फैसले में न्यायालय ने कहा कि मेरा मानना है कि चूंकि दोनों पक्षों के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं। ऐसे में जीवन के अंतिम पड़ाव पर सास-ससुर के लिए याचिकाकर्ता के साथ रहना उपयुक्त नहीं होगा। इसलिए बेहतर होता कि बहू को रहने के लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की धारा-19(1)(एएफ) के तहत कोई वैकल्पिक आवास मुहैया कराया जाए। न्यायालय ने ससुर की ओर से दाखिल हलफनामे को स्वीकार कर लिया है कि वह बेटे के साथ बहू के वैवाहिक संबंध जारी रखने तक याचिकाकर्ता को वैकल्पिक आवास मुहैया कराएंगे। ससुर ने 2016 में निचली अदालत के समक्ष इस आधार पर कब्जे के लिए मुकदमा किया था कि वह सम्पत्ति के पूर्ण मालिक हैं और याचिकाकर्ता के पति यानि उनका बेटा किसी अन्य स्थान पर रहता है और वह अपनी बहू के साथ रहने का इच्छुक नहीं है। वहीं बहू ने कहा था कि सम्पत्ति परिवार की संयुक्त पूंजी के अलावा पैतृक सम्पत्ति की बिक्री से हुई आय से खरीदी गई है। लिहाजा उसे भी वहां रहने का अधिकार है। निचली अदालत ने बहू की इस मांग को खारिज कर दिया था। -अनिल नरेन्द्र

Friday, 4 March 2022

हर्षद मेहता के कांड से भी बड़ा घोटाला

आपको अच्छी तरह याद होगा कि 1990 के दशक में करीब 4000 करोड़ रुपए के हर्षद मेहता कांड ने शेयर मार्केट की नींव हिलाकर रख दी थी। ताजा मामला नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) से जुड़ा है। यह हर्षद मेहता कांड से भी बड़ा घोटाला साबित हो सकता है। को-लोकेशन फैसिलिटी में हेराफेरी के जरिये इसे अंजाम दिया गया है। दरअसल यह स्टॉक एक्सचेंज सर्वर के बिल्कुल पास की जगह होती है। यहीं अपना सिस्टम लगाकर कारोबार करने के लिए ब्रोर्क्स अतिरिक्त शुल्क भी चुकाते हैं। अगर इसका फायदा यह है कि सर्वर के ज्यादा पास होने के कारण ब्रोर्क्स की लैटेंसी (ऑर्डर के बाद उसे पूरा करने में लगने वाला समय) बढ़ जाता है। यानि दूसरे ब्रोर्क्स के मुकाबले उन्हें कुछ सैकेंड पहले ही डेटा मिल जाता था। ऐसे में उन्होंने सबसे पहले ऑर्डर प्लेस करके अरबों रुपए का मुनाफा कमाया। सीबीआई जांच के मुताबिक इस घोटाले में ओपीजी सिक्यूरिटीज नामक ब्रोर्क्स फर्म को फायदा पहुंचाने के लिए उसे को-लोकेशन फैसिलिटी का एक्सेस दिया गया था। सीबीआई ने एक्सचेंज के पूर्व ग्रुप ऑपरेटिंग ऑफिसर आनंद सुब्रह्मण्यम को गिरफ्तार कर लिया है। उन्हें गुरुवार रात चेन्नई में हिरासत में लिया गया। सीबीआई को अंदेशा है कि सुब्रह्मण्यम ही रहस्यमयी बाबा है। अधिकारियों ने बताया कि आनंद से इसी हफ्ते की शुरुआत में चेन्नई में कुछ दिन पूछताछ भी गई थी, लेकिन वह सवालों का जवाब देने से बचते रहे। उन्हें दिल्ली में विशेष अदालत में पेश किया गया, जहां से छह मार्च तक हिरासत में भेज दिया गया। सेबी ने 11 फरवरी को चित्रा, अन्य पर सुब्रह्मण्यम की मुख्य रणनीतिक सलाहकार, जीओसे एमडी के सलाहकार के रूप में नियुक्ति में कथित चूक का आरोप लगाया था। सेबी ने चित्रा पर तीन करोड़ व एनएसई, सुब्रह्मण्यम, रवि नारायण पर दो-दो करोड़, चीफ रेग्युलेटरी ऑफिसर व कंप्लाइंस ऑफिसर रहे वीआर नरसिम्हन पर छह लाख का जुर्माना लगाया है। एनएसई की तत्कालीन सीईओ चित्रा रामकृष्ण ने सेबी को बताया कि हिमालय के अदृश्य बाबा के निर्देश पर उन्होंने कई फैसले लिए। करीब 20 साल पहले हिमालय रेंज में गंगा तट पर तीर्थयात्रा के दौरान वह उनसे मिली थी। चित्रा ई-मेल के जरिये पूछती थीं कि किस कर्मचारी को कितनी रेटिंग देनी है, किसे प्रोमोशन देना है। एनएसई की अन्य जानकारियां भी शेयर करती थी। 2013 में चित्रा ने आल्वे को सीओओ बनाया, उन्हें शेयर बाजार का कोई अनुभव नहीं था। सालाना सैलेरी 15 लाख से बढ़ाकर सीधे 1.38 करोड़ रुपए कर दी। फिर सीओओ का पद देकर सैलेरी नौ करोड़ की गई। 2018 से जांच कर रही सीबीआई को पहली सफलता मिली जो सुब्रह्मण्यम को इस स्कैम में गिरफ्तार किया गया। अब आगे देखते हैं क्या होता है।

रिश्वत का प्रमाण जरूरी है

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि भ्रष्टाचार-रोधी कानून के प्रावधान के तहत किसी सरकारी कर्मचारी के रिश्वत मांगने और उसे स्वीकार करने के अपराध को साबित करने के लिए सुबूत का होना जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार रोकथाम (पीसी) अधिनियम की धारा-7 के तहत लोक सेवकों द्वारा रिश्वत मांगने से संबंधित अपराध के लिए गैर-कानूनी मांग और उसे स्वीकार करना अनिवार्य कारक होते हैं। यह धारा सरकारी अधिनियम के संबंध में कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अवैध पारितोषिक लेने वाले लोक सेवकों के अपराध से संबंधित है। जस्टिस अजय रस्तोगी और अभय श्रीवास्तव की बेंच ने तेलंगाना हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द करते हुए कहा। हाई कोर्ट ने एक महिला लोक सेवक की सजा को बरकरार रखा था। सिकंदराबाद में एक वाणिज्यिक कर अधिकारी के रूप में कार्यरत महिला अधिकारी को भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा-7 के तहत कथित अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था। अदालत ने अपने 17 पन्नों के फैसले में कहा कि पीसी अधिनियम की धारा-7 के तहत लोक सेवकों द्वारा रिश्वत मांगने से संबंधित अपराध के लिए गैर-कानूनी मांग और उसे स्वीकार करना अनिवार्य कारक होते हैं। भ्रष्टाचार-रोधी कानून की धारा-7 के प्रावधान के तहत सरकारी कर्मचारी द्वारा रिश्वत मांगे जाने पर और उसे स्वीकार करने के अपराध को साबित करने के लिए सुबूत का होना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी महिला अधिकारी द्वारा तेलंगाना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका पर यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा रिश्वत की मांग करने के आरोप को साबित करने के लिए शिकायतकर्ता का सत्य बिल्कुल विश्वसनीय नहीं थे। अदालत ने कहा कि इसलिए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अपीलकर्ता द्वारा की गई मांग साबित नहीं हुई। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 3 March 2022

पुतिन इसलिए परमाणु हमले की धमकियों पर उतरे...

न्यूयार्प टाइम्स ने रक्षा विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है-रूस को उम्मीद नहीं थी कि यूकेन की सेना उसे पमुख शहरों में घुसने से रोक देगी। अब बीतता हुआ हरेक दिन तीन बड़ी परेशानियां खड़ी कर रहा है। पहली-युद्ध में रोज सवा लाख करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं, जो लंबे समय तक संभव नहीं। दूसरी-यूकेन के नागरिक रूसी सेना के सामने खड़े हो गए हैं। नागरिकों को निशाना बनाते हुए रूसी सेना आगे बढ़ती है तो पुतिन की नैतिक हार तय है। तीसरी-समय बीतने के साथ यूकेन को पड़ोसी देशों से हथियारों की मदद बढ़ रही है। द इकानामिस्ट ने यूरोपीय विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है- पुतिन अभी सिर्प डरा रहे है ताकि नाटो या पड़ोसी देश यूकेन के हक में दखलअंदाजी न करें। लेकिन नाटो और अमेरिका को लगता है कि अगर रूसी सेना को यूकेन ने कुछ दिनों तक और रोककर रखा तो पुतिन परमाणु हथियारों का सीमित इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसा हुआ तो यह तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत होगी। पूरी दुनिया एक तरफ होगी और रूस अकेला, क्योंकि ऐसी स्थिति में चीन भी अलग रहना चाहेगा। पुतिन पर दबाव क्यों बढ़ रहा है? क्योंकि सैन्य रणनीति अभी तक सफल नहीं रही। पुतिन का ताजा बयान बताता है कि उनकी सेना टाइमलाइन से पिछड़ चुकी है। इसलिए वे बार-बार सेना का उत्साह बढ़ाकर कह रहे हैं कि कार्रवाई समयानुसार ही चल रही है। दरअसल, रूस को होने जा रहा आर्थिक नुकसान समय के साथ बढ़ता ही जाएगा, इसलिए पुतिन जल्द से जल्द यूकेन की सत्ता पलटकर वहां अपने समर्थक नेता को बिठाना चाहते हैं। द गार्जियन के अनुसार यूकेन के नुकसान की भरपाई यूरोपीय देश कर लेंगे, लेकिन रूस की भरपाई मुश्किल है। ऐसे में रूस जो पहले सैन्य तरीके से हल चाहता था, अब बातचीत की टेबल पर आ चुका है।

पूर्वांचल हर चुनाव में चौंकाता है

यूपी चुनाव अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। 5 चरणों में अब तक 292 सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है। अब दो चरणों में पूर्वांचल की 111 सीटों पर वोटिंग बाकी है। अगर बीते ट्रेंड को देखें तो यह इलाका सियासी दलों को हर बार चौंकाता है। 2007 में बसपा की लहर चली तो 2012 में साइकिल की। 2017 में भाजपा ने यह किला भेदा और सरकार बनाई। 2017 में विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में कई इलाकों में मोदी लहर तब बेअसर रही थी। यही भाजपा की सबसे बड़ी चिंता है। मसलन 2017 में आजमगढ़ की 10 में से सिर्प एक सीट भाजपा के हक में आई। 2017 में पूरा जोर लगाने के बाद भी भाजपा को मऊ और बलिया में बड़ी सफलता नहीं मिली थी। इस इलाके में निषाद, राजभर, मौर्य और कुशवाहा वोटर बड़ी तादाद में हैं जो बड़ी ताकत रखते है। जौनपुर जिले की 9 में से 4 सीटें भाजपा के हाथ लगी थीं। तीन सपा और एक बसपा ने जीती थी। 2019 के आम चुनाव की बात करें तो आजमगढ़ में सपा पमुख अखिलेश यादव जीते थे। गाजीपुर से रेल मंत्री रहे मनोज सिन्हा को अफजल अंसारी ने शिकस्त दी थी। जौनपुर, लालगंज और घोसी सीट बसपा ने फतह की थी। 2017 के चुनाव में सपा और बसपा के गढ़ रहे इस इलाके में भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के दम पर फतह की थी। इन दोनों चरणों में भाजपा एम-वाई फैक्टर के भरोसे है। एम यानी मोदी वाई यानी योगी। छठे चरण में सीएम योगी के गढ़ गोरखपुर और आसपास के जिलों की 57 सीटों पर वोटिंग होगी। सातवें चरण में पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और उसके आसपास के जिलों की 54 सीटों पर वोटिंग है। 111 में एक दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां व्यक्ति विशेष या परिवार विशेष का सिक्का चलता है।

यूकेन युद्ध का फायदा न उठा सकें चीन-पाक

पूर्व विदेश सचिव शशांक ने कहा कि रूस-यूकेन के बीच युद्ध से दुनिया का ध्यान रूस पर है। इस संकट से निपटने के लिए संयम और समझदारी भरे रुख की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत को तटस्थ तरीके से संकट से निपटने के लिए कूटनीतिक भूमिका निभानी चाहिए। इस स्थिति का फायदा हमारी सीमाओं पर उठाने का पयास कहीं न किया जाए? उन्होंने कहा चीन और पाकिस्तान के रवैए पर नजर रखते हुए अपनी कूटनीतिक तय करनी होगी। चीन कोई मुगालता नहीं पाले, यह भी देखना होगा। यह अच्छा है कि यूकेन ने हमसे कूटनीतिक मदद मांगी है। यह एक तरह का संकेत है कि यूकेन नाटो के साथ शायद न जाए। भारत के रिश्ते रूस से अच्छे हैं। हमें देखना होगा कि किस तरह से इन रिश्तों का इस्तेमाल शांति स्थापना के लिए किया जा सकता है। जब दुनिया के कई बड़े देश लड़ने की कोशिश नहीं कर रहे तो हमसे उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि हम किसी भी तरफ से युद्ध करेंगे। हमारी भूमिका शांति के लिए होनी चाहिए और सरकार इसी दिशा में चल रही है। यूकेन में फंसे भारतीयों की सुरक्षा भी है। भारत मजबूत लोकतंत्र है। ऐसे में हमें संकट के वक्त मित्र देशों की भूमिका के साथ हितों से तालमेल रखते हुए कूटनीतिक कदम आगे बढ़ाने होंगे। पहले चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों पर खास ध्यान देना होगा। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 2 March 2022

क्या यूक्रेनियों की बहादुरी समझने से चूक गए पुतिन

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के पांच दिन बीत गए हैं। इस दौरान पश्चिमी मीडिया और इंटरनेट मीडिया में कुछ ऐसी तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं जिससे लगता है कि यूक्रेन में रूसी सैनिकों को आम लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। सवाल उठने लगे हैं कि क्या रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने द्वितीय युद्ध से कोई सबक नहीं लिया, जिसमें सबसे अच्छे सोवियत सैनिक यूक्रेनी ही थे। यूक्रेन के खुफिया अधिकारियों के हवाले से पश्चिमी मीडिया में आ रहीं खबरों के मुताबिक पुतिन वास्तविकता से दूर एक अलग दुनिया में रहते हैं। यूक्रेनी अधिकारी बताते हैं कि पुतिन को लगता था कि यूक्रेन के लोग रूसी सैनिकों का स्वागत करेंगे। रूसी अधिकारी पुतिन को वही बताते हैं जो वो सुनना चाहते हैं। रूस की सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख और पुतिन के सबसे शीर्ष सैन्य कमांडर वैलेरी गेरासियोव ने भी उन्हें आगाह किया था। यूक्रेन पर हमले के बाद यह माना जा रहा था कि दो या तीन दिनों के भीतर रूस उस पर कब्जा कर लेगा। लेकिन पांचवें दिन भी यूक्रेन लड़ रहा है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अगले दो-तीन दिन रूस के लिए बेहद अहम हैं। लेकिन विशेषज्ञ कुछ घटनाओं को इस रूप में देख रहे हैं कि रूस को उलझा कर यूक्रेन युद्ध को लंबा खींचने की कोशिश कर रहा है। पांच दिन से जारी युद्ध के बीच जो नई बात देखी गई है, उसमें जर्मनी समेत कई पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को हथियार देने का ऐलान करना तथा यूक्रेन में नागरिकों को युद्ध के मैदान में उतारना है। इन दो घटनाओं को लेकर माना जा रहा है कि यह रूस को लंबे समय तक यूक्रेन में उलझाने के लिए कोशिश हो सकती है। हो सकता है कि यूक्रेन खुद यह कह रहा हो या फिर पश्चिमी देशों के इशारे पर कर रहा हो। रूस पर दबाव होगा कि वह कुछ दिनों में यूक्रेन पर पूरी तरह से नियंत्रण हासिल कर ले। यदि वह विफल रहता है तो उसके लिए बड़ी चुनौती पैदा हो सकती है। इस बीच यूक्रेन ने अपने नागरिकों को युद्ध के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है। एजेंसियों के जरिये लोगों का चयन कर उन्हें हथियार मुहैया कराए जा रहे हैं। वह पेशेवर सैनिक नहीं हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर इन गैर-पेशेवर लोगों के समूह रूसी सेना के लिए गुरिल्ला युद्ध जैसे हालात पैदा कर रहे हैं। इन पर काबू पाना कठिन हो सकता है, क्योंकि ऐसे लोग छोटे-छोटे समूहों में हमले करते हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई करने में रूसी सेना को नागरिक ठिकानों को भी निशाना बनाना पड़ रहा है। रूस अफगानिस्तान को भूला नहीं है। उसका प्रयास होगा कि अगले कुछ दिनों में यूक्रेन पर कब्जा कर ले। अगर युद्ध लंबा खिंचता है तो रूस के लिए ठीक नहीं होगा। उसके दुष्परिणाम निकल सकते हैं।

नवाब मलिक के खिलाफ आरोप सही लग रहे हैं

धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) से संबद्ध मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष अदालत ने कहा है कि प्रथम दृष्ट्या महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक के खिलाफ लगे आरोप सही प्रतीत हो रहे हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक कार्यमंत्री नवाब मलिक को धनशोधन के एक मामले की जांच के सिलसिले में बुधवार को गिरफ्तार किया था। पीएमएलए से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश आरएन रोकड़े ने कहा कि अपराध की जांच के लिए ईडी को पर्याप्त समय देने की आवश्यकता है। मलिक को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ करना आवश्यक है। अदालत ने बुधवार को एनसीपी के वरिष्ठ नेता नवाब मलिक को तीन मार्च तक के लिए ईडी की हिरासत में भेज दिया गया था। अदालत के आदेश की प्रति शुक्रवार को उपलब्ध होने के बाद यह जानकारी सामने आई। ईडी का कहना है कि यह जांच भगौड़े गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम, उसके सहयोगियों और मुंबई अंडरवर्ल्ड की गतिविधियों से जुड़ी धनशोधन की जांच से संबंधित है। अदालत ने कहाöरिपोर्ट से ऐसा प्रतीत होता है कि आरोपी ने महत्वपूर्ण पहलुओं पर जांच में सहयोग नहीं किया। विशेष न्यायाधीश रोकड़े ने कहाöप्रथम दृष्ट्या यह मानने के लिए उचित आधार है कि आरोप पीएमएलए के तहत सही हैं। अदालत ने माना कि जांच अभी शुरुआती चरण में है और मलिक को हिरासत में लेकर पूछताछ करना अपराध में शामिल सभी लोगों का पता लगाने के लिए आवश्यक है। न्यायाधीश ने कहाöअपराध संबंधी यह गतिविधियां पिछले 20 वर्षों या उससे भी अधिक समय से चली आ रही हैं, इसलिए अपराध की जांच के लिए पर्याप्त समय दिए जाने की आवश्यकता है। उधर महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक को बर्खास्त करने की भाजपा की मांग का शिवसेना नेता संजय राऊत ने शुक्रवार को जवाब दिया। उन्होंने कहाöमंत्रिमंडल के किसी भी सहयोगी का इस्तीफा स्वीकार करना या अस्वीकार करना मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का विशेषाधिकार है। मालूम हो कि ईडी द्वारा बुधवार को गिरफ्तारी के बाद से ही भाजपा मलिक को मंत्रिमंडल से हटाने की मांग कर रही है। वहीं मलिक को चिकित्सा कारणों से यहां के सरकारी जेजे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। मलिक के कार्यालय ने एक ट्वीट कर यह जानकारी दी। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 1 March 2022

नाटो क्या है और रूस को उस पर भरोसा क्यों नहीं?

यूकेन पर रूस के आक्रमण ने नाटो के सामने अपने 73 साल के इतिहास में सबसे बड़ी चुनौती पेश की है। नाटो क्षेत्र की पूर्वी सीमा के ठीक बगल में युद्ध हो रहा है और नाटो के कई सदस्य देशों को लग रहा है कि रूस आगे उन पर हमला कर सकता है। सैन्य गठबंधन नाटो, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस व जर्मनी जैसे शक्तिशाली देश शामिल हैं। पूर्वी यूकेन में अधिक सैनिक बेशक तैनात कर रहा है हालांकि अमेरिका और ब्रिटेन ये स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका यूकेन में अपने सैनिक भेजने का कोई इरादा नहीं है। नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन यानि नाटो 1949 में बना एक सैन्य संगठन है जिसमें शुरुआत में 12 देश थे जिनमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल थे। इस संगठन का मूल सिद्धांत यह है कि यदि किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है तो बाकी देश उसकी मदद के लिए आगे आएंगे। यह यूरोपीय देशों का एक सैन्य संगठन है और इसमें भौगोलिक स्थिति के हिसाब से सामरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए सदस्य जोड़े जाते हैं। अपनी भौगोलिक स्थिति और कूटनीतिक कारणों से भारत नाटो का सदस्य नहीं है। दरअसल में नाटो में कोई एशियाई सदस्य नहीं है। इसका मूल मकसद दूसरे विश्व युद्ध के बाद रूस के यूरोप में विस्तार को रोकना था। 1955 में सोवियत रूस ने नाटो के जवाब में पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देशों के साथ मिलकर अपना अलग सैन्य संगठन खड़ा किया था जिसे वॉरसा पैक्ट नाम दिया गया था। लेकिन 1991 में सोवियत यूनियन के विघटन के बाद वॉरसा पैक्ट का हिस्सा रहे कई देशों ने दल बदल लिया और वह नाटो में शामिल हो गए। नाटो गठबंधन के अब 30 देश सदस्य हैं। यूकेन एक पूर्व सोवियत रिपब्लिक है जो एक तरफ रूस से और दूसरी तरफ यूरोपीय संघ से सटा है। यूकेन में रूसी मूल के लोगों की बड़ी आबादी है और उसके रूस के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं। रणनीतिक रूप से रूस इसे अपना हिस्सा मानता है और हाल ही में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि यूकेन वास्तव में रूस का हिस्सा ंहै। हालांकि हाल के सालों में यूकेन का झुकाव पश्चिम की तरफ अधिक रहा है। उसका यूरोपीय संघ और नाटो का हिस्सा होने का इरादा उसके संविधान में लिखा है। फिलहाल यूकेन नाटो का एक सहयोगी देश है, इसका मतलब यह है कि इस बात को लेकर सहमति है कि भविष्य में कभी भी यूकेन को नाटो में शामिल किया जा सकता है। हालांकि अमेरिका और उसके सहयोगी देश यूकेन को नाटो में शामिल होने से रोकने के खिलाफ हैं। उनका तर्प है कि यूकेन एक स्वतंत्र राष्ट्र है जो अपनी सुरक्षा को लेकर निर्णय ले सकता है और गठबंधन बना सकता है। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने यूकेन के दो इलाकों को स्वतंत्र क्षेत्र की मान्यता दे दी है। राष्ट्रपति पुतिन का दावा है कि पश्चिमी देश नाटो का इस्तेमाल रूस के इलाके में घुसने के लिए कर रहे हैं। वो चाहते हैं कि नाटो पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य गतिविधियां रोक दे। वो तर्प देते रहे हैं कि अमेरिका ने 1990 में किया वो वादा तोड़ दिया है जिसमें भरोसा दिया गया था कि नाटो पूर्व की तरफ नहीं बढ़ेगा। वहीं अमेरिका का कहना है कि उसने कभी भी ऐसा कोई वादा नहीं किया था। नाटो का कहना है कि उसके कुछ सदस्य देशों की सीमाएं ही रूस से लगी हैं और यह एक सुरक्षात्मक गठबंधन है। नाटो ने इप्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और पोलैंड में चार बटालियन की बराबर बैटल ग्रुप है जबकि रोमानिया में बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड है। नाटो ने बाल्टिक देशों और पूर्वी यूरोप में हवाई निगरानी भी बढ़ाई है ताकि सदस्य देशों के वायु क्षेत्र में घुसने से रूसी विमानों को रोका जा सके। रूस का कहना है कि वो चाहता है कि यह बल क्षेत्र से निकाले जाएं। पोलैंड और बाल्टिक देशों में पहले से ही उसके लड़ाकू समूह मौजूद हैं।

पुतिन कठपुतली सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलाएंगे

रूस-यूकेन युद्ध बढ़ता दिख रहा है। रूसी सेनाएं यूकेन की राजधानी कीव में घुस चुकी हैं। अपनी हार सामने देख यूकेन के राष्ट्रपति ने पुतिन को बातचीत का न्यौता दिया है। पुतिन ने प्रतिनिधिमंडल भेजने की बात कही है, साथ ही कहाöरूस यूकेन पर कब्जा नहीं करेगा, बल्कि उसे आजाद कर रहा है। यूकेन में परमाणु बम नहीं बनने देगा। रूसी विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि यूकेन सरकार को सरेंडर करने पर ही सैन्य कार्रवाई बंद होगी। इसे देखते हुए वाशिंगटन डीसी के अधिकारी व विशेषज्ञ कह रहे हैं कि पुतिन अपने मंसूबों में लगभग सफल हो चुके हैं। वह अब जल्दी ही यूकेन में रूसी समर्थकों की नई सरकार बनाएंगे, जिसका रिमोट कंट्रोल मॉस्को के हाथ में रहेगा। युद्ध विराम के कुछ हफ्ते बाद रूसी सेना की छोटी टुकड़ियां लौट जाएंगी। पुतिन अब यूकेन में कठपुतली सरकार बनाकर ईयू और अमेरिका के लिए नई चुनौतियां पैदा कर देंगे। दूसरी ओर अमेरिका, ईयू, नाटो और संयुक्त राष्ट्र जैसी सभी ताकतों ने दूसरे दिन भी बयान जारी रखे। वह सैन्य इस्तेमाल से पहले ही इंकार कर चुकी हैं। -अनिल नरेन्द्र