Thursday, 30 June 2011

बाबा रामदेव पर चौतरफा दबाव बनाने का प्रयास

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 30th June 2011
अनिल रेन्द्र
मनमोहन सरकार ने बाबा रामदेव को सबक सिखाने के लिए सभी हथकंडों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। साम, दाम, दण्ड, भेद सभी का इस्तेमाल किया जा रहा है। जैसा कि सरकार ने कहा था वैसा ही करना आरम्भ कर दिया है। इधर बाबा की सम्पत्तियों की जांच शुरू कर दी है उधर बालकृष्ण के खिलाफ पासपोर्ट मामले में छानबीन आरम्भ हो गई है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने स्काटलैंड में बाबा रामदेव और उनके संस्थानों की सम्पत्ति या निवेश की जांच शुरू कर दी है। निदेशालय सूत्रों ने बताया कि इस बात की भी जांच की जा रही है कि कहीं उनके निवेश और धन के लेनदेन से विदेशी धन विनियमन कानूनों का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है। ईडी की नजर में स्काटलैंड के उस द्वीप पर भी है जो योग गुरु के एक प्रबल समर्थक दम्पत्ति ने उन्हें उपहार में दी थी। `द लिटिल कुबेर आइलैंड' नामक इस द्वीप को बाबा रामदेव के विदेश में स्थित ठिकाने और कल्याण केंद्र के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। सूत्रों के मुताबिक पूरी जांच बाबा रामदेव की ओर से बनाए गए ट्रस्टों में धन की आमद और लेनदेन पर टिकी है। इनमें पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट, दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और भारत स्वाभिमान ट्रस्ट शामिल हैं। सूत्रों ने बताया कि जांच के दौरान अगर ईडी को किसी तरह की गड़बड़ी मिली तो वह फेमा या प्रीवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर सकता है। बताया जा रहा है कि प्रवर्तन निदेशालय की ओर से यह जांच अलग-अलग आधिकारिक सूत्रों से मिले दस्तावेजों और खुफिया सूचनाओं के आधार पर की जा रही है।
इधर बाबा के ट्रस्टों व सम्पत्तियों की जांच हो रही है तो उधर उनके सहयोगी स्वामी बालकृष्ण के पासपोर्ट की जांच कर रही सीबीआई बरेली पासपोर्ट कार्यालय से जुड़े और लोकल इंटेलीजेंस यूनिट (एलआईयू) के अफसरों से पूछताछ कर रही है। बालकृष्ण का पासपोर्ट बरेली पासपोर्ट कार्यालय से बना हुआ है। इसलिए सीबीआई ने जिस अवधि में पासपोर्ट जारी किया गया, उस समय पासपोर्ट कार्यालय में तैनात अधिकारियों और कर्मचारियों की जानकारी मांगी है। सीबीआई ने इसी तरह बरेली एलआईयू कार्यालय में तैनात अफसरों व कर्मचारियों की जानकारी तलब की है। चूंकि पासपोर्ट के आवेदन फार्म की जांच एलआईयू शाखा द्वारा की जाती है। एलयूआई यह जांच करती है कि आवेदक द्वारा दी गई सूचनाएं सही हैं अथवा नहीं। वह भारतीय नागरिक है या नहीं, उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला तो नहीं, उसका सामान्य आचरण और साख, आदि कैसी है। एलआईयू ने बालकृष्ण के आवेदन फार्म पर कैसे संस्तुति की। सीबीआई इसके लिए जिम्मेदार एलआईयू कर्मियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति करेगी। इसी तरह पासपोर्ट कर्मियों से यह पूछा जाना है कि उन्होंने किस आधार पर बालकृष्ण के पक्ष में पासपोर्ट जारी किया। इसके लिए सीबीआई दोनों ही विभागों के लोगों को नोटिस भेजने की तैयारी कर रही है। सरकार हर तरह का दबाव बनाने पर जुट गई है ताकि बाबा रामदेव लाइन पर आ जाएं पर जो तेवर बाबा ने दो दिन पहले दिल्ली यात्रा में दिखाए उससे तो नहीं लगता कि बाबा किसी भी दबाव में आने वाले हैं।
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जे डे की हत्या के पीछे छोटा राजन का मोटिव क्या था?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 30th June 2011
अनिल रेन्द्र
मुंबई पुलिस ने दावा किया है कि मिड डे के वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे को अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन के कहने पर मारा गया। डे की हत्या में कथित रूप से शामिल सात लोगों को देश के अलग-अलग हिस्सों से गिरफ्तार करके सोमवार को मुंबई की अदालत में पेश किया गया। अदालत ने सभी आरोपियों को 4 जुलाई तक पुलिस हिरासत में भेज दिया है। मुंबई के पुलिस कमिश्नर अरुप भटनागर और क्राइम ब्रांच के मुखिया हिमांशु रॉय ने सोमवार को एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में डे की हत्या की गुत्थी सुलझा लेने का दावा किया। रॉय के मुताबिक छोटा राजन ने इस हत्या के लिए मुंबई के कुख्यात शॉर्पशूटर रोहित थंगपन जोसेफ उर्प सतीश कालिया को दो लाख रुपये की सुपारी दी थी। कालिया ने पुलिस को बताया है कि हत्या तक उसे यह नहीं पता था कि मारे जाने वाला शख्स एक पत्रकार है। डे के पत्रकार होने की जानकारी कालिया को न्यूज चैनलों से मिली, जिसके बाद राजन की तरफ से उसे तीन लाख रुपये और दिलाए गए। पुलिस के मुताबिक कालिया को छोटा राजन ने हत्या के दिन यानि 11 जून से करीब 20 दिन पहले एक शख्स को मारने के लिए कहा था। इस शख्स की मोटरसाइकिल का नम्बर और उसके मिलने के दो ठिकानों के बारे में भी छोटा राजन ने बताया। सुपारी लेने के बाद कालिया ने अपने साथी नीलेश शेडरो से सम्पर्प किया। नीलेश ने इसके बाद इस हत्या में शामिल पांच को जिनमें थे अरुण डाके, सचिन गायकवाड़, अभिजीत शिंदे और मंगेश को अपने साथ लिया। डे की हत्या में प्रयुक्त हथियार .32 बोर का रिवाल्वर और चेकोस्लोवाकिया की बनी गोलियां इन लोगों को उत्तराखंड के काठगोदाम में दी गईं। हत्या से पहले हमलावरों ने मुंबई के लोअर पटेल में उस इलाके की पहचान की जहां मिड डे का दफ्तर है। ये लोग पहले डे को लोअर पटेल इलाके में ही मारना चाहते थे, लेकिन ये इलाका भीड़ भरा होने की वजह से बाद में हत्या की योजना को पवई स्थानांतरित कर दिया गया। हमलावरों ने इस पूरे मामले को अंजाम देने के लिए चार टीमें बनाईं और इसके लिए तीन मोटरसाइकिलों और एक क्वालिस गाड़ी का प्रयोग किया। पुलिस के मुताबिक इन हमलावरों ने 9 और 10 जून को भी डे पर घात लगाई थी, लेकिन हत्या का सही वक्त और दिन उन्हें 11 जून को ही मिल पाया। कालिया ने पुलिस को बताया कि डे के शरीर पर पांचों गोलियां उसने मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बैठे दागीं। हत्या के बाद सारे हमलावर मुंबई से जोगेश्वरी इलाके में इकट्ठा हुए और वहीं इन्हें यह पता चला कि मारा गया शख्स मुंबई का नामी पत्रकार जे डे है। पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई गाड़ियां, रिवाल्वर और कुछ गोलियां भी इनके पास से बरामद कर ली हैं। महाराष्ट्र के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने डे की हत्या में कथित रूप से शामिल लोगों को गिरफ्तार करने वाली क्राइम ब्रांच की टीम को 10 लाख रुपये का पुस्कार देने का ऐलान किया है।
बेशक मुंबई पुलिस ने हत्या की गुत्थी सुलझाने का दावा किया है पर कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर अभी तक नहीं मिल पाया है। सबसे बड़ा प्रश्न तो यह है कि हर हत्या के पीछे मोटिव यानि उद्देश्य बहुत जरूरी होता है। छोटा राजन ने अगर यह हत्या करवाई तो उसका जे डे को मारने का मकसद क्या था। यह समझ नहीं आया कि हत्यारों को रिवाल्वर की गोलियां लेने के लिए उत्तराखंड के काठगोदाम क्यों जाना पड़ा? मुंबई में भी तो गोलियां बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं। हत्या में शामिल पांच लोगों में से तीन मुंबई से वारदात के बाद भाग गए थे जबकि दो मुंबई में ही रुक गए, क्यों? छोटा राजन का अपना गैंग है और एक बहुत प्रभावी हत्यारों की टीम, फिर उसने जे डे की हत्या को आउटसोर्स क्यों किया? उसे बाहर से भाड़े के हत्यारों को लेने की क्या जरूरत पड़ गई? यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं कि सतीश कालिया को यह पता नहीं था कि वह किसे मारने जा रहा है। जब उन्होंने मिड डे के कार्यालय का सर्वेक्षण किया तब तो उन्हें यह पता चल ही गया होगा कि जिसे वह मारने जा रहे हैं वह एक पत्रकार हो सकता है जो मिड डे से संबंधित हो सकता है। खुद अगर जे डे जिन्दा होते तो उन्हें यह पुलिस की कहानी बताते तो वह इस पर यकीन न करते। जे डे की हत्या को लेकर कई तरह की चर्चाएं सामने आई हैं। इनमें से डे की छवि को खराब करने की कोशिश भी हुई। चाहे विचार आया हो कि जे डे अंडरवर्ल्ड गैंग के काफी करीब पहुंच गए थे और हो सकता है कि उन्होंने कहीं पर लक्ष्मण रेखा लांघ ली हो। हालांकि जो लोग सालों से पेशेवर रूप से जे डे को जानते हैं, वह इस विचार को मानने से स्पष्ट इंकार करते हैं। डे भले ही अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर से सम्पर्प में थे। लेकिन खबर से ज्यादा उनके लिए कुछ नहीं था। वह अपनी लक्ष्मण रेखा नहीं लांघ सकते। एक दशक से ज्यादा समय से डे को जानने वाले एक पत्रकार का कहना है, `डे सभी अंडरवर्ल्ड गैंग के गैंगस्टरों को जानते थे। वास्तव में मुंबई के वह एक ऐसे पत्रकार थे, जिनकी पहुंच सभी गैंगस्टरों तक थी। लेकिन उन्होंने कभी भी अपने पेशागत आदर्शों का उल्लंघन नहीं किया। साथी पत्रकारों ने कहा कि दादा डे बहुत ही मधुभाषी थे, यह भविष्य की पीढ़ी हैं। यदि उन्हें इस उम्र में उचित मार्गदर्शन मिला तो वे आगे जाकर अच्छे जर्नलिस्ट बन सकते हैं।' मुंबई पुलिस ने सोमवार को दावा किया कि गैंगस्टर छोटा राजन ने डे की हत्या की सुपारी दी थी। यह डे के कई करीबी दोस्तों के लिए बहुत बड़ा आश्चर्य है। बीते वर्षों में कई मौकों पर डे ने राजन से सीधी बातचीत की है। हमेशा से उसने लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखा। वास्तव में यदि वह जिन्दा होते और उन्हें बताया जाता कि राजन उन्हें मारने की साजिश रच रहा है तो वह हंसकर टाल जाते। वे कहते, `मैं बहुत छोटा आदमी हूं, राजन मुझे क्यों मारेगा?'
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Wednesday, 29 June 2011

मनमोहन सरकार को लकवा मार गया है, मंत्रालयों में काम ठप पड़ा है


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29th June 2011
अनिल रेन्द्र
चौंकाने वाली खबर है। भारत सरकार ठप पड़ी हुई है। एक पूर्व मंत्री के साथ दो सांसद, कई वरिष्ठ कारपोरेट प्रबंधक और वरिष्ठ नौकरशाह भ्रष्टाचर के मामले में जेल की हवा खा रहे हैं तथा सीबीआई उनके खिलाफ पूरी मुस्तैदी से मुकदमा चला रही है। एक सर्वेक्षण के अनुसार केंद्र के वरिष्ठ नौकरशाह फंसने के डर से निर्णय लेने से बच रहे हैं, जिससे कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया बाधित हो गई है और मनमोहन सरकार को जैसे लकवा मार गया हो। नौकरशाहों ने महत्वपूर्ण नीति निर्धारण से बचने के लिए फाइलों को वैसे के वैसे ही रखा हुआ है। विपरीत कार्रवाई के डर से प्रतिरक्षक रवैया अपना रखा है। सिद्धार्थ बेहुरा छह माह से अधिक समय से राजा के साथ जेल में पड़े रहने के कारण निर्णय और मुश्किल हो रहे हैं। एक वरिष्ठ लोक सेवक सुरक्षात्मक रवैया अपनाते हुए इस डर से कोई भी निर्णय लेने से बच रहे हैं कि उनके निर्णय लेने के पीछे कोई भी उद्देश्य छिपा हो सकता है और उन्हें सीबीआई जांच का सामना करना पड़ सकता है। वह इस बात से आशंक्ति हैं कि उनसे जबरदस्ती फैसला करवाया जा सकता है। कई लोक सेवक निर्णय लेने के स्थान पर केवल नोटिंग लिख रहे हैं। अब वह अपने मंत्री द्वारा व्यक्तिगत रूप से या अपने निजी सहायकों के मार्पत जारी मौखिक आदेश को स्वीकार करने से इंकार कर रहे हैं। सचिवों की समितियों में भी निर्णय लेने की प्रक्रिया को पूरा नहीं किया जाता और किसी तरह का निर्णय लेने से बचा जाता है या फिर इसे मंत्रियों पर छोड़ दिया जाता है है। न्यायपालिका ने लोक सेवकों को स्पष्ट संकेत भेजा है कि नेताओं के हाथ में कठपुतली न बनें और ईमानदारी एवं स्वतंत्र तरीके से निर्णय लें तथा फाइलों पर अपनी ईमानदारी अभिव्यक्ति अंकित करें। कैबिनेट मंत्री भी ऐसा निर्णय लेने से बच रहे हैं, जो विवाद उत्पन्न करे। वरिष्ठ नौकरशाहों ने हालिया दिनों में गौर किया है कि कैबिनेट मंत्री भी सतर्प हो गए हैं और जिम्मेदारी लेने से बच रहे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार हालिया दिनों में उद्योग मंत्रालय में एक विवादित प्रपोजल कुछ जूनियर अधिकारियों द्वारा लाया गया, इसे मंत्री जी के कार्यालय में पहुंचाया गया, लेकिन सचिवों द्वारा फाइल नोटिंग में आलोचनात्मक मुद्दों को उठाने के बाद इसे रोक दिया गया। इस प्रस्ताव के पीछे मौजूदा प्राइवेट लाभार्थियों ने इस बात को महसूस किया कि किसी भी व्यक्ति को इस विषय में मदद जारी रखने का साहस नहीं होगा। वह बड़ा घोटाला हो सकता था लेकिन जो इस घोटाले को मूर्तरूप देने का प्रयास कर रहे थे वे अब तिहाड़ में जाने से डर रहे हैं। करीब दो दर्जन आईएएस अधिकारियों ने एक पूर्व कैबिनेट सचिव से गहन बैठक की। पूर्व कैबिनेट सचिव ने अधिकारियों को सभी तथ्य फाइलों पर लिखने तथा अपने हाथ बेदाग रखने की सलाह दी। अब एक बार फिर नौकरशाहों के ऊंचे तबके से प्रसासनिक सुधार जिसमें वरिष्ठ नौकरशाहों के लिए निर्धारित कार्यालय की मांग उठ रही है ताकि वे राजनीतिक धुरंधरों के हाथ में कठपुतली बनने के बजाय स्वतंत्र निर्णय ले सकें। वह सर्वोच्च न्यायपालिका है जिसने राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों को संकेत भेजा है कि ईमानदारी से कार्य करें अन्यथा कोई भी व्यक्ति नहीं छोड़ा जाएगा। यह सत्ताधारी राजनीतिज्ञों और वरिष्ठ नौकरशाहों के मध्य नेक्सस तोड़ सकता है।
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जासूसी, फोन टेपिंग और स्टिंग ऑपरेशन सरकार के लिए आम है


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29th June 2011
अनिल रेन्द्र
वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के कार्यालय में कथित जासूसी मामले को सरकार और कांग्रेस भले दबाने का प्रयास कर रही हो लेकिन कांग्रेस और सरकार के आजकल बने सुपर प्रवक्ता दिग्विजय सिंह ने इस मामले की जांच की मांग की है। प्रणब मुखर्जी और सूचना प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी के बयानों से सहमत नहीं होते हुए दिग्विजय ने कहा कि वे रिपोर्ट से चकित हैं और कहा कि इस मामले की जांच होनी चाहिए। अन्दर खाते जांच आरम्भ भी हो गई है। इस सिलसिले में आईबी ने सीबीडीटी के पूर्व अध्यक्ष सुधीर चन्द्रा से पूछताछ की है। भारतीय जनता पार्टी ने गृहमंत्री पी. चिदम्बरम का वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के कार्यालय में जासूसी की घटना को कुछ खास नहीं बताना स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा मजाक है और पार्टी ने वित्तमंत्री के प्रधानमंत्री को लिखे पत्र को सार्वजनिक करने की मांग की है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि आईबी अधिकारियों ने गत गुरुवार को चन्द्रा से पूछा कि वित्त मंत्रालय में जासूसी के मामले में निरीक्षण करने के लिए आईबी को सूचित करने से पहले निजी जासूसों को क्यों बुलाया गया? इस बारे में आईबी अधिकारियों ने वित्त मंत्रालय से इन विवादास्पद पदार्थों को हटाने का काम करने वाली निजी खुफिया एजेंसी का नाम पता लगाने के लिए भी जांच आरम्भ कर दी है। भाजपा प्रवक्ता ने दावा किया कि मुखर्जी को अपने कार्यालय में जासूसी का संदेह था। उन्होंने इस मसले पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। भाजपा चाहती है कि इस पत्र को सार्वजनिक किया जाए। उन्होंने कहा कि नॉर्थ ब्लॉक चिदम्बरम या किसी की निजी सम्पत्ति नहीं है।
प्राप्त रिपोर्टों से पता चला है कि प्रणब मुखर्जी ही नहीं, सुरक्षा और जांच एजेंसियों के राडार पर एक केंद्रीय मंत्री भी थे और करीब 30 घंटे तक उनका फोन टेप हुआ है। इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश सरकार में मायावती के करीबी और रसूखदार एक नौकरशाह का स्टिंग ऑपरेशन भी चर्चा में बना हुआ है। इतना ही नहीं, सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एण्ड कस्टम (सीबीईसी) के चेयरमैन ने भी अपना फोन टेप किए जाने का आरोप लगाया है। बताते हैं कि सीबीईसी चेयरमैन एम. मजूमदार पिछले साल सीबीईसी का चेयरमैन बनने के प्रमुख दावेदारों में थे। तब डीआरआई (डायरेक्ट्रेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस) के कुछ अधिकारियों ने उनका, उनके असम में रहने वाले दोस्त और कोलकाता में रहने वाली बहन के फोन टेप करने का आदेश दिया था। बताते हैं कि फोन टेपिंग की ठोस सम्भावना को देखते हुए मजूमदार ने इस मामले को डीआरआई के सामने उठाया है। सूत्र बताते हैं कि एक केंद्रीय मंत्री भी खुफिया एजेंसियों की निगरानी में थे। तकरीबन 30 घंटे से अधिक समय तक उनका फोन टेप होने की सूचना है। इस बारे में खुफिया सूत्रों का कहना है कि एजेंसियां आवश्यकता पड़ने पर सरकार की अनुमति के बाद लोगों के बातचीत, आदि पर निगरानी करती है। हालांकि यह निगरानी प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है। लेकिन प्रणब मुखर्जी के कार्यालय को निगरानी के दायरे में लाने की बाबत पूछने पर वह चुप्पी साध लेते हैं। यहां तक कि गृह मंत्रालय के अफसर भी इस मामले में कोई बात नहीं करना चाहते। पूर्व वरिष्ठ अधिकारी जरूर इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि प्रणब दा के कार्यालय में निगरानी का काम हुआ है। सरकार बेशक छिपाने का प्रयास करे पर सच बाहर निकल ही आएगा।
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Tuesday, 28 June 2011

बुंदेलखंड में किसानों की आत्महत्या का न थमता सिलसिला

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28th June 2011
अनिल रेन्द्र
पिछले कई दिनों से उत्तर प्रदेश में बलात्कार, मर्डर व क्रिमिनलों की बात हो रही है। चाहे वह राजनीतिक दल हों, चाहे इलैक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट मीडिया हो, सभी इन खबरों को प्राथमिकता देते नहीं थकते। जबकि असल गम्भीर मुद्दों पर किसी को ध्यान देने की जरूरत नहीं लगती। आज मानव जीवन की कोई कीमत नहीं। किसान आत्महत्या करते हैं तो यह खबर नहीं बनती, ब्रेकिंग न्यूज नहीं बनती पर छोटे से छोटा क्रिमिनल वारदात को प्रमुखता से छापी जाती है, दिखाई जाती है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में किसानों की इतनी बुरी दशा है कि आदमी को चौंक जाना चाहिए। पत्नी के इलाज में दो बीघा जमीन बेचकर मात्र तीन बीघा में तीन बच्चों के साथ जिन्दगी बसर कर रहे किसान की कर्ज और मर्ज से मौत हो गई। उस पर बैंक और शाहूकारों का लगभग 70 हजार रुपया कर्ज बताया गया है। ग्रामीणों ने अंतिम संस्कार कर दिया। अतर्रा तहसील क्षेत्र के बघेलाबारी गांव के किसान सुरेश यादव (42) पुत्र राम बहोरी की लाश एक पखवाड़ा पहले शनिवार के दिन सुबह घर के नजदीक स्थित उसी के खेत में पड़ी मिली। पत्नी की डेढ़ वर्ष पहले टीबी से मौत हो गई थी। उसके इलाज में सुरेश को दो बीघा जमीन बेचनी पड़ी। सुरेश यादव जैसी सैकड़ों कहानियां हैं। पिछले दिनों बड़ी संख्या में किसानों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाओं को गम्भीरता से लेते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से एक माह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। न्यायमूर्ति सुनील अम्बानी और न्यायमूर्ति सभाजीत यादव की खंडपीठ ने किसानों की खुदकुशी मामले में स्वत संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार किया। प्रदेश सरकार को निर्देश दिए गए हैं कि हर किसान की आत्महत्या का ब्यौरा, अस्पतालों, ब्लॉकों और पुलिस थानों से एकत्र कर रिपोर्ट अगली सुनवाई तक पेश की जाए। मुख्य सचिव से सभी बैंकों के द्वारा दिए गए कृषि ऋण का ब्यौरा भी उपलब्ध कराने को कहा गया है। राष्ट्रीय और निजी बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, सहकारी बैंकों, खादी ग्राम उद्योग और विकास बोर्डों को किसानों से 15 जुलाई तक ऋण वसूली न करने का न्यायालय ने निर्देश दिए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक बुंदेलखंड के बांदा, हमीरपुर, झांसी, ललितपुर, महोबा, चित्रकूट और जालौन जिलों में वर्ष 2009 में 568, 2010 में 583 और 2011 के पांच महीनों में 519 किसानों ने सूखे और गरीबी से तंग आकर खुदकुशी की है। बुंदेले हरबोलों की सरजमीन पानी, पलायन, भुखमरी और कर्ज के दबाव में हो रही मौतों से जूझ रही है। बुंदेलखंड में कर्ज के चलते किसानों के जानें देने का यह सिलसिला तब सामने आया जब किसानों को कर्ज से उबारने के लिए शासन-प्रशासन की ओर से तथाकथित राहत का पिटारा खोला गया। पिछले कुछ सालों से बांदा-बुंदेलखंड के बद से बदतर होते हालातों के कारण किसानों ने खेती संवारने और निजी रोजगार शुरू करने के लिए अपने ऊपर अरबों रुपयों का कर्ज चढ़ा लिया। अकेले बांदा जिले में तकरीबन दो लाख किसानों ने बैंकों से लगभग साढ़े चार करोड़ रुपये का कर्ज लिया हुआ है। वैध-अवैध शाहूकारों से कर्ज ली गई रकम भी करोड़ों में बताई जाती है। बांदा के लगभग 13000 किसानों पर किसान केडिट कार्ड से लिए गए करीब 25 करोड़ रुपये की देनदारी रही है। 3000 से ज्यादा किसानों को डिफाल्टर घोषित कर दिया गया है। इससे किसानों पर और दबाव बढ़ गया है। दबाव नहीं झेल पा रहे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि केंद्र और राज्य सरकार इस ज्वलंत समस्या पर गम्भीरता से विचार करें और ऐसे कदम उठाएं जिससे किसानों की खुदकुशी का यह सिलसिला थमे। कहने को तो भारत दुनिया की बड़ी आर्थिक शक्तियों में शुमार है पर जमीनी हकीकत है कि आज भी कर्ज, महंगाई, मर्ज के कारण किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हैं।
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पुट्टापर्थी सत्य साईं बाबा का खजाना


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Published on 28th June 2011
अनिल रेन्द्र
आंध्र प्रदेश के अनन्तपुर जिले में पुलिस ने एक वाहन से 35 लाख रुपये कैश बरामद किए और इसके ड्राइवर को गिरफ्तार किया था। माना जा रहा है कि यह रकम सत्य साईं सेंट्रल ट्रस्ट की थी और चोरी से बाहर भिजवाई जा रही थी। इससे पहले जब सत्य साईं बाबा का निजी चैम्बर खोला गया तो वहां से निकले खजाने ने सभी को चौंका दिया था। सत्य साईं बाबा के निजी कमरे से 98 किलो सोना, 317 किलो चांदी और 11.5 करोड़ रुपये कैश मिला था। पुट्टापर्थी के सत्य साईं बाबा जब जीवित थे तो हवा में हाथ घुमाकर सोने-चांदी के आभूषण, हाथ घड़ी और भभूत निकालकर लोगों को `चमत्कृत' करने की कहानियां चर्चा में रहती थीं लेकिन किसी को यह अंदाजा नहीं था कि उनकी मौत के बाद इस रहस्यमय तरीके से इतनी दौलत निकलेगी। कमरे से निकले धन की कुल कीमत अरबों रुपये में आंकी गई है। अनुमानत 40 हजार करोड़ की सत्य साईं की अकूत सम्पत्ति में इतना धन वैसे तो कुछ भी नहीं लेकिन लोगों को उनकी मायानगरी के एक कमरे में कुबेर के ऐसे खजाने का `दर्शन' सम्भवत पहली बार हुआ होगा। देश में काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बने मौजूदा माहौल में इतना ही धन अगर किसी नौकरशाह या नेता के घर पर मिल जाता तो तूफान खड़ा हो जाता और उसे काले धन की संज्ञा दी जाती। लेकिन धर्मगुरुओं और बाबाओं की शरण में पहुंच जाने पर जैसे मनुष्यों के पाप धुल जाने की मान्यता है, वैसे ही शायद धन का काला रंग भी धुल जाता होगा। 28 मार्च को जब सत्य साईं बाबा को अस्पताल में भर्ती कराया गया था तो इस कमरे को बन्द कर दिया गया था। तब से इस कमरे के रहस्य को जानने की उत्सुकता लोगों में थी लेकिन शायद ही यह कल्पना की होगी कि उनके आराम करने वाले निजी कमरे में इतना धन छुपा होगा। इसलिए उनकी मृत्यु के 51 दिन बाद गुरुवार की सुबह जब उनके इस रहस्यमय कमरे को खोला गया तो देखने वालों की आंखें फटी की फटी रह गईं। सत्य साईं बाबा जब जीवित थे तो इस कमरे में झांकने की किसी को इजाजत नहीं थी। इसलिए उनके बेहद करीबियों को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि सत्य साईं बाबा नोटों, सोने, चांदी, हीरे और जवाहरात के बीच नींद लेते थे। आंध्र प्रदेश की सरकार के लिए अब यह समस्या बन गई है कि इस धन का किया क्या जाए? सत्य साईं बाबा ने अपनी कोई वसीयत नहीं लिखी। जो संस्थाएं चल रही हैं वे तो वैसी ही चलती रहेंगी पर इस नकदी, सोने इत्यादि का विवाद जरूर पैदा हो गया है।
भारत सरकार के आयकर विभाग ने एक गोपनीय रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट के मुताबिक बड़ी संख्या में ट्रस्ट और संस्थाएं आयकर छूट कानून का उल्लंघन कर रही हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बहुत से ट्रस्ट धार्मिक और धर्मार्थ कार्य करने की बजाय चैरिटी में मिले पैसों का इस्तेमाल अपना व्यापार और कारोबार बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। गौरतलब है कि आयकर विभाग ने 2009-10 में आयकर कानून में एक नया ब्लॉज जोड़ा था। इसके मुताबिक अगर कोई ट्रस्ट दान से मिली राशि का इस्तेमाल धार्मिक कार्यों के अलावा अपने व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए करता है तो उसे कर में छूट का लाभ नहीं मिलेगा। सूत्रों के मुताबिक आयकर विभाग की कर छूट इकाई ने बड़ी संख्या में ऐसे ट्रस्टों के बारे में पता लगाया गया है जो चैरिटी के पैसों का इस्तेमाल व्यावसायिक गतिविधियों के लिए कर रहे हैं। ऐसी संस्थाओं की जांच की जा रही है। आयकर विभाग ने देशभर के सभी मुख्य आयुक्तों से भी कहा है कि वे ऐसे ट्रस्टों की पहचान करें जिनका पंजीकरण धार्मिक और धर्मार्थ संस्था के तौर पर कराया गया है लेकिन वे चैरिटी ब्लॉज का उल्लंघन करते हैं। इन संस्थाओं को आयकर कानून की धारा 11 और 12 के तहत कर छूट का लाभ हासिल है। सत्य साईं बाबा के कुछ भक्तों का दावा है कि देशी और विदेशी अनुयायियों ने बाबा को सैकड़ों करोड़ों रुपये नकद, आभूषण, हीरे और अन्य वस्तुएं उपहार में दी थीं। भक्तों के मुताबिक बाबा जब अस्पताल में थे तो ज्यादातर नकदी और अन्य कीमती वस्तुएं प्रशांति निलमय से बाहर भेज दी गई। उल्लेखनीय है कि सत्य साईं बाबा का गत 24 अप्रैल को निधन हो गया था।
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Sunday, 26 June 2011

राहुल की ताजपोशी की जल्दी के पीछे क्या कारण हैं?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 26th June 2011
अनिल रेन्द्र
कांग्रेस के भीतर घमासान छिड़ा हुआ है। पार्टी का एक वर्ग जो काफी बड़ा है, का मत है कि राहुल गांधी को जल्द से जल्द प्रधानमंत्री बनाया जाए। अगर राहुल इसके लिए तैयार न हों तो उन्हें पार्टी की खातिर, देश की खातिर मनाया जाए। सोनिया गांधी के दबाव में भले ही दिग्विजय सिंह को राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बन सकने वाले अपने बयान से पीछे हटना पड़ा हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पार्टी अब डॉ. मनमोहन सिंह को हटाना नहीं चाहती। कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन को भी यह सफाई देनी पड़ी है कि राहुल भविष्य के नेता हैं और मनमोहन सिंह हमारे प्रधानमंत्री हैं और राहुल कब प्रधानमंत्री बनेंगे, यह फैसला पार्टी और खुद राहुल को करना है। लेकिन सोनिया-राहुल के वफादार कांग्रेसी नेताओं के बीच राहुल की ताजपोशी के समय को लेकर मंथन जारी है। कुछ लोग कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनावों के नतीजे के बाद इस पर फैसला लिया जाए जबकि कुछ का कहना है कि उत्तर प्रदेश के नतीजे पार्टी के हक में नहीं आए तो राहुल की ताजपोशी मुश्किल हो जाएगी और फिर 2014 का चुनाव भी मनमोहन सिंह की मौजूदा सरकार की अगुवाई में ही लड़ना होगा। अभी जिस प्रकार के हालात हैं उनमें 2014 का चुनावी संग्राम जीतना बहुत मुश्किल होगा और तब राहुल के लिए दिल्ली दूर अस्त वाला जुमला सही साबित हो जाएगा। इसलिए अगर राहुल को लाना है तो जल्दी ही लाना होगा।
दरअसल कांग्रेस आलाकमान के हाथ-पैर सन् 2009-2011 के बीच लगभग 20,00,000 करोड़ रुपये के कथित महाघोटालों से फूल गए हैं। अधिकांश सर्वेक्षणों में कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को सर्वाधिक भ्रष्ट माना गया है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भी भ्रष्ट देशों की सूची में भारत का स्थान आगे आने का चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन किया है। परिणामस्वरूप कांग्रेस की लोकप्रियता का ग्रॉफ दो वर्षों में सांप-सीढ़ी के पासों की तरह आसमान से जमीन पर आ गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज भी इतना कुछ होने के बावजूद डॉ. मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत छवि साफ है परन्तु डॉ. सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों से तार-तार सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। विगत एक वर्ष में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने तीन अवसरों पर दो टूक शब्दों में कहा है कि वे सेवानिवृत्त (रिटायर) नहीं हो रहे हैं, वे त्यागपत्र नहीं देंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि उन्हें अभी अधूरे काम पूरे करने हैं। राजनीतिक रूप से इस पेचीदा हालात में प्रधानमंत्री डॉ. सिंह को हटाने पर पार्टी में महाभारत को टाला नहीं जा सकता है।
राहुल को सरकार की कमान सौंपने के पीछे एक तर्प यह भी दिया जा रहा है कि अगर राहुल प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनके नेतृत्व में लोकपाल कानून बनवाकर उसकी जांच के दायरे में कुछ शर्तों के साथ प्रधानमंत्री को भी शामिल किया जा सकता है। डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल में शामिल करना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि कई घोटालों में सीधा-सीधा पीएमओ जांच के दायरे में आ रहा है। इसके साथ ही राहुल के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पारित कराकर किसानों की सहानुभूति उसी तरह और सरकार के साथ की जा सकती है जैसे किसानों के कर्ज माफ करके यूपीए के दौरान जुटाई गई थी। राहुल लाओ अभियान के समर्थकों का दूसरा मजबूत तर्प है कि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने का सबसे बड़ा फायदा उत्तर प्रदेश में होगा, जहां न सिर्प कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जान आ जाएगी बल्कि उत्तर प्रदेश में पार्टी की जीत के आसार बहुत बढ़ जाएंगे। साथ ही उत्तराखंड और पंजाब विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का बेहतर प्रदर्शन राहुल की ताजपोशी के खाते में चला जाएगा। इससे न सिर्प कांग्रेस के खिलाफ चलने वाले अभियान की धार पुंद होगी बल्कि उसके बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों और 2013 में होने वाले दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों और 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भी पार्टी को ताकत मिलेगी। इसके अलावा सोनिया-राहुल के वफादार कांग्रेसी नेता इसलिए भी राहुल की ताजपोशी जल्दी चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जिस तरह पिछले एक साल से यूपीए सरकार और कांग्रेस के खिलाफ प्रचार अभियान चल रहा है, उसके निशाने पर सबसे ज्यादा सोनिया-राहुल ही हैं। इसके खिलाफ आम जनता में राहुल को इस समय प्रधानमंत्री बनाने पर असहमति नजर आती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 71 फीसदी लोगों ने साफ कहा कि राहुल के लिए केवल इसलिए प्रधानमंत्री की मुहिम चल रही है क्योंकि वह नेहरू-गांधी खानदान के वंशज हैं। उनमें वह काबलियत, अनुभव नहीं है जो इस समय देश के प्रधानमंत्री को होना चाहिए। मोटे शब्दों में उनकी राय में राहुल गांधी प्राइम मिनिस्टर मैटीरियल के नहीं हैं। केवल 27 फीसदी लोग मानते हैं कि राहुल युवा शक्ति, उम्मीद के प्रतीक हैं और देश को ऐसे नेतृत्व की सख्त जरूरत है। फेसबुक पर भी 65 प्रतिशत लोगों का मानना है कि राहुल पीएम बनने के लिए अभी तैयार नहीं हैं, न वह खुद बनना चाहते हैं और न ही उनमें इतनी क्षमता है।
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डॉ. सचान की हत्या के पीछे कौन?


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 26th June 2011
अनिल रेन्द्र
हमारी राय में तो उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएमओ डॉ. वाईएस सचान की लखनऊ की जेल में हत्या की गई है। डॉ. सचान के शव पर आठ जगह पर ब्लेड से काटे जाने के निशान पाए जाने के बावजूद प्रशासन अभी भी इसे आत्महत्या का केस मान रहा है। डॉ. सचान की लखनऊ जेल के शौचालय में बुधवार को शव को फंदे से लटका पाया गया था। उनके शरीर पर कुल नौ चोटें हैं, जिनमें आठ चोटें धारदार हथियारों से हुई हैं। इनमें से दो गर्दन पर, दो दाईं कोहनी पर, दो बाईं कोहनी पर, एक दाईं जांघ के ऊपरी हिस्से और एक बाईं कलाई पर भी। इसके अलावा गले में फंदे का निशान भी पाया गया। ऐसा लगता है कि मौत से पहले सचान ने अपनी नसें काटीं या किसी ने काटी है। मौके पर मिला एक तेजधार ब्लेड इसकी पुष्टि करता है। सरकार का कहना है कि सचान की मौत ज्यादा खून के रिसाव के कारण हुई है। सवाल है कि कोई व्यक्ति खुद को ऐसे जख्म देकर खुदकुशी कैसे कर सकता है? अगर खुदकुशी खुद को चोट देकर ही की गई तो बैल्ट गले में बांधने का क्या मतलब है?
डॉ. सचान की पत्नी मालती ने दावा किया है कि उनके पति दिमागी रूप से काफी मजबूत थे। वे तो दूसरों को ढांढ्स बंधाते थे। वे खुदकुशी कर ही नहीं सकते। उनकी हत्या की गई है। वे परेशान तो थे, क्योंकि पुलिस वाले टार्चर करते थे, काफी दबाव था उन पर, लेकिन वे आत्महत्या नहीं कर सकते। उन्होंने पूरे मामले की सीबीआई की जांच मांग की है।
डॉ. सचान से पहले डॉ. विनोद कुमार जो इसी पद पर थे 27 अक्तूबर को मृत पाए गए थे। सीएमओ के पद पर डाक्टर बीपी सिंह की दो अप्रैल को तब हत्या कर दी गई थी जब वह सुबह टहलने के लिए निकले थे। उन्हें गोली मार दी गई थी। तीनों अफसरों की हत्या के पीछे है 3000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का बजट। मई 2010 में 3150 करोड़ रुपये का ग्रांट विभाग को मिला था। तमाम सरकारी अस्पताल, दवाएं जो इन अस्पतालों को दी जाती हैं, के लिए स्वास्थ्य विभाग को 3150 करोड़ रुपये का ग्रांट दिया गया था। डॉ. बीपी सिंह की हत्या में खुद डॉ. सचान पर आरोप लगे थे कि वह इनकी हत्या में शामिल हैं। डॉ. सचान भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बन्द थे। अभी बीपी सिंह की हत्या के मामले में उनसे पूछताछ होनी बाकी थी पर इससे पहले ही उनका काम तमाम कर दिया गया। यह काम जेल के अन्दर हुआ। इसका मतलब साफ है कि जेल के कुछ अधिकारी इस कांड में जरूर शामिल हैं। दवाई माफिया जिसमें कई बड़ी शख्सियतें शामिल हैं, ने सचान की हत्या के लिए मोटी सुपारी दी होगी। मोटी सुपारी होगी, क्योंकि जेल के अन्दर हत्या करना आसान काम नहीं है। दवा के ठेकेदार, राजनेता, नौकरशाह सब इस करोड़ों रुपये के धंधे में शामिल हैं। पुलिस ने बसपा के विधायक बरंहाज राम प्रसाद जायसवाल से पूछताछ की है कि उनके दवा ठेकेदारों से क्या संबंध हैं, वह इसका खुलासा करें। मायावती सरकार को चाहिए कि वह पूरे मामले की बारीकी से तहकीकात करवाएं और जो भी इसके पीछे है उसका पर्दाफाश करें, चाहे वह कितना बड़ा क्यों न हो? इस केस ने पहले से दबावों से घिरी मायावती सरकार पर और प्रेशर बना दिया है।
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Saturday, 25 June 2011

टीम अन्ना को अंत में दोबारा आंदोलन करने का ही विकल्प रहेगा


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th June 2011
अनिल नरेन्द्र
मनमोहन सिंह सरकार गांधीवादी अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की हवा निकालने और उसे फेल करने के लिए सभी हथकंडे अपनाने लगी है। साम, दाम, दण्ड, भेद सभी तरीके अपनाए जा रहे हैं। आजकल दोनों सरकार और कांग्रेस पार्टी के मुख्य वक्ता बने दिग्विजय सिंह कहते हैं कि अन्ना हजारे ने अगर अनशन किया तो उनका हश्र भी बाबा रामदेव की तरह होगा यानि कि उनके आंदोलन को हर हाल में कुचला जाएगा। बुधवार को दिग्विजय सिंह ने कहा कि हजारे के खिलाफ भी वैसे ही सलूक हो सकता है जैसा रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के साथ हुआ। हालांकि यह मौके की नजाकत पर निर्भर करेगा। नए-नए खुलासों और बयानों को लेकर अपनी तुलना विकीलीक्स से किए जाने पर उन्होंने कहा कि विकीलीक्स तो लाजवाब है ही, लेकिन `दिग्गीलीक्स' उससे भी ज्यादा जबरदस्त हैं। पत्रकारों से बातचीत करते हुए दिग्गीलीक्स ने कहा कि अन्ना तो बुजुर्ग नेता हैं और उनके समर्थक उन्हें `चने के झाड़' पर चढ़ाकर अनशन पर बिठा देते हैं जबकि उम्र को देखते हुए उनका अनशन पर बैठना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार की जवाबदेही अन्ना और उनकी टीम के प्रति नहीं जनता के प्रति है। देश में संसदीय प्रणाली सर्वोच्च है और उसी की प्रक्रिया का पालन किया जाएगा।
अन्ना ने दिग्गीलीक्स को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया है। लोकपाल बिल के मसौदे पर रजामंदी की कोशिशें विफल होने के बाद अन्ना हजारे ने बुधवार को कहा कि भ्रष्टाचार पर नेताओं और अफसरों की सांठगांठ पाकिस्तान से भी बड़ा खतरा है। उन्होंने 16 अगस्त से फिर अनशन करने के फैसले को दोहराते हुए कहा कि सरकार और उनकी एजेंसियां उनके आंदोलन को कमजोर करने की कोशिशों में जुट गई है। इसलिए सरकार की ओर से जन लोकपाल के बारे में तरह-तरह के भ्रामक बयान दिए जा रहे हैं। अप्रैल में जन्तर-मन्तर पर पांच दिन और 8 जून को राजघाट पर अनशन देखने के बाद सरकार समझ गई है कि 16 अगस्त से शुरू होने वाला आंदोलन पहले की तुलना में ज्यादा बड़ा होगा। इसलिए तरह-तरह से जनता को गुमराह करने में सरकार जुटी है। अन्ना ने कहा कि 16 अगस्त से दोबारा अनशन शुरू करने से पहले वे देश के अलग-अलग हिस्सों में सघन जागरुकता यात्रा पर जाना चाहते हैं। लेकिन इस कार्यक्रम में उन्हें दिक्कत आ रही है, क्योंकि आने वाले दिनों में उन्हें कई बार अदालतों के चक्कर लगाने होंगे। अगले महीने से पहले से उनके खिलाफ महाराष्ट्र के कुछ नेताओं द्वारा दाखिल किए मुकदमों की तारीखों में पेश होना होगा। उन्होंने कहा कि ये मामले सिर्प मुझे परेशान करने के लिए दाखिल किए गए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने उन्हें परेशान करने के लिए उनके हिन्द स्वराज ट्रस्ट की जांच-पड़ताल शुरू कर दी है। ये सब मेरा ध्यान बंटाने व आंदोलन को कमजोर करने की कोशिशें ही हैं। अन्ना ने यह भी कहा कि वह गांधी जी के अनुयायी हैं। उन्हें सत्याग्रह से कोई नहीं रोक सकता। मैं तो फक्कड़ हूं, मुझे जेल में डाल दो, गोलियों से भून दो मैं पीछे हटने वाला नहीं।
ताजा स्थिति अब यह है कि सरकार ने तमाम राजनीतिक दलों पर सारी बात शिफ्ट कर दी है। लोकपाल बिल पर सरकार ने 3 जुलाई को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। इस बैठक के बाद लोकपाल बिल का मसौदा कैबिनेट में जाएगा। वहां से मसौदा फाइनल होने पर इसे संसद के एक अगस्त को शुरू हो रहे मानसून सत्र में पेश कर दिया जाएगा। सरकार के सूत्रों ने बताया कि सर्वदलीय बैठक में सरकार की ओर से बनाए गए मसौदे के साथ हजारे पक्ष की तरफ से बनाया गया मसौदा भी रखा जाएगा। सरकार और अन्ना के बीच लोकपाल बिल पर पिछले दो महीनों में करीब 9 बैठकें हुई हैं। लेकिन आम सहमति नहीं बन पाई। सरकार के मसौदे से असहमत अन्ना हजारे ने 16 अगस्त से फिर अनशन पर जाने की घोषणा की है। अब देखें विपक्षी दलों की बैठक में कोई हल निकलता है। उनके सामने दो मसौदे होंगे। एक जो अन्ना हजारे टीम ने तैयार किया है और दूसरा सरकार ने। हमें नहीं लगता कि यूपीए सरकार अन्ना हजारे की मांगों को किसी हालत में भी स्वीकार करेगी। अन्ना के पास दोबारा आंदोलन करने के अलावा शायद ही कोई अन्य विकल्प रहे।
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नितिन गडकरी को धूल चटाने में जुटे उन्हीं के पार्टी के नेता


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th June 2011
अनिल नरेन्द्र
एक हफ्ते के ड्रामे के बाद आखिर भाजपा नेता श्री गोपीनाथ मुंडे मान ही गए। कहा जा रहा है कि लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज से मिलने के बाद महाराष्ट्र में भाजपा के चेहरे और लोकसभा में पार्टी के उपनेता ने अपने तेवर नरम कर लिए। इसके साथ ही पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ मुंडे की बगावत से उपजे संकट के फिलहाल टलने का रास्ता साफ हो गया। एक बार फिर इससे साबित हो गया कि भाजपा जो एक समय अपने आपको पार्टीविद् व डिफरैंस कहती थी वह कितनी नीचे आ चुकी है और दूसरी पार्टियों की तरह बनकर रह गई है। गोपीनाथ मुंडे इतने महत्वपूर्ण नहीं जितना महत्वपूर्ण है पार्टी में अनुशासन। गोपीनाथ मुंडे ने क्या-क्या नहीं किया? उन्होंने खुलकर पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को गाली दी। पहले शिवसेना में जाने का प्रयास किया, वहां से उनके लिए दरवाजा बन्द था, फिर कांग्रेस में घुसने की कोशिश की। मुंडे हैं तो प्रमोद महाजन के बहनोई, इसलिए सौदेबाजी में तो अपने आपको माहिर समझते हैं। कांग्रेस से उन्होंने आने की शर्त रखी। मुझे कैबिनेट का दर्जा चाहिए। रिपोर्टों के अनुसार वह सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल से और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से भी मिले। कांग्रेस ने उलटा शर्त रख दी कि आप पहले भाजपा की टिकट पर बीड लोकसभा सीट से त्यागपत्र दें और बतौर कांग्रेस उम्मीदवार वार्ड इलैक्शन जीतें फिर आपको मंत्री बनाने की बात सोची जाएगी। गोपीनाथ मुंडे इसके लिए शायद तैयार नहीं थे। वह चाहते थे कि उन्हें पृथ्वीराज चव्हाण की खाली हुई पृथ्वीराज चव्हाण की राज्यसभा सीट दी जाए। जब कांग्रेस से लात पड़ी तो मुंह बचाने के लिए मुंडे ने वापस आने का रास्ता ढूंढना आरम्भ कर दिया। यहां सुषमा स्वराज काम आ गईं। चूंकि मुंडे ने नितिन गडकरी को खुली चुनौती दी थी इसलिए भाजपा के एक गुट का उन्हें गुप्त समर्थन मिल रहा था। यह गुट अध्यक्ष नितिन गडकरी को नीचा दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ता। भाजपा का आज हाई कमान क्या है? कौन है हाई कमान? कांग्रेस में तो सोनिया गांधी जो पार्टी अध्यक्ष हैं वही हैं हाई कमान। उनके फैसले को कोई नहीं टाल सकता। अच्छे अच्छों को आंखें दिखाने पर बाहर का रास्ता दिखाया गया है पर भाजपा में हिसाब उलटा ही है। अध्यक्ष को गाली निकालो और हीरो बनो। भाजपा को मजबूत करने में जुटे गडकरी को पार्टी के अन्दर ही एक गुट रोकना चाहता है ताकि वह पार्टी में अपनी पकड़ न बना पाएं। महाराष्ट्र की राजनीति में उलझाकर भाजपा की यह लॉबी गडकरी को कमजोर अध्यक्ष साबित करने में जुटी है जिससे वह बड़े फैसले न ले सकें। मुंडे ने भाजपा में बने रहने का शंखनाद नहीं किया बल्कि गडकरी के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के लिए एक चाल चली है। भाजपा में यह लॉबी त्रस्त चल रही है। गडकरी के भाजपा में पुराने लोगों को लाना उन्हें रास नहीं आ रहा। गडकरी ने हाल ही में अपने कई इंटरव्यू में जो कड़ा संदेश दिया उससे भाजपा की दूसरी पंक्ति के नेता परेशान हैं। गडकरी ने साफ कहा है कि वह पार्टी को मजबूत करने के लिए अपने एजेंडे पर कायम रहेंगे। इसका मतलब साफ है कि पुराने जमे लोगों को तकलीफ हो रही है। गडकरी के साथ संघ पूरी तरह खड़ा है। संघ चाहता है कि भाजपा की खोई हुई ऊर्जा वापस आए। गोपीनाथ मुंडे की लड़ाई मुद्दों पर नहीं है। दरअसल असल मुद्दा उनके लिए यह है कि उनसे जूनियर नितिन गडकरी दिसम्बर 2009 में अध्यक्ष बनने के बाद उनसे ऊपर कैसे पहुंच गए। वह आज भी अपने आपको गडकरी से ऊपर मानते हैं। वह खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। दुःखद यह है कि उस पार्टी के भीतर नेताओं के आपसी टकराव बढ़ रहे हैं, जो खुद को दूसरों से अलग बताती है। ज्यादा दिन नहीं हुए जब कर्नाटक के रेड्डी बंधुओं को लेकर सुषमा स्वराज और अरुण जेटली की तकरार सुर्खियों में थी। ऐसा लगता है कि पार्टी अटल जी के सक्रिय राजनीति से अलग होने और आडवाणी जी के संरक्षण की भूमिका में आने के बाद से नेतृत्व संकट से जूझ रही है। असल में पांच-सात वर्ष पहले तक जो नेता दूसरी और तीसरी पंक्ति में थे, वे अब पहली पंक्ति में आ गए हैं और उनमें आगे बढ़ने की होड़ लग गई है। यह विडम्बना ही है कि ऐसे समय जब देश घोटालों के अभूतपूर्व दौर से गुजर रहा है, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार चरम पर है और केंद्र सरकार लोकप्रियता के सबसे निचले स्तर पर आ गई है, प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते भाजपा का इन सबसे लड़ने के लिए न तो कोई ठोस कार्यक्रम है और न ही सशक्त नेतृत्व। कल को जनता पूछ सकती है कि अगर जनता आपको विकल्प की तरह चुने तो आपका प्रधानमंत्री उम्मीदवार कौन होगा? आपका नेतृत्व क्या है? हमारी राय में तो श्री गोपीनाथ मुंडे को निकाल बाहर करना चाहिए था ताकि दूसरों को भी सबक मिले। अपने आपको पार्टीविद् डिफरैंस कहलाने वाली पार्टी से यह उम्मीद नहीं थी कि वह इस तरह के समझौते करती फिरेगी?
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Friday, 24 June 2011

पाक सेना में आतंकी समर्थक अफसर

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24nd June 2011
अनिल नरेन्द्र
हाल ही में जब कराची के मेहरान एयरबेस पर हमला हुआ था तभी मैंने इस कॉलम में लिखा था कि जरूर पाक सेना के कुछ आदमी आतंकवादियों से मिले हुए हैं। दरअसल पाक सेना और आईएसआई में एक धड़ा आतंकी समर्थक है। इसके कई सबूत पहले भी मिल चुके हैं। आईएसआई, पुलिस मुख्यालय, सेना की छावनियों पर हमलों यहां तक कि भूतपूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर कातिलाना हमले ये सभी साबित करते हैं कि पाक सेना के कुछ अफसर इन आतंकी संगठनों के सम्पर्प में हैं जो उन्हें महत्वपूर्ण जानकारियां देते रहते हैं। ताजा सबूत अब स्वयं पाकिस्तानी सेना ने दे दिया है। सेना के एक ब्रिगेडियर रैंक के वरिष्ठ अधिकारी को आतंकी संगठन से संबंध रखने के संदेह में गिरफ्तार किया गया है। गिरफ्तार ब्रिगेडियर अब तक के सबसे सीनियर अफसर हैं जिन्हें आतंकियों से सांठगांठ के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इससे पहले कई छोटे रैंक के अफसरों को पकड़ा जा चुका है। गिरफ्तार ब्रिगेडियर अली खान रावलपिण्डी स्थित सेना मुख्यालय में तैनात था। सेना के मुख्य प्रवक्ता मेजर जनरल अतहर अब्बास ने मंगलवार को बताया कि ब्रिगेडियर खान को प्रतिबंधित कट्टरपंथी इस्लामी संगठन हिज्ब उत तहरीर (आजादी की जमात) के साथ सम्पर्प रखने के कारण हिरासत में लिया है। ब्रिगेडियर खान आतंकियों से सम्पर्प रखने के आरोप में गिरफ्तार किए गए अब तक के सबसे बड़े सैन्य अफसर हैं। बीबीसी ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि सेना प्रमुख जनरल अशफाक कयानी ने खुद खान की गिरफ्तारी के आदेश दिए थे। अब्बास ने बताया कि फिलहाल खान से सेना पूछताछ कर रही है। हालांकि अभी तक खान के खिलाफ कोई औपचारिक आरोप पत्र नहीं तैयार किया गया है। लेकिन सेना की विशेष शाखा इस मामले की जांच कर रही है। गौरतलब है कि पत्रकार सलीम शहजाद ने मेहरान नौसैनिक अड्डे पर आतंकी हमले के बाद खुलासा किया था कि पाकिस्तानी सेना में आतंकी ताकतें सक्रिय हैं। बाद में शहजाद की हत्या कर दी गई थी।
उल्लेखनीय है कि हिज्ब उत तहरीर ने मुस्लिम जगत में खलीफाशाही की स्थापना के लिए मुहिम चला रखी है। वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व वाली विदेशी सेनाओं की कार्रवाई के भी खिलाफ हैं। संगठन की ओर से पाकिस्तानी सेना में घुसपैठ करने की भी कोशिशें की जाती रही हैं। ब्लूचिस्तान के शम्सी हवाई ठिकाने पर हमले के लिए भी इसी संगठन को जिम्मेदार माना जाता है। पिछले साल ही दो अफसरों का कोर्ट मॉर्शल इसलिए किया गया था, क्योंकि इनके इस संगठन से संबंध थे। 2004 में कई छोटे औहदे के अफसरों को परवेज मुशर्रफ पर हमले में शामिल होने के आरोप में सजा भी दी गई थी। ब्रिगेडियर खान की गिरफ्तारी से साबित होता है कि आतंकियों ने किस हद तक पाक सेना व आईएसआई में घुसपैठ कर ली है।
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प्रणब मुखर्जी की जासूसी का मामला अत्यंत गंभीर मसला है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24nd June 2011
अनिल नरेन्द्र
यूपीए सरकार पर लगता है ग्रहण का सबसे ज्यादा असर हुआ है। एक के बाद एक घोटाले में यह सरकार फंसती जा रही है। अभी बाबा रामदेव का मामला, अन्ना हजारे से विवाद सुलटा नहीं कि एक और घोटाला सामने आ गया है। यह घोटाला तो नहीं पर हां अत्यंत गम्भीर मुद्दा जरूर है। यह है केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के कार्यालय में टेपिंग करने का मुद्दा। एक अंग्रेजी पत्र द इंडियन एक्सप्रेस ने एक सनसनीखेज रिपोर्ट छापी है। इसमें बताया गया है कि केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया था कि उनके ऑफिस नॉर्थ ब्लॉक में उनके मेज के नीचे व कम से कम 15 और मेजों के नीचे चूइंगम लगी पाई गई। वित्तमंत्री के कार्यालय में, उनके सलाहकार उमीता पॉल के, निजी सचिव मनोज पन्त, दो कांफ्रेंस कमरों में ऐसी चूइंगम मेजों के नीचे लगी पाई गई हैं। इन चूइंगम के ऊपर ट्रांसमीटर फिट किया जाता है ताकि जो भी बातचीत हो उसे सुना जा सके, उसे टेप किया जा सके। इन चूइंगम पर हालांकि कोई माइक तो नहीं मिला पर निशान जरूर लगे मिले जिससे यह साबित होता है कि प्रणब दा की कोई पूरी जासूसी कर रहा था।
अब देखिए क्या होता है? प्रणब मुखर्जी इसकी शिकायत गृह मंत्रालय से नहीं करते जो आमतौर पर होना चाहिए था, वह सीधे प्रधानमंत्री से करते हैं और उन्हें कहते हैं कि वह मामले की जांच करें। इस घटना से कई बातें उभरकर सामने आती हैं। इससे साफ पता चलता है कि कांग्रेस के अन्दर गड़बड़ है और जबरदस्त खींचतान है। पाठकों को याद होगा कि मैंने इसी कॉलम में दो दिन पहले लिखा था कि कांग्रेस पार्टी में दो खेमे बन चुके हैं। एक खेमा सोनिया गांधी व कांग्रेस पार्टी का है तो दूसरा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व उनके मंत्रियों का है जो सरकार का पक्ष लेते हैं। यानि पार्टी बनाम सरकार। चूंकि गृहमंत्री चिदम्बरम का प्रणब दा से 36 का आंकड़ा है और दोनों अलग-अलग कैम्प में हैं इसलिए प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री से शिकायत की, गृहमंत्री से नहीं। नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक का क्षेत्र अति सुरक्षित क्षेत्र माना जाता है। अगर वित्त मंत्रालय में किसी ने टेपिंग यंत्र लगाए तो यह कौन हो सकता है? पहली बात तो यह है कि बिना अन्दर के सूत्र के कोई बाहरी ताकत, व्यक्ति इन कार्यालयों में पहुंच ही नहीं सकता, क्योंकि यहां सुरक्षा इतनी कड़ी है। क्या कांग्रेस ने खुद अपने वित्तमंत्री की जासूसी करवाई? सुब्रह्मण्यम स्वामी का तो कहना है कि यह जासूसी पी. चिदम्बरम ने करवाई है। क्या यह काम किसी बाहरी देश का है? जो चूइंगम पाई गई वह विदेशी है। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि कोई विदेशी सरकार या ताकत ने जासूसी करवाई। यह सम्भावना भी है कि किसी औद्योगिक घराने ने यह जासूसी इसलिए करवाई हो ताकि उन्हें पता लग सके कि वित्त मंत्रालय में क्या चल रहा है?
पूरे प्रकरण से कई सवाल खड़े हो गए हैं। मसलन जब प्रणब मुखर्जी को इसका पता था तो उन्होंने आईबी को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी? क्योंकि आईबी के कार्यक्षेत्र में ही यह काम आता है और सर्वेलांस और एंटी सर्वेलांस में वह महारथ रखती है। प्रणब मुखर्जी ने सीबीडीटी को छानबीन के लिए क्यों कहा, क्योंकि उसका यह काम नहीं और उसे मालूम भी नहीं कि ऐसी स्थितियों से कैसे निपटना है। रिपोर्ट के अनुसार सीबीडीटी ने किसी प्राइवेट खुफिया एजेंसी को बुलाकर जांच करवाई। आईबी को इसलिए नहीं बुलाया गया क्योंकि वह गृह मंत्रालय के आधीन है और प्रणब मुखर्जी गृह मंत्रालय को शामिल नहीं करना चाहते थे। बाद में आईबी को बुलाया गया और आईबी ने क्लीन चिट देते हुए कह दिया कि चूइंगम तो मिली है पर माइक्रोफोन कोई नहीं मिला। आईबी तो कहेगी ही? सरकार यह नहीं चाहेगी कि सच सामने आए और इस मामले को दबाने का हर सम्भव प्रयास करेगी। नॉर्थ ब्लॉक व साउथ ब्लॉक कार्यालयों को रोज रात बन्द करने की जिम्मेदारी एक अलग विभाग की है। बिना चॉभियों के यह कार्यालय कब और कैसे खुले ताकि बगिंग डिवाइस फिट की जा सकें? क्या कोई इस विभाग का आदमी मिला हुआ था?
वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी और उनके सलाहकारों की मंत्रालय के अन्दर जासूसी को लेकर जनता पार्टी के अध्यक्ष डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आरोप लगाया है कि सोनिया गांधी के कहने पर प्रणब मुखर्जी की जासूसी कराई गई। डॉ. स्वामी ने कहा कि सोनिया गांधी के कहने पर हसन अली केस मामले में वित्तमंत्री की जासूसी कराई गई। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने जासूसी कराई। उन्होंने कहा कि उनकी जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के दबाव में प्रणब मुखर्जी झुकते नजर आ रहे थे। कई बड़े नामों का खुलासा हो सकता था। इसलिए प्रणब मुखर्जी की जासूसी कराई गई। वहीं स्वामी के आरोप के बाद राजनीतिक गहमागहमी तेज हो गई है। लोकसभा विपक्ष के नेता व तेज-तर्रार भाजपा की सुषमा स्वराज ने इस जासूसी कांड को अमेरिका के वॉटरगेट स्कैंडल का दर्जा दिया है। उन्होंने कहा कि वित्तमंत्री कार्यालय की जासूसी का मामला अत्यंत गम्भीर है। वित्तमंत्री स्वयं इसे खारिज करने की कोशिश कर सकते हैं, वह किन्हीं दबावों में हो सकते हैं। लेकिन देश असलियत जानना चाहता है। विपक्ष के हमलों को देखते हुए सरकारी तंत्र भी सक्रिय हुआ और सरकार की मीडिया संबंधी मंत्रिमंडलीय समूह ने भी इस बारे में विचार किया। इसके बाद कांग्रेस ने सफाई देने के बजाय भाजपा के आरोपों को उसकी पांच राज्यों के चुनाव में हार की हताशा करार दिया। देश जानना चाहता है कि इसमें सच क्या है? यह अत्यंत गम्भीर मामला है। इस मामले से कई तरह के प्रश्न खड़े हो गए हैं। सरकार को इस मामले में लीपापोती करने की बजाय मंत्रियों की जासूसी करने वालों का खुलासा करना चाहिए। यह मामला देश की अर्थव्यवस्था से जुड़े होने के अलावा देश की सुरक्षा से भी जुड़ा हो सकता है। मामले की पूरी जांच होनी चाहिए और सच्चाई जनता के सामने आनी ही चाहिए। प्रणब मुखर्जी एक बहुत सुलझे हुए, समझदार मंत्री हैं। अगर उन्हें दाल में कुछ काला नहीं दिखा होता तो वह जांच की मांग करते ही नहीं? और फिर गृह मंत्रालय को छोड़कर सीधा प्रधानमंत्री को शिकायत क्यों की?
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Thursday, 23 June 2011

Sleeping with the Enemy

 - Anil Narendra
Political equations are fast changing in Afghanistan. Now, US has started taking steps for its withdrawal from Afghanistan. There have been two recent reports, which reveal the game being played there. According to the first report, all the 15 members of United Nations Security Council including India have approved sanctions, according to which Taliban and al-Qaeda will be viewed differently. The objective of this decision is said to be inclusion of Taliban in Afghan peace process. The Security Council passed two resolutions unanimously last Friday in this regard. These resolutions talk of sanctions for Taliban, different from those for al-Qaeda. In view of this decision, Taliban and al-Qaeda will now be judged on different scales. In another incident, the Afghan President, Hamid Karzai has told that US is holding talks with Taliban. This is, perhaps the first official confirmation about the talks. Addressing a Conference in Kabul, Karzai said that talks with Taliban have started and progressing well. Foreign forces, especially US itself is engaged in these talks. The US-led war in Afghanistan has entered 10th year and demand for political solution of this conflict is gaining momentum.
This revelation by Afghan President, Hamid Karzai has not only dangerous implications for Afghanistan, but is another proof of US’s vested interests and duplicity. Why did US, in the first place, start war against Afghanistan? As far as we understand, the objective of this war was to teach a lesson to al-Qaeda and Taliban, who were responsible for 9/11 attacks on US soil. During these years, the US deposed the Taliban government, but strangely, now these very Taliban have become good Taliban and preparations are afoot to hand over power to them once again. We can very well understand the helplessness of President Barak Obama and the US. They have already announced complete withdrawal of US forces from Afghanistan by 2014 and expressed their eagerness to find an immediate solution to this problem. It is under these circumstances that talks are being held with Taliban, which, however, are in the initial stages at present. As such, the United Nations, considered to be an orgnisation obedient to US, while breaking with the old order, has given the message that if Taliban breaks up with al-Qaeda and contribute to the reconstruction of Afghanistan, then it can be granted amnesty.
We are a bit surprised as to what led India to ratify the UNSC resolution? Does India, too thinks that Taliban have become a noble organization and they do not pose any threat to India? The question is not what Taliban are, but question is that we are talking of negotiations with a terrorist organization that has made public its agenda. What is more disturbing that these negotiations are being held on meaningless terms. The fact is that by starting negotiations with a terror organization, US has once again proved that all of its decisions are based on its vested interests and it does not care about the impact of its actions on countries like India-Pakistan-Iran? Nor it is concerned about the impact on global terrorism. Ironically, the Afghan government has not been made a party to these talks. The Afghans themselves believe that this will be a very damaging step and their country will once again return to pre-2001conditions. If it happens, India will have to bear the brunt of it. It will be a heavy blow for the reconstruction projects in Afghanistan being undertaken by India. This will also adversely affect the image, efficacy and future of Karzai government, but why should America bother about all this? What a great irony, the US which invaded Afghanistan with its slogan of ‘war on terror’ to wipe out al-Qaeda and Taliban, is now considering to hand over Afghanistan to the same terrorists, so that it can easily find a safe passage out of Afghanistan?        

अभी कुछ महीने और तिहाड़ में ही रहेंगी कनिमोझी


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23nd June 2011
अनिल नरेन्द्र
`सॉरी मैडम वी हैव ट्राइड ऑवर बैस्ट।' सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कनिमोझी के वकीलों ने जब ये शब्द कहे तो दो माह पूर्व तक तमिलनाडु के वीवीआईपी का दर्जा रखने वाली कनि की मां रजती अम्मल फूट-फूट कर रोने लगी। उन्हें बहुत उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट से कनिमोझी को जमानत मिल जाएगी। रुआंसी और आंसू पोंछती रजती ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया। बस हाथ जोड़कर सिर हिलाया और आगे बढ़ गई। थके मुकदमे में बालू भी उनके पीछे चल दिए। बालू ने ढाई घंटे चली पूरी कार्रवाई खड़े होकर ही सुनी थी। रजती पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की तीसरी पत्नी हैं, कनिमोझी (43) उनकी इकलौती संतान है। पहली पत्नी की मृत्यु के बाद करुणानिधि ने दयालु अम्मा से विवाह किया। दयालु कलैग्नार टीवी में 60 फीसदी शेयर की मालिक है। रजती काफी दिनों तक करुणानिधि के साथ ऐसे ही रहती रही। करुणानिधि ने उनके साथ कभी विधिवत विवाह नहीं किया। उन्हें पत्नी भी 10-12 साल पहले तब माना था जब चुनाव में उन्होंने अपनी आय का शपथ पत्र दायर किया और उसमें अम्मा के नाम कुछ सम्पत्ति दिखाई। लोगों ने जब पूछा कि रजती कौन है तब उन्होंने कहा कि वह उनकी पत्नी है।
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में अभियुक्त द्रमुक सांसद कनिमोझी को सुप्रीम कोर्ट आना महंगा पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका ही खारिज नहीं की बल्कि भविष्य में जमानत देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। कनिमोझी अब जमानत के लिए तब ही आवेदन कर पाएगी जब उनके खिलाफ निचली अदालत में आरोप तय हो जाएंगे। आरोप तय होने में तीन माह का समय लग सकता है, लेकिन सुनवाई अदालत सिर्प इस केस के लिए बनी है इसलिए हो सकता है कि यह अवधि कुछ दिन कम हो जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कनि की यह दलील अस्वीकार कर दी कि उन्हें धारा 437 के तहत जमानत दी जाए। कोर्ट ने कहा कि आपमें क्या खास बात है, आपकी तरह सैकड़ों विचाराधीन महिला कैदी जेल में हैं और बच्चों से दूर हैं। कनिमोझी 20 मई से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बन्द है। जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस बीएस चौहान की खंडपीठ ने यह फैसला जमानत का विरोध कर रही सीबीआई और कनिमोझी के वकीलों की डेढ़ घंटा बहस सुनने के बाद दिया। जमानत खारिज करने का दो लाइन का फैसला सुनकर कनि के वकीलों का चेहरा फक रह गया। कनिमोझी के वकीलों ने बहुत कोशिश की कि जमानत किसी भी हालत में हो जाए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि वह कोर्ट की कठोर से कठोर शर्तें मानने को तैयार हैं। यदि सीबीआई को डर है कि अपने राजनैतिक रसूख से गवाहों और जांच को प्रभावित कर सकती है तो उन्हें उनके घर में नजरबन्द भी रखा जा सकता है। कनिमोझी के वकीलों का तो यहां तक कहना था कि अमेरिका की तरह यहां पैरों में रेडियो एंकलेट तो नहीं लगाए जाते, लेकिन उनके घर में 24 घंटे पहरेदारी तथा इलैक्ट्रॉनिक निगरानी (कैमरे तथा वायरलेस) रखी जा सकती है पर कोर्ट ने उनकी कोई दलील नहीं मानी। बस इतनी छूट जरूर दी कि अदालत ने कहा कनिमोझी आरोप तय होने के बाद मामले की सुनवाई कर रही कोर्ट से नियमित जमानत मांग सकती हैं। वहां मामले को नए सिरे से सुना जाएगा।
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यूपी में बिगड़ती कानून व्यवस्था : 72 घंटों में 11 वारदातें


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23nd June 2011
अनिल नरेन्द्र
इस साल जब मई के महीने में सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी के दो विधायकों को हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी तो बसपा ने अपनी पीठ थपथपाई थी कि उसने राज्य में क्रिमिनल जस्टिस का रिकार्ड सही कर लिया है पर यह सकारात्मक छवि पिछले 11 दिन में टूट गई है। 72 घंटों में घिनौने अपराधों की 11 वारदातों ने बहन जी सरकार को हिलाकर रख दिया है। उत्तर प्रदेश की लखीमपुर खीरी, बाराबंकी, कन्नौज में लड़कियों के साथ हुए रेप, हत्या और उत्पीड़न के बाद राज्य में रेप की चार और वारदातें हुई हैं। ताजा घटनाक्रम में एटा में जहां एक 35 वर्षीय महिला के साथ गैंगरेप की घटना हुई, वहीं गोंडा, फिरोजाबाद और कानपुर में भी लड़कियों को हवस का निशाना बनाया गया। एटा में दबंगों ने अपनी हवस का शिकार बनी विधवा को जलाकर मार दिया। गोंडा में तीन युवकों ने रेप के बाद नाबालिग को मारकर फेंका। फिरोजाबाद मामलों में नाबालिग लड़की को निशाना बनाया। कानपुर में नशीले पदार्थ खिलाकर युवती से दो दिन तक होटल में दुष्कर्म करता रहा। फर्रूखाबाद में छेड़छाड़ का विरोध करने पर महिला को गोली मारी। अलीगढ़ में पुलिसकर्मी पर आरोप, हिरासत में महिला से दुराचार का मामला सामने आया है। अलीगढ़ में तो अकराबाद क्षेत्र में एक महिला ने एक पुलिस कांस्टेबल और उसके सहयोगी पर बलात्कार का आरोप लगाया है। चोरी के आरोप में हिरासत में ली गई महिला ने बताया कि पूछताछ के बहाने रविवार रात उसे पुलिस चौकी में ले जाकर उससे दुष्कर्म किया गया।
बहन जी ने इन मामलों की नजाकत को समझते हुए अपने दो सबसे विश्वसनीय अधिकारियों को डैमेज कंट्रोल में लगा दिया है। सूचना सचिव प्रशांत त्रिवेदी और स्पेशल डायरेक्टर जनरल पुलिस ब्रज लाल त्रिवेदी ने बताया है कि कन्नौज वारदात के पीछे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता हैं। उल्लेखनीय है कि कन्नौज अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र में पड़ता है। एटा रेप केस में ब्रज लाल ने एक आरोपी का नाम मुलायम सिंह यादव बताया है। दोनों पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव ने इस पर सख्त एतराज किया है और ब्रज लाल पर जानबूझकर उन्हें बदनाम करने का आरोप लगाया है। ब्रज लाल ने कहा कि मैं क्या करूं, अगर एक आरोपी का नाम भी मुलायम सिंह यादव है। विपक्ष ने कानून व्यवस्था की लगातार गिरती स्थिति पर हंगामा मचा दिया है। चाहे वह सपा हो, चाहे कांग्रेस हो और चाहे भाजपा हो सभी ने बसपा सरकार के नाक में दम कर रखा है। राज्य में हो रही रेप और महिला उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर चौतरफा घिरी यूपी की सीएम मायावती ने सख्त रवैया अख्तियार कर लिया है। सूबे में हाल में हुई ऐसी घटनाओं की कड़ी निन्दा करते हुए बहन जी ने मंगलवार को ऐलान किया कि उनकी सरकार ने ऐसी घटनाओं पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन का फैसला किया है।
कुछ जिलों में महिलाओं और नाबालिग लड़कियों से हुए रेप और हत्या की घटनाओं से दुखी माया सरकार ने भविष्य में ऐसी घटनाओं पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए सीआरपीसी की धारा 437 और 439 में संशोधन करने का फैसला किया है। साथ ही इस संहिता की जमानती धारा 354 को गैर-जमानती बनाने का अध्यादेश भी राज्यपाल को भेज दिया है। कानूनी जानकारों का मानना है कि राज्य सरकार को सीआरपीसी में बदलाव का पूरा अधिकार है, क्योंकि इसमें संशोधन का अधिकार केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार को भी है। उक्त राज्य से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट भी उसी कानून के तहत सुनवाई करता है। संशोधन में ऐसे प्रावधानों हैं कि आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिल पाए जब तक वह निर्दोष साबित नहीं होता। मुख्यमंत्री ने बताया कि महिला अपराधों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए उन्होंने 27 जून को प्रदेश के डीएम, एसपी, कमिश्नर, डीआईजी, आईजी की बैठक बुलाई है। बैठक में वे निर्देश देंगी कि महिलाओं और बच्चियों का उत्पीड़न न हो। इसके लिए हर थाना क्षेत्र में चरित्रहीन व वाहियात लोगों की सूची तैयार कर उन्हें सुधरने का मौका दिया जाएगा। मुख्यमंत्री यह भलीभांति समझ रही हैं कि चुनाव जल्द होने वाले हैं और उन्हें कानून व्यवस्था दुरुस्त करनी होगी। विपक्ष हर मौके का फायदा उठाएगा। छोटे से छोटे मामले को उछालेगा, इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि बहन जी अपना घर दुरुस्त करें। अचानक आई अपराध की बाढ़ को हर हालत में रोकना होगा।
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Wednesday, 22 June 2011

क्या डॉ. मनमोहन सिंह का पत्ता कटने वाला है?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22nd June 2011
अनिल नरेन्द्र
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विरोध में अब आवाजें मुखर होती जा रही हैं। जनता में डॉ. मनमोहन सिंह की छवि दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। अब तो कांग्रेस पार्टी में भी प्रधानमंत्री के खिलाफ एक खेमा खुलकर बोलने लगा है। सरकार और कांग्रेस पार्टी में अब दरार पड़ चुकी है और पार्टी के एक तबके को लगने लगा है कि मनमोहन सिंह कांग्रेस पार्टी की लुटिया डुबो देंगे। पिछले दिनों एकीकृत जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने भोपाल में अपने दल के सम्मेलन में प्रधानमंत्री को कुछ इन शब्दों में बयान किया। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ऐसी गाय है जो देखने में सीधी और भली लगती है लेकिन न दूध देती है, न गोबर। उनके सामने एक के बाद एक आजादी के बाद के सबसे बड़े घोटाले होते रहे और वे टुकर-टुकर देखते रहे। उन्होंने गड़बड़ घोटाले करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की कोई पहल नहीं की। कार्रवाई तब शुरू हुई जब कोर्ट ने आदेश दिए। यादव ने कहा कि भ्रष्टाचार के आरोप में अभी कई और लोग जेल जाएंगे, उन्हें कोई नहीं बचा पाएगा। आज देश में हर तरफ ऊपर से नीचे तक लूट मची है। लगता है कि पूरे कुएं में अफीम घुल गई है। कहीं वोट बिक रहे हैं, कहीं ईमान।
अगर मीडिया में छपी खबरों पर यकीन किया जाए तो कांग्रेस में भी मनमोहन सिंह के खिलाफ आवाजें मुखर होती जा रही हैं। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह में दरार पड़ चुकी है। मनमोहन सिंह अब अपना खेमा बना रहे हैं। संचार घोटाले और फिर लोकपाल बिल के आंदोलन के हवाले डॉ. मनमोहन सिंह में यह डर बैठा दिया गया है कि कुछ करना होगा नहीं तो वे भ्रष्टाचार के सीधे आरोपी बनेंगे और बेइज्जत होकर सत्ता छोड़नी पड़ेगी। और जान लें आज इसी डर से मनमोहन सिंह काम कर रहे हैं कि यदि लोकपाल बिल बना और लोकपाल की नियुक्ति हुई तो सबसे पहले मनमोहन सिंह के ही खिलाफ संचार घोटाले की जांच की शिकायत होगी। लोकपाल उनके लिए भस्मासुर साबित होगा। इसलिए नोट करके रख लें कि लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री पद का आना तब तक मुमकिन नहीं है जब तक मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं। लगता है श्रीमती सोनिया गांधी भी यह समझ चुकी हैं और वह पार्टी को बचाने के लिए अब मनमोहन सिंह के विकल्पों पर विचार कर रही हैं। यही वजह है कि राहुल गांधी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। रामलीला मैदान में लाठीचार्ज का फैसला भी प्रधानमंत्री खेमे ने किया था। सोनिया पूरे मामले की हैंडलिंग से नाराज हैं।
प्रधानमंत्री और उनके पीएमओ को सारे घोटालों की पूरी जानकारी थी। दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के विवादों में घिरी आयोजन समिति की कारगुजारियों के बारे में पीएमओ को पहले से ही जानकारी थी लेकिन उसने इस मामले में कोई कार्रवाई करना मुनासिब नहीं समझा। आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चन्द्र अग्रवाल ने सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी हासिल की है उसके तहत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और खेल मंत्री के बीच राष्ट्रमंडल खेलों के बारे में 52 पन्नों का आदान-प्रदान हुआ था। वर्ष 2007 में तत्कालीन खेल मंत्री मणिशंकर अय्यर ने खेलों के बारे में गैर सरकारी संगठन (हजार्ड्स सेंटर) की एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी थी। अय्यर ने साथ ही कहा था कि वह इन खेलों के प्रति समर्पित हैं। लेकिन यह दस्तावेज हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या हम इस रास्ते पर चलें जिससे देश को भारी नुकसान हो सकता है? इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने अपनी एक आंतरिक रिपोर्ट में स्वीकार किया कि खेल मंत्रालय और आयोजन समिति के बीच गहरे मतभेद हैं। खेल मंत्रालय जहां पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर दे रहा है वहीं आयोजन समिति इसके लिए कतई तैयार नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके पीएमओ ने कोई भी कार्रवाई करना मुनासिब नहीं समझा। ऐसे ही 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का भी केस है। पीएमओ को सब जानकारी थी पर उसने रोकने के लिए कुछ नहीं किया। इन्हीं के चलते आज कांग्रेस पार्टी डॉ. मनमोहन सिंह को एक लाइबिलिटी मानने लगी है और उन्हें हटाने पर गम्भीरता से विचार कर रही है।
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अफगानिस्तान में 10 साल पहले अमेरिका घुसा क्यों था?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22nd June 2011
अनिल नरेन्द्र
अफगानिस्तान में तेजी से राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। अमेरिका ने अब वहां से भागने के उपायों पर अमल करना आरम्भ कर दिया है। हाल के दिनों में दो ऐसी खबरें आई हैं जिनसे यह साफ होता है कि वहां कुछ खेल चल रहा है। पहली खबर जो आई वह यह थी कि भारत सहित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्य देशों ने प्रतिबंधों के लिहाज से एक ऐसी सूची को मंजूरी दी है जिसमें तालिबान और अलकायदा को अलग-अलग नजरिये से देखा जाएगा। इसका मकसद तालिबान और अफगानिस्तान में सुलह के प्रयासों में शामिल करने से जुड़ा है। इस संबंध में सुरक्षा परिषद ने गत शुक्रवार रात पूर्ण बहुमत से दो प्रस्ताव पारित किए। इनमें प्रतिबंधों को लेकर तालिबान के लिए अलकायदा से एक अलग सूची की बात की गई है। इस कदम के बाद अब अलकायदा और तालिबान आतंकवादियों को अलग-अलग पैमानों पर तोला जाएगा। दूसरी घटना है अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई का यह कहना कि अमेरिका तालिबान से बातचीत कर रहा है। इस सम्पर्प के बारे में यह सम्भवत पहली आधिकारिक पुष्टि है। करजई ने काबुल में एक सम्मेलन में कहा कि तालिबान के साथ बातचीत शुरू हो गई है। बातचीत अच्छी चल रही है। विदेशी सेनाएं विशेषकर अमेरिका खुद ही बातचीत कर रहा है। अमेरिका के नेतृत्व में अफगानिस्तान में चल रहा युद्ध 10वें साल में प्रवेश कर गया है और वहां पर इस संघर्ष के राजनीतिक समाधान की आवाज तेज होती जा रही है।
अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने जो खुलासा किया है वह अफगानिस्तान के लिए जितना खतरनाक है, उतना ही अमेरिका की स्वार्थपरता और दोहरेपन का एक और सबूत भी है। अफगानिस्तान के खिलाफ अमेरिका ने आखिर युद्ध क्यों छेड़ा था? जहां तक हम समझ सके हैं कि 9/11 हमलों के लिए अमेरिका अलकायदा और तालिबान को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें सबक सिखाने के लिए यह युद्ध छेड़ा गया था। पिछले 10 सालों में पहले तो अमेरिका ने इसी तालिबान हुकूमत को सत्ता से हटाया और अब वही तालिबान अच्छा हो गया है और उसे दोबारा सत्ता सम्भालने की तैयारी हो रही है। हम राष्ट्रपति बराक ओबामा और अमेरिका की मजबूरी समझ सकते हैं। उन्होंने घोषणा कर रखी है कि 2014 तक अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की पूरी वापसी होनी है इसलिए वह आनन-फानन में समस्या का हल निकालना चाहते हैं। इसी के तहत तालिबान से बातचीत शुरू की है, जो हालांकि अभी शुरुआती दौर में है। अमेरिका के जेबी संगठन संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान और अलकायदा पर इसीलिए पुरानी व्यवस्था तोड़ते हुए जो संदेश दिया है उसका लब्बोलुआब यही है कि अगर अलकायदा का साथ छोड़कर तालिबान अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में सहयोगी बनता है तो उसे `माफी' दे दी जाएगी।
हमें थोड़ा आश्चर्य इस बात पर भी है कि आखिर भारत ने क्या सोचकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा दी? क्या भारत की नजरों में भी तालिबान एक अच्छा संगठन बन गया है जिससे भारत को अब कोई खतरा नहीं है? सवाल यह नहीं कि तालिबान कैसा है, सवाल यह है कि एक आतंकी संगठन जिसने अपना एजेंडा सार्वजनिक किया हो उससे आप समझौते की बात कर रहे हो, वह भी बकवास शर्तों पर? मामला तो यह है कि एक आतंकी संगठन से बातचीत कर अमेरिका ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उसके तमाम फैसलों के पीछे सिर्प उसका अपना स्वार्थ होता है, उसे इस बात की कतई परवाह नहीं कि इस फैसले का भारत-पाकिस्तान-ईरान मुल्कों पर क्या असर पड़ेगा? न ही उसे अब वैश्विक आतंकवाद से कोई लेना-देना है। विद्रुप तो यह है कि इस बातचीत में अफगान सरकार को भी शामिल नहीं किया गया। खुद अफगान मानते हैं कि यह अत्यंत घातक कदम होगा और मुल्क फिर 2001 से पहले की स्थिति में पहुंच जाएगा। अगर ऐसा होता है तो इसका सीधा नुकसान भारत को भी होगा। भारत द्वारा अफगानिस्तान में चल रही विभिन्न पुनर्निर्माण योजनाओं को भारी झटका लगेगा। इससे करजई सरकार की छवि, कार्यक्षमता और भविष्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा पर अमेरिका को इन सबसे क्या लेना-देना है। इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी कि एक दशक पहले जिस अमेरिका ने `वॉर ऑन टेरर' का नारा देकर अफगानिस्तान में इसलिए प्रवेश किया था कि अलकायदा और तालिबान को समाप्त कर सके, आज वह उसे उन्हीं आतंकियों के हवाले करने के बारे में सोच रहा है ताकि उसे अफगानिस्तान से भागने का रास्ता मिल जाए?
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Tuesday, 21 June 2011

दिल्ली पुलिस का सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने वाला हलफनामा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 21st June 2011
अनिल नरेन्द्र
दिल्ली पुलिस ने 4 जून की रात को रामलीला मैदान में बाबा रामदेव और उनके समर्थकों को बलपूर्वक हटाने की कार्रवाई को न्यायोचित ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि बाबा रामदेव को योग शिविर की अनुमति दी गई थी, लेकिन वह इसके विपरीत वहां सत्याग्रह कर रहे थे। दिल्ली पुलिस का दावा है कि बाबा रामदेव द्वारा रामलीला मैदान में कार्यक्रम के आयोजन की शर्तों का उल्लंघन किए जाने के कारण उसके पास अनुमति वापस लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प ही नहीं बचा था। दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में बाबा रामदेव के समर्थकों पर लाठीचार्ज के आरोपों से इंकार करते हुए कहा है कि भगदड़ में कुछ लोग जख्मी हुए थे। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि बाबा रामदेव पर अपने समर्थकों को भड़काने के लिए मंच का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए दावा किया गया है कि सत्याग्रहियों द्वारा पथराव किए जाने पर पुलिस ने आंसू गैस के सिर्प आठ गोले दागे थे। यह भी कहा गया है कि बाबा रामदेव को रामलीला मैदान में पांच हजार व्यक्तियों के योग शिविर की अनुमति दी गई थी, लेकिन वहां 20 हजार लोग उपस्थित थे। पुलिस का कहना है कि बाबा रामदेव को योग शिविर के आयोजन की अनुमति वापस लेने के बारे में 4 जून की रात को एक बजे सूचित किया गया और उन्हें रामलीला मैदान खाली करने के लिए डेढ़ घंटे का वक्त दिया गया था।
यह निहायत अफसोस की बात है कि दिल्ली पुलिस सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर रही है। पुलिस अपने काले कारनामों को छिपाने का प्रयास कर रही है। प्रत्यक्षदर्शियों व पीड़ितों का कहना है कि दिल्ली पुलिस के आईपीएस स्तर के अधिकारियों ने लोगों को रामलीला मैदान से घसीट-घसीटकर बाहर करने और लाठीचार्ज करने का आदेश दिया था फिर वह सुप्रीम कोर्ट के समक्ष झूठ क्यों बोल रही है? इन्कम टैक्स के वकील लोकेन्द्र आर्य उस रात रामलीला मैदान में थे। वह आर्यवीर, दिल्ली प्रदेश की ओर से सेवा देने रामलीला मैदान गए थे। लाठीचार्ज में उनके भी चेहरे व पैर में चोटें आईं और उन्हें लोकनायक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लोकेन्द्र आर्य के अनुसार दिल्ली पुलिस के आईपीएस अमित रॉय ने स्पष्ट शब्दों में लाठीचार्ज का आदेश दिया था। अमित रॉय का बिल्ला उनकी वर्दी में लगा था, जिससे उनका नाम मुझे याद है। कुछ पुलिस वालों ने तो बर्बरतापूर्वक व्यवहार करने से पहले अपना बिल्ला छिपा लिया था। इनमें एक महिला आईपीएस अधिकारी भी थीं। उसने सबसे पहले माइक सिस्टम को उखाड़ दिया था और विरोध करने पर आरएएफ व पुलिस के जवानों को लेकर मंच के पास पहुंच गई थी। भाकपा के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा का कहना है कि पुलिस झूठ बोल रही है। जन आंदोलनों को कुचलने के लिए सरकार व पुलिस जब भी ऐसे कदम उठाती है तो इसी तरह का कुतर्प देती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब पुलिस की मंशा लाठीचार्ज करने की थी ही नहीं, तो वह इतनी संख्या में क्यों गई? इसी से दिल्ली पुलिस के झूठ का पता चलता है।
4 जून की काली रात को याद करके आज भी घायल सिहर उठते हैं। जिस तरह से सोए हुए लोगों पर पुलिस ने लाठियां भांजी थीं। उनका सवाल है कि फिर आज पुलिस क्यों मुकर रही है। अगर लाठी नहीं चली तो लोगों के हाथ-पैर कैसे टूट गए। मीडिया में लाठीचार्ज के फोटो कहां से आए? 70 वर्षीय राज योगी का कहना है कि उन पर लाठी मारी गई थी, लेकिन उन्होंने फिर भी तिरंगा अपने हाथ से नहीं छोड़ा था। यहां तक कि अस्पताल के बैड पर भी वह झंडा पकड़े रहे थे। उनके पेट व पीठ में चोटें आई थीं। राम गोबिंद गुप्ता (36) बताते हैं कि पुलिस की लाठियां लगने से उनका तो दाहिना पैर ही टूट गया था। अभी तक भी उनका प्लास्टर नहीं उतर पाया है। वह कभी भी उस काली रात को नहीं भूल पाएंगे। वह कहते हैं कि दिल्ली पुलिस ने जलियांवाला बाग कांड को भी पीछे छोड़ दिया। उस वक्त तो दिन में गोलियां बरसाई थीं, लेकिन यहां तो सोते वक्त लोगों पर लाठियां चलाई गईं। दिल्ली पुलिस द्वारा सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोलने पर घायल कहते हैं कि इससे खुद ही पुलिस बेनकाब हो गई है। घायल हुए जगदीश (54) बताते हैं कि अगर लाठी नहीं चली तो मीडिया में लाठीचार्ज के फोटो कहां से आए। दर्जनों लोग इसमें घायल हुए। किसी का हाथ टूटा तो किसी का पैर। फिर उस काली रात की सबसे बड़ी भुगतभोगी तो 13 दिन बाद भी जिन्दगी और मौत के बीच झूल रही राजबाला हैं। गुड़गांव की पूर्व निगम पार्षद राजबाला कोमा से बाहर निकल चुकी है। लेकिन अभी भी वेंटिलेटर पर हैं। डाक्टरों के अनुसार वह इशारों-इशारों में बात को समझ रही है, लेकिन स्थिति अभी भी गम्भीर है। जीबी पंत अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग के आईसीयू-17 में भर्ती राजबाला के बारे में डाक्टरों का कहना है कि उसके शरीर और मस्तिष्क के बीच संवाद स्थापित नहीं हो पा रहा है। गर्दन की हड्डी टूटने की वजह से मस्तिष्क की नसों को नुकसान पहुंचा है।
भारतीय जनता पार्टी ने भी इस रिपोर्ट को असत्य व गुमराह करने वाली बताई है। पत्रकारों से बातचीत करते हुए पार्टी के दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय कुमार मल्होत्रा व प्रदेशाध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि पुलिस अपने को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी झूठ बोल रही है। उन्होंने दिल्ली पुलिस, केंद्र सरकार व गृहमंत्रालय से निम्नलिखित सवाल पूछे हैंöपुलिस का कहना है कि जीवन और मौत के बीच जूझ रही महिला राजबाला सहित सैकड़ों लोगों के हाथ-पांव भगदड़ के कारण टूटे थे। सवाल यह है कि यदि पुलिस ने समुचित कार्रवाई की थी तो भगदड़ क्यों मची? सत्याग्रह 4 जून की सुबह प्रारम्भ हुआ था जो शांतिपूर्ण, अहिंसक था। इसमें हजारों की संख्या में बच्चे तथा महिलाएं शामिल थीं। गृहमंत्रालय और दिल्ली पुलिस ने सत्याग्रहियों को 6 जून की मध्य रात्रि तक धरने पर बैठने की स्वयं अनुमति दी थी। क्या कारण है कि समयावधि समाप्त होने से पूर्व ही 4/5 जून की रात बगैर चेतावनी दिए रामलीला मैदान खाली कराने का बगैर सोचे-समझे फैसला किया गया? यदि सिर्प मैदान खाली कराने का आदेश था तो पुलिस ने बन्द पंडाल में आंसू गैस के गोले क्यों दागे? बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं पर अकारण, बगैर चेतावनी दिए बर्बर लाठीचार्ज क्यों किया गया? यदि पुलिस ने जुल्म नहीं किया था तो जिन ठेकेदारों ने मैदान में सीसीटीवी कैमरे लगाए थे, उसके यहां दिल्ली पुलिस ने अचानक छापा मारकर उस दिन के पुलिस अत्याचार को रिकार्ड करने वाली 42 सीडियां क्यों जबरिया छीनकर गायब कर दीं? इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के फुटेज बताते हैं कि 4/5 जून की रात को जो बर्बरता हुई उसने जलियांवाला बाग कांड को भी पीछे छोड़ दिया है। पुलिस को रामलीला मैदान खाली कराने के निर्देश थे तब पुलिस ने वहशियाना लुटेरे जैसे बर्ताव करते हुए सत्याग्रहियों के रुपये, जेवर, आदि क्यों लूटे? क्या कारण हैं कि बाबा रामदेव जैसे विश्व प्रसिद्ध योग गुरु को अपनी जान बचाने के लिए महिलाओं के वस्त्र पहनकर महिलाओं के बीच छिपना पड़ा? यदि दिल्ली पुलिस इतनी ही मासूम है तो वह दिन के समय रामलीला मैदान खाली कराने क्यों नहीं गई? रात में जाने का मतलब ही था लोगों को कुचलना और सबूत मिटाना। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के स्टेट कार्डिनेटर डॉ. ज्ञान के अनुसार पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया और अब झूठ बोल रही है। पुलिस का यह कहना कि लोग पत्थर बरसा रहे थे और बेसबॉल का डण्डा लेकर आए थे, सरासर झूठ है। रामलीला मैदान में आने वाला हर व्यक्ति पुलिस जांच से गुजर कर वहां तक पहुंचा था, उस वक्त तो पत्थर व डण्डे नहीं मिले?
सबूत मिटाने और गवाहों को सैट करने के लिए खबर है कि पुलिस अब घायलों का बयान लेने के लिए उनके घरों पर दस्तक दे रही है। पुलिस सरकारी मुआवजे का झुनझुना थमाने के नाम पर घायल हुए लोगों का बयान दर्ज कर रही है। दिल्ली पुलिस ने ऐसे 40 लोगों की सूची तैयार की है, जिन्हें चोटें आई थीं। घायलों या उनके परिजनों द्वारा शंका जताने पर यह भी कहा जा रहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बयान दर्ज करने आए हैं। घायलों द्वारा अपने बयान में किसी पुलिस अधिकारी का नाम लेने पर इन्हें दबी जुबान में धमकी दी जा रही है। पेशे से इन्कम टैक्स वकील लोकेन्द्र आर्य के मुताबिक गुरुवार 16 जून 2011 को दो पुलिस वाले उनके पास आए थे। एक सब-इंस्पेक्टर था और दूसरा हवलदार था। उन्होंने कहा कि आप रामलीला मैदान में घायल हुए थे इसलिए आपका बयान लेना है। सवाल पूछने पर कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की ओर से बयान दर्ज करने को भेजा हुआ है। उनकी ड्यूटी सुप्रीम कोर्ट के सिक्यूरिटी कंट्रोल रूम में है। यदि आप बयान देंगे तो सरकार आपको मुआवजा देगी। लोकेन्द्र आर्य के मुताबिक मैंने उनसे कहा कि मुझे मुआवजा नहीं चाहिए। जो चोर और भ्रष्टाचारी है। ऐसी सरकार से कुछ नहीं चाहिए।
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