Sunday, 30 January 2022

देश में है धार्मिक असहिष्णुता का माहौल

पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के अमेरिका में भारत विरोधी सांसदों के साथ एक कार्यक्रम में भाग लेने और भारत के राजनीतिक वातावरण पर अपनी टिप्पणी से विवादों में आ गए हैं। भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद ने इसकी तीखी आलोचना करते हुए कहा कि एक व्यक्ति का पागलपन अब देश की आलोचना की साजिश में बदल गया है। अंसारी गणतंत्र दिवस के अवसर पर अमेरिका स्थित भारतीय अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल एवं कुछ अन्य भारत विरोधी संगठनों द्वारा आयोजित एक वर्चुअल कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे। उनके साथ अभिनेत्री स्वरा भास्कर और तीन अमेरिकी सांसदों जिम मैकगदनी, एंडी लेबिन और जेमी रस्किन भी मौजूद थे। अंसारी के इस बयान पर केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने पलटवार करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने का पागलपन अब भारत विरोधी साजिश में बदल गया है। उन्होंने कहाöजो लोग अल्पसंख्यकों के वोट का शोषण करते थे, वह अब देश के सकारात्मक माहौल से चिंतित हैं। विश्व हिन्दू परिषद के प्रवक्ता विनोद बंसल ने ट्वीट करके कहाöहामिद अंसारी जैसे लोग संवैधानिक पदों से उतरते ही सीधे नीचे क्यों गिर जाते हैं? भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ के संयोजक अमित मालवीय ने भी अपने ट्वीट में कहा कि सोनिया गांधी के प्रिय पात्र पूर्व उपराष्ट्रपति अंसारी ने ऐसे अमेरिकी सांसदों के साथ मंच साझा किया है जिनका इतिहास भारत विरोधी रुख के उदाहरणों से भरा पड़ा है। बता दें कि हामिद अंसारी ने वाशिंगटन में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के एक कार्यक्रम में कहा था कि देश में असहिष्णुता को हवा दी जा रही है और असुरक्षा का माहौल बनाया जा रहा है। डिजिटल तरीके से इस चर्चा में भाग लेते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति अंसारी ने हिन्दू राष्ट्रवाद की बढ़ती प्रवृत्ति पर अपनी चिंता व्यक्त की। अंसारी ने आरोप लगाया कि हाल के वर्षों में हमने उन प्रवृत्तियों और प्रथाओं के उद्भव का अनुभव किया है, जो नागरिक राष्ट्रवाद के सुस्थापित सिद्धांत को लेकर विवाद खड़ा करता है और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक नई एवं काल्पनिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देती हैं। वह नागरिकों को उनके धर्म के आधार पर अलग करना चाहती है। असहिष्णुता को हवा देती है और देश में अशांति एवं असुरक्षा को बढ़ावा देती है। बेशक वह कुछ कहने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उनका दूषित चिंतन यही बताता है कि राष्ट्र सेवा के नाम पर उनके जैसे लोग किस तरह उसे लांछित करने और समाज में जहर घोलने का काम करते हैं। भले ही अंसारी संवैधानिक पदों पर रहे हों, लेकिन उनकी रुग्ण मानसिकता को इससे समझा जा सकता है कि वह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया नामक चरमपंथी संगठन के कार्यक्रम में भी जा चुके हैं। इस संगठन पर दिल्ली समेत देश के दूसरे हिस्सों में दंगे कराने के आरोप भी लगते रहे हैं और समय-समय पर इस पर पाबंदी की मांग उठती रही है।

मामला गैर-सरकारी संगठनों को विदेश से पैसा आने का

करीब छह हजार गैर-सरकारी संगठनों को विदेश से आर्थिक सहायता के लिए मिले एफसीआरए लाइसेंस को जारी रखने की फरियाद वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गौर करने से इंकार कर दिया। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति सीटी रवि कुमार और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने याचिकाकर्ता संगठन ग्लोबल पीस इनिशिएटिव की याचिका पर अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया। याचिका के पक्ष में पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने फरियाद की थी कि इन संगठनों को दो हफ्ते के भीतर आवेदन करने की स्थिति में इनके एफसीआरए लाइसेंस की मियाद बढ़ा दी जाए। गौरतलब है कि विदेशी कोष प्राप्त करने के लिए किसी भी संगठन और एनजीओ के लिए एफसीआरए पंजीकरण करना अनिवार्य है। पीठ ने इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के कथन पर भरोसा किया। मेहता ने कहा था कि तय समय सीमा के भीतर नवीनीकरण के लिए जिन 11,594 संगठनों ने आवेदन किया था, विदेशी अंशदान (विनियम) अधिनियम के तहत उनके एफसीआरए लाइसेंस की मियाद बढ़ाई जा चुकी है। पीठ ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि अगर उनके पास इस बाबत कोई सुझाव हैं तो वह संबंधित प्राधिकारी को दे सकते हैं। मेहता ने याचिकाकर्ता संगठन की कानूनी हैसियत पर भी सवाल उठाया और कहा कि जिस संगठन का दफ्तर विदेश में है, उसे चिंता नहीं करनी चाहिए। हेगड़े ने मेहता की बात का प्रतिवाद करते हुए पीठ से कहा कि उनके पास वह जानकारी है जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है और इसके अनुसार अभी भी 6000 संगठनों के लाइसेंस सरकार ने रोक रखे हैं। पीठ ने हेगड़े को बताया कि सॉलिसिटर जनरल के मुताबिक जिन संगठनों ने आवेदन किया, उनका पंजीकरण बढ़ा दिया गया है। पीठ ने कहा कि अगर उन 6000 एनजीओ ने पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं करने का विकल्प चुना है, तो इसका मतलब है कि वह वर्तमान व्यवस्था में बने रहना नहीं चाहते हैं। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता उन अधिकारियों के समक्ष अभ्यावेदन दे सकते हैं, जिनके द्वारा उन पर विचार किया जा सकता है।

बढ़ रही हैं तख्तापलट की घटनाएं

पश्चिम अफ्रीका देश बुर्पिना फासो में तख्तापलट हो गया है। लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए राष्ट्रपति रॉक मार्प क्रिश्चियन कोबोगे को तख्तापलट के बाद से किसी अज्ञात जगह पर रखने का दावा किया जा रहा है। माली और गिनी के बाद बीते डेढ़ साल में तख्तापलट देखने वाला यह तीसरा पश्चिमी अफ्रीकी देश है। करीब दो करोड़ आबादी वाले बुर्पिना फासो को कुछ समय पहले तक स्थिर देश माना जाता था। लेकिन साल 2016 से यह चरमपंथी इस्लामिक जेहादियों से जूझ रहा है। सैनिकों ने तख्तापलट करने को एक वजह की तरह पेश किया है। अफ्रीकी देशों में सैन्य तख्तापलट की घटनाएं बढ़ रही हैं। पिछले साल सूडान में दो बार तख्तापलट की कोशिश की गई। एक सितम्बर में जो विफल रहा और दूसरी जिसमें जनरल आब्देल-फतह बुरहान ने सरकार और सेना व नागरिक प्रतिनिधियों को मिलाकर बनाई गई संप्रभु परिषद को भंग कर दिया। 25 अक्तूबर 2021 को सूडान में सेना ने तख्तापलट कर देश में आपातकाल लागू कर दिया। इसी तरह से पांच सितम्बर 2021 को पश्चिमी अफ्रीका देश गिनी में विद्रोही सैनिकों ने तख्तापलट करने के बाद राष्ट्रपति उल्का कोंडे को हिरासत में ले लिया और संविधान को अवैध घोषित कर दिया। माली में मई 2021 में सेना ने विद्रोह करते हुए चुनी हुई सरकार को उखाड़ दिया और सत्ता खुद संभाल ली। इसी तरह चाड और जिम्बाब्वे में भी सैन्य विद्रोह जारी है। हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में चार बार हो चुका है तख्तापलट। पहला तख्तापलट 1953-54, उसके बाद 1958 में, 1977 और फिर साल 1994 में तख्तापलट हुआ। 1990 से 2019 यानि 19 वर्षों में 113 तख्तापलट का रिकॉर्ड दर्ज हुआ है। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 29 January 2022

बिखरती जा रही है राहुल की युवा ब्रिगेड

चुनावी हार और दरकते जनाधार के बीच अब तक के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही कांग्रेस की वह युवा ब्रिगेड एक के बाद एक बिखरती चली जा रही है जो कभी राहुल गांधी के खास और पार्टी का भविष्य मानी जाती थी। राहुल गांधी ने जिन नेताओं को हारने के बाद भी पार्टी में आगे बढ़ाया। उन्होंने ही ज्यादा दगा दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री और झारखंड के प्रभारी आरपीएन सिंह भी इन्हीं में से एक हैं, जो लोकसभा के लगातार दो चुनाव हार गए थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल और कांग्रेस महासचिव एवं यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा को लंबे समय से यूपी ओर झारखंड के नेता आरपीएन सिंह के पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने की सूचनाएं दे रहे थे। बार-बार कहा जा था कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में आरपीएन सिंह के खिलाफ कार्रवाई की जाए जिससे पार्टी में अनुशासन भी आए। आरपीएन सिंह एक साल से शिकायत कर रहे थे कि उनकी पार्टी में उपेक्षा की जा रही है। झारखंड के नेता शिकायत कर रहे थे कि आरपीएन सिंह का व्यवहार बदला-बदला है। आरपीएन सिंह से पहले नितिन प्रसाद ने भाजपा का दामन थामा था और वह फिलहाल राज्य सरकार में मंत्री हैं। राहुल गांधी के करीबी माने जाने वो प्रमुख युवा नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला मार्च 2020 में उस समय हुआ जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को अलविदा कहा और भाजपा का दामन थाम लिया। नतीजा यह हुआ कि मध्य प्रदेश में 15 साल बाद बनी कांग्रेस की सरकार 15 महीने में ही सत्ता से बाहर हो गई। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के कुछ महीने बाद ही एक समय ऐसा आया कि सचिन पायलट कांग्रेस से जुदा होने के मुहाने पर खड़े हो गए। हालांकि आलाकमान के दखल और बातचीत के बीद वह पार्टी में रह गए। केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय सिंधिया, पायलट, प्रसाद, आरपीएन सिंह और मिलिंद देवड़ा के चन्द युवा नेता थे जिन्हें राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड की संज्ञा दी जाती थी। आज इनमें से पायलट और देवड़ा ही कांग्रेस में रह गए हैं। पिछले साल ही महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने कांग्रेस को छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी से अलग होने वाले युवा नेता अपने राजनीतिक फायदे को ध्यान में रखकर ऐसे कदम उठा रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि वैचारिक प्रतिबद्धता की परीक्षा मुश्किल घड़ी में होती है। आज जो नेता कांग्रेस से अलग हो रहे हैं उन्हें पार्टी ने बहुत कुछ दिया। अब वो अपने फायदे के लिए पार्टी के हित को नुकसान पहुंचा कर ऐसे कदम उठा रहे हैं। उधर भारतीय युवा कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवास वीवी ने राहुल गांधी का एक वीडियो साझा करते हुए पार्टी छोड़ने वाले नेताओं पर निशाना साधा। इस वीडियो में राहुल गांधी ने कहा कि जो नहीं डरते हैं उनको कांग्रेस में लाया जाए और जो डर रहे हैं उनको बाहर का रास्ता दिखाया जाए। श्रीनिवास ने ट्वीट कियाöजो डरपोक हैं, उन्हें दरवाजा पहले ही दिखा दिया गया था। बहुसंख्यक कांग्रेस नेताओं की शिकायत यह भी है कि पार्टी में निर्णय लेने वाले राहुल गांधी न मिलते हैं और न संवाद करते हैं। एक पूर्व मुख्यमंत्री ने पार्टी के एक वरिष्ठ नेता से कहा कि उसे राहुल गांधी से छह महीने से मिलने का समय नहीं मिला। पार्टी के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि निरंतर संवाद के अभाव में राहुल गांधी के प्रति उनके पिता राजीव गांधी सरीखे आत्मीय रिश्ते नहीं बन पाए। उन्होंने कहा कि यह ही वजह है कि अब कांग्रेस छोड़ने वाले नेता एक बार भी यह नहीं सोचते कि राहुल गांधी को बुरा लगेगा और कांग्रेस को नुकसान होगा। यह दुख की बात है कि कांग्रेस की यह दुर्दशा हो रही है और इसके लिए पार्टी नेतृत्व सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।

शरजील इमाम पर राजद्रोह का मामला

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र शरजील इमाम के खिलाफ राजद्रोह का मामला चलेगा। साल 2019 में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी. (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कथित भड़काऊ भाषण देने के मामले में जेएनयू के छात्र शरजील इमाम के खिलाफ दिल्ली की अदालत ने राजद्रोह का अभियोग तय किया है। अदालत ने अभियोजन के उस बयान को तरजीह दी जिसमें उसने दावा किया कि शरजील इमाम के बयान से हिंसक दंगे हुए। अभियोजन पक्ष के मुताबिक शरजील इमाम ने 13 दिसम्बर 2019 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में और 16 दिसम्बर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिए भाषणों में कथित तौर पर असम और बाकी पूर्वोत्तर को भारत से अलग करने की बात कही थी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने अपने आदेश में कहाöमामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (राजद्रोह), धारा 153ए (दो अलग समूहों में धर्म के आधार पर विद्वेष को बढ़ाना देना), धारा 153बी (राष्ट्रीय एकता के खिलाफ अभियोजन), धारा 505) सार्वजनिक अशांति के लिए बयान), गैर-कानूनी गतिविधि (निषेद्य) अधिनियम (यूपीए) की धारा 13 (गैर-कानूनी गतिविधि के लिए सजा के तहत आरोप तय किए जाते हैं। जनवरी 2020 से न्यायिक हिरासत में मौजूद इमाम ने अपने बचाव में अदालत से कहा था कि वह आतंकवादी नहीं हैं, विरोध-प्रदर्शन करना लोकतंत्र का हिस्सा है।

चेतावनी

यदि आप वैक्सीन की बूस्टर डोज पाने की जल्दी में हैं तो सावधान हो जाएं, नहीं तो धोखेबाजी का शिकार हो सकते हैं। दरअसल साइबर जालसाज बूस्टर डोज के बारे में बताने के बहाने लोगों की जानकारी हासिल कर जेब पर डाका डाल रहे हैं। पिछले दिनों इस तरह की कुछ शिकायतें पुलिस के पास आई हैं। इसलिए अगर आपके पास भी कोई ऐसी कॉल आती है या फिर कोई मैसेज या फीशिंग मआएल का लिंक आता है तो आपको सतर्प होने की जरूरत है। इस तरह सेठगी हो रही है... साइबर ठग खुद को सरकारीकर्मचारी बताते हुए कॉल पर पूछते हैं कि क्या आपने डबल डोजया बूस्टर डोज लगवा ली है? इसके बाद वह टीका लगवाने के लिए रजिस्ट्रेशन की बात कहता है। रजिस्ट्रेन के नाम पर वह पहले तो आपसे सामान्य जानकारी पूछते हैं। इसके बाद वह आपको कोई तारीख बताते हैं कि इस दिन आपको टीका लग सकता है। अंत में रजिस्ट्रेशन के आखिरी चरण के नाम पर एक ओटीपी मांगते हैं। आप उसे रजिस्ट्रेशन का ओटीपी समझते हैं, जबकि वह बैंकिंग ट्रांजेक्शन से जुड़ा होता है। आप जैसे ही वह ओटीपी बताते हैं तो आपके खाते से रुपए निकाल लिए जाते हैं। साइबर जालसाजी द्वारा अपनाए जा रहे इस तरहके हथकंडों के बारेमें खुद पीड़ितों ने पुलिस को बताया है। दिल्ली पुलिस ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ठगी करने को लेकर 625 मामले दर्ज किए थे, जबकि 650 साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया था। इस साल में साइबल ठगी में लिप्त 25000 नम्बर ब्लैक लिस्ट कराए गए हैं। खास बात यह है कि इन नम्बरों में सबसे ज्यादा नम्बर झारखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, मेवात और यूपी-हरियाणा व राजस्थान से ट्रांजेक्शन से जुड़े बताए जाते हैं। ठगी में लिप्त 351 बैंक अकाउंट को भी सीज कराया जा चुका है। -अनिल नरेन्द्र

Friday, 28 January 2022

कभी भी छिड़ सकती है यूक्रेन-रूस में जंग

हमले की आशंका और अनिश्चितताओं के बीच यूक्रेन अपने पूर्वी पड़ोसी रूस के अगले कदम का इंतजार कर रहा है। पश्चिम के कई देशों की खुफिया एजेंसियों ने लगातार चेतावनी दी है कि रूस अपने पड़ोसी यूक्रेन पर हमला कर सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने बुधवार को कहा कि उन्हें लगता है कि उनके रूसी समकक्ष ब्लादिमीर पुतिन यूक्रेन में दखल देंगे लेकिन एक मुकम्मल जंग से बचना होगा। राष्ट्रपति बाइडन ने असल में रूसी सेना के छोटे से दखल की आशंका जताई। उनके इस बयान के बाद यूक्रेन में तनाव और जो बाइडन की आलोचना दोनों बढ़ गई हैं। उधर यूक्रेन से लगती सीमा पर इसके एक लाख से अधिक सैनिक कई हफ्तों से जमा हैं। हालांकि रूस यूक्रेन पर आक्रमण करने की किसी योजना से लगातार इंकार कर रहा है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने पश्चिमी देशों के सामने कई मांगें रखी हैं। उन्होंने उन देशों से जोर देकर कहा है कि यूक्रेन को कभी नाटो का सदस्य नहीं बनने देना चाहिए और नाटो गठबंधन को पूर्वी यूरोप में अपनी सभी सैन्य गतिविधियों को छोड़ देना चाहिए। तनावों के बीच अमेरिका ने कई पूर्वी देशों को अपने हथियार यूक्रेन की मदद के लिए वहां पहुंचाने की मंजूरी दे दी है। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहाöहम हमेशा से स्पष्ट कर रहे हैं कि यूक्रेन में रूस की किसी भी घुसपैठ को अमेरिका और उसकी ओर से तेज, सख्त और एकजुट जवाब मिलेगा। उधर अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने यूक्रेन स्थित अमेरिकी दूतावास में कार्यरत अमेरिकी कर्मियों के परिवारों को रूसी हमले के बढ़ते खतरों के बीच देश छोड़ने का आदेश दिया। मंत्रालय ने कीव स्थित अमेरिकी दूतावास के कर्मियों के आश्रितों को परामर्श दिया है कि उन्हें देश छोड़ना चाहिए। अमेरिका ने यूक्रेन को मदद जारी रखने का भरोसा दिया है। ब्रिटेन के इस दावे को कि रूस यूक्रेन में कठपुतली सरकार स्थापित करना चाहता है, रूस ने गलत बताया है। अमेरिका और ब्रिटेन समेत कुछ देशों ने यूक्रेन को हथियार दिए हैं। रूस चाहता है कि पूर्वी यूरोप नाटो की तैनाती वापस ली जाए। अगर नाटो की तैनाती का मामला नहीं सुलझा तो रूस क्यूबा में फिर से मिसाइलें तैनात करने पर विचार कर सकता है। 1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद से पूर्वी यूरोप में लगातार नाटो का विस्तार हुआ है। रूस के करीबी पोलैंड और रोमानिया में नाटो ने अत्याधुनिक सैन्य सटेअप लगा रखा है। रूस की यह मांग भी है कि 1990 के बाद मध्य और पूर्वी यूरोप के जिन देशों में नाटो की तैनाती हुई है, उसे वापस लिया जाए। अगर यूक्रेन में नाटो ने सैन्य एक्टेंशन बनाए, तो वहां से फायर की जाने वाली मिसाइलें पांच मिनट में मास्को पहुंच जाएंगी। पुतिन की चेतावनी है कि अगर ऐसा हुआ तो वह पांच मिनट के भीतर अमेरिका तक पहुंचने वाली हाइपरसोनिक मिसाइलें तैनात करेगा। रूसी हथियार कार्यक्रम से अमेरिका भी नाखुश है। अमेरिका को लगता है कि रूस नाटो के खिलाफ हथियार विकसित कर रहा है। इस सारे मामले में भारत पर असर पड़ना स्वाभाविक है। हालांकि कोई प्रक्रिया अभी नहीं आई है। पश्चिमी देश अमेरिका के नेतृत्व में चल रहे हैं तो रूस को चीन का पूरा समर्थन है। अगर यूक्रेन नाटो का हिस्सा बन जाता है और फिर ऐसे में रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो अमेरिका शांत नहीं बैठने वाला, तब यह तीसरे विश्वयुद्ध की घंटी बजाने जैसा होगा।

पिता की सम्पत्ति पर बेटी का हक

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले गुरुवार को हिन्दू महिला को सम्पत्ति में उत्तराधिकार पर अहम फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि बिना वसीयत के मरने वाले हिन्दू पुरुष की बेटी को पिता की स्वअर्जित और उत्तराधिकार में मिले हिस्से की सम्पत्ति विरासत में पाने की अधिकार है। बेटी को सम्पत्ति के उत्तराधिकार में अन्य सहयोगियों (दिवंगत पिता के भाइयों के बेटों या बेटियों) पर वरीयता होगी। हिन्दू महिला और हिन्दू विधवा की सम्पत्ति के उत्तराधिकार के बारे में यह फैसला जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील का निपटारा करते हुए सुनाया। 51 पेज के फैसले में कोर्ट ने कहा कि 1956 का हिन्दू उत्तराधिकार कानून आने के बाद महिला को सम्पत्ति में पूर्ण अधिकार मिला है। कोर्ट ने वसीयत के बगैर मरने वाली संतानहीन महिला की सम्पत्ति के उत्तराधिकार पर कहा कि ऐसी महिला की सम्पत्ति उसी मूल स्रोत को वापस चली जाएगी, जहां से उत्तराधिकार में उसने सम्पत्ति प्राप्त की थी। अगर महिला ने माता-पिता से उत्तराधिकार में सम्पत्ति प्राप्त की थी तो सम्पत्ति पिता के उत्तराधिकारियों को चली जाएगी और अगर उसने पति अथवा ससुर से उत्तराधिकार में सम्पत्ति प्राप्त की थी तो पति के उत्तराधिकारियों को सम्पत्ति जाएगी। हालांकि पति या बच्चे जीवित होने पर महिला की सम्पत्ति पति और बच्चों को जाएगी, इसमें वह सम्पत्ति भी शामिल होगी जो उसने माता-पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त की थी। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हिन्दू उत्तराधिकार कानून 1956 के प्रावधान लागू होंगे और बेटी पिता की सम्पत्ति पर उत्तराधिकार की अधिकारी है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट का फैसला रद्द कर दिया।

शराब के शौकीनों की मौज

सोमवार का दिन शराब पीने वालों के लिए बड़ी खुशखबरी लेकर आया। राजधानी दिल्ली में शराब के शौकीनों के लिए वाइन शॉप पहले की तुलना में अब ज्यादा दिन खुली रहेंगी। दिल्ली में अब पूरे साल में सिर्फ तीन दिन ही ड्राई-डे होंगे। बाकी दिन शराब की बिक्री की अनुमति होगी। इससे पहले दिल्ली में 21 दिन ड्राई-डे होते थे जिन्हें घटाकर केवल तीन दिन कर दिया गया है। आबकारी विभाग ने इस संबंध में एक नया आदेश जारी कर दिया है जिसके अनुसार अब सिर्फ 26 जनवरी, 15 अगस्त और दो अक्तूबर ड्राई-डे होंगे। वहीं सरकार उक्त तीन दिनों के अलावा समय-समय पर किसी अन्य दिन को भी ड्राई-डे के रूप में घोषित कर सकती है। आबकारी विभाग ने कहा कि अब पूरे साल में सिर्फ तीन दिन ड्राई-डे होंगे, बाकी सभी दिनों में शराब की बिक्री होगी। यह आदेश सभी लाइसेंसधारियों और दिल्ली में स्थित वैंडर्स पर लागू होगी। पहले 14 जनवरी मकर संक्रांति, 19 फरवरी शिवाजी जयंती, 26 फरवरी दयानंद सरस्वती जयंती, एक मार्च महाशिवरात्रि, 18 मार्च होली, 10 अप्रैल रामनवमी, 14 अप्रैल अंबेडकर जयंती, तीन मई ईद, आठ अगस्त मुहर्रम, 19 अगस्त श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, पांच अक्तूबर दशहरा, 24 अक्तूबर दीपावली आदि को भी ड्राई-डे में शामिल किया गया था। दिल्ली में अन्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की अपेक्षा अधिक ड्राई-डे थे। यहां बता दें कि दिल्ली में शराब पीने की कानूनी उम्र को घटाकर 21 साल कर दिया गया है। इसके अलावा दिल्ली में पिछले साल अधिसूचित की गई नई आबकारी नीति में सरकार ने ड्राई-डे की संख्या को कम करने का वादा किया था लेकिन उसके आदेश जारी नहीं किए थे। विभाग ने अब इसका आधिकारिक आदेश जारी कर दिया है। देश के अधिकांश राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में प्रमुख त्यौहारों और राष्ट्रीय अवकाश पर शराब की बिक्री पर रोक लगाई जाती है। आबकारी विभाग द्वारा उस दिन को ड्राई-डे यानि सूखा दिवस घोषित करते हुए उन दिनों की सूची जारी की जाती है। इस दिन पूरे राज्य में शराब की दुकानें बंद रहती हैं और शराब की ब्रिकी करना मना है। आज भी बिहार जैसे राज्य में शराब मुक्त नीति चल रही है जिसके तहत शराब बेचना गैर-कानूनी है। दिल्ली सरकार के इस विवादास्पद फैसले का कई स्तर पर विरोध होना स्वाभाविक है। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 26 January 2022

लखनऊ से होकर जाता है दिल्ली का रास्ता

एक पुरानी राजनीतिक कहावत है कि रायसीना हिल्स का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। साउथ ब्लॉक में जिन 14 पुरुषों और एक महिला ने प्रधानमंत्री के तौर पर काम किया है उनमें से आठ उत्तर प्रदेश से आते हैं। अगर आप नरेंद्र मोदी को भी जोड़ दें तो यह संख्या नौ हो जाती है। इस सूची में नरेंद्र मोदी को भ शामिल करने के पीछे तर्क यह है कि वह वाराणसी से चुनकर लोकसभा में पहुंचे हैं। वह आसानी से गुजरात से चुनकर लोकसभा में पहुंच सकते थे लेकिन उनको भी अंदाजा था कि भारत की राजनीति में उत्तर प्रदेश का जितना सांकेतिक महत्व है उतना शायद किसी और राज्य का नहीं। देश की सबसे बड़ी विधानसभा और लोकसभा में 80 सांसद भेजने वाला प्रदेश न सिर्फ भारत की जनसंख्या का सातवां हिस्सा यहां रहता है बल्कि अगर यह एक स्वतंत्र देश होता तो आबादी के हिसाब से चीन, भारत, अमेरिका, इंडोनेशिया और ब्राजील के बाद उसका दुनिया में छठा नम्बर होता। लेकिन बात सिर्फ आबादी की नहीं है, जाने-माने स्तम्भकार और इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक सईद नकवी कहते हैं, त्रिवेणी उत्तर प्रदेश में, काशी उत्तर प्रदेश में, मथुरा, अयोध्या और गंगा और यमुना उत्तर प्रदेश में एक तरह से प्री-इस्लामिक संस्कृति का जो गढ़ उत्तर प्रदेश की सरजमीं रहा है, इसको एक तरह से भारत की सियासत का मेल्टिंग पॉटया सैलैड बोल (सलाद की कटोरी) कह सकते हैं। अहम यह नहीं कि यहां से 80 सांसद जाते हैं। अहम यह है कि 5000 साल पुराने देश को यह चूंकि एक सिविलाइजेशनल हैल्थ मानी सभ्यता गत गहराई प्रदान करती है। पड़ोसी राज्यों की भी राजनीति को प्रभावित करती है और उत्तर प्रदेश की राजनीतिक हिन्दी हार्टलैंड का केंद्रबिन्दु होने के कारण उसका चुनाव परिणाम इससे सटे हुए इलाकों को भी प्रभावित करते हैं। गोविंद बल्लभ पत सामाजिक संस्थान के प्रोफेसर बदरी नारायण उत्तर प्रदेश के प्रतीकात्मक महत्व की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, एक तो जनतंत्र में संख्या का बहुत महत्व होता है। दूसरे इसका प्रतीकात्मक महत्व भी है क्योंकि यहां से लगतार पीएम होते रहे हैं। हिन्दी क्षेत्र होने के कारण न सिर्फ 80 सीट बल्कि आसपास के इलाके जैसे बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान की भी राजनीति पर असर डालते हैं। दूसरे यूपी में जो क्षेत्रीय दलों की राजनीति है, उसके बड़े पुरोधाओं मुलायम सिंह यादव और मायावती का भी यह क्षेत्र है जिसकी वजह से विपक्ष की राजनीति में भी उत्तर प्रदेश का दखल साफ दिखता है। उत्तर प्रदेश में मिली भाजपा को सबसे बड़ी ताकत 1989 तकज़िस दल ने उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक सीटें जीतीं, उसने केंद्र में सरकार बनाई। इस ट्रेंड को बदला 1991 में नरसिंह राव ने जो उत्तर प्रदेश में 84 में से सिर्फ पांच सीट जीत पाए लेकिन इसके बावजूद देश के प्रधानमंत्री बनें। भाजपा की राजनीति में उत्तर प्रदेश हमेशा एक धुरी की तरह रहा है। पूरे राम मंदिर आंदोलन के दौरान इसका उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूरा दबदबा रहा। 1991, 1996 और 1998 लगातार तीन लोकसभा चुनावों में पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 50 से अधिक सीटें जीतीं। 2004 और 2009 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा के मामूली प्रदर्शन क नतीजा यह रहा कि वो सत्ता की दौड़ में कांग्रेस से काफी पिछड़ गई। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजबा की जबरदस्त जीत की इबादत उत्तर प्रदेश में एक बार फिर शानदार प्रदर्शन की वजह से लिखी गई। उत्तर प्रदेश विधानसभा में 403 सदस्य हैं और यह देश की सबसे बड़ी विधानसभा है। करीब दो दशक तक त्रिशंकु विधानसभा देने के बाद यह चलन 2007 में बदला जब प्रदेश की जनता ने पहले बहुजन समाज पार्टी को पूर्ण बहुमत दिया फिर 2012 में सत्ता की बागडोर समाजवादी पार्टी के हाथ में सौंपी जबकि 2017 में प्रदेश में हाशिये पर चली गई। भारतीय जनता पार्टी ने तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया। इसीलिए तो कहता हूं कि दिल्ली का रास्ता खनऊ से होकर जाता है।

बीटिंग रिट्रीट से हटी गांधी की पसंदीदा धुन

महात्मा गांधी के पसंदीदा भजन की धुन अबाइड विद मी, इस बार बीटिंग रिट्रीट में सुनाई नहीं देगी। बीटिंग रिट्रीट के लिए 24 धुनों की लिस्ट बनाई गई है, जिसमें अबाइड विद भी शामिल नहींहै। इसे महात्मा गांध की पुण्यतिथि से एक दिन पहले 29 जनवरी को हने वाले बीटिंग रिट्रीट समारोह के अवसर पर बजाया जाता है। 1950 से लगातार इस धुन को बीटिंग रिट्रीट में बजाया जाता रहा है, लेकिन 2020 में पहली बार इसे समारोह से हटाने की बात हुई थी, लेकिन विवाद के बाद इसे शामिल कर लिया गया था। यह दूसरी बार है जब धुन को बीटिंग रिट्रीट से हटाया गया है। भारतीय सेना की ओर से शनिवार को पूरे कार्यक्रम का ब्रोशर जारी किया गया। इसमें इस धुन का जिक्र नहीं है। दुनियाभर में मशहूर अबाइड विद मी भजन को स्कॉटिश कवि हेनरी फ्रांसीस लाइट ने 1847 में लिखा था। इसकी धुन वर्ल्ड वॉर में बेहद लोकप्रिय हुई। बेल्जियम से फरार हुए ब्रिटिश सैनिकों की मदद करने वाली ब्रिटिश नर्स हडिथ कैरेल ने जर्मन सैनिकों के हाथों मरने से पहले इस गीत को गाया था। भारत में इस धुन को प्रसिद्धि तब मिली जब महात्मा गांधी ने इसे हर जगह बजवाया। उन्होंने इस धुन को सबसे पहले साबरमती आश्रम में सुना था। वहां मैसूर पैलेस बैंड इसे प्ले कर रहा था। इसके बाद से यह आश्रम की भजनावली में वष्णव जनतौर रघुपति राघव राजाराम और लीड काइंडली लाइट के साथ शामिल हो गया। अमर जवान ज्योति के किस्से के बाद यह धुन को हटाना विवादास्पद फैसला है मोदी सरकार का। लगता है कि पुरानी परंपराओं, स्मारकों को सब हटाने का प्रयास है ताकि इतिहासको बदला जा सके।

आठ घंटे ड्यूटी, आठवें दिन छुट्टी

दिल्ली पुलिस के कमिश्नर राकेश अस्थाना ने पद्भार संभालने के बाद कई सराहनीय कदम उठाए हैं जिससे आप पलुसि वालों को थोड़ी राहत मिले और उनका ड्यूटी पर पूरा ध्यान रहे। उनमें से एक है पुलिसकर्मियों की आठ घंटे ड्यूटी और आठवें दिन छुट्टी। दिल्ली के पुलिसकर्मी अब जल्द ही दिन में आठ घंटे की ड्यूटी करेंगे और आठवें दिन छुट्टी मिलेगी। यह दिल्ली पुलिस में लागू किए जा रहे तीन शिफ्टों के ड्यूटी सिस्टम से संभव होगा। फिलहाल इस सिस्टम को रोहिणी जिले के सभी थानों में पायट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया है। इस सिस्टम के तहत ई-चिट्ठा सॉफ्टवेयर पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगा रहा है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि अगर यह सिस्टम लागू हुआ तो इसे जल्द ही पूरी दिल्ली में लागू किया जाएगा। पुलिस के अधिकारी ने बताया कि रोहिणी जिले के सभी 10 थानों रोहिणी (नॉर्थ), रोहिणी (साउथ), प्रशांत विहार, बुद्ध विहार, विजय विहार, अमन विहार, प्रेम नगर, बेगमपुरा, कंझावला और केएन काटजू मार्ग में तीन शिफ्ट में ड्यूटी करने वाले सिस्टम को लागू किया गया है। इसके तहत पुलिसकर्मी सबह आठ बजे से शाम चार बजे तक, शाम चार बजे से रात 12 बजे तक और रात 12 बजे से सुबह आठ बजे तक ड्यूटी करेंगे, यानि पुलिसकर्मी आठ घंटे की ही ड्यूटी करेंगे। पहले 12 घंटे की ड्यूटी करते थे और उसके बाद 24 घंटे का रेस्ट मिलता था। अब पुलिसकर्मी आठ घंटे ड्यूटी करेंगे और आठवें दिन छुट्टी मिलेगी। पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना चाहते हैं कि पुलिसकर्मी सिर्फ आठ घंटे ही ड्यूटी करें। इस सिस्टम के तहत चिट्ठा मुंशी की बजाय ई-चिट्ठा सॉफ्टवेयर ड्यूटी लगाएगा। ऐसे में अब चिट्ठा मुंशी व थानाध्यक्ष अपने चहेतों की मनपसंद जगह पर ड्यूटी नहीं लगा सकेंगे। ई-चिट्ठा के तहत एक पुलिसकर्मी एक जगह पर आठ घंटे ड्यूटी करेगा। आठवें दिन उसकी छुट्टी होगी। फिर से उसकी ड्यूटी दूसरी जगह पर लगेगी। इस ममले में रोहिणी जिला डीसीपी प्रणब तायल ने सिर्फ यही कहा कि अभी इसकी शुरुआत की गई है। तीन शिफ्टों में ड्यूटी सिस्टम को लेकर रोहिणी जिले के पुलिसकर्मी आमतौर पर खुश हैं। दूसरे राज्यों में रहने वों को थोड़ी समस्या जरूर होगी। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 25 January 2022

अमर जवान ज्योति ः विपक्ष और मोदी सरकार आमने-सामने

नई दिल्ली के इंडिया गेट पर शहीदों पे सम्मान में पांच दशक से प्रज्ज्वलित अमर जवान ज्योति का राष्ट्रीय समर स्मारक स्थित अमर चक्र की ज्योति में विलय कर दिया गया है। शुक्रवार दोपहर समारोहपूर्वक सैन्य सम्मान के साथ यह प्रक्रिया पूरी हो गई। एयर मार्शल बलभद्र राधाकृष्ण ने सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में पहले ज्योति पर माल्यार्पण किया। इसके बाद चारों लौ से मशाल जलाई और उसे करीब 300 मीटर की दूरी पर समर स्मारक ले जाया गया, जहां एयर मार्शल ने मशाल की ज्योति को युद्ध स्मारक के अमर चक्र की लौ में विलीन कर दिया। 26 जनवरी 1972 को प्रज्ज्वलित हुई थी अमर जवान ज्योति। भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध के शहीदों की याद में इंडिया गेट पर 26 जनवरी 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमर जवान ज्योति जलाई थी। अमर जवान ज्योति कांग्रेस की आपत्ति-प्रधानमंत्री की इस घोषणा से पहले विपक्ष और मोदी सरकार के बीच इंडिया गेट पर 70 के दशक से जल रही अमर जवान ज्योति को लेकर टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। शुक्रवार को ऐसी खबरें आईं कि केंद्र सरकार ने अमर जवान ज्योति की लौ को पास ही स्थित राष्ट्रीय समर स्मारक की ज्योति के साथ मिलाने का फैसला किया है। इस खबर ने देखते-देखते सियासी रंग ले लिया, क्योंकि अमर जवान ज्योति की स्थापना कांग्रेस सरकार के समय हुई थी जबकि राष्ट्रीय समर स्मारक का निर्माण मोदी सरकार ने किया। कांग्रेस ने इसे लेकर मोदी सरकार पर सीधा हमला बोला और इसे भाजपा की एक साजिश करार दिया। पार्टी ने एक ट्वीट कर लिखाöअमर जवान ज्योति को बुझाना, उन वीरों के साहस और बलिदान का अपमान है, जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े किए थे। वीरता के इतिहास को मिटाने की भाजपाई साजिश को कोई देशभक्त बर्दाश्त नहीं करेगा। शहीदों के अपमान को मोदी सरकार का यह रवैया बहुत घृणित है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर इसकी आलोचना की और साथ ही कहा कि इसे दोबारा जलाया जाएगा। राहुल ने ट्वीट में लिखाöबहुत दुख की बात है कि हमारे वीर जवानों के लिए जो अमर जवान ज्योति जलती थी, उसे बुझा दिया... हम इसे एक बार फिर जलाएंगे। वहीं कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि अमर जवान ज्योति को बुझाना इतिहास को मिटाने जैसा है। अमर जवान ज्योति उन 3483 बहादुर सैनिकों का सम्मान करती है जिन्होंने पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांटकर बंटवारे के बाद दक्षिण एशिया का नक्शा फिर से बनाया। यह विडंबना है कि बांग्लादेश की आजादी के 50वें वर्ष में सरकार जीजान से स्वाधीनता के बाद भारतीय इतिहास के इस शानदार दौर को मिटाने में जुटी है। अमर जवान ज्योति हमारी राष्ट्रीय चेतना का हिस्सा है। एक अरब लोग इसे पूजते हुए बड़े हुए हैं। कांग्रेस के अलावा राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद और प्रवक्ता मनोज कुमार झा ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहाöमैं मानता हूं कि हिन्दुस्तान के गौरवशाली इतिहास में आपका कोई योगदान नहीं रहा, इसका मतलब यह तो नहीं कि 50 वर्ष से जल रही लौ को बुझा दो। आगे कहा कि ऐसी सलाह आपको कौन देता है? आप कौन-सी परंपरा छोड़कर जा रहे हैं? इतिहास कैसे आपका स्मरण करेगा? कांग्रेस का मानना है चूंकि अमर जवान ज्योति उनके समय में बनी उसे मिटाने का प्रयास मोदी सरकार कर रही है। वहीं भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने इस मुद्दे पर सफाई दी कि अमर जवान ज्योति को लेकर बहुत सारी गलत जानकारियां फैलाई जा रही हैं। अमर जवान ज्योति को बुझाया नहीं जा रहा है। उसे राष्ट्रीय समर स्मारक की ज्योति से मिलाया जा रहा है। राष्ट्रीय समर स्मारक का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने 25 फरवरी 2019 को किया था जो स्मारक इंडिया गेट से लगभग 400 मीटर दूर है और दोनों ही स्थान इंडिया गेट परिसर में आते हैं। इंडिया गेट 1931 में उन भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया था, जो ब्रिटिश शासनकाल की सेना के साथ जंग लड़ते हुए मारे गए थे।

उग्रवाद, राजनीतिक अस्थिरता के बीच होगा चुनाव

मणिपुर में उग्रवाद-राजनीतिक अस्थिरता के बीच दो चरणों में 23 फरवरी और तीन मार्च को एक नई विधानसभा के लिए वोट डालेगा, जहां पिछले पांच वर्षों में कई बार विधायकों ने पाला बदल लिया है। वहीं चुनाव ऐसे समय हो रहा है जब सुरक्षा बलों और विद्रोहियों के बीच झड़पों में कई बार राज्य की शांति भंग हुई है। इस बार के सियासी समर में मणिपुर की चर्चा खास है, क्योंकि 2017 में राज्य एक ऐसे राजनीतिक करिश्में से गुजरा है, जब विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी सत्ता हासिल नहीं कर सकी। 2017 के चुनावों में कांग्रेस 60 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। फिर भी भाजपा जिसने 26 सीटें जीतीं, नेशनल पीपुल्स पार्टी के चार विधायकों, तृणमूल कांग्रेस और लोक जनशक्ति पार्टी के एक-एक विधायक और एक निर्दलीय के समर्थन से सरकार बनाने में सफल रही। इसके बाद कांग्रेस ने राज्य में अपना आधार खोना शुरू कर दिया, कई अन्य विधायकों ने या तो भाजपा का पक्ष लिया था या विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। पिछले वर्ष अगस्त में एक बदलाव तब हुआ जब राज्य इकाई के प्रमुख गोविंद दास कोंथैमय के चुने जाने के बाद पांच कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस के पास अब 14 विधायक रह गए हैं, जबकि विधानसभा चुनाव में भाजपा की संख्या 25 हो गई है। मणिपुर में हाल में हुए उग्रवादी हमलों को देखते हुए इस बार शांतिपूर्ण चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती है। पिछले कुछ महीनों में असम राइफल्स के जवानों पर कातिलाना हमले हुए हैं। पांच जनवरी को कौबल जिले में बम विस्फोट में एक जवान शहीद हो गया था।

उइगरों के दमन में चीन की मदद करता पाकिस्तान

खुद को मुसलमानों का रहनुमां मानने वाला पाकिस्तान चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगरों के उत्पीड़न को लेकर कपटपूर्ण रवैया अपना रहा है। कनाडा स्थित थिंक टैंक इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट्स एंड सिक्यूरिटी ने रिपोर्ट में कहा है कि चीन के आर्थिक उदय व पाकिस्तान खासकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) में निवेश ने उसे शिनजियांग प्रांत में उइगरों के उत्पीड़न समेत मानवाधिकार उल्लंघन के अन्य मामलों को छिपाने का अभूतपूर्व मौका दिया है। चीनी अधिकारियों ने पाकिस्तान को शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र (एक्सएआर) की 26 देशों की काली सूची में डाल दिया है। इसका आशय है कि कोई भी व्यक्ति इन देशों के लोगों से किसी भी प्रकार का सम्पर्क रखता है, आता-जाता है या किसी भी प्रकार का संवाद रखता है तो वह एक्सएआर के उत्तराधिकारियों के निशाने पर आ जाएगा। पाक नागरिकों और उइगरों के बीच वैवाहिक संबंध वर्षों से होते रहे हैं और उनके बीच काराकोरम हाइवे के जरिये व्यापार होता रहा है। अब वह स्थिति बदल गई है। पाक निवासी सिकंदर हयात व गुलाम दुर्रानी को उनकी पत्नियों से अलग कर दिया गया, क्योंकि वह उइगर थीं। दोनों महिलाएं शिनजियांग गईं तो उन्हें चीनी अधिकारियों ने हिरासत में ले लिया। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 22 January 2022

पंजाब में मुख्यमंत्री पद के दावेदार

पंजाब में चुनावी दंगल पूरी तरह सज गया है। राज्य के तीन प्रमुख दलों के मुख्यमंत्री पद के चेहरे लगभग तय दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी (आप) क्या इन तीन चेहरों के दम पर पंजाब का दंगल जीत पाएंगे? क्या इन चेहरों को जनता पसंद करेगी? आप ने भगवंत मान को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है। वहीं कांग्रेस आलाकमान ने चरणजीत सिंह चन्नी के नाम को आगे करने का संकेत दिया है। अकाली दल में सुखबीर सिंह बादल सबसे बड़े नेता हैं। भाजपा शायद कैप्टन अमरिन्दर सिंह को आगे करे? चन्नी की ताकत का सबसे बड़ा फैक्टर उनका दलित होना है। उन्हें दलित होने का फायदा मिलेगा। दलित वोटर 32 प्रतिशत हैं। बेबाकी से अपनी बात बोल देना चाहे वह पार्टी लाइन के खिलाफ ही क्यों न हो यह उनकी खासियत है। सौ दिन के कार्यकाल में उन्होंने दिखाया कि उनमें निर्णय लेने की ताकत है। हाल में उन्होंने सिख किसानों की हमदर्दी अर्जित की है। वहीं पार्टी को एकजुट करने में वह कितने सफल रहते हैं देखना होगा। कांग्रेस के अंदर ही नवजोत सिंह सिद्धू उन्हें चुनौती दे रहे हैं। कम समय मिलने के कारण वह दलितों को लेकर कोई बड़ा ऐलान नहीं कर पाए। नशे पर वह सख्त कदम नहीं उठाना चाहते। अब बात करते हैं पंजाब के कॉमेडियन भगवंत मान की। बेशक मशहूर कॉमेडियन होने के चलते पंजाब में काफी लोकप्रिय हैं। भ्रष्टाचार से संबंधित कोई आरोप उन पर नहीं है। आम आदमी पार्टी में भी उनके नाम पर कोई विवाद नहीं है। उनकी कमजोरी है कि वह लोगों के मन में एक गंभीर नेता की छवि नहीं बना सके और न ही एक गंभीर राजनेता के रूप की। उन पर विपक्षी दल नशा करने का बड़ा आरोप लगा रहे हैं। प्रशासन का कोई अनुभव नहीं। वह 12वीं तक ही पढ़े हैं। सुखबीर Eिसह बादल एक बड़े सिख नेता के रूप में पंजाब की सियासत पर उनकी अच्छी पकड़ है। सबसे ज्यादा सीट वाले मालवा क्षेत्र में उनका खासा दबदबा है। प्रशासन का खासा अनुभव है, राज्य के उपमुख्यमंत्री भी रहे हैं। तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ भाजपा का वर्षों पुराना साथ छोड़ने से किसानों का भरोसा उन पर बढ़ा है। दूसरी तरफ उनके शासनकाल में उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा। ड्रग माफिया मजीठिया से संबंध का आरोप भी लगता रहा है। भाजपा से अलग होने पर हिन्दू मतदाताओं में उनकी पकड़ कमजोर होना है। उन्होंने विरासत आगे बढ़ाई है। भाजपा से अलग होने का हौसला वाला फैसला लिया। अंग्रेजी-हिन्दी भाषा पर अच्छी पकड़। सुखबीर सिंह बादल ने कैलिफोर्निया से एमबीए की है। भाजपा से अलग होने के बाद उनकी पार्टी की पकड़ कमजोर हुई है। कुल मिलाकर इन तीन मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के इर्दगिद पंजाब की सियासत घूम रही है। देखें, ऊंट किस करवट बैठता है।

ईरान में बॉक्सर को सजा-ए-मौत

ईरान में एक पहलवान के बाद अब बॉक्सर मोहम्मद जवाद (26) को मौत की सजा सुनाई गई है। उसका कसूर यह है कि उसने 2019 में ईरान में आर्थिक भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। इससे पहले वहां सितम्बर 2020 में पहलवान नाविद अफकारी को फांसी की सजा दी गई थी। इजरायली अखबार यरुशलम पोस्ट के मुताबिक पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता मसीह अलीनेजाद ने मोहम्मद जवाद को मिली सजा का खुलासा किया है। मसीह ने पहलवान नाविद अफकारी को बचाने के लिए अभियान चलाया था। उन्होंने ट्वीट कियाöईरान में एक और एथलीट को नवम्बर 2019 में प्रदर्शन करने के लिए मौत की सजा का ऐलान किया गया है। मोहम्मद जवाद बॉक्सिंग चैंपियन हैं। पहलवान अफकारी के मामले को लेकर सोशल मीडिया पर विशेष अभियान चलाया गया था। इसमें उसे और उसके भाई को 2018 में ईरान के शिया धर्मतंत्र के खिलाफ भाग लेने पर निशाना बनाने का आरोप लगाया गया था। प्रशासन ने अफकारी पर अशांति के दौरान मिराज में एक जलापूर्ति कंपनी के कर्मचारी की चाकू मारकर हत्या करने का आरोप भी लगाया था। अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने इस मृत्युदंड को कूरता बताया था। द सन की रिपोर्ट के मुताबिक ईरान में हर साल करीब 250 लोगों को फांसी दी जाती है। वहां केन से लटका कर फांसी देने का चलन है। इसके अलावा कोड़े भी बरसाए जाते हैं। पहलवान नाविद अफकारी के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपील भी की थी, लेकिन ईरान ने इसे अनसुना कर दिया था।

चुनाव में शतक बनाने पर तुले

सिर्प चुनाव लड़ने के शौकीन आगरा के हसनू राम अंबेडकरी ने बुधवार को आगरा कलेक्ट्रेट में खेरागढ़ विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल किया है। किसी भी चुनाव के लिए यह उनका 94वां नामांकन है। हैरानी की बात यह है कि हसनू राम अभी तक कोई भी चुनाव जीते नहीं हैं। उन्हें जीतने की लालसा भी नहीं है। उन्होंने कहा कि वह हारने के लिए ही चुनाव लड़ते हैं। उनका जुनून चुनाव लड़ने का शतक बनाने का है। शीत लहर के बावजूद कुर्ता, धोती और अंगोछा डाले 75 साल के हसनू राम ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया। वह प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत से लेकर एमएलए और सांसद के अलावा राष्ट्रपति जैसे विभिन्न पदों के लिए 93 बार चुनाव में भाग्य आजमा चुके हैं लेकिन कभी उन्हें जीत नसीब नहीं हुई है। इस बार भी अन्य लोगों की तरह उन्हें भी विश्वास है कि वह न केवल चुनाव बल्कि अपनी जमानत भी जब्त कराएंगे। लेकिन फिर भी हसनू राम का हौसला बरकरार है। वैसे आगरा में हर चुनाव में हसनू राम अंबेडकरी को क्लिक करने और उनकी बाइट के लिए मीडिया के लोग इंतजार करते हैं। इस बार भी बेबाकी से अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि अन्य लोग भले ही चुनाव जीतने के लिए लड़ रहे हों, लेकिन मेरी इच्छा चुनाव हारने की है। मैं अपनी इच्छा रखने के लिए स्वतंत्र हूं। हसनू राम ने बताया कि बसपा ने उन्हें 1985 के चुनाव में पार्टी का टिकट देने का वादा किया था। उन्होंने कहा कि विश्वास करते हुए मैंने अपनी अमीन की सरकारी नौकरी भी छोड़ दी थी, लेकिन बसपा अपने आश्वासन से पीछे हट गई और उस दिन के बाद से मैंने किसी भी पार्टी के लिए चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि एक अन्य पार्टी ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए 50 हजार रुपए जमा करने के लिए कहा था। ऐसे चुनाव लड़ने के शौकीन कम ही लोग मिलते हैं। -अनिल नरेन्द्र

19 दिनों में 106 की ठंड से मौत

एक तरफ दिल्लीवासी कोरोना की मार से परेशान हैं तो दूसरी तरफ कड़ाके की ठंड ने कसर पूरी कर दी है। जानलेवा सर्दी में दिल्ली की सड़कों पर सो रहे बेघर जान गंवा रहे हैं। सर्द जनवरी ने 19 दिनों में 106 की जान ले ली है। एक बॉडी में लिंग की पहचान नहीं हो सकी। यह आंकड़े बेघरों के लिए काम करने वाली संस्था सेंटर फॉर हॉलिस्टिक डेवलपमेंट (सीएचडी) ने जारी किए हैं। सीएचडी के कार्यकारी निदेशक सुनील कुमार आलेडिया का कहना है कि यह लोग सड़क किनारे फुटपॉथ, रिक्शा, टेंट आदि में सो रहे थे। वह इसके पीछे बड़ी वजह शेल्टर होम न होने की कमी को बताते हैं। वह कहते हैं कि यह आंकड़े दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय से इकट्ठा किए जाते हैं। इस वक्त जितने बेघर लोग हैं, नाइट शेल्टर की संख्या उससे आधी है। 2014 में दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) ने बेघर नागरिकों को लेकर एक सर्वे करवाया था। इसमें 16,760 बेघर नागरिक दिल्ली की सड़कों पर सोते पाए गए। इन्हीं आंकड़ों पर बात करें तो अभी दिल्ली में 304 शेल्टर होम में चार हजार चारपाई हैं जिनमें केवल 9,240 बेघरों को सोने की जगह मिलती है। ऐसे में 7,520 को खुले में सोना पड़ता है। ऐसे ही लोगों की सर्दी में मौत होती है। आलेडिया का दावा है कि 16,760 बेघरों की संख्या 2014 के सर्वे के मुताबिक है। लेकिन असल में एक लाख बेघर सड़कों पर सोने पर मजबूर हैं। हम समय-समय पर पत्र लिखकर व सोशल मीडिया के जरिये दिल्ली सरकार, डूसिब व अन्य एजेंसियों को बेघरों के लिए सुविधा बढ़ाने की मांग करते रहते हैं लेकिन सुनवाई नहीं होती। दो दिन पहले बंगला साहिब गुरुद्वारे के पास के शेल्टर होम में एक महिला की मौत ठंड से हुई। इसकी जानकारी भी डूसिब को दी थी लेकिन कोई जवाब नहीं आया। महिला की तीन साल की बच्ची है। हाऊस टू अर्थ की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में शीत लहर की अवधि में पहले की अपेक्षा 2.7 गुना वृद्धि हुई है और देश में लू की तुलना में शीत लहर से मरने वाले कई गुना अधिक होते हैं। पिछले महीने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में ठंड के कारण कुछ बच्चे मारे गए थे, तो अब राजस्थान में ठंड के कारण निमोनिया से ऊंटों की मौत की खबर है। पहाड़ों पर बर्फबारी से स्थिति इतनी विकट हुई है कि उत्तरी कश्मीर में कुपवाड़ा जिले के तंगधार में बर्फ में फंसे करीब 30 लोगों को सेना के बचाव दल ने हाल ही में सुरक्षित निकाला। हल्की धूप तो निकलती है लेकिन वह ठंड से राहत दिलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। कुछ दिन पहले हुई बारिश के चलते मौसम में नमी और हिमपात वाले इलाकों से आ रही बर्फीली हवाओं के चलते उत्तर भारत के बड़े हिस्सों में कोहरे की परत और निचली सतह में बादल बने हुए हैं, जिस कारण सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंच पा रही है। पारा गिरने से हवा की गुणवत्ता भी लगातार खराब बनी हुई है। कोरोना की तीसरी वेब, ओमीक्रोन, डेल्टा की वजह से बीमारी बढ़ती जा रही है। एक तरफ कड़ाके की ठंड और दूसरी तरफ कोरोना की मार ने लोगों का जीना हराम कर रखा है।

चुनावी दौर में छापों की लहर के बाद कोई नतीजा नहीं

पांच राज्यों में जारी चुनाव के बीच ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग, पुलिस की छापेमारी तेज हो जाती है। विपक्ष आरोप लगाता है कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करती है। पर कटु सत्य यह है कि पिछले कुछ चुनावों से ठीक पहले सरकार कोई भी हो वह छापेमारी तेज कर देती है और चुनाव खत्म होते ही वह सारी चीजें ठंडे बस्ते में चले जाती हैं। पिछले पांच दिनों में आचार संहिता लगने के बाद पुलिस व प्रशासन सख्त है। टीमें लगातार नकदी बरामद कर रही हैं। पांच दिनों में पुलिस ने 1.30 करोड़ रुपए से ज्यादा की बरामदगी की है। चार दिन पहले कोतवाली सेक्टर-50 पुलिस ने सेक्टर-61 के पास से 25 लाख रुपए और कोतवाली सेक्टर-20 क्षेत्र से करीब एक लाख रुपए की बरामदगी हुई थी। सोमवार को कोतवाली सेक्टर-58 पुलिस ने पांच लाख की बरामदगी की तो मंगलवार को 99 लाख से अधिक बरामदगी स्टेडियम के पास टोयोटा फॉर्च्यूनर से हो गई। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आदर्श आचार संहिता के अनुपालन में लगी स्टैटिक सर्विलांस टीम ने मंगलवार सुबह स्टेडियम के पास फॉर्च्यूनर कार से 99.30 लाख रुपए बरामद किए। कार सवार दो युवकों को हिरासत में लेकर पुलिस व आयकर विभाग की टीम ने पूछताछ की तो वह कोई संतोषजनक जानकारी नहीं दे पाए। इसके बाद कोतवाली सेक्टर-24 पुलिस ने नकदी जब्त कर ली। आयकर विभाग व पुलिस ने नकदी का इस्तेमाल चुनाव में होने की आशंका जताई है। पुलिस के अनुसार चुनाव में धन के दुरुपयोग पर नजर रखने के लिए एसएसटी की टीमें तैनात की गई हैं। मंगलवार सुबह एक टीम ने सेक्टर-21ए स्थित स्टेडियम के पास कार को रोका तो उसमें चालक समेत दो युवक सवार थे। कार में 99,30,500 रुपए रखे थे। जब उनसे पूछताछ की गई तो पता चला कि कार वजीरपुर, दिल्ली निवासी अखिलेश चला रहा था और साथ में करोल बाग निवासी अरुण बैठा था। पूछताछ से पता चला कि नकदी दिल्ली के अशोक विहार निवासी आयुष जैन की है। आयुष जैन गारमेंट कारोबारी है। कार अग्रवाल के नाम पर है। निधि के पति नितिन आयुष के कारोबार में साझेदार हैं।

रेगिस्तान में बर्फबारी

अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले अल्जीरिया के अईन सेधरा में मंगलवार को रेत के टीले पर बर्फबारी का अद्भुत नजारा देखने को मिला। यहां का पारा माइनस दो डिग्री तक गिर गया। सहारा रेगिस्तान में पिछले 42 साल में यह पांचवीं बार है, जब यहां बर्फबारी दर्ज की गई है। इससे पहले यहां पर 1979, 2016, 2018 और 2021 में ही बर्फबारी का रिकॉर्ड है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अल्जीरिया में इन दिनों ठंडी हवाओं के कारण दबाव क्षेत्र बना हुआ है। इससे बर्फबारी हुई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले 1500 साल में सहारा का रेगिस्तान हरा-भरा हो जाएगा। ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि धरती इस दौरान अपनी धुरी पर 22 से 24.5 डिग्री तक झुक जाएगी। सहारा रेगिस्तान 36 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इसका आकार लगभग चीन के क्षेत्रफल के बराबर है। -अनिल नरेन्द्र

Friday, 21 January 2022

दागियों को क्यों टिकट दिया गया?

दागी प्रत्याशियों के बारे में जानकारी छिपाने वाले दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग करने वाली याचिका में भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राजनीतिक दल शीर्ष अदालत के 2018 और 2020 के फैसलों का पालन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया जाए कि हर पार्टी यह बताए कि उसने आपराधिक इतिहास वाले व्यक्ति को क्यों प्रत्याशी बनाया है? याचिका में कैराना से सपा प्रत्याशी नाहिद हसन का जिक्र है। नाहिद हसन गैंगस्टर एक्ट के तहत हिरासत में है। 11 महीने पहले गैंगस्टर एक्ट लगाया गया था। नाहिद यूपी के पहले चरण में नामांकन दाखिल करने वाले पहले उम्मीदवार हैं। उनके खिलाफ और भी कई आपराधिक मामले हैं और आरोप है कि कैराना से हिन्दू पलायन के पीछे मास्टरमाइंड भी वही है। विशेष विधायक-सांसद कोर्ट द्वारा उन्हें भगोड़ा घोषित किया गया था। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 के फैसले में निर्देश दिया था कि राजनीतिक दलों को अपनी आधिकारिक वेबसाइट के साथ-साथ समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का विवरण अपलोड करना चाहिए। अदालत ने इस संबंध में वर्ष 2018 के अपने इस फैसले को दोहराया था और आदेश दिया था कि उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास के विवरण में अपराध की प्रकृति, आरोप तय किए गए हैं या नहीं जैसी जानकारी शामिल होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि पार्टियों को कारण बताना चाहिए कि आपराधिक छवि वाले उम्मीदवार को चुनाव में क्यों उतारा जा रहा है? चुनाव जीतने की क्षमता मात्र उम्मीदवार को मैदान में उतारने का कारण नहीं होनी चाहिए। नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोकेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने लोकसभा के 539 सांसदों के शपथ पत्रों का विश्लेषण किया है, जिसमें 233 (43 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं। सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को यह राजनीतिक दल अमल भी लाएंगे? मुश्किल लगता है क्योंकि इनकी नजर में सीट निकालना सबसे महत्वपूर्ण काम है।

मुफ्त चीजों की घोषणा होती है, भुखमरी पर बात नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह कम्युनिटी किचन के लिए मॉडल स्कीम बनाने पर विचार करे। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों की ओर से कई मुफ्त चीजों की घोषणा की जाती है, लेकिन कोई भी भुखमरी खत्म करने और कुपोषण दूर करने की बात नहीं करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह चुनाव के समय इन सब पर टिप्पणी नहीं करना चाहता है। अदालत में दाखिल अर्जी में भुखमरी रोकने के लिए कम्युनिटी किचन पर एक नीति बनाने के लिए दिशानिर्देश देने की गुहार लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमन की अगुवाई वाली बैंच ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह देशभर के लिए मॉडल स्कीम पर विचार करे और राज्यों को इसके लिए अतिरिक्त अनाज मिले। कोर्ट ने दो हफ्ते के लिए सुनवाई टाल दी, साथ ही राज्यों से कहा है कि वह भुखमरी और कुपोषण से जुड़े आंकड़ों के बारे में हलफनामा दाखिल करें। राज्यों से यह भी कहा गया है कि वह स्कीम के मामले में अपना सुझाव भी केंद्र को दें। चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बैंच ने कहाöहम आज न ही स्कीम बनाने जा रहे हैं और न ही इसके लिए निर्देश जारी कर रहे हैं, लेकिन उपलब्ध डेटा पुराना है। चीफ ने कई राज्यों का हवाला देते हुए कहा है कि वह स्कीम के लिए तैयार हैं बशर्ते केंद्र फंड दे। कई राज्यों में कम्युनिटी किचन स्कीम लागू है तो कई फंड के अभाव में लागू नहीं कर पा रहे हैं। बैंच ने कहाöहम नहीं कर रहे हैं कि केंद्र सरकार फंड नहीं उपलब्ध करा रही है या जो जरूरतमंद हैं उनकी मदद नहीं कर रही है, लेकिन आपको कह रहे हैं कि आप मॉडल स्कीम बनाएं। आप क्यों नहीं मॉडल स्कीम पर सोच रहे हैं। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि कोर्ट को एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन करना चाहिए।

कोरोना काल में डेढ़ लाख बच्चे अनाथ हुए

कोरोना काल में करीब डेढ़ लाख बच्चों के सिर से माता-पिता का साया छिन गया। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में यह जानकारी दी है। आयोग ने बताया कि एक अप्रैल 2020 से अब तक कुल 1,47,492 बच्चों ने कोविड-19 के और अन्य कारणों से अपनी माता या पिता में से एक या दोनों को खो दिया है। सुप्रीम कोर्ट महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों की देखभाल और सुरक्षा से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रहा है। आयोग ने बताया कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने जो आंकड़े बाल-स्वराज पोर्टल-कोविड केयर पर अपलोड किए हैं, उसके मुताबिक 11 जनवरी 2022 तक इतने बच्चों ने अपने अभिभावकों को गंवा दिया। अधिवक्ता स्वरूपमा चतुर्वेदी के माध्यम से दायर हलफनामे में कहा गया है कि इनमें 10,094 बच्चे पूरी तरह अनाथ हो गए हैं क्योंकि उनके माता-पिता में से कोई नहीं बचा। माता या पिता खोने वाले बच्चों की संख्या 1,36,910 रही। कुल 488 बच्चे ऐसे मिले हैं जिन्हें लोगों ने बेसहारा छोड़ दिया है। हलफनामे के मुताबिक 26 हजार बच्चे ऐसे हैं जिनकी उम्र महज चार से सात वर्ष के बीच है। 59 हजार बच्चों की उम्र आठ से 13 साल जबकि 23 हजार बच्चों की आयु 16 से 18 साल है। आयोग ने बताया कि 1,25,205 बच्चे माता या पिता में से किसी एक के साथ हैं, 11,272 बच्चे परिवार के सदस्यों के साथ और 8450 बच्चे अभिभावकों के साथ हैं। हलफनामे में बताया गया कि 1529 बालगृहों में रह रहे हैं। ऐसे बच्चों की सबसे ज्यादा संख्या ओडिशा में है, यहां 24,405 बच्चे अभिभावक खो चुके हैं। इसके बाद महाराष्ट्र (19,623), गुजरात (14,770), तमिलनाडु (11,014) और यूपी (9247) का स्थान है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 11 January 2022

प्रधानमंत्री की सुरक्षा बहुत कड़ी और कई घेरों वाली होती है

भारत के प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर आजकल सियासी घमासान छिड़ा हुआ है। पंजाब सरकार कठघरे में खड़ी है। बता दें कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा बहुत कड़ी और कई घेरों वाली है। इसका प्रमुख दारोमदार एसपीजी पर होता है। अन्य एजेंसियों का सहयोग मिलता है। इनमें एनएसजी कमांडो, पुलिस, अर्धसैनिक बल की टुकड़ी और केंद्र व राज्य की खुफिया एजेंसियों को भी शामिल किया जाता है। प्रधानमंत्री के काफिले में दो बख्तरबंद बीएमडब्ल्यू 7 सीरीज सेडान, छह बीएमडब्ल्यू एक्स 5 और एक मर्सिडीज बेंज एम्बुलेंस के साथ एक दर्जन से अधिक वाहन मौजूद होते हैं। इन सबके अलावा एक टाटा सफारी जैमर भी काफिले के साथ चलती है। प्रधानमंत्री के काफिले में सबसे आगे और पीछे पुलिस के सुरक्षाकर्मियों की गाड़ियां होती हैं। बाईं और दाईं ओर दो और वाहन होते हैं और बीच में प्रधानमंत्री का बुलैटप्रूफ वाहन होता है। रूट का प्रोटोकॉल भी तय है। हमेशा कम से कम दो रूट तय होते हैं। किसी को रूट की पहले जानकारी नहीं होती। अंतिम समय पर एसपीजी रूट तय करती है। किसी भी समय एसपीजी रूट बदल सकती है। एसपीजी और राज्य पुलिस में कोऑर्डिनेशन रहता है। राज्य पुलिस से रूट क्लियरेंस मांगी जाती है। पूरा रूट पहले ही साफ किया जाता है। प्रधानमंत्री कहीं भी जाते हैं, एसपीजी के सटीक निशानेबाजों को हर कदम पर तैनात किया जाता है। यह शूटर एक सैकेंड के अंदर आतंकियों को मार गिराने में सक्षम होते हैं। इन जवानों को अमेरिका की सीक्रेट सर्विस की गाइडलाइंस के मुताबिक ट्रेनिंग दी जाती है। हमलावरों को गुमराह करने के लिए काफिले में प्रधानमंत्री के वाहन के समान दो डमी कारें शामिल होती हैं। जैमर वाहन के ऊपर कई एंटीना होते हैं, जो सड़कों के दोनों ओर रखे गए बमों को 100 मीटर की दूरी पर डिफ्यूज करने में सक्षम होते हैं। इन सभी कारों पर एनएसजी के सटीक निशानेबाजों का कब्जा होता है। सुरक्षा के उद्देश्य से प्रधानमंत्री के साथ लगभग 100 लोगों का एक दल होता है। जब प्रधानमंत्री चलते हैं तब भी वह वर्दी के साथ सिविल ड्रेस में एनएसजी के कमांडो से घिरे होते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री तक किसी भी आतंकी का पहुंचना लगभग असंभव है जब तक कि वीवीआईपी खुद न सुरक्षा घेरे से बाहर निकलें।

सार्वजनिक छुट्टी मौलिक अधिकार नहीं है

छुट्टियों का प्रावधान इसलिए किया गया था कि लोग रोजमर्रा की भागदौड़ से फुरसत पाकर अपने ढंग से जीवन बिता सकें, अपने पर्व-त्यौहारों पर उल्लास मना सकें। मगर दुख से कहना पड़ता है कि हमारे देश में अवकाश को बहुत सारे लोगों ने अपना कानूनी अधिकार मान लिया है, तो कई लोग इसे लेकर राजनीतिक रोटियां भी सेंकने का प्रयास करते देखे जाते हैं। कई राज्यों में बहुत सारी छुट्टियां इसलिए अनावश्यक रूप से सूची में शामिल होती गई हैं कि उन्हें राजनीतिक दलों ने किन्हीं वर्गों को अपने पक्ष में करने की गरज से लागू किया या कराया। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक अवकाश का किसी के पास मौलिक अधिकार नहीं है। वैसे भी हमारे देश में काफी सार्वजनिक छुट्टियां हैं। संभवत अब इन छुट्टियों की संख्या बढ़ाने की बजाय इनको कम करने का समय आ गया है। किसी दिन को सार्वजनिक छुट्टी घोषित करना अथवा उसे वैकल्पिक अवकाश बनाना सरकार का नीतिगत मामला है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि किसी दिन को सार्वजनिक छुट्टी करने से किसी के मौलिक अधिकार का हनन होता है। न्यायमूर्ति गौतम पटेल व न्यायमूर्ति माधव नामदार की खंडपीठ ने यह बात लिवासा निवासी किशन भाई घुटिया की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए गुरुवार को कही। घुटिया की याचिका में मांग की गई थी कि दो अगस्त को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि इसी दिन 1954 में केंद्र शासित प्रदेश दादर एवं नागर हवेली ने पुर्तगाल शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। इससे पहले 29 जुलाई 2021 को दो अगस्त के सार्वजनिक अवकाश को खत्म कर दिया गया था। याचिका में कहा गया कि यदि 15 अगस्त को देश का स्वतंत्रता दिवस होने के चलते सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जा सकता है तो दो अगस्त को दादर एवं नागर हवेली के लिए सार्वजनिक छुट्टी क्यों नहीं घोषित की जा सकती है? खंडपीठ ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया और कहा कि सार्वजनिक अवकाश कोई मौलिक अधिकार नहीं है। भारत एक विकासशील देश है जहां उत्पादन बढ़ाना अति आवश्यक है। वैसे भी हमारे देश में बहुत छुट्टियां होती हैं। इनमें कटौती होनी चाहिए। बढ़ाने का तो सवाल ही नहीं।

हम डूरंड रेखा पर बाड़बंदी की अनुमति नहीं देंगे

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने कहा है कि वह डूरंड रेखा पर पाकिस्तान को किसी भी तरह की गड़बड़ी की अनुमति नहीं देगी। सीमा पर ब़ाड़बंदी के मुद्दे को लेकर दोनों पड़ोसी मुल्कों में बढ़ रहे तनाव के बीच अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी है। मीडिया में आई एक खबर में यह जानकारी दी गई। तालिबान कमांडर मौलवी सन्नाउल्ला संगीन ने अफगानिस्तान के तोल्ये न्यूज से बुधवार को कहा कि हम (तालिबान) कभी किसी भी तरीके से बाड़बंद की अनुमति नहीं देंगे। उन्होंने (पाकिस्तान) पहले जो भी किया, वह कर लिया, अब हम उन्हें आगे डूरंड रेखा पर किसी भी गतिविधि की इजाजत नहीं देंगे। अब कोई बाड़बंदी नहीं होने देंगे। संगीन का यह बयान तब आया है जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद कुरैशी ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि मामले को कूटनीतिक और शांतिपूर्ण तरीके से हल कर लिया जाएगा। कुरैशी ने सोमवार को इस्लामाबाद में संवाददाताओं से कहा थाöकुछ उपद्रवी तत्व इस मुद्दे को बिना वजह उछाल रहे हैं। लेकिन हम इस पर गौर कर रहे हैं। हम अफगानिस्तान सरकार के साथ सम्पर्क में हैं। गौरतलब है कि डूरंड रेखा अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2670 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा है। दोनों देशों की सेनाओं के बीच इस स्थान पर हल्की-फुल्की झड़प की कई घटनाएं हो चुकी हैं। पाक ने काबुल की आपत्तियों के बावजूद इस सीमा पर बाड़बंदी का 90 प्रतिशत काम पूरा कर लिया है। अफगानिस्तान का कहना है कि अंग्रेजों की इस सीमाबंदी ने दोनों ओर कई परिवारों को बांट दिया है। -अनिल नरेन्द्र

Sunday, 9 January 2022

सीएम को शुक्रिया कहना, मैं जिंदा लौट पाया

बठिंडा-पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला बुधवार को सुरक्षा में बड़ी चूक के कारण 20 मिनट तक प्रदर्शनकारी किसानों के जाम में फंसा रहा। काफिले को बीच रास्ते से बठिंडा एयरपोर्ट लौटना पड़ा। हवाई अड्डे पर पहुंच कर पीएम मोदी ने अफसरों से कहाöअपने सीएम को शुक्रिया कहना कि मैं जिंदा लौट पाया हूं। गृह मंत्रालय ने इसे बड़ी व गंभीर चूक बताते हुए पंजाब सरकार से रिपोर्ट तलब की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई चूक से पूरा देश स्तब्ध है। कोई सोच भी नहीं सकता था कि अपने ही देश में प्रधानमंत्री के साथ ऐसी अप्रिय घटना घटित हो सकती है कि उनके काफिले को किसी फ्लाईओवर पर 20 मिनट के लिए रुकना पड़े। अगर यह किसी प्रकार की हत्या करने का प्रयास था तो इसकी चिंता सभी को होनी चाहिए। मैं किसी एक घटना के जवाब में दूसरी घटना को याद करके उदाहरण देने का पक्षधर नहीं हूं। मगर लोकतंत्र में जब विरोध को साजिश और खतरा कहा जाने लगे तो कुछ बातें इतिहास के पन्नों से निकालना चाहिए। बात 26 अप्रैल 2009 की है जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह गुजरात के अहमदाबाद में थे जहां उन पर जूता फेंक दिया गया था। यह पीएम की सुरक्षा में चूक थी। कहने के लिए हम कह सकते हैं कि जूते की जगह बम भी हो सकता था, क्योंकि छह माह पूर्व ही भारत में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ था और जिस प्रकार से हाल ही में धर्म संसद में एक धार्मिक नेता ने कहा कि अगर मैं संसद में होता, मेरे पास बंदूक होती तो मैं डॉक्टर मनमोहन सिंह को गोली मार देता तो इससे भी साफ होता है कि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के दुश्मन कम नहीं थे। जूता फेंकने की घटना के बाद पीएम मनमोहन सिंह ने न तो गुजरात की मोदी सरकार पर आरोप लगाया और न ही यह कहा कि धन्यवाद कहना सीएम को, मैं जिंदा बच गया। सबसे अच्छी बात यह थी कि मनमोहन सिंह ने उस युवक को माफ करते हुए किसी भी प्रकार का केस दर्ज न करने की अपील की। यह होता है लोकतंत्र में निडर और मजबूत प्रधानमंत्री। निडर प्रधानमंत्री की बात से याद आया कि फरवरी 1967 के चुनावों की बात है, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी देशभर में चुनाव प्रचार कर रही थीं, वह देश के दूरदराज के हिस्सों में जा रही थीं। लाखों की भीड़ खुद-ब-खुद उनका भाषण सुनने के लिए इकट्ठा होती थी। ऐसे ही प्रचार के सिलसिले में जब वो ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर गईं तो वहां भीड़ में कुछ उपद्रवी भी थे। वो माइक पर बोल रही थीं कि उपद्रवियों ने पथराव शुरू कर दिया लेकिन इंदिरा भी डटी रहीं। इसी पथराव के बीच एक पत्थर का टुकड़ा आकर उनकी नाक पर लगा और नाक से बुरी तरह खून बहने लगा, सुरक्षा अधिकारी उन्हें मंच से हटा लेना चाहते थे, स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता भी यही अनुरोध करने लगे कि वो मंच के पिछले हिस्से में जाकर बैठ जाएं, मगर इंदिरा जी ने किसी की नहीं सुनी और खून से भीगी नाक को रूमाल से दबाया और निडरता से क्रुद्ध भीड़ के सामने खड़ी रहीं। उन्होंने अपना भाषण पूरा किया, अपने स्टाफ और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से कहा कि प्रधानमंत्री होने के नाते मैं देश का प्रतिनिधित्व करती हूं। मेरा भागना देश और दुनिया में गलत संदेश देता। इसके बाद वो अगली जनसभा के लिए कोलकाता रवाना हो गईं और चोटिल नाक पर पट्टी लगवा कर कोलकाता में भाषण दिया पर कहीं भी उन्होंने यह नहीं कहा कि जान बच गई तो जिंदा लौट आई। खैर! पीएम मोदी के साथ हुई घटना की बारीकी से जांच होनी चाहिए और कसूरवारों की लापरवाही और जवाबदेही तय होनी चाहिए। इस तरह की लापरवाही और चूक की गहन जांच होनी चाहिए ताकि ऐसी घटना दोबारा न हो। प्रधानमंत्री का इस तरह 20 मिनट तक सड़क पर खड़ा रहना एसपीजी की भूमिका पर भी संदेह पैदा करता है।

बुल्ली बाई का मास्टर माइंड असम का बीटेक छात्र निकला

बुल्ली बाई ऐप के मास्टर माइंड और निर्माता नीरज बिश्नोई को असम के जोरहाट से बृहस्पतिवार को गिरफ्तार कर पुलिस दिल्ली लेकर आई है। 21 वर्षीय इंजीनियरिंग के छात्र ने ऐप बनाने में अपनी भूमिका भी कबूल कर ली है। मुंबई पुलिस ने भी इस मामले में मुख्य आरोपी उत्तराखंड की श्वेता समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। मुंबई पुलिस का दावा है कि श्वेता ने बुल्ली बाई नाम से ट्विटर पेज बनाया। बुल्ली बाई ऐप में सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें नीलामी के लिए लगाई गई हैं। उधर नीरज को भी वेल्लोर इंस्टीट्यूट से निलंबित कर दिया गया है। भोपाल के वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी में बीटेक छात्र नीरज ने गिटहब पर बुल्ली बाई ऐप बनाया था। दिल्ली पुलिस की इंटेलिजेंस फ्यूजन और स्ट्रेटेजिक ऑपरेशन (आरएफएसओ) शाखा ने पुलिस के साथ 12 घंटे चले अभियान में नीरज को जोरहाट से गिरफ्तार किया। उसका लैपटॉप भी जब्त किया है। इसे प्रोमोट करने हेतु ट्विटर पर बुल्ली बाई अंडर स्कोरनाम से ट्विटर अकाउंट बनाया। फिर इसे सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा शेयर किया। पकड़े जाने के बाद पूछताछ में नीरज ने बताया है कि उसने गिटहब पर ऐप बनाने के बाद उसे सोशल मीडिया पर प्रोमोट करने के लिए प्रोपगेटर्स को दिया। जिसके बाद सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से उसका प्रचार होने लगा। नीरज ने ऐसा क्यों किया और इसमें कौन-कौन शामिल है, इसका पता लगाया जा रहा है। उसके पास से मिले मोबाइल और लैपटॉप से पुलिस के हाथ कई अहम सुराग लगे हैं। पुलिस आरोपी को रिमांड पर लेकर उससे पूछताछ करने में जुटी है। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 8 January 2022

चुनाव आयोग वर्चुअल रैली, ऑनलाइन वोटिंग पर विचार करे

देश में बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के बीच उत्तराखंड हाई कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से कहा है कि आगामी विधानसभा चुनावों में वर्चुअल रैलियों और ऑनलाइन मतदान पर विचार करे। हाई कोर्ट कोरोना महामारी से निपटने से संबंधित जनहित याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई कर रहा था। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने आयोग को बड़ी चुनावी सभाओं पर रोक लगाने के दिशानिर्देश जारी करने को कहा है। कोर्ट ने इसके लिए आयोग को एक हफ्ते का समय दिया है। मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी। दरअसल कोरोना संक्रमण को देखते हुए जनहित याचिकाओं में चुनाव स्थगित करने की मांग की गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य में कोरोना संक्रमण 300 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है। अस्पताल और डॉक्टर भी कम हैं। हाई कोर्ट ने 29 दिसम्बर को आयोग को नोटिस जारी किया था। कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 15 दिन के लिए अपनी सभी रैलियां, कार्यक्रम रद्द कर दिए हैं। कांग्रेस पार्टी का यह फैसला उचित ही है। इसके बाद सपा ने भी विजय यात्रा और सभाओं को स्थगित कर दिया है। वहीं भाजपा ने नौ जनवरी को लखनऊ में प्रस्तावित महारैली टाल दी है। हालांकि इस महारैली की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी। कांग्रेस ने 15 दिन के लिए सभी बड़ी रैलियों और कार्यक्रमों को रद्द करने की औपचारिक घोषणा भी कर दी है। पार्टी ने ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ मैराथन दौड़ भी दो हफ्ते के लिए टाल दी है। कार्यक्रम नोएडा, वाराणसी, आजमगढ़ और अन्य शहरों में कराने की तैयारी थी। वहीं सपा ने बुधवार को विजय यात्रा रद्द कर दी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सात, आठ और नौ जनवरी को होने वाली रैली स्थगित कर दी है। यह रैली गोंडा, बस्ती और अयोध्या में होने वाली थी। इससे पहले 30 दिसम्बर को यूपी कांग्रेस ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर बड़ी सभाओं और रैलियों पर रोक लगाने की मांग की थी।

...और अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का परचम

छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों में एक बार फिर कांग्रेस परचम लहराते नजर आ रही है। कांग्रेस ने 15 नगरीय निकायों के चुनावों में धमाकेदार प्रदर्शन के बाद अब महापौर और अध्यक्ष के चुनाव में भी दमखम दिखाया है। हालांकि दो नगर पालिकाओं में क्रॉस वोटिंग के बाद पार्टी के नेता सतर्क हो गए हैं। वहीं बड़े नगर निगम में किसी तरह की चूक न हो, इसके लिए भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी किलेबंदी की। नतीजतन दो नगर निकायों में फिर कांग्रेस अपना महापौर बनाने में सफल रही। प्रतिष्ठापूर्ण माने जाने वाले रिसाली और पिलाई नगर निगमों में चुनाव के बाद तस्वीर साफ हो जाएगी। हालांकि यह तय हो गया है कि छत्तीसगढ़ के नगर निगम में कांग्रेस क्लीन स्वीप करने जा रही है। राज्य के सभी 14 नगर निगमों में कांग्रेस के महापौर होने के बाद रिकॉर्ड भी बन जाएगा। आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों से पहले कांग्रेस इसे प्रतिष्ठा का सवाल मानकर चल रही थी। नगरीय चुनाव में एक तरह से विपक्षी दल भाजपा का सफाया हो चुका है। भले ही नगर पालिका में क्रॉस वोटिंग के जरिये भाजपा कहीं काबिज होने में कामयाब जरूर हुई। लेकिन तकनीकी तौर पर संख्या बल में पीछे ही मानी जा रही है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठन अब सदस्यता अभियान को लेकर युद्ध स्तर पर जुटेगा। वहीं मिशन की तैयारियों के बीच बूथ कमेटी के गठन की प्रक्रिया भी तेज करेगा। प्रदेश कार्यकारिणी में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश प्रभारी पीएल पूनिया की नाराजगी के बाद मियाद भी तय कर दी गई। संगठन को अब इस माह 30 जनवरी तक यूथ कमेटियों का गठन करना अनिवार्य है। वहीं 15 फरवरी तक सदस्यता अभियान पूरा करना होगा। 15 फरवरी तक संगठन में इस बार 10 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य तय किया गया है। भूपेश बघेल निस्संदेह कांग्रेस के सफल मुख्यमंत्रियों में से एक हैं। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 6 January 2022

आंदोलन खत्म नहीं, स्थगित हुआ है

मेघालय के राज्यपाल प्रोफेसर सत्यपाल मलिक का कहना है कि किसान आंदोलन में दर्ज मुकदमों को रद्द करने के साथ सरकार को एमएसपी को कानूनी अमली जामा पहनाने का काम ईमानदारी से पूरा करना चाहिए। सरकार अगर यह सोच रही है कि आंदोलन खत्म हो चुका है तो यह गलत सोच है। आंदोलन खत्म नहीं हुआ है। अगर किसानों से ज्यादती हुई तो आंदोलन फिर से शुरू हो जाएगा। सत्यपाल मलिक चरखी दादरी में रविवार को बाबा स्वामी दयाल धाम पर आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे। इसी दौरान उन्होंने मीडिया से रूबरू होते हुए यह बात कही। उन्होंने डाडम हादसे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मामले की जांच के साथ दोषी पर कार्रवाई होनी चाहिए। प्रो. सत्यपाल मलिक ने कहा कि कृषि कानूनों की वापसी को लेकर प्रधानमंत्री ने जो कहा, उससे आगे करने की गुंजाइश नहीं है। अब किसानों को अपने पक्ष में फैसले करवाने चाहिए। उन्होंने चौधरी चरण सिंह के साथ राजनीति की है और हर स्थिति में वह किसानों के साथ हैं। इसके लिए फिर उन्हें चाहे कुछ भी करना पड़े, कोई भी पद छोड़ना पड़े। भिवानी के डाडम में हुए हादसे पर सत्यपाल मलिक ने कहा कि इस घटना से वह दुखी हैं। खनन करने वाले कोई कायदा-कानून नहीं मानते। राजस्थान में तो पहाड़ के पहाड़ खा गए हैं। उन्होंने कहा कि डाडम हादसे की निष्पक्ष जांच के साथ दोषी पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। राज्यपाल मलिक का पहले मितलाना टोल प्लाजा पर रविवार को आयोजित पंचायत में भी भाग लेने का कार्यक्रम था, लेकिन यह रद्द हो गया। उन्होंने कहा कि मैं आयोजन में नहीं आया हूं। इसका मतलब कतई नहीं है कि मैं महापंचायतों की निन्दा करता हूं। लेकिन मेरा वहां कार्यक्रम में जाकर खुद को उनसे जोड़ना आज के दिन सही नहीं है। किसान आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है, अभी तो 13 महीने की ट्रेनिंग हुई है। सरकार की नीयत में खोट नजर आ रही है। इसलिए किसान 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे। यह बात संयुक्त किसान मोर्चा नेता राकेश टिकैत ने रविवार को मितलाना टोल पर आयोजित महापंचायत में कही। राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार का ध्यान किसानों की जमीन पर है, इससे सचेत रहने की जरूरत है। सरकार का अगला वार भूमिहीन उन किसानों पर है, जो पशु-पालन करके दूध बेचकर गुजर-बसर करते हैं। अब तक पूरी तरह न तो मुकदमे वापस हुए हैं और न ही एमएसपी पर कोई कमेटी बनी है।

एनसीबी से समीर वानखेड़े की छुट्टी

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के मुंबई जोन के प्रमुख समीर वानखेड़े अब राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के महानिदेशक को रिपोर्ट करेंगे। एनसीबी में उनका कार्यकाल सोमवार को खत्म हो गया। बॉलीवुड मेगास्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को ड्रग्स मामले में गिरफ्तार करने के बाद आईआरएस समीर वानखेड़े को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था। आर्यन खान केस के दौरान समीर वानखेड़े को चार महीने का एक्सटेंशन दिया गया था जो 31 दिसम्बर को खत्म हो गया है। समीर ने कहा था कि उनकी अगली पोस्टिंग सरकार को तय करनी है। वानखेड़े के खिलाफ कई प्रेस कांफ्रेंस करने वाले राकांपा नेता नवाब मलिक ने यहां तक आरोप लगाया था कि भाजपा नेताओं की पैरवी के कारण वानखेड़े का एनसीबी से ट्रांसफर नहीं हुआ है। मलिक प्रेस कांफ्रेंस कर लगातार वानखेड़े पर निशाना साधते रहे हैं। वह समीर वानखेड़े की जाति और धर्म को लेकर भी लगातार सवाल उठाते रहे हैं। इसके बाद समीर वानखेड़े ने हाई कोर्ट में मलिक के खिलाफ मानहानि का केस भी दर्ज कराया था। समीर वानखेड़े के अनुरोध पर आर्यन खान मामले की जांच एजेंसी एनसीबी के वरिष्ठ अधिकारियों को सौंपी गई है। एनसीबी में वानखेड़े का कार्यकाल समाप्त होते ही मामला सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा और इस बीच कुछ ने गृह मंत्रालय से उन्हें एक और कार्यकाल विस्तार देने का अनुरोध किया। इस बीच आर्यन खान मामले में चार्जशीट अभी मुंबई कोर्ट में दाखिल नहीं हुई है। एनसीबी के सूत्रों ने कहा कि उन्होंने चार्जशीट का मसौदा तैयार कर लिया है और वह चाहते हैं कि चार्जशीट वानखेड़े द्वारा दायर की जाए।

प्रधानमंत्री की नई सवारी

देश में अतिविशिष्ट लोगों की सुरक्षा को लेकर एजेंसियां हमेशा चाक-चौबंद रहती हैं और उनके वाहन को अतिसुरक्षित बनाने के लिए नित नई कवायद करती रहती हैं। इसी क्रम में भारत के प्रधानमंत्री की सवारी के लिए दमदार और आयुद्ध मर्सिडीज मेबैख एस-650 को चुना गया है। यह कार कई खूबियों से लैस है और बख्तरबंद कार के शीशे इतने मजबूत हैं कि इन पर विस्फोट और एके 47 की गोलियों का भी असर नहीं होगा। सूत्रों ने कहा है कि प्रधानमंत्री के काफिले की कार का बदला जाना उन्नयन नहीं, बल्कि नियमित बदलाव है। उन्होंने कहा कि एसपीजी का यह नियम है कि वीवीआईपी सुरक्षा काफिले की कार हर छह साल बाद बदली जाती है। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले की कार आठ साल से इस्तेमाल हो रही थी और ऑडिट में इस पर आपत्ति भी की गई थी। कहा कि इससे वीवीआईपी की जान को खतरा हो सकता है। प्रधानमंत्री काफिले की नई कार की कीमत को लेकर मीडिया में कई अटकलें लग रही हैं, लेकिन मर्सिडीज मेबैख एस-650 कार की कीमत कहीं कम है। सूत्रों का यहां तक कहना है कि विभिन्न मीडिया रिपोर्ट में जो 12 करोड़ की कीमत बताई जा रही है, उसकी वास्तविक कीमत इसकी एक-तिहाई से भी कम है। बता दें कि मर्सिडीज मेबैख एस-650 गाड़ी एक फ्लेसिएट मॉडल है जिसकी कीमत 12 करोड़ रुपए है। इसमें सिक्योरिटी लेवल किसी भी दूसरी कार की तुलना में सबसे ज्यादा है। मर्सिडीज-मेबैख ने पिछले साल भारत में एस-600 गार्ड को 10.5 करोड़ रुपए में लांच किया था। यहउससे भी ऊपर का मॉडल है। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के काफिले के लिए लग्जरी कार खरीदने को लेकर सरकार की आलोचना की है। कांग्रेस ने कहा कि कोरोना के दौर में यह कार खरीदना गलत है। पार्टी प्रवक्ता गौतम बल्लभ ने प्रधानमंत्री पर तंज कसते हुए कहाöवह खुद को फकीर कहते हैं, लेकिन वह आठ हजार करोड़ के विमान पर चढ़ते हैं और 20 करोड़ की कार पर सवारी करते हैं। भारत एक निर्धन देश है, जहां एक कार पर इतना खर्च टैक्सपेयर की गाढ़ी कमाई से खरीदना क्या सही है? -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 5 January 2022

पम्मी की अकूत सम्पत्ति के पीछे क्या राज है?

भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच सियासी वार की वजह बने कारोबारी पीयूष जैन द्वारा इतना सोना वह भी विदेशी और इतनी नकदी, कैसे, कितने दिन में कहां-कहां से कानपुर और कन्नौज में जुटाई गई? एजेंसियों को इन सवालों के जवाब तलाशने में काफी मेहनत करनी पड़ेगी। जवाब मिलने पर कुछ एजेंसियों के संबद्ध कर्मी भी घेरे में आ सकते हैं। फिलहाल डीआरआई, जीएसटी इंटेलिजेंस और आयकर विभाग जांच कर रहे हैं। जरूरत के हिसाब से ईडी भी आगे चलकर जांच कर सकता है। सूत्रों के अनुसार 23 किलोग्राम विदेशी सोना भी अरबों रुपए के कैश की तरह हैरान कर रहा है। इतना धन जुटाने में कितना समय और क्या कुछ तरकीबें जैन ने लगाईं? यह जानने के लिए कस्टडी में पूछताछ शुरू होने वाली है। उत्तर प्रदेश के इस इत्र कारोबारी और सपा के विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) पुष्पराज जैन उर्फ पम्मी को कर चोरी के मामले में आयकर विभाग ने सोमवार को हिरासत में ले लिया है। यह महज टैक्स चोरी का ही मामला नहीं लगता है। इसके तार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और देश में भी भूमिगत गतिविधियों में लगे लोगों तक भी जुड़े हो सकते हैं। 23 किलोग्राम सोने के बारे में कहा जा रहा है कि उस पर यूएई की मुहर है। इस विदेशी निशान को मिटाने की कोशिश भी की गई लगती है। जैन के इन मामलों को आगे खंगालने के लिए कई एजेंसियों द्वारा मिलकर काम करने की जरूरत पड़ी है। जैन ने कथित तौर पर एजेंसियों को बताया है कि वह कच्चा इत्र दुबई भेजता था और बदले में सोना मंगाता था। यदि उसने सही में यह कहा है, तो बदले में सोना मंगाना भी गैर-कानूनी है। क्या उसने इसकी इजाजत किसी भारतीय एजेंसी से किसी स्तर पर ली थी? सीबीआई में रहे एक वरिष्ठ रिटायर्ड अफसर के अनुसार दूसरा अहम सवाल यह है कि सोना कितनी बार में, किस रास्ते से लाकर देश में किस स्थान पर उतारा गया? सोना लाने वाले कौन लोग थे? क्या सोना कुख्यात स्मगलर्स द्वारा लाया गया? क्या दुबई से इस तरह की स्मलिंग बराबर हो रही है? अगर सही है तो हमारी संबद्ध एजेंसियां क्या कर रही हैं? कस्टम टैक्स बचाकर किसी चीज को लाना भी गैर-कानूनी है। इन सब सवालों के जवाब तलाश लिए जाने के बाद जैन को न केवल टैक्स चोरी का हर्जाना ही भरना पड़ सकता है बल्कि उसे कई आपराधिक धाराओं का भी सामना करना पड़ सकता है। एजेंसियों के लोग भी घेरे में आ सकते हैं। फिलहाल पूरे मामले की गहराई से लंबी जांच की जरूरत है।

पहली बार कश्मीर में सक्रिय आतंकियों में कमी आई है

यूनेस्को ने श्रीनगर को रचनात्मक शहरों के नेटवर्क की सूची में रखा है। इस साल श्रीनगर में कई सफल कार्यक्रम हुए जिसमें देश और विदेश की दिग्गज हस्तियां शामिल हुईं। पिछले साल कश्मीर में आतंकी वारदातें बिल्कुल नहीं हुई थीं। हालांकि इस तिमाही में आतंकी वारदातें अचानक बढ़ गईं। ज्यादातर आतंकी हमले स्कूली अल्पसंख्यकों को टारगेट करके, जम्मू-कश्मीर के बाहर से आने वाले रेहड़ी-पटरी वालों को निशाना बनाने के लिए और निहत्थे पुलिस कर्मियों या उनके करीबियों को निशाना बनाने के लिए हुए। यह बढ़ते हमले बता रहे हैं कि प्रदेश में हालात अभी सामान्य नहीं हैं। आए दिन सुरक्षा बलों और नागरिकों पर हमले हो रहे हैं। पिछले तीन महीनों में यह हमले ज्यादा बढ़े हैं। हालांकि हमारे सुरक्षा बलों को भी बीते साल खासी सफलताएं मिलीं। पिछले तीन महीनों में बेशक यह हमले ज्यादा बढ़े हों पर दो दिन पहले दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग और कुलगांव जिले में दो मुठभेड़ों में छह आतंकियों को मार गिराया गया। इनमें कश्मीर टाइगर्स फोर्स का स्वयंभू कमांडर और दो पाकिस्तानी आतंकी भी थे। चौंकाने वाली बात यह है कि इन लोगों के पास से जो हथियार मिले वह अमेरिका के बने हैं। इससे यह तो साफ हो गया है कि पाकिस्तान न सिर्फ आतंकियों को भारत में घुसाता रहा है, बल्कि उन्हें हथियारों की आपूर्ति भी की जा रही है। घाटी में ड्रोन के जरिये हथियार पहुंचाने के मामले भी सामने आते रहे। गौरतलब है कि इस साल अगस्त में अफगानिस्तान से लौटी अमेरिकी सेना अपने ज्यादातर हथियार वहीं छोड़ गई थी। फिर यह हथियार पाकिस्तान के बाजारों में बिकने लगे। ऐसे में इस बात की आशंकाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अमेरिकी हथियार इसी जरिये से आतंकियों तक पहुंचाए जा रहे हैं। सुखद पहलू यह भी है कि आतंकवाद की शुरुआत के बाद से पहली बार कश्मीर घाटी में सक्रिय आतंकियों की संख्या 200 के नीचे आ गई है और युवाओं की आतंकी समूहों में भर्ती पर भी लगाम लगी है। अनंतनाग जिले के काजीकुंड में पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार और सेना की 15वीं कोर के लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडे ने कहा कि राज्य में सक्रिय आतंकियों की संख्या 180 रह गई है। इनमें स्थानीय आतंकियों की संख्या 100 से कम है। कुमार ने बताया कि इस वर्ष 128 स्थानीय युवाओं के विभिन्न आतंकी समूहों में शामिल होने की सूचना है। इनमें से सुरक्षा बलों ने 73 को मार गिराया है। 16 पकड़े गए हैं। लेफ्टिनेंट जनरल पांडे ने कहा कि पिछले दो वर्ष के मुकाबले 2021 में आतंकी समूहों में युवाओं की भर्ती में कमी आई है। पिछले साल यह 180 थी। लोग अब हिंसा के नुकसान को समझने लगे हैं। वह समझने लगे हैं कि सीमा पार क्या चल रहा है। अभी भी दो सौ के करीब आतंकियों के मौजूद होने की बात कही जा रही है, जिसमें 90 आतंकी विदेशी हैं। यह हालात बता रहे हैं कि आतंकियों के जाल को तोड़ पाना आसान नहीं है। बेशक हमारे सुरक्षा बलों को पिछले कुछ समय में उल्लेखनीय सफलताएं मिली हैं पर अभी हम चैन की सांस नहीं ले सकते।

माइनस 22 डिग्री में नहीं रुकती है जिंदगी

पूरा देश 3-4 डिग्री ठंड से कंपकंपाने लगा है और लोग सोच रहे हैं कि यह दौर कब खत्म होगा। इससे अलग लद्दाख के द्रास में लोग माइनस 40-50 डिग्री तापमान से निपटने की तैयारी कर चुके हैं। इन दिनों यहां तापमान माइनस 22 डिग्री तक गिर गया है, पर इतनी सर्दी से जिंदगी पलभर के लिए भी नहीं रुकती। दरअसल इसके लिए बचपन से ही तैयारी की जाती है। चार साल की उम्र में ही बच्चों को घर से बाहर खेलने के लिए भेजा जाता है। सर्दियों के दौरान आंगनों में अकसर पांच से 10 फुट बर्फ होती है। वह इस पर चढ़ते और फिसलते हैं यानि वह तो अपना पहला कदम बर्फ पर ही रखते हैं। इग्लू, स्नोमैन और अन्य स्कल्पचर बनाकर बर्फ में ही खेलते हैं। खेल में ही जिंदगी को रफ्तार देते रहते हैं। स्थानीय निवासी जहूर अहमद बताते हैं कि आइस हॉकी, स्नो स्कीइंग जैसे खेल हमें स्वस्थ और व्यस्त रखते हैं। सर्दी में ताजी सब्जियां और अन्य खाने की चीजें नहीं मिलतीं, तो हम दालों व खड़े अनाज से ही काम चलाते हैं। स्टोर करके रखी गई सब्जियां, मछली व मीट बगैराह तो बर्फ में इस कदर जम जाते हैं कि उन्हें चाकू की बजाय कुल्हाड़ी से काटना पड़ता है। लोग अक्तूबर से ही चावल, सब्जियां, दालें आदि सामान जमा करना शुरू कर देते हैं। फेरन (ओवरकोट जैसी पोशाक) पहनते हैं। खुद को गर्म रखने के लिए कांगड़ी का भी इस्तेमाल करते हैं और यहां हम 4-5 डिग्री में ही कांप जाते हैं। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 4 January 2022

वैष्णो देवी में नए साल की दुखद घटना

नव वर्ष के पहले ही दिन यह अत्यंत दुखद समाचार आया कि जम्मू में माता वैष्णो देवी मंदिर में भगदड़ मचने के कारण 12 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। नए साल के आगमन पर यहां अचानक भीड़ हो गई और बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने से भगदड़ मच गई। कुछ चश्मदीदों ने इस त्रासदीपूर्ण घटना के लिए कुप्रबंधन को दोषी ठहराया है। इस भगदड़ में 12 लोगों की मौत हो गई। इस भगदड़ में जा]िवत बचे कुछ लोगों ने बताया कि नए साल की वजह से अचानक बड़ी संख्या में भक्तों के आने से स्थिति कंट्रोल से बाहर चली गई। रास्ते में सोते लोग भगदड़ में कुचल गए। जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा कि एक मामूली लड़ाई इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए जिम्मेदार है। एक शव को पहचानने के लिए एक शवगृह के बाहर इंतजार कर रहे गाजियाबाद से आए एक तीर्थयात्री ने कहाöइस दुर्भग्यपूर्ण हादसे का कारण केवल कुप्रबंधन है। उन्हें भीड़ बढ़ने की आशंका थी, लेकिन लोगों के बेरोकटोक आने की इजाजत दी गई। एक व्यक्ति ने अपना नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि अगर अधिकारियों का बेहतर प्रबंधन होता तो इस घटना से बचा जा सकता था। उन्होंने कहाöइसी प्रकार की स्थिति कुछ समय पहले हुई थी, लेकिन सौभाग्य से कोई हताहत नहीं हुआ और स्थिति नियंत्रण में हो गई। भारी भीड़ के कारण भगदड़ मची, क्योंकि लोग बेरोकटोक अंदर-बाहर आ-जा रहे थे और हर कोई जल्दी में था। वैष्णो देवी में हुई भगदड़ के चश्मदीद संतराम Eिसह ने बताया कि हेलीपैड और श्रद्धालुओं के लिए मंदिर जाने का रास्ता एक ही तरफ से है, साथ ही दोनों तरफ जूते रखने का रैक लगा हुआ है। ऐसे में रास्ता काफी संकरा हो जाता है। कुछ लोग एक जनवरी को दर्शन करने के लिए भवन की तरफ जाने वाली सड़क पर ही सो गए थे। चूंकि वो एक दिन पहले ही पहुंच गए थे। वहां पर भीड़ इतनी ज्यादा हो गई थी, लोग पंजों के बल चल रहे थे। मंदिर से दर्शन करके आ रहे व्यक्ति का बैलेंस बिगड़ गया और वह सड़क किनारे सो रहे व्यक्ति पर गिर गया। इससे पीछे आने वालों का भी बैलेंस बिगड़ गया और एक दूसरे पर लोग गिरने लगे। फिर भगदड़ मच गई। उन्होंने बताया कि दम घुटने से लोगों की ज्यादा जानें गईं। समय रहते प्रशासन ने कदम उठाया और दोनों तरफ से वाहनों की आवाजाही रोक दी। जिसकी वजह से हालात पर काबू पा लिए गए, नहीं तो बहुत बड़ा हादसा हो सकता था। सवाल यह है कि क्या माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड इसका अनुमान नहीं लगा सका कि नव वर्ष के चलते बड़ी संख्या में श्रद्धालु आएंगे? नव वर्ष पर ऐसा ही होता हैöन केवल वैष्णो देवी मंदिर में, बल्कि देश के अन्य धार्मिक स्थलों पर भी ऐसा होता है। आवश्यक केवल यह नहीं कि भगदड़ मचने के कारणों की गहन जांच हो (वो तो होगी ही) बल्कि यह भी है कि इससे सबक सीखे जाएं। यह सबक केवल वैष्णो देवी मंदिर समेत अन्य धार्मिक स्थलों का प्रबंध करने वालों और संबंधित प्रशासन को भी सीखने होंगे, क्योंकि अपने देश में धार्मिक स्थलों पर भगदड़ मचने से घटने वाली घटनाओं का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। अब यह सिलसिला थमना चाहिए।

योगी फिर बनाएंगे यूपी में सरकार

उत्तर प्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर टाइम्स नाउ-नवभारत ने सर्वे एजेंसी वीटो के साथ मिलकर 16 से 30 दिसम्बर के बीच एक ओपिनियन पोल किया है। इसके मुताबिक यूपी चुनाव 2022 में भाजपा बहुमत के आंकड़े तक पहुंच जाएगी। अगर अनुमान सही रहे तो योगी आदित्यनाथ 1985 के बाद ऐसे मुख्यमंत्री होंगे जो दोबारा सत्ता पर काबिज होंगे। भाजपा 403 विधानसभा सीटों में से 230 से 249 सीटें हासिल कर सकती है। वहीं समाजवादी पार्टी को 137-152 सीटें मिलने का अनुमान है। अगर ऐसा होता है तो यह समाजवादी पार्टी के लिए बहुत बड़ी छलांग होगी, क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी महज 47 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं पोल के अनुमान के मुताबिक मायावती की अगुवाई वाली बसपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। पार्टी के वोट शेयर में भी गिरावट आ सकती है। कांग्रेस पार्टी को महज 4-7 सीटों पर संतोष करना पड़ेगा। बता दें कि 2017 के चुनाव में कांग्रेस को सात सीटें और बसपा को 19 सीटें मिली थीं। पसंदीदा मुख्यमंत्री का चेहरा कौन है। योगी आदित्यनाथ (52 प्रतिशत), अखिलेश यादव (32 प्रतिशत), मायावती (13 प्रतिशत) और प्रियंका गांधी (2.2 प्रतिशत)।

अगर शराब पीनी है तो बिहार न आएं

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का शराब के खिलाफ अभियान जारी है। उन्होंने कहा कि जो कोई शराब का सेवन करता है उसे बिहार आने की जरूरत नहीं है। शराबबंदी के बाद भी बिहार में दो करोड़ से ज्यादा पर्यटक आए हैं। जीविका दीदी की मदद से शराबबंदी सहित सभी तरह के सामाजिक सुधारों से सूबे में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है। मुख्यमंत्री सासाराम के फजलगंडा स्थित न्यू स्टेडियम में समाज सुधार अभियान के तहत जन-संवाद को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मुझे जब से सेवा करने का मौका मिला है तब से मैंने बिहार के लिए हर चुनौती पर कार्य किया है। पहले लोग शराब के लिए शाम होते ही घर से बाहर निकल आते थे लेकिन आज बदलाव साफ दिखाई दे रहा है तथा आप सभी के सहयोग से बिहार समावेशी विकास की ओर तेजी से बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने महिलाओं की मांग पर ही राज्य में शराबबंदी को लागू किया है तथा 2017 व 18 में इसके खिलाफ मानव श्रृंखला बनाई। जिसमें आप सभी ने हमारा भरपूर साथ दिया। विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जब महिलाएं यह बताती हैं कि शराबबंदी उनके जीवन में कितना बदलाव लाई है तो मुझे अत्यंत खुशी होती है। महात्मा गांधी ने भी आजीवन शराब का विरोध किया था। वह कहा करते थे कि शराब पैसा और बुद्धि दोनों को हर लेती है तथा इससे आदमी हैवान बन जाता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट बताती है कि पूरी दुनिया में 30 लाख से ज्यादा लोग प्रतिवर्ष शराब के सेवन से मरते हैं। उन्होंने बताया कि स्वस्थ समाज के बिना विकास का कोई औचित्य नहीं है, इसलिए नशा-मुक्ति, दहेज उन्मूलन, बाल विवाह, नारी सशक्तिकरण आदि को लेकर अभियान चलाया गया है। जहां कहीं भी गलत कार्य हो वहां जीविका दीदी जुलूस निकालकर खूब नारेबाजी करें। नीतीश बाबू की बात तो सही है पर यह कहना कि बिहार में शराब आना बंद हो गई है, शायद सही नहीं है। नेपाल व भारत के दूसरे हिस्सों से शराब तस्करी बढ़ती जा रही है। कच्ची शराब से सैकड़ों लोग प्रतिवर्ष मरते हैं।0 इन रास्तों को भी सुशासन बाबू को बंद करने की जरूरत है। -अनिल नरेन्द्र

Sunday, 2 January 2022

राजद्रोह के अपराध में कालीचरण गिरफ्तार

बेशक आपको किसी युगपुरुष के विचारों से मतभेद हो सकते हैं पर आप इस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल नहीं कर सकते, वह भी राष्ट्रपिता, अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के लिए जो कालीचरण ने की है। इससे बड़ी बिडंबना और क्या होगी कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ कोई व्यक्ति निराधार जहरीले विचारों और नफरत का प्रचार-प्रसार करे। किसी भी सोचने-समझने वाले जिम्मेदार नागरिक की नजर में यह अस्वीकार्य होगा और संबंधित क्षेत्र की सरकार और प्रशासन की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह नफरत फैलाने वाले उस व्यक्ति पर कानून सम्मत कार्रवाई करे। इस लिहाज से छत्तीसगढ़ की पुलिस ने कालीचरण महाराज नामक व्यक्ति को गिरफ्तार करके यह संदेश देने की कोशिश की है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और उसे समाज में नफरत और हिंसक विचार को फैलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित धर्मसंसद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपशब्द कहने वाले तथा नाथूराम गोडसे को नमन करने वाले कालीचरण महाराज को रायपुर पुलिस ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश के खजुराहो से गिरफ्तार कर लिया है। कालीचरण को वहां किराये के मकान से पकड़ा गया और फिर पुलिस उसे सीधे लेकर देर शाम रायपुर आ गई। यहां मेडिकल टेस्ट के बाद कालीचरण को कोर्ट में पेश किया गया। इसके बाद दो दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया। इससे पहले गुरुवार को उनके खिलाफ भावनाएं भड़काने के मामले में कालीचरण पर राजद्रोह का मुकदमा कायम किया गया। कालीचरण की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद मध्य प्रदेश में राजनीतिक हलचल शुरू हुई, जब वहां भाजपा सरकार के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने गिरफ्तारी के तरीके पर ऐतराज जताते हुए कहा कि छत्तीसग़ढ़ पुलिस को मध्य प्रदेश के गृह विभाग या फिर राज्य के सक्षम व्यक्ति को इसकी जानकारी देनी चाहिए थी। इस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तीखी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि मिश्रा बताएंöकालीचरण की गिरफ्तारी से वह खुश हैं या दुखी? प्रदेश गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने कालीचरण की गिरफ्तारी के नियमों के तहत बताते हुए मध्य प्रदेश के गृहमंत्री की आपत्ति को सिरे से खारिज कर दिया है। मामला कुछ यूं हैöरायपुर के रावणमाठा मैदान में 26 दिसम्बर को आयोजित धर्मसंसद में कालीचरण ने महात्मा गांधी के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया था। वहीं उन्होंने गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की तारीफ भी की थी। कई बार पुलिस के कामकाज करने का तरीका ऐसा होता है जिसमें प्रक्रिया को लेकर कुछ सवाल-जवाब की गुंजाइश हो सकती है। मगर असली मकसद किसी अपराध के आरोपी को कानून के कठघरे में खड़ा होना चाहिए। कालीचरण ने जिस तरह अपने बयान में अपने पुराग्रहों का प्रदर्शन किया, वह केवल महात्मा गांधी के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश नहीं है, बल्कि इस तरह से देश की आजादी के आंदोलन के मूल्यों और संघर्ष की भावनाओं को अपमानित करना है। इससे ज्यादा अफसोसजनक और क्या हो सकता है कि जिस व्यक्ति ने गांधी जी के साथ खड़े लाखों-करोड़ों लोगों ने निस्वार्थ भाव से देश की आजादी के लिए आंदोलन में हिस्सा लिया, न जाने कितने लोगों ने बलिदान दिया, उसकी अहमियत को स्वीकार करने की बजाय उसे अपमानित किया जा रहा है।

महंगाई पर तुरन्त रोक लगाओ

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा है कि मजबूत और सतत् पुनरुद्धार निजी निवेश तथा निजी खपत में तेजी पर निर्भर है। लेकिन दुर्भाग्य से यह दोनों अब भी महामारी-पूर्व स्तर से नीचे हैं। रिजर्व बैंक ने यह बात बुधवार को जारी दूसरी वित्तीय रिपोर्ट में कही। गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि लागत बढ़ने से उत्पन्न मुद्रास्फीति को लेकर चिंता बनी हुई है। उन्होंने खाद्य और ऊर्जा कीमतों को काबू में लाने के लिए आपूर्ति के मोर्चे पर ठोस उपाय करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही से अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे गति पकड़ रही है और मजबूत बनी हुई है। लेकिन बढ़ती मुद्रास्फीति दबाव के साथ कोरोना विषाणु का नया बहुरूप ओमीक्रोन एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। गवर्नर ने कहा कि नीति और नियामकीय समर्थन के साथ महामारी के दौरान वित्तीय संस्थान मजबूत बन रहे हैं और वित्तीय बाजारों में स्थिरता रही है। उन्होंने भरोसा जताया कि पूंजी और नकदी की बेहतर स्थिति के साथ बैंकों का मजबूत बही-खाता भविष्य के झटकों से निपटने में मदद करेगा। दास ने बैंकों के दबाव परीक्षण का हवाला देते हुए आगाह किया कि एनपीए (गैर-निष्पादित परिसम्पत्ति) सितम्बर 2022 में उद्धृत कर 8.1-9.5 प्रतिशत तक जा सकती है जो सितम्बर 2021 में 6.9 प्रतिशत थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक भविष्य में किसी भी तरह के झटकों से निपटने के लिए तैयार हैं। हालांकि एनपीए बढ़ने को लेकर आगाह भी किया गया है। रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा गया है कि इस साल विनाशकारी (अप्रैल-मई में) कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद वृद्धि परिदृश्य धीरे-धीरे बेहतर हुआ है। लेकिन वैश्विक घटनाओं और हाल में सामने आए विषाणु के नए बहुरूप ओमीक्रोन की वजह से अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौती पैदा हुई है। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 1 January 2022

कोरोना, किसान आंदोलन से पूरा वर्ष जूझते रहे

वर्ष 2021 बीत गया है। 2022 का आरंभ हो चुका है। 2021 ऐसा वर्ष था जो मेरे समेत कई लोग भुला न सकेंगे। साल कहीं खुशी लाया पर ज्यादातर गम लाया। पूरा साल कोरोना और ओमीक्रोन के डर से गुजरा। सैकड़ों परिवारों का सब कुछ उजड़ गया। दिल्लीवासी कोरोना की दूसरी लहर से तो जूझे ही ऑक्सीजन की कमी ने अनेक परिवारों को रुलाया। हालांकि टीकाकरण अभियान से कुछ राहत जरूर मिली। दिल्ली की सीमाओं पर करीब सालभर चले किसान आंदोलन ने राहगीरों और कारोबारियों को परेशान किया तो दीपावली के बाद दमघोंटू हवा ने जीना मुहाल कर दिया। हमेशा की तरह दिसम्बर आते-आते यह साल भी हमसे बिदा ले चुका है। इस पूरे साल में जहां दुनिया कोरोना के दर्द को झेलती रही वहीं भारत में भी इसने भरपूर कहर ढाया। राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो भारत के लिए इस साल की राजनीति किसान आंदोलन, कोविड से होने वाली जन-धन की हानि, पेगासस मुद्दा, देश की सीमाओं पर चीनी अतिक्रमण की खबरें, पेट्रोल-डीजल के दामों में लगी आग, खाने-पीने की चीजों की महंगाई, लाल किले की घटना और उत्तर प्रदेश में लखीमपुर खीरी कांड के इर्दगिर्द केंद्रित रही। इस पूरे साल में पांच राज्यों के चुनाव हुएöपश्चिम बंगाल, असम, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा में रहा पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव, जहां पर तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने तीसरी बार भारी बहुमत से जीत हासिल की और भाजपा द्वारा उन्हें सत्ता से बेदखल करने के मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया। पश्चिम बंगाल के नतीजों ने जहां 2021 की राजनीति को प्रभावित किया वहीं माना जा रहा है कि यह चुनाव 2022 की राजनीति में भी देश की राजधानी पर अपना असर डालेगा। भाजपा ने असम में अपनी सत्ता बरकरार रखी, वहीं केरल में वामपंथी नीत सरकार फिर से सत्ता में आई। तमिलनडु में द्रमुक ने अन्नाद्रमुक को सत्ता से बाहर कर दिया। वर्ष 2021 में भाजपा ने अपने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बदल दिया। मुख्यमंत्री के इस बदलाव से कांग्रेस भी अछूती नहीं रही और पंजाब में कैप्टन अमरिन्दर सिंह की जगह डॉक्टर चरणजीत सिंह चन्नी को कमान सौंप दी गई। जुलाई में दुनिया के 17 मीडिया संस्थानों ने दावा किया कि पेगासस स्पाइवेयर से भारत सहित कई देशों की सरकारों ने पत्रकारों, नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन हैक किए। विवाद इतना बढ़ गया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति बनाई जो मामले को देखेगी। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा जब तीन अक्तूबर को लखीमपुर खीरी जिले के एक कार्यक्रम में पहुंचे तब वहां भड़की हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोग मारे गए। इस दौरान दो कारें किसानों को रौंदते हुए निकल गईं। इसके बाद मंत्री विवादों में आ गए। 14 दिसम्बर को जांच टीम ने माना कि यह दुर्घटना नहीं थी, बल्कि हत्या की साजिश थी। इस मामले में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को मुख्य आरोपी माना गया। ऐसा नहीं कि खुशी की खबरें नहीं आईं। टोक्यो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। नीरज चोपड़ा ने जैकलिन थ्रो में नया कीर्तिमान बनाया। पैरालिपिंक में भारत ने पांच गोल्ड, आठ सिल्वर और छह ब्रांज जीते। समाचार पत्रों के लिए यह साल निराशाजनक रहा। बार-बार अनुरोध करने पर भी केंद्र सरकार ने कोई राहत नहीं दी। महंगाई ने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। गरीब आदमी की तो कमर टूट गई। पर्सनल लेवल पर मैंने अपनी पत्नी को खोया। उम्मीद करते हैं कि 2022 सभी के लिए 2021 से बेहतर रहेगा। 2022 की हार्दिक शुभकामनाएं।

विधानसभा चुनाव नहीं टाले जाएंगे?

कोरोना वायरस के तीन गुना अधिक संक्रामक स्वरूप ओमीक्रोन की चुनौती व आशंकाओं के बीच उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के अगले साल शुरू में होने वाले चुनाव संभवत टाले नहीं जाएंगे। हालांकि रैलियों व सभाओं पर सख्ती संभव है। चुनाव आयोग के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय के आला अधिकारियों की सोमवार को हुई बैठक में चुनावी राज्यों में टीकाकरण और जांच में तेजी लाने की सलाह के संकेत से साफ है कि चुनाव समय पर ही कराए जाएंगे। अलबत्ता केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण से विस्तृत रिपोर्ट तलब की गई है, जिसके बाद अंतिम फैसला किया जाएगा। चुनाव आयोग ने पाया कि उत्तर प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में पहली खुराक लेने वालों की संख्या राष्ट्रीय औसत से खासी कम है। जबकि उत्तराखंड व गोवा में यह करीब 100 प्रतिशत है। आयोग ने पांचों राज्यों के पात्र लोगों को दूसरी खुराक देने की रफ्तार बढ़ाने के निर्देश दिए। आयोग ने कहाöजिलावार साप्ताहिक टीका अभियान की सख्त जरूरत है। राज्यों को रोजाना प्रगति की समीक्षा करने की सलाह दी गई है। आयोग ने इन राज्यों में कोरोना जांच बढ़ाने को कहा ताकि संक्रमितों का जल्द पता लगाया जा सके और कोरोना विस्फोट की स्थिति न बने। सूत्रों के मुताबिक भूषण ने करीब एक घंटे की बैठक में आयोग को फरवरी-मार्च में होने वाले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर व गोवा के चुनाव को लेकर कोरोना व ओमीक्रोन के हालात पर जानकारी दी। विस्तृत रिपोर्ट मिलने पर आयोग चुनाव तिथियों की घोषणा से पहले स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ एक और बैठक कर सकता है। मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने बीते शुक्रवार को कहा था कि राज्यों में हालात की समीक्षा के बाद वह चुनाव कराने पर फैसला लेंगे। पंजाब, गोवा और उत्तराखंड का पहले ही दौरा कर चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक चुनाव आयोग कार्यक्रम की घोषणा से पहले प्रचार, रैलियों और सभाओं के लिए सख्त निर्देश जारी कर सकता है। जिन इलाकों में कोरोना का प्रभाव बढ़ा है, वहां अलग प्रावधान हो सकता है। -अनिल नरेन्द्र