Thursday, 31 May 2012

मार्क्सवादी अपने प्रतिद्वंद्वियों को मारने से भी कतराते नहीं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 31 May 2012
अनिल नरेन्द्र
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अकसर मार्क्सवादियों पर आरोप लगाती रहती हैं कि यह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की हत्या तक करने से परहेज नहीं करते। अब खुद माकपा के एक वरिष्ठ नेता ने केरल की एक जनसभा में यह स्वीकार किया है कि ऐसे मौके आए थे जब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने विरोधियों की हत्या करने से गुरेज नहीं किया। केरल के वरिष्ठ माकपा नेता एमएम मणि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के इडुकी जिले के सचिव हैं। उन्होंने थोडुपुझा में एक सार्वजनिक सभा के दौरान यह विवादास्पद बयान दिया। शनिवार रात एक सार्वजनिक सभा में कहा कि पार्टी की ओर से अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों का सफाया करने के कई उदाहरण रहे हैं। मणि ने यह बयान उस समय दिया जब पार्टी कोझिकोड और कन्नूर जिले के कुछ कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के दौरान रक्षात्मक मुद्रा में आई है। कार्यकर्ताओं को मार्क्सवादी नेता टीपी चन्द्रशेखरन की हत्या के संबंध में गिरफ्तार किया गया। मणि ने हालांकि यह सभा सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट करने के लिए बुलाई थी कि चन्द्रशेखरन की हत्या में पार्टी का कोई हाथ नहीं है। बाद में मणि ने कहा कि उनका मतलब शारीरिक हत्या से नहीं है परन्तु तब तक बवाल की जमीन तैयार हो चुकी थी। माकपा के राज्य सचिव पिनारई विजयन ने कहा कि मणि का भाषण पार्टी की विचारधारा से मेल नहीं खाता और उन्होंने यह बात कहकर गलती की है। विजयन ने कहा कि मणि के विचार पार्टी के राजनीतिक विचारधारा से अलग हैं। मणि के इस बयान को राज्य में कांग्रेस और भाजपा ने कड़ी आलोचना की और कहा है कि वामपंथी दलों की हिंसा पर से पर्दा उठ गया है। एमएम मणि यह बयान देकर फंस गए हैं। पुलिस ने उनके खिलाफ हत्या व अन्य मामलों में केस दर्ज कर लिया है। थोडुपुझा पुलिस ने मणि के इस बयान के मद्देनजर मामला दर्ज किया है कि इडुकी जिले में 1980 के दशक में राजनीतिक हत्याओं के पीछे सीपीआई-एम का हाथ था। राज्य के गृहमंत्री राधाकृष्णन ने कहा कि सरकार कानून को अपना काम करने देगी। पार्टी के वरिष्ठ नेता अच्युतानन्दन ने मणि की टिप्पणी पर कहा कि इसकी भर्त्सना की जानी चाहिए। मणि जिस समय की इडुकी जिले में राजनीतिक हत्याओं का जिक्र कर रहे हैं उस समय अच्युतानन्दन पार्टी के राज्य सचिव थे। श्री मणि ने अपनी पार्टी के हिंसक तौर-तरीकों का जो व्यापक खुलासा किया है, वह सिर्प स्तब्ध करने वाला नहीं है इससे यह भी पता चलता है कि वर्ग भेद के खात्मे की बात करने वाला वाम किस तरह अपने विरोधियों को ही खत्म करने में विश्वास करता है। यह मामला दरअसल माकपा के एक बागी नेता टीपी चन्द्रशेखरन की पिछले दिनों हुई हत्या से जुड़ा है, जिसके सिलसिले में माकपा के कई कार्यकर्ता गिरफ्तार किए गए हैं। यह संयोग नहीं है कि मणि के सनसनीखेज खुलासे से कुछ ही समय पहले बंगाल में माकपा के एक पूर्व मंत्री को इसलिए गिरफ्तार किया गया, क्योंकि उनके घर के सामने नरकंकालों का ढेर बरामद हुआ था। केरल सरकार ने मणि के खुलासे के आधार पर जांच के आदेश दिए हैं। लाजिमी है कि बन्द हो चुके पुराने मामले भी खुल जाएंगे और न जाने कितने नरकंकाल और मिलेंगे। हमारे कामरेड अपने प्रतिद्वंद्वियों की आवाज बन्द करने के लिए हत्या का हथियार इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं करते।
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कांग्रेस के हाथों से फिसलता आंध्र प्रदेश ः गिरफ्तारी की राजनीति

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 31 May 2012
अनिल नरेन्द्र
आंध्र प्रदेश के पूर्व लोकप्रिय मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी के सांसद बेटे जगनमोहन रेड्डी की भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तारी पर हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ। यह तो होना ही था। जगनमोहन रेड्डी बहुत दिनों से कांग्रेस नेतृत्व की आंख में किरकिरी बने हुए थे। तीन दिन की गहन पूछताछ के बाद सीबीआई ने आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले आंध्र की हाई कोर्ट ने भी जगन को अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया था। जगन से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों में राज्य के अनेक नेता, अफसर, उद्योगपति और बिचौलिये पहले ही सीबीआई के शिकंजे में आ चुके थे। इसलिए जगन की पूछताछ और गिरफ्तारी की भविष्यवाणी पहले से ही चल रही थी। चर्चा तो यह थी कि पिता की कुर्सी की ताकत पर रातोंरात अरबपति बने इस युवा नेता को सीबीआई पहले ही दिन सलाखों के पीछे डाल देगी, लेकिन सीबीआई ने यह काम तीसरे दिन किया। इस विलम्ब के पीछे कहीं इस धारणा को निर्मूल करना तो नहीं था कि जगन को सलाखों में डालने की वजह भ्रष्टाचार से अधिक आंध्र की राजनीति में छुपी है। इसमें कोई शक नहीं कि राजशेखर रेड्डी की हादसे से मौत के बाद से बेटे जगन ने कांग्रेस के नाक में दम कर रखा था। कहते हैं कि हेलीकाप्टर हादसे से मौत के बाद राजशेखर रेड्डी का अंतिम सस्कार भी नहीं हुआ था कि वहां शोक प्रकट करने गए कांग्रेस के आला नेताओं के आगे जगन ने खुद को पिता की कुर्सी का वारिस होने की इच्छा प्रकट कर दी थी। पार्टी आला कमान को यह गंवारा नहीं था, क्योंकि पिता की ताकत पर अकूत दौलत के मालिक बन बैठे जगन के भ्रष्टाचार के किस्सों से अधिक उसे जगन की आसमानी महत्वाकांक्षा का डर था। यह विचित्र है कि गिरफ्तारी से जगन को सहानुभूति का लाभ मिलने और कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान हेने के आसार जताए जा रहे हैं। इस विरोधाभास के लिए किसी हद तक खुद कांग्रेस जिम्मेदार है। उसने कभी यह प्रदर्शित नहीं किया कि जगनमोहन रेड्डी की अवैध कमाई उसके लिए चिन्ता की कोई बात है। उसे परेशानी तब महसूस हुई जब जगन की महत्वाकांक्षा हिलोरे लेने लगी और वे अपने पिता के राजनीतिक उत्तराधिकारी का दावा कर बैठे। यह महज इत्तेफाक नहीं कहा जा सकता कि जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ सीबीआई जांच तब शुरू हुई जब उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर वाईएसआर कांग्रेस के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। आंध्र प्रदेश कांग्रेस का गढ़ रहा है। 2004 और पिछले चुनावों में भी उसे सबसे ज्यादा सीटें इसी राज्य से मिलीं। लेकिन राजशेखर रेड्डी के दिवंगत होने के बाद राज्य में जितने भी उपचुनाव हुए उन सब में कांग्रेस को बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी है। तेलंगाना में टीआरएस की बड़ी ताकत उसके लिए अलग सिरदर्द बनी हुई है। 12 जून को राज्य में लोकसभा की एक और विधानसभा की 18 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। राजनीतिक पंडितों का ख्याल है कि उपचुनावों में भी कांग्रेस की झोली खाली रह सकती है। अगले लोकसभा चुनाव में भी अब कांग्रेस वह उम्मीद नहीं कर सकती जो सफलता उसे पिछले चुनाव में मिली थी। कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए आंध्र प्रदेश एक चुनौती बनती जा रही है।
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Wednesday, 30 May 2012

डिनर डिप्लोमेसी से एक तीर से कई शिकार करने का प्रयास

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 30 May 2012
अनिल नरेन्द्र
जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर कांग्रेस ने एक बार फिर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। यूपीए-2 के तीन वर्ष पूरे होने के मौके पर हुए आयोजन में मुलायम सिंह यादव को दिए सम्मान का तात्कालिक महत्व भले ही न हो पर इससे कांग्रेस की रणनीति की साफ झलक जरूर मिलती है। मजेदार बात यह है कि युवराज राहुल गांधी ने जिस समाजवादी पार्टी का हाल ही में सम्पन्न हुए यूपी विधानसभा चुनाव में घोषणा पत्र फाड़ा था उसी के मुलायम सिंह यादव न केवल यूपीए सरकार की उपलब्धियों की रिपोर्ट कार्ड ही जारी करते दिखे बल्कि डिनर टेबल पर उन्हें सोनिया गांधी ने अपने टेबल पर स्थान दिया। यूपीए खासतौर से कांग्रेस और सपा के रिश्ते को 1999 से देखना चाहिए, जब मुलायम सिंह यादव ने एनडीए सरकार के एक वोट से गिरने के बाद ऐन मौके पर सोनिया गांधी को समर्थन देने की चिट्ठी देने से इंकार कर दिया। अगर उस समय सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं तो इसकी एक वजह मुलायम का विरोध था। इसके बाद 2004 को दूसरा मोड़ आया जब मुलायम उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक जीत हासिल करने के बाद भी यूपीए सरकार के बुलावे का इंतजार ही करते रह गए। अब यह तीसरा दौर शुरू हो रहा है। राजनीति में न तो कोई स्थायी शत्रु होता है और न ही स्थायी मित्र। इसलिए हमें ताज्जुब नहीं हुआ कि जिस समाजवादी पार्टी का घोषणा पत्र राहुल ने फाड़ा आज उसी के मुखिया को इतना सम्मान वही पार्टी दे रही है। कांग्रेस ने मुलायम के सम्मान के माध्यम से सीधा संदेश ममता बनर्जी को देने का प्रयास किया है। बात-बात पर यूपीए सरकार को आंखें दिखाने वाली ममता के लिए यह संकेत है कि यदि वह किसी बात पर सरकार से समर्थन वापस लेती हैं तो सपा की ठंडी छांव में सरकार को सहारा मिल सकता है। मुलायम के सहारे से कांग्रेस ने सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस को यह एहसास करा दिया कि उसने बात-बात पर केंद्र सरकार पर ज्यादा दबाव बनाया तो सपा सरकार का हिस्सा बन सकती है। मगर इसके बावजूद आज मुलायम का पलड़ा भारी दिखता है। यूपी विधानसभा चुनाव में 225 सीटें जीतने के बाद यदि उनकी पार्टी उन्हें प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर देख रही है तो इसमें ही भावी राजनीति की पुंजी भी छिपी है। इसलिए हमें तो नहीं लगता कि मुलायम सिंह जैसा राजनीति में शातिर खिलाड़ी कांग्रेसियों की चालबाजी में इतनी आसानी से फंसेंगे। हां उत्तर प्रदेश में केंद्र की मदद के लिए यूपीए के साथ मधुर संबंध रखना सपा की मजबूरी है पर यदि वह यूपीए में शामिल होते हैं तो यह उनके लिए आत्मघाती भी हो सकता है। यही बात ममता पर भी लागू होती है, जिनकी कीमत पर मुलायम के साथ आने की अटकलें हैं। ममता भी जानती हैं कि अभी यूपीए में बने रहना ही उनके लिए लाभदायक है, क्योंकि सरकार में रह कर पश्चिम बंगाल के लिए वह जो दबाव अन्दर रहकर बना सकती है वह सरकार से बाहर निकलने पर नहीं बना सकेगी। कांग्रेस का मुलायम को सम्मान देने के पीछे एक और कारण यह हो सकता है कि राष्ट्रपति चुनाव सिर पर हैं। बिना सपा के समर्थन से कांग्रेस अपना उम्मीदवार चुनवाने में दिक्कत महसूस कर सकती है।
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आईपीएल-5 रोमांचक रहा पर शक के दायरे में ही आया

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Published on 30 May 2012
अनिल नरेन्द्र
आईपीएल-5 शानदार तरीके से समाप्त हुआ। रविवार को खेला गया फाइनल मैच बहुत ही रोमांचक था। अगर यह कहें कि आईपीएल-5 का समापन मैच इससे अच्छा नहीं हो सकता था तो शायद गलत न होगा। शाहरुख खान की टीम कोलकाता नाइट राइडर्स आखिरकार पांचवीं कोशिश में पास हो गई। रविवार को खेले गए फाइनल में केकेआर ने पिछले दो बार के चैंपियन चेन्नई सुपरकिंग्स को पांच विकेट से हरा दिया। मैच का फैसला आखिरी ओवर की चौथी गेंद पर हुआ। विजेता टीम को 10 करोड़ और उपविजेता को 7.50 करोड़ रुपये की इनामी राशि मिली। किस्मत ने केकेआर का निश्चित रूप से साथ दिया। कम से कम दो किस्से ऐसे हुए जिससे केकेआर की जीत सम्भव हो सकी। पहला तब हुआ जब कैलिस ने एक शाट मारा। बाउंड्री पर खड़े माइक हसी ने कैच लपक तो लिया पर वह बाउंड्री लाइन क्रॉस कर गए। जिस बॉल पर कैलिस को आउट होना था वह छक्के में बदल गई। दूसरा किस्सा तब हुआ जब हिलफेन हास ने शाकीब अल हसन को गेंद फेंकी। शाकीब ने शाट मारा और और कैच हो गए पर कैच होने से पहले वह दो रन भाग चुके थे। एम्पायर ने इस बॉल को कमर से ऊपर होने के कारण वाइट करार दिया। वाइट होने के कारण हिलफेन हास को दोबारा बॉल करनी पड़ी और इस बार शाकीब ने चौका मार दिया। इस तरह एक ही बॉल से केकेआर को 7 रन मिल गए और उस समय केकेआर को 7 बॉलों में 16 रनों की दरकार थी। इन 7 रनों ने आखिरी ओवर का लक्ष्य आसान कर दिया। मनोज तिवारी ने दो चौके लगा दिए और केकेआर चैंपियन बन गया। केकेआर की यह पहली जीत थी। मालिक शाहरुख खान की खुशी का ठिकाना देखने लायक थी। शानदार टूर्नामेंट का शानदार क्लाइमैक्स रहा पर आईपीएल-5 विवादों से नहीं बच सका। सबसे बड़ा विवाद तो दिल्ली डेयर डेविल्स की परफार्मेंस को लेकर था। विवादित क्रिकेट लीग बनकर उभरी आईपीएल में गड़बड़ी का शक भी होने लगा है। क्या आईपीएल के रिजल्ट पहले से ही तय थे? शक करने के कई कारण दिखाई देते हैं। क्वालीफायर-1 और क्वालीफायर-2 में दिल्ली डेयर डेविल्स के अजीबो-गरीब फैसलों और आईपीएल की वेबसाइट में क्वालीफायर-2 के रिजल्ट के पहले ही दोनों फाइनलिस्टों के नाम आने के बाद शक होना लाजिमी है। 22 मई को केकेआर के खिलाफ पहले क्वालीफायर में भी सहवाग की कप्तानी में ऐसे फैसले देखने को मिले जिससे लगा कि दिल्ली हारने के लिए ही उतरी है। स्पिन ट्रैक होने के बावजूद सहवाग ने उस मैच में सिर्प एक स्पिनर को खिलाया जबकि केकेआर की ओर से तीन स्पिनर उतरे। यही नहीं लक्ष्य का पीछा करने उतरी दिल्ली ने टेलर और इरफान पठान से पहले अपेक्षाकृत धीमी बल्लेबाजी करने वाले वेणुगोपाल राव और पवन नेगी को बल्लेबाजी के लिए उतारा। इन दोनों की धीमी बल्लेबाजी की वजह से बाद में टेलर और इरफान के लिए लक्ष्य पाना बहुत मुश्किल हो गया। यह सिलसिला यहीं नहीं थमा। क्वालीफायर-2 में तो सहवाग ने बीसीसीआई अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन की टीम चेन्नई सुपरकिंग्स के फाइनल में जाने के सारे रास्ते खोल दिए। शुक्रवार को हुए इस मैच में सहवाग ने चेन्नई की पिच पर टास जीतने के बावजूद पहले गेंदबाजी की। यही नहीं पूरे टूर्नामेंट में टाप फार्म में रहे दक्षिण अफ्रीकी तेज गेंदबाज मोर्नी मोर्केल को इस मैच में नहीं खिलाया गया और इनकी जगह कैरेबियाई आलराउंडर आद्रेरसल को शामिल कर लिया। सहवाग के इस निर्णय पर धोनी ने भी आश्चर्य जाहिर किया। यही नहीं पूरे टूर्नामेंट में बढ़िया प्रदर्शन करने वाले स्पिनर शाहबाज नदीम की जगह इस मैच में सन्नी गुप्ता को शामिल किया और उनसे पहला ही ओवर करवा डाला। गुप्ता ने तीन ओवर में 47 रन दिए और एक भी सफलता उनके हाथों में नहीं लगी। यही नहीं सहवाग ने इस टूर्नामेंट में पहली बार गेंदबाजी में हाथ आजमाए और एक ही ओवर में 21 रन दिए। सबसे आश्चर्य की बात यह रही कि 223 रन की विशाल लक्ष्य का पीछा करने उतरी दिल्ली के ओपनिंग बल्लेबाजों में वीरेन्द्र सहवाग नदारद थे। उन्होंने वार्नर के साथ ओपनिंग में माहेला जयवर्द्धने को उतारा। उनमें न तो कांफिडेंस नजर आई और उनकी बाडी लैंग्वेज ने सारी कहानी कह डाली। वह सिर्प एक रन बनाकर चलते बने। माहेला जयवर्द्धने अच्छा खेल रहे थे पर एक बॉल पर जब वह बीट हुए तो वह खड़े तमाशा देखते रहे। उन्होंने वापस बैट रखने की कोई कोशिश नहीं की जबकि वह सम्भव है कि स्टम्प होने से बच सकते थे। दिल्ली डेयर डेविल्स ने अपने दिल्ली के फैंस को न केवल नाराज किया बल्कि सहवाग के आचरण से शक भी पैदा किया पर कुल मिलाकर आईपीएल-5 सफल रहा और सब ने इसका खूब मजा लिया। ऐसा नहीं कि टूर्नामेंट से कुछ अच्छा नहीं उभरा। कई युवा खिलाड़ी उभरे। बोर्ड ने यह भी फैसला किया कि आईपीएल नियमों की समीक्षा होगी और अगले सत्र में सभी घरेलू खिलाड़ियों की भी नीलामी होगी।
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Tuesday, 29 May 2012

टीम अन्ना की नई चार्जशीट में निशाने पर पीएम

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29 May 2012
अनिल नरेन्द्र
बस इसी की कसर बची थी। टीम अन्ना ने वह काम कर दिया जो किसी और ने नहीं किया। पधानमंत्री मनमोहन सिंह पर पहली बार भ्रष्ट होने का आरोप लगा दिया। पधानमंत्री के बारे में अकसर यही कहा जाता था कि वह एक भ्रष्ट सरकार में एक ईमानदार नेता हैं। पर टीम अन्ना ने तो पहली बार सीधे पधानमंत्री और वित्त मंत्री पर निशाना साध दिया। टीम अन्ना ने मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल के 13 अन्य मंत्रियों को भी इस सूची में डाला है जिन्हें वह भ्रष्ट मानते हैं। पधानमंत्री को इसलिए भ्रष्ट कहा गया है क्योंकि कोयला संबंधित नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक कथित रिपोर्ट में कुछ टिप्पणियां की गई हैं। सीएजी की इस कथित रिपोर्ट में कोयला मंत्रालय के जिस दौर के गड़बड़झाले का जिक बताया जा रहा है उस समय यह मंत्रालय खुद पधानमंत्री डॉ. सिंह के पास था। जिन मंत्रियों पर आरोप लगाए गए हैं उनमें गृहमंत्री पी. चिदंबरम (2जी स्पेक्ट्रम, एयरसेल - मैक्सिस डील), शरद पवार (गेंहूं आयात, लवासा, परियोजना, तेलगी स्टांप पेपर व दाल आयात घोटाला), एसएम कृष्णा ः सीएम के रूप में निजी खनन कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाना। कमलनाथ ः चावल नियति घोटाला। पफुल्ल पटेल ः एयर इंडिया व इंडियन एयरलाइंस के विलय में घोटाला। विलासराव देशमुख ः आदर्श घोटाला, सुभाष घई को जमीन आवंटन। वीरभद्र सिंह ः हिमाचल के मुख्यमंत्री रहते हुए अवैध नियुक्तियां। कपिल सिब्बल ः रिलायंस टेलीकॉम पर लगे जुर्माने को नगण्य करना। सलमान खुर्शीद ः 2जी स्पेक्ट्रम में रिलायंस और एस्सार को बचाना। जीके वासन ः कांडला पोर्ट की जमीन कौड़ियों के भाव पर लीज पर देना। फारुख अब्दुल्ला ः जम्मू-कश्मीर किकेट एसोसिएशन घोटाला। एके अलागिरी ः मंदिर की जमीन हड़पना, चुनाव अधिकारी को धमकाना। सुशील कुमार शिंदे ः आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला। टीम अन्ना ने आगे कहा कि पधानमंत्री समेत सरकार के इन 15 मंत्रियों के खिलाफ जांच करने हेतु एक विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाया जाए। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं करने पर वह 25 जुलाई से आंदोलन चलाएंगे। पधानमंत्री को लिखे पत्र में अन्ना और उनकी टीम ने कहा कि उन्हें सरकार की जांच एजेंसियों पर भरोसा नहीं है। इसलिए जांच सुपीम कोर्ट के तीन रिटायर्ड जजों के विशेष दल से कराई जाए। उन्होंने छह जजों के नाम भी सुझाए हैं। यह तो सम्भावना थी कि जिस तरह लोकपाल के मुद्दे पर मनमोहन सरकार ने टालमटोल की उसकी पतिकिया होगी। सिविल सोसाइटी ने तो एक नया मोर्चा ही खोल डाला। हालांकि मंत्रियों के नाम और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप वही पुराने हैं जो अन्ना पहले ही लगा चुके हैं पर पीएम का नाम लेना पूरी लड़ाई को एक नया मोड़ जरूर देता है। अब यह लड़ाई एक तल्ख मोड़ लेने जा रही है। टीम अन्ना ने सीधा टकराव का रास्ता अख्तियार किया है। महत्वपूर्ण तो भारत की जनता है। हमने देखा कि यूपी विधानसभा चुनाव में टीम अन्ना का ज्यादा पभाव नहीं पड़ा है। टीम अन्ना की तरफ से ताजे आरोपों के कथित सबूतों के साथ मंत्रियों का नाम सार्वजनिक रूप से लेने से यूपीए सरकार खासकर पधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि पर यह एक और धब्बा लगा है और इसका नुकसान यह जरूर हुआ है कि उस पर भ्रष्टाचार के कुछ और छींटें पड़े हैं। यह इस सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता। मनमोहन सिंह पर पहली बार सीधा हमला किया गया है। वैसे टीम अन्ना को अपनी बात से मुकरने की आदत भी बन चुकी है।

बहुचर्चित आरुषि हत्याकांड में मां-बाप पर चलेगा हत्या का मुकदमा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29 May 2012
अनिल नरेन्द्र
बहुचर्चित आरुषि-हेमराज की हत्या के मामले में आखिर मुकदमा शुरू हो गया है। बृहस्पतिवार को सीबीआई अदालत ने आरुषि के माता-पिता डॉ. राजेश तलवार और डॉ. नूपुर तलवार के खिलाफ हत्या, सबूतों को नष्ट करने तथा न्यायालय एवं पुलिस को गुमराह करने के आरोप तय करने का फैसला सुनाया और इसके साथ ही नोएडा में चार वर्ष पूर्व आरुषि तलवार और हेमराज की हत्या के सनसनीखेज मामले में मुकदमा शुरू हो गया। आरुषि की हत्या 16 मई 2008 को हुई थी। उससे अगले दिन नौकर हेमराज का शव मकान की छत पर मिला था। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश श्याम लाल ने अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुनाया कि डाक्टर दम्पति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और धारा 201 (सबूतों को नष्ट करना) के तहत मुकदमा चलेगा। अभियुक्तों के खिलाफ धारा 34 भी लगाई गई है जिसके तहत अन्य लोगों के साथ मिलकर वारदात को अंजाम देना शामिल है। जब अदालत ने यह आदेश सुनाया तो आरोपियों के चेहरों पर तनाव साफ नजर आया। सीबीआई अदालत में तलवार दंपति के वकील ने कोर्ट में याचिका देकर आरोप तय करने को 15 दिन टालने का पयास किया। इसका विरोध सीबीआई के वकील ने किया। बहस के बाद विशेष न्यायाधीश ने तलवार दंपति के वकील की अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद डासना जेल के अंदर चल रहे मुकदमे में जज ने नूपुर-राजेश तलवार से पूछा, आरुषि-हेमराज मर्डर केस में आपके खिलाफ आईपीसी की धारा 302 सपठित धारा-34 (एक समान उद्देश्य से हत्या करना) और 201 और सपठित धारा-34 (एक समान उद्देश्य से सबूत मिटाने) के आरोप हैं। इसके अलावा राजेश तलवार पर आईपीसी की धारा-203 (पुलिस को गुमराह करने) का आरोप है। क्या यह आरोप आपको स्वीकार है। तलवार दंपति ने आरोपों को निराधार बताते हुए ट्रायल केस करने की बात कही। कोर्ट ने उन पर आरोप तय करते हुए 4 जून से ट्रायल केस चलाने का आदेश दिया। अभियोजन पक्ष ने तलवार दंपति पर हत्या के सबूतों को नष्ट करने का आरोप लगाते हुए अदालत से कहा कि तलवार दंपति ने वारदात के बाद आरुषि के कमरे की दीवारों को धोकर खून के धब्बे मिटाने की कोशिश की थी, आरुषि के बिस्तर की चादर बदल दी गई। इतना ही नहीं आरुषि की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को भी बदलने की कोशिश की गई थी। जज ने कहा कि तलवार दंपति पर केस चलाने के लिए पथम दृष्टया काफी सबूत हैं। सुपीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई फैसलों का उदाहरण देते हुए जज ने कहा कि आरोप तय किए जाने के समय सबूतों का गहन परीक्षण अनिवार्य नहीं होता और इस मामले में ऐसे काफी तथ्य उपलब्ध हैं जिसके आधार पर आरोप तय हो सकते हैं। तलवार दंपति ने आरोपों को निराधार बताते हुए ट्रायल केस करने की बात कही और उनके वकील ने कहा कि मामले को बंद करने संबंधी रिपोर्ट में स्वयं स्वीकार किया था कि तलवार दंपति के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। बचाव पक्ष की दलील थी कि जांच एजेंसी अपराध सिद्ध करने में असफल रही है तथा पत्यक्ष अथवा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से सीबीआई के आरोप सिद्ध नहीं होते। 4 जून से मुकदमे की सुनवाई हो रही है। देखना यह है कि क्या सीबीआई तलवार दंपति पर लगे आरोपों, हत्या के उद्देश्य को साबित कर सकती है या नहीं?
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Sunday, 27 May 2012

दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27 May 2012
अनिल नरेन्द्र
भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी भारी पड़ गए। पार्टी में संघ की नहीं चली और संजय जोशी को भाजपा कार्य समिति की बैठक से पहले बाहर का रास्ता दिखाना ही पड़ा। मोदी के दबाव में गडकरी और संघ नतमस्तक दिखे। पार्टी सूत्रों ने बताया कि मोदी ने साफ कहा कि अगर कार्य समिति में संजय जोशी आए तो बैठक से खुद को दूर रखने को मजबूर होंगे। गडकरी ने बुधवार शाम को फोन से बात की थी। गडकरी ने कोर कमेटी की बैठक में मोदी से बातचीत का सार रखा। सूत्रों के मुताबिक कुछ वरिष्ठ भाजपा नेता मोदी की धमकी को स्वीकार्य करने के इच्छुक नहीं थे मगर गडकरी और संघ के दबाव के चलते संजय जोशी को दो लाइन का इस्तीफा फैक्स से भेजना पड़ा। दरअसल मोदी और गडकरी में सौदे की सुगंध आ रही है। मोदी ने शर्त रखी कि जोशी को बाहर करो और गडकरी ने शर्त रखी कि मुझे दूसरा कार्यकाल देने का आप समर्थन करें। अब लगता है कि गडकरी के दूसरे कार्यकाल मिलने में सभी रुकावटें दूर हो गई हैं और उन्हें दूसरा कार्यकाल मिलना लगभग तय है। गडकरी का तीन साल का कार्यकाल 25 दिसम्बर को पूरा हो रहा है। इस प्रस्ताव के लिए बाकायदा संगठन के संविधान में संशोधन किया जाना प्रस्तावित था, जिसे अमली जामा पहनाया गया। पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने औपचारिक रूप से बैठक में अध्यक्ष के कार्यकाल को एक्सटेंशन दिए जाने का प्रस्ताव रखा जिसका दूसरे पूर्व अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने अनुमोदन किया। इस सौदे का एक पहलू यह भी है कि केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य छत्रप के प्रभाव को स्वीकार कर लिया है। यह न तो भाजपा के लिए अच्छा संकेत है और न ही संघ के लिए। राष्ट्रीय पार्टी की छवि को लेकर जिस भाजपा को राष्ट्रवाद और अनुशासन के लिए जाना जाता था अब उस सिद्धांत पर पानी फिरता नजर आ रहा है। भाजपा का बौना होता नेतृत्व और उस पर हावी होते राज्य छत्रप संघ के लिए चुनौती बन गए हैं। राजस्थान में वसुंधरा राजे, गुजरात में नरेन्द्र मोदी और कर्नाटक में वीएस येदियुरप्पा से जो चुनौतियां मिल रही हैं वह भाजपा को कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरने से भी रोक रही है। भाजपा अध्यक्ष गडकरी के कार्यकाल को बढ़ाकर संघ भाजपा पर अपनी पकड़ जरूर साबित करना चाह रहा है लेकिन वह इकबाल और इस्तकबाल नहीं दिख रहा जो भाजपा में पहले होता था। भाजपा के इतिहास में यह पहला मौका है जब भाजपा को संघ की ओर से नियुक्त करवाए गए व्यक्ति को हटाना पड़ा है। इससे भी साबित होता है कि संघ की भाजपा पर पकड़ कमजोर होती जा रही है। हमें लगता है कि भाजपा के अन्दर भी ऐसे नेता हैं जो चाहते हैं कि संघ की भाजपा मामलों में दखलअंदाजी कम हो। पूरे प्रकरण में जहां नरेन्द्र मोदी की जीत हुई है वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक मायने में हार हुई है। इससे नरेन्द्र मोदी का कद और बढ़ेगा और दुनिया को उन्होंने साबित कर दिया कि दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए।
Anil Narendra, BJP, Daily Pratap, L K Advani, Narender Modi, Nitin Gadkari, RSS, Sushma Swaraj, Vir Arjun

पेट्रोल कीमतें ः समझें इस सरकार के बहाने, छलावे और चालाकी...(2)

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27 May 2012
अनिल नरेन्द्र
इस मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार की चालबाजियों, छल और इसके ही स्वामित्व की इन तेल कम्पनियों ने आज भारत में पेट्रोल दुनिया में सबसे महंगा पेट्रोल बना दिया है। आज की तारीख में दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 73.18 रुपये प्रति लीटर है। अन्य महानगरों में यह इससे भी ज्यादा है। अमेरिका जैसे देश में जहां आम आदमी की आमदनी हमसे बहुत ज्यादा है, में पेट्रोल 44.88 रुपये प्रति लीटर है। कराची में यह भाव 48.64 रुपये है। बीजिंग में 48.05 रुपये है, ढाका में 52.42 है, कोलम्बो में 61.38 है और नेपाल जैसे छोटे मुल्क में भी यह 65.26 रुपये प्रति लीटर है। पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि से और सारी वस्तुओं के दामों पर भी सीधा असर होता है। तेज रफ्तार शहरों की जीवन शैली और महंगी होगी। बाइक, कार, तिपहिये, टैक्सियां महंगी होंगी। टैक्सी वालों ने तो हड़ताल करने का नोटिस भी दे दिया है। जाहिर-सी बात है कि परिवहन सेवाएं प्रभावित होंगी। खुदरा मूल्य में उन वस्तुओं और सेवाओं के दाम बढ़ेंगे जिनमें पेट्रोल का इस्तेमाल होता है और इसका सीधा प्रभाव उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा। मुद्रास्फीति वृद्धि चौतरफा महंगाई का सूचकांक है। महंगाई सुरसा की तरह मुंह फैला रही है। अब इसमें और भी वृद्धि होगी। सही बात तो यह है कि हमारे देश में केंद्र और राज्य सरकारों ने तेल विपणन को भी खजाना भरने का जरिया बना लिया है। पेट्रोल पर तो करों का बोझ इतना है कि ग्राहकों से इसकी दोगुनी कीमत वसूली जाती है। ताजा बढ़ोतरी के बाद दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 73.18 रुपये है और जबकि तेल विपणन कम्पनियों के सारे खर्चों को जोड़कर पेट्रोल की प्रति लीटर लागत 30 रुपये के आसपास ठहरती है। केंद्र सरकार जहां कस्टम ड्यूटी के रूप में साढ़े सात फीसदी लेती है वहीं एडिशनल कस्टम ड्यूटी के मद में दो रुपये प्रति लीटर, काउंटरवेलिंग ड्यूटी के रूप में साढ़े छह रुपये प्रति लीटर, स्पेशल एडिशनल ड्यूटी के मद में छह रुपये प्रति लीटर, सेनवेट के मद में 6.35 रुपये प्रति लीटर, एडिशनल एक्साइज ड्यूटी दो रुपये प्रति लीटर और स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी के मद में छह रुपये प्रति लीटर लेती है। राज्य सरकारें भी वैट, सरचार्ज, सेस और एंट्री टैक्स के मार्पत तेल में तड़का लगाती है। दिल्ली में पेट्रोल पर 20 फीसदी वैट है जबकि मध्य प्रदेश में 28.75 फीसदी, राजस्थान में 28 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 22 फीसदी है। मध्य प्रदेश सरकार एक फीसदी एंट्री टैक्स लेती है और राजस्थान में वैट के अलावा 50 पैसे प्रति लीटर सेस लिया जाता है। भारत दुनिया का अकेला देश है जहां सरकार की भ्रामक नीतियों के कारण विमान में इस्तेमाल होने वाले टरबाइन फ्यूल यानि एटीएफ पेट्रोल से सस्ता है। दिल्ली में पेट्रोल और एटीएफ की कीमतों में तीन रुपये का फर्प है और नागपुर जैसे शहर में तो एटीएफ पेट्रोल से सस्ता है। आर्थिक मामलों में किस तरह राजनीति है, इसका ताजा प्रमाण है पेट्रोल के मूल्य में साढ़े सात रुपये की भारी वृद्धि। केवल पेट्रोल महंगा करने का निर्णय इसकी गवाही देता है कि सरकार वोट बैंक प्रधान नीति के चलते शहरी उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ डाल रही है। ऐसा करके एक तरह से शहरी आबादी से वह भारी-भरकम सब्सिडी भी वसूल कर रही है जो डीजल, केरोसिन आदि पर दी जा रही है और जिसके बारे में यह पता है कि इसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होता है। दरअसल इसी कारण वक्त की मांग के बावजूद डीजल, केरोसिन और रसोई गैस के दामों को बढ़ाने से सरकार कतराती है क्योंकि यह विपक्ष को छोड़ो उसके सहयोगी दलों को भी स्वीकार्य नहीं है और इसमें किसी भी प्रकार की वृद्धि से कांग्रेस पार्टी का वोट बैंक प्रभावित होगा। (समाप्त)
Anil Narendra, Daily Pratap, Manmohan Singh, Petrol Price, Vir Arjun

Saturday, 26 May 2012

Obama refuses to meet Zardari

Anil Narendra

Pak President, Asif Ali Zardari had gone to Chicago to attend the NATO Conference in the hope of mending the deteriorating US-Pak relations and finding a new direction to their relations. But, it appears that he has been unsuccessful in his endeavour. The US President Barak Obama refused to meet Mr. Zardari. Obama clearly said that until and unless an agreement to open the supply route for US forces in Afghanistan is concluded, the meeting would not be possible. With this, hopes of ending the bitterness between the two have also been completely dashed. Even the issue of the use of Pakistan territory as a supply route for the NATO forces in Afghanistan has also been jeopardized. The White House has also confirmed that Obama could not find time to meet President Zardari. As if to add fuel to fire, Barak Obama did not mention the name of Pakistan among the names of nations, to whom he expressed his gratitude for helping in logistic supplies to the forces in Afghanistan. This could clearly be seen as an act of indifference toward Pakistan. On the second and the last day of the Conference, Obama said, 'I am grateful to President Hamid Karzai and also to the officials of Central Asian countries and Russian authorities in providing important transit routes to the ISAF in Afghanistan.' The present tension between these two countries emanates from the US air raid on a Pakistan check post last year, during which 24 Pak soldiers were killed. Following the attack, Pakistan has put a ban on the passage of supply trucks for NATO forces through its territory. The US has invited Zardari to the NATO Conference in the hope that he would agree to open the Pakistan-Afghanistan border for this transit route, but Pakistan has put forward three conditions for opening this supply route and use of its roads. Pakistan wants: US should publicly apologize for the killing of Pak soldiers; review of US policy about drone attacks inside Pakistan territory; and raising the current fee of $ 250 for using Pak roads to $ 5,000. It appears that US is not in a mood to accept these demands of Pakistan. Heads of State and representatives of 50 countries including 28 member countries participated in the two-day NATO Conference. Speaking on the NATO supply issue after the Conference, Obama said, 'we had not expected that the impasse over the NATO supply issue would end, but we have been constantly in touch with Pakistan to resolve this issue'. Obama also said that no doubt, there had been tensions between the two countries for last few months, but it would be in the interest of US as well as Pakistan to work together against the militancy. Obama, however, agreed that the tensions in relations with Pakistan could harm US interests in Afghanistan. The last minute invitation to Zardari had rekindled the hopes that the differences between the countries are being bridged, but it was not so. Zardari had reached Chicago, the home town of Barak Obama hoping to get an opportunity to meet Obama and have direct dialogue with him. But he was not lucky enough to get this opportunity, whereas his Afghan counterpart Karzai could get to interact directly with Obama. The only little time, Zardari was able to snatch to talk to US President, was just the occasion of photo session. Tension still continues. The US has planned to withdraw its forces from Afghanistan by 2014 and we don't think that it would be possible for it to complete this process without Pakistan's help. As such, this tug of war would continue for some more time, negotiations would also continue and finally it would be the US, who would have to yield.

Manmohan Government’s three years of achievements : Disappointment and Desperation

- Anil Narendra

The UPA Government, on its third anniversary, has given a magnificent gift to the nation. It has raised the petrol prices in a stroke by Rs 7-50 per litre. The value of rupee has plunged to all time low. Rupee's value vis-à-vis dollar has reached to 55.39. Inflation is also galloping and the beauty of all this is that the government claims all this beyond its control. It is helpless in the face of international trends. It appears that now, the government has started thinking this as its last inning and can do whatever it wants, as it is not going to make any difference. Since it would not be coming to power again, it is free to take whatever decisions, right or wrong, it wants to take . People are helpless and they can't do any thing. Perhaps people had never dreamt that electing such a Government would prove disastrous for them. The image of the Congress-led UPA Government has gone to such a low that in case elections are held in the immediate future, it is sure to fall flat. According to a survey by the News Channel IBN-7, people are very angry with the UPA Government. When asked about a second chance for UPA Government, 49% persons replied in negative. Not only this, 55% persons were of the opinion that Manmohan Singh should remain as the Prime Minister. 33% of the respondents said that Rahul Gandhi should replace Manmohan Singh as the Prime Minister, whereas 20% were in favour of Pranab Mukherjee and only 7% wanted Sonia Gandhi to be appointed as Prime Minister. Inflation was the main reason for displeasure with the Government. When asked about major failure of Manmohan Government, 31% persons stated unbridled prices as the main reason. 17% persons considered corruption as the biggest failure, whereas 13% opined that halting growth rate is a major factor. 10% respondents said that Manmohan Singh failed to take prompt decision in case of emergency. A total of 59% persons were not satisfied with the work of the Government. Replying to a question about who should be the Prime Minister, in case NDA comes to power, 39% were in favour of Narendra Modi, whereas 17% voted for LK Advani. On the completion of three years of the Government, Prime Minister Dr Manmohan Singh issued a report card on the achievements of the Government on Tuesday. The Prime Minister did not even mention about inflation on this occasion. The bitter truth is that the Government does not have any achievement to boast about to the people. This Government's only gifts to the people are inflation, corruption and disappointment. The Government has surpassed all the records of mal-governance. The wrong policies of the Government have led to outflow of capital. There is neither any plan to manage financial deficit nor any guarantee. As a result, rupee has reached the record low level. The entire economy is on the verge of a crash. Scams have spread restlessness throughout the country. On one pretext or the other, steps like Lokpal and Lokayukta capable of bridling corruptions are being deferred. Scams have also penetrated MNREGA like revolutionary schemes. People have started thinking that this Government is not interested in stopping scams. Bumper crops are there, but where are storage facilities for storing the food grains. As a result, food grain is rotting. Formers are finds no way out of their miseries, but to commit suicide. Youths are not getting jobs. And, the Government has only one excuse for every ill and that is the compulsion of alliance politics. Naxalism is spreading its tentacles, as the Government neither has any policy nor any will to confront the menace. There is an atmosphere of desperation all over the country and people are unable to decide what to do. Had the public got the weapon to put an end to such a Government, they would not have taken even ten seconds to do it.

पेट्रोल कीमतें ः समझें इस सरकार के बहाने, छलावे और चालाकी...(1)

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 26 May 2012
अनिल नरेन्द्र
मैंने अनेक बार इसी कॉलम में लिखा है कि देश इस सरकार और मुट्ठीभर तेल कम्पनियों की धांधलियों को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। सरकार हर बार पेट्रोल के दाम बढ़ाकर अपना पल्ला यह कहकर नहीं झाड़ सकती कि हम क्या करें, यह फैसला तो तेल कम्पनियों का है। देश चाहता है कि इन तेल कम्पनियों की झूठी दलीलों और सरकार की बदनीयती का पर्दाफाश हो पर इससे पहले कि मैं तेल कम्पनियों की बकवास दलीलों की बात करूं, मैं चाहता हूं कि हम इस सरकार का सोचने के ढंग को समझें। अर्थशास्त्रियों और वकीलों से भरी पड़ी कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पेट्रोल को अमीरों का ईंधन मान बैठी है। हकीकत यह है कि देश के 60 फीसदी से ज्यादा दुपहिया, तिपहिया वाहनों की बिक्री छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में होती है। महानगरों में निम्न मध्य वर्ग ही पेट्रोल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। किसी भी पेट्रोल कीमत की वृद्धि का सीधा असर इन वर्गों पर पड़ता है। इनकी आमदनी तो इतनी बढ़ी नहीं और खर्चे बेशुमार बढ़ते जा रहे हैं। यह अपना घर-बार कैसे चलाएं, क्या काम पर जाना छोड़ दें? क्या करें? जहां तक इन तेल कम्पनियों की बात है तो भारत की यह विडम्बना है कि 90 फीसदी तेल कारोबार पर सरकारी कम्पनियों का नियंत्रण है और सरकार की मानें तो ये कम्पनियां जनता को सस्ता तेल बेचने के कारण भारी घाटे में हैं। दूसरी ओर प्रतिष्ठित फार्च्यून पत्रिका के अनुसार दुनिया की आला 500 कम्पनियों में भारत की तीनों सरकारी कम्पनियांöइंडियन ऑयल (98), भारत पेट्रोलियम (271) और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम (335) शामिल हैं। तेल और गैस उत्खनन से जुड़ी दूसरी सरकारी कम्पनी ओएनजीसी भी फार्च्यून 500 में 360वीं रैंक पर है। फिर हर साल यह प्रधानमंत्री को मोटे-मोटे शुद्ध लाभ के चेक भी भेंट करते हैं। आखिर यह कैसे सम्भव है कि सरकार घाटे का दावा कर रही है लेकिन तेल कम्पनियों की बैलेंसशीट खासी दुरुस्त है? 2011 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक इंडियन ऑयल को 7445 एचपीसीएल को 1539 और बीपीसीएल को 1547 करोड़ रुपये का फायदा हुआ है, वह भी टैक्स चुकाने के बाद। इस सच्चाई के बाद भी सरकार लगातार इन कम्पनियों के घाटे की झूठी दलीलें देने से बाज नहीं आ रही। हमें इस सरकार के बहानों, छलावे और चालाकी को समझना होगा। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत की दलील दी जा रही है। तेल कम्पनियों का कहना है कि 80 प्रतिशत तेल विदेश से मंगाना पड़ता है और भुगतान डॉलर में करना पड़ता है। चूंकि एक डॉलर 56 रुपये का हो चुका है इसलिए ज्यादा कीमत देनी पड़ रही है। सच यह है कि 15 मई 2011 को जब पेट्रोल 5 रुपये महंगा हुआ था, तब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कूड ऑयल यानि कच्चा तेल 114 डॉलर प्रति बैरल था जबकि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत थी 46 रुपये। इस हिसाब से हमें एक बैरल तेल के लिए 5244 रुपये चुकाने पड़ते थे। आज कूड 91.47 डॉलर प्रति बैरल है और एक डॉलर 56 रुपये का है। साफ है कि आज के भाव से एक बैरल तेल 5056 रुपया का है यानि कच्चा तेल 148 रुपये बैरल तब से सस्ता है। अब बात करते हैं कूड के नाम पर छलावे की। क्योंकि तेल कम्पनियों ने 26 जून 2010 (जब पेट्रोल नियंत्रण मुक्त हुआ था) को कहा था कि कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों को ध्यान में रखकर देश में पेट्रोल के दाम तय होंगे। सरकार और कम्पनियों ने मिलकर पिछले 2 साल में 14 बार महंगे कूड के नाम पर पेट्रोल के दाम बढ़ाए हैं। सच यह है कि पहले जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कूड का दाम 114 डॉलर प्रति बैरल था, तब भी तेल कम्पनियां घाटा बता रही थीं, आज कूड का भाव 91.47 डॉलर है तो भी घाटा हो रहा है। रुपये की गिरती कीमतें भी छलावा है। क्योंकि 15 मई 2011 से अब तक डॉलर 10 रुपये महंगा हुआ है और कच्चा तेल 22 डॉलर सस्ता हो चुका है। लेकिन इस दौरान पेट्रोल की कीमतों में सिर्प तीन बार मामूली कमी की गई। घाटे के नाम पर चालाकी ः क्योंकि सरकारी तेल कम्पनियों का कहना है कि पेट्रोल के अलावा सरकार के नियंत्रण में होने की वजह से डीजल, गैस और केरोसिन की कीमतें नहीं बढ़ने से भी उनका घाटा बढ़ा है। डीजल की कीमत आखिरी बार 26 जून 2011 को बढ़ी थी। तीनों कम्पनियों का दावा है कि उन्हें इस साल 1.86 लाख करोड़ रुपये का घाटा होगा। सच क्या है? सच यह है कि तेल कम्पनियां भारी मुनाफा कमा रही हैं। 2011 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक आईओसी को 7445 करोड़, एचपीसीएल को 1539 करोड़ और बीपीसीएल को 1547 करोड़ रुपया मुनाफा हुआ। वह भी टैक्स देने के बाद। डीजल, गैस और केरोसिन पर घाटे की बात भी झूठी है, क्योंकि सरकार इस पर सब्सिडी दे रही है। (क्रमश)
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सभी दलों ने मध्यावधि चुनावों की तैयारियां शुरू कर दी हैं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 26 May 2012
अनिल नरेन्द्र
भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि इस सरकार से न तो विपक्ष खुश है और न ही सरकार के घटक दल। भाजपा ने दावा किया है कि यह सरकार कभी भी गिर सकती है। कभी ममता बनर्जी नाराज हो जाती हैं तो कभी शरद पवार। कांग्रेस सरकार अपनी सारी विफलताओं को अपने गठबंधन साथियों पर थोपने का प्रयास शायद ही जनता में उनकी छवि को सुधारे। अगर कुछ रिपोर्टों पर यकीन किया जाए तो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने चुनावों की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। कहने को तो यह कसरत 2014 लोकसभा चुनाव के लिए की जा रही है पर वक्त का कुछ पता नहीं। अगर भाजपा की भविष्यवाणी सत्य हुई तो देश में किसी भी समय मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं। कांग्रेस के रणनीतिकार समय पूर्व चुनाव की गोपनीय महायोजना को रूपाकार देने में जुट गए हैं। पार्टी का सर्वोच्च सघन समूह कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की आसमान से जमीन चूमती लोकप्रियता ग्रॉफ से भायभीत होकर लोकसभा चुनाव को अंतिम विकल्प मानता है। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने रहस्योद्घाटन किया कि सन् 2012 के अन्त में अथवा सन् 2013 के बजट से पहले फरवरी-मार्च में लोकसभा चुनाव में पार्टी न्यूनतम 125-130 सीटें जीत सकती है जबकि 22 से 24 माह बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 100 सीट भी नहीं जीत पाएगी। संप्रग सरकार की गठबंधन साथी तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव, बसपा की मायावती सभी ने अपने काडरों को कह दिया है कि वह कमर कस लें और चुनाव के लिए हर समय तैयार रहें। दरअसल मुलायम सिंह और ममता, दोनों की रणनीति यह है कि वह किसी भी तरह 50-50 सांसद अगले चुनाव में ले आएं और अगर वह ऐसा कर सकते हैं तो वह देश के अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं। आंध्र प्रदेश में तेलुगूदेशम पार्टी अध्यक्ष चन्द्रबाबू नायडू, असम में गण परिषद प्रमुख प्रफुल्ल महंत, बिहार में जनता दल (यू) मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सभी लोकसभा चुनाव की अचानक घोषणा को ध्यान में रखकर चतुरंगिनी सेना को सुज्जित करने में लगे हैं। पंजाब में अकाली दल, हरियाणा में चौधरी ओम प्रकाश चौटाला ने भी लोकसभा चुनाव के लिए खम्भ ठोकी है। वैसे अन्ना द्रमुक, बीजद, तृणमूल कांग्रेस, अकाली दल, सपा, बसपा, अगप, तेदेपा, इनेलो एवं भाजपा सभी लोकसभा चुनाव को फायदे का सौदा मानती हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, फारवर्ड ब्लॉक, रिव्योव्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का वाम मोर्चा भी आम चुनाव के लिए ताल ठोक रहा है। शिवसेना सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे मुंबई महानगर निगम के चुनाव में विजय के बाद लोकसभा महाकुम्भ के चाणक्य बने हुए हैं। कांग्रेस ने प्रस्तावित लोकसभा उम्मीदवारों की सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह सूची सोनिया गांधी को भी दिखाई जा चुकी है। इस कांग्रेसी नेता की अगर मानें तो कांग्रेस पार्टी मात्र 30 दिन की सूचना पर लोकसभा चुनाव महाकुम्भ में कूद सकती है। मध्यावधि चुनाव की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

Friday, 25 May 2012

घटते किसान और इससे ज्यादा घटती किसानी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25 May 2012
अनिल नरेन्द्र
भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 17 प्रतिशत से अधिक है। किसान देश की जनसंख्या को न केवल भोजन प्रदान करते हैं बल्कि कृषि में एक बड़ी जनसंख्या को रोटी-रोजी भी मुहैया करवाती है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि काफी हद तक देश की सेहत किसान की सेहत पर निर्भर करती है पर दुख की बात यह है कि आज भारत का किसान बहुत दुखी है और बहुत कठिन दौर से गुजर रहा है। यह एक बड़ा प्रश्न है कि जो हम सबको चकोट रहा है कि खेती के मामले में किसानों का रुझान घट रहा है। एक सर्वेक्षण बताता है कि 98.2 प्रतिशत किसानों की भावी पीढ़ी में किसानी के प्रति कोई रुचि नहीं है। यही कारण है कि पिछले कुछ समय से मध्य व छोटे किसानों ने खेत बेचकर अपने बच्चों को करियर ओरिएंटेड शिक्षा देना बेहतर समझा है। तमिलनाडु के एक किसान ने बेटे की इंजीनियरिंग की पांच लाख फीस अपने खेतों को बेचकर व कुछ उधारी कर जुटाई। दरअसल छोटे और मझोले किसानों के लिए अपने यहां खेती लाभ का सौदा अब नहीं रहा है। आज छोटा किसान मनरेगा की मजदूरी कर ज्यादा खुश है। किसान पहले खेत जोतें फिर अच्छे बीज के लिए भटकें। यानि जुताई-बुआई से लेकर रोजमर्रा की भागदौड़ और अंतत बिचौलियों के वर्चस्व के चलते लागत भी हाथ आ जाए तो अहोभाग्य। इसलिए नई पीढ़ी का सीधा फंडा हैöजमीन बेचो, कोई व्यावसायिक कोर्स करो और नौकरी ढूंढो। अब बड़े किसानों के पढ़े-लिखे बच्चों को भी खेती में काम करने में दिलचस्पी नहीं है। किसी किसान से शादी करने में भी अब लोग कतराने लगे हैं। कई मौकों पर विवाह के लिए किसानों को नौकरी का दिखावा तक करना पड़ता है। विकास की अंधी दौड़ में किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा है। हमारे विकास का नया मॉडल पश्चिमी देशों जैसा है जहां ऐसे उद्योगों को बढ़ावा मिला जिसका कृषि और कृषक से सीधा लेन-देन नहीं होता है। वहीं यह ठीक हो सकता है, क्योंकि शीतोष्ण जलवायु के कारण साल भर खेती सम्भव नहीं परन्तु एशिया जैसे भूभाग के मौसम में सालभर खेती सम्भव है। यहां केवल कृषि आधारित उद्योग ही सही मॉडल साबित हो सकते हैं। वैसे भी कृषि प्रधान देशों के विकास के सभी आयाम खेती से जुड़े होने चाहिए। दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि आजादी के बाद हमारी सरकारों ने खेती को पीछे कर बाकी उद्योगों पर ज्यादा ध्यान दिया है। परिणामस्वरूप अपने यहां रियल एस्टेट बिजनेस, आईटी जैसे उद्योग जीडीपी का बड़ा हिस्सा बन गए हैं। लेकिन 64 सालों में इसका लाभ मुट्ठी भर लोगों को ही इस तरह के विकास का सीधा लाभ पहुंचा और किसानों का बड़ा तबका जो खेती से विकास के सपने देख रहा था `वंचितों' की श्रेणी में पहुंच गया। जिस हिसाब से कृषि से जुड़ी भूमि का विभिन्न कार्यों जैसे राजमार्ग, एयरपोर्ट, स्पेशल इकानिमिक जोन इत्यादि का अधिग्रहण हो रहा है उससे यह चिन्ता हो गई है कि खेती के लिए जमीन बचेगी भी या नहीं? घटती खेती केवल भारत के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के संकट का सबब है। आने वाले दिनों में खाद्यान्न सबसे बड़ा वैश्विक मुद्दा होगा। ऐसे में केंद्र सरकार को पहल कर हर राज्य में एक निश्चित प्रतिशत भूमि को (खासतौर पर उपजाऊ) खेती के लिए बांधना पड़ेगा और राज्यों को अपनी खाद्य आवश्यकता के अनुसार उत्पादन करने को भी कहना होगा। राज्य अपने को उद्योग ही नहीं, खेती आधारित विकास पर भी केंद्रित करें। कृषि उत्पादों का किसानों को सही मूल्य मिले, उत्पाद में खर्चे में कटौती हो, इस पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित करना जरूरी है। इसी से गांवों से बढ़ता पलायन रुक सकता है। किसानों की दरिद्रता दूर हो सकती है तथा समाज में उनके सम्मान को सही स्थान मिल सकेगा।
Agrarian, Agriculture, Anil Narendra, Daily Pratap, Indian Economy, Vir Arjun

मनमोहन सरकार की तीन साल की उपलब्धि ः मायूसी और हताशा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25 May 2012
अनिल नरेन्द्र
संप्रग ने अपनी तीसरी वर्षगांठ पर देश को जबरदस्त तोहफा दिया है। रातोंरात 7.50 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत बढ़ा दी है। रुपये की कीमत इतनी गिर गई है कि पुराने सारे रिकार्ड टूट चुके हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 55.39 पर गिर गई है। मुद्रास्फीति में भी तेजी से वृद्धि हो रही है और सबसे मजेदार बात यह है कि सरकार कहती है कि उसके हाथ में कुछ नहीं है। वह अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों पर मजबूर है। लगता है कि इस सरकार को अब विश्वास हो चुका है कि यह उनकी आखिरी पारी है इसलिए जो करना है कर लो। सत्ता में फिर तो आना नहीं जितना हो सके कर लो। देश की जनता मजबूर है। वह कुछ भी तो नहीं कर सकती। इन्हें सत्ता में लाना उनको इतना भारी पड़ेगा, इसकी शायद ही जनता ने कल्पना की हो। केंद्रीय सत्ता की दूसरी पारी में तीन साल पूरे करने वाली कांग्रेस की नेतृत्व वाली संप्रग सरकार की छवि इतनी गिर चुकी है कि अगर निकट भविष्य में चुनाव हो जाएं तो यह कभी भी जीत कर वापस न आए। समाचार चैनल आईबीएन-7 द्वारा कराए गए सर्वेक्षण की मानें तो जनता इस यूपीए सरकार से बुरी तरह नाराज है। सर्वे में जब लोगों से पूछा गया कि क्या यूपीए को एक और मौका मिलना चाहिए तो 49 फीसदी लोगों ने नहीं में जवाब दिया। यही नहीं, 55 फीसदी लोगों ने कहा कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया जाना चाहिए। 33 फीसदी लोगों ने कहा कि मनमोहन सिंह की जगह राहुल को प्रधानमंत्री बनाना चाहिए जबकि 20 फीसदी ने प्रणब दा और सिर्प 7 फीसदी ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की राय दी। सरकार के अलोकप्रिय होने के पीछे सबसे बड़ा कारण महंगाई है। यह पूछे जाने पर कि दूसरी पारी में मनमोहन की सबसे बड़ी नाकामी क्या है तो 31 फीसदी लोगों ने बेकाबू कीमतों को मुख्य वजह बताया। 17 फीसदी लोगों ने भ्रष्टाचार को सबसे बड़ी नाकामी बताया जबकि 13 फीसदी लोगों ने विकास की रफ्तार पर ब्रेक को बड़ी वजह माना। 10 फीसदी लोगों ने कहा कि मनमोहन सिंह संकट के समय फैसले लेने में नाकाम रहे। कुल मिलाकर 59 फीसदी लोगों ने कहा कि वह इस सरकार से संतुष्ट नहीं। अगले चुनाव में अगर एनडीए जीत जाए तो किसे प्रधानमंत्री बनाना चाहिए। इस सवाल पर सबसे अधिक 39 फीसदी लोगों की पसंद नरेन्द्र मोदी की है, 17 फीसदी ने लाल कृष्ण आडवाणी को पसंद किया। यूपीए-2 सरकार के तीन साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने मंगलवार को एक रिपोर्ट कार्ड जारी किया। पीएम ने इस मौके पर महंगाई का जिक्र तक करना जरूरी नहीं समझा। कटु सत्य तो यह है कि तीन साल में इस सरकार के पास जनता को बताने के लिए एक भी उपलब्धि नहीं है। इस सरकार ने देश को महंगाई, भ्रष्टाचार और मायूसी के अलावा कुछ नहीं दिया है। इस सरकार के कुप्रबंधन ने सारे पुराने रिकार्ड तोड़ दिए हैं। इस सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण आज देश से विदेशी पूंजी का पलायन हो गया है। वित्तीय घाटे को सम्भालने की न तो कोई योजना है और न ही गारंटी। इसका एक नतीजा यह हुआ है कि रुपया रिकार्ड निचले स्तर पर आ पहुंचा है। पूरी इकानिमी कैश होने की कगार पर है। घोटालों से देश की नींद हराम हो गई है। लोकपाल और लोकायुक्त जैसे कदम जिससे भ्रष्टाचार पर काबू लग सके को बहाने बनाकर टाला जा रहा है। मनरेगा जैसी क्रांतिकारी मानी जाने वाली योजनाओं में घोटाले नहीं रुक सके। इस सरकार के बारे में आम धारणा यह बन गई है कि यह भ्रष्टाचार रोकने में दिलचस्पी ही नहीं रखती। रिकार्ड पैदावार के बावजूद अनाज को सुरक्षित रखने के लिए गोदाम नहीं। नतीजतन अनाज सड़ रहा है, बर्बादी हो रही है। किसान आत्महत्या पर मजबूर है। युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रहीं। इस सरकार के पास हर मर्ज की बस एक ही दवा है, गठबंधन धर्म की मजबूरी। नक्सलवाद पनप रहा है क्योंकि इस सरकार के पास इसका मुकाबला करने के लिए न तो कोई ठोस नीति है, न ही इच्छाशक्ति। आज पूरे देश में मायूसी का माहौल है, जनता को समझ नहीं आ रहा कि वह करे तो क्या करे। जनता के पास अगर यह हथियार आज होता कि इस सरकार को चलता कर सकती तो शायद 10 सैकेंड भी नहीं लगाती।

Thursday, 24 May 2012

जावेद अख्तर की मुहिम रंग लाई ः कापीराइट विधेयक पारित

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24 May 2012
अनिल नरेन्द्र
फिल्मों में संगीतकारों और गीतकारों सहित विभिन्न सृजनात्मक कार्यों में जुड़े लोगों के कापीराइट अधिकारों की रक्षा करने की मांग बहुत दिनों से उठ रही थी। अंतत राज्यसभा में कापीराइट संबंधित विधेयक को मंजूरी मिल गई है। राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा हुई। मौजूदा अधिनियम में स्वत्वाधिकार संबंधी नियम इतने धुंधले हैं कि फिल्म निर्माता, संगीत का कारोबार करने वाली कंपनी या टीवी चैनल आसानी से इनका उल्लंघन कर लेते हैं। किसी गीतकार, संगीतकार या संवाद लेखक का शुरू में जिस कंपनी के साथ करार हो गया और उसके लिए जो मानदेय तय हुए उसी पर संतोष करना पड़ता है, जबकि उसके लिखे गीत, संवाद और संगीत का उपयोग रेडियो, टीवी जैसे विभिन्न माध्यमों से बार-बार होता है। फिल्मों के मामले में कापीराइट अधिनियम के मुताबिक टीवी चैनलों को संबंधित निर्माता को हर पसारण पर भुगतान करना पड़ता है, जबकि संगीतकार, संवाद और पटकथा लेखक को उसमें हिस्सा नहीं मिलता। इसलिए इस अधिनियम में संशोधन की मांग लंबे समय से की जा रही थी। ताजा संशोधन में गीतकार, संगीतकार, संवाद तथा पटकथा लेखक के स्वत्वाधिकार की रक्षा की गई है। अगर कोई संचार माध्यम से इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कड़े दंड का पावधान किया गया है। विधेयक में पावधान है कि गीतकारों, गायकों, संगीतकारों और फिल्म निर्देशकों को उनकी रचनाओं के टीवी पर पसारण के दौरान रॉयल्टी मिलेगी। हालांकि इसमें उन कंपनियों के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है, जो नकली संगीत का कारोबार करती हैं। पुराने गीतों को दूसरे के स्वर में गवाकर या उसके संगीत में मामूली फेरबदल कर बेचने का चलन बढ़ता जा रहा है। ऐसे गीतों के कैसेट, सीडी खुलेआम बाजार में उपलब्ध हैं। टीवी और रेडियो चैनलों पर इनका पसारण होता रहता है। मिक्स, रीमिक्स का बाजार जोरों पर है, जबकि गीतकार, संगीतकार यहां तक कि फिल्म निर्माता से इन गीतों की नकल तैयार करने या उन्हें तोड़-मरोड़ कर पेश करने की इजाजत नहीं ली गई होती। सरकार ने कहा है कि नए पावधानों से देश में सांस्कृतिक और सृजनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा तथा रचनाकर्मियों और कलाकारों को उनकी मेहनत का समुचित फल मिलेगा। कापीराइट विधेयक के लाने से संगीत घरानों की कापीराइट लॉबी को बड़ा नुकसान था। इसलिए बड़ी कंपनियां इस विधेयक को रोकने में लगी थीं। अगर यह विधेयक बना है तो इसमें सबसे बड़ा योगदान लेखक, पटकथा लेखक, शायर जावेद अख्तर का बड़ा योगदान है। उन्ही की कड़ी मेहनत का नतीजा है कि यह विधेयक राज्यसभा से पारित हो सका। शबाना आजमी सहित कैलाश खेर, सोनू निगम, रोहित रॉय आदि ने सरकार के इस कदम की सराहना की है। शबाना ने कहा कि गीतकारों और संगीत निर्देशकों की कमाई का 12 पतिशत दिलाने के लिए जावेद की मुहिम के दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम है। जावेद की मुहिम रंग लाई है।
फिल्मों में संगीतकारों और गीतकारों सहित विभिन्न सृजनात्मक कार्यों में जुड़े लोगों के कापीराइट अधिकारों की रक्षा करने की मांग बहुत दिनों से उठ रही थी। अंतत राज्यसभा में कापीराइट संबंधित विधेयक को मंजूरी मिल गई है। राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा हुई। मौजूदा अधिनियम में स्वत्वाधिकार संबंधी नियम इतने धुंधले हैं कि फिल्म निर्माता, संगीत का कारोबार करने वाली कंपनी या टीवी चैनल आसानी से इनका उल्लंघन कर लेते हैं। किसी गीतकार, संगीतकार या संवाद लेखक का शुरू में जिस कंपनी के साथ करार हो गया और उसके लिए जो मानदेय तय हुए उसी पर संतोष करना पड़ता है, जबकि उसके लिखे गीत, संवाद और संगीत का उपयोग रेडियो, टीवी जैसे विभिन्न माध्यमों से बार-बार होता है। फिल्मों के मामले में कापीराइट अधिनियम के मुताबिक टीवी चैनलों को संबंधित निर्माता को हर पसारण पर भुगतान करना पड़ता है, जबकि संगीतकार, संवाद और पटकथा लेखक को उसमें हिस्सा नहीं मिलता। इसलिए इस अधिनियम में संशोधन की मांग लंबे समय से की जा रही थी। ताजा संशोधन में गीतकार, संगीतकार, संवाद तथा पटकथा लेखक के स्वत्वाधिकार की रक्षा की गई है। अगर कोई संचार माध्यम से इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कड़े दंड का पावधान किया गया है। विधेयक में पावधान है कि गीतकारों, गायकों, संगीतकारों और फिल्म निर्देशकों को उनकी रचनाओं के टीवी पर पसारण के दौरान रॉयल्टी मिलेगी। हालांकि इसमें उन कंपनियों के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है, जो नकली संगीत का कारोबार करती हैं। पुराने गीतों को दूसरे के स्वर में गवाकर या उसके संगीत में मामूली फेरबदल कर बेचने का चलन बढ़ता जा रहा है। ऐसे गीतों के कैसेट, सीडी खुलेआम बाजार में उपलब्ध हैं। टीवी और रेडियो चैनलों पर इनका पसारण होता रहता है। मिक्स, रीमिक्स का बाजार जोरों पर है, जबकि गीतकार, संगीतकार यहां तक कि फिल्म निर्माता से इन गीतों की नकल तैयार करने या उन्हें तोड़-मरोड़ कर पेश करने की इजाजत नहीं ली गई होती। सरकार ने कहा है कि नए पावधानों से देश में सांस्कृतिक और सृजनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा तथा रचनाकर्मियों और कलाकारों को उनकी मेहनत का समुचित फल मिलेगा। कापीराइट विधेयक के लाने से संगीत घरानों की कापीराइट लॉबी को बड़ा नुकसान था। इसलिए बड़ी कंपनियां इस विधेयक को रोकने में लगी थीं। अगर यह विधेयक बना है तो इसमें सबसे बड़ा योगदान लेखक, पटकथा लेखक, शायर जावेद अख्तर का बड़ा योगदान है। उन्ही की कड़ी मेहनत का नतीजा है कि यह विधेयक राज्यसभा से पारित हो सका। शबाना आजमी सहित कैलाश खेर, सोनू निगम, रोहित रॉय आदि ने सरकार के इस कदम की सराहना की है। शबाना ने कहा कि गीतकारों और संगीत निर्देशकों की कमाई का 12 पतिशत दिलाने के लिए जावेद की मुहिम के दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम है। जावेद की मुहिम रंग लाई है।
Anil Narendra, Copy Right, Daily Pratap, Javed Akhtar, Rajya Sabha, Vir Arjun

ओबामा ने जरदारी से मिलने से इंकार कर दिया

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24 May 2012
अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी रविवार शाम शुरू हुई शिकागो के नाटो सम्मेलन में भाग लेने इस मकसद से गए थे कि शायद पाकिस्तान और अमेरिका के बिगड़ते रिश्तों पर थोड़ा सुधार हो और दोनों के आपसी रिश्तों को नई दिशा मिले। पर जरदारी साहब को कोई उल्लेखनीय सफलता फिलहाल नहीं मिली। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जनाब जरदारी साहब से मिलने से इंकार कर दिया। ओबामा ने साफ कह दिया कि आपूर्ति मार्ग खोलने पर करार के बिना मुलाकात मुमकिन नहीं है। इसके साथ ही अमेरिका और पाकिस्तान के बीच कड़वाहट पूरी तरह खत्म होने की उम्मीदें भी धूमिल हो गईं। दूसरी ओर अफगानिस्तान में मौजूद नाटो बलों तक आपूर्ति के लिए पाकिस्तानी जमीन के इस्तेमाल का मामला भी फंस गया है। व्हाइट हाउस ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि ओबामा ने जरदारी से मिलने का वक्त नहीं निकाला। जख्म पर नमक छिड़कने की नीयत से बराक ओबामा ने जिन देशों का अफगानिस्तान में सेना को सामान की आपूर्ति के लिए धन्यवाद किया उनमें पाकिस्तान का नाम भी नहीं लिया। इसे साफतौर पर पाकिस्तान की अनदेखी माना जा सकता है। सोमवार को शिकागो में हुए नाटो सम्मेलन के दूसरे और अंतिम दिन बराक ओबामा ने कहा कि मैं राष्ट्रपति करजई के अलावा मध्य एशिया और रूस के अधिकारियों को अफगानिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग बल को महत्वपूर्ण ट्रांजिट रूट मुहैया करवाने के लिए स्वागत करता हूं। अमेरिका और पाकिस्तान में ताजा तनाव पिछले साल एक पाकिस्तानी चौकी पर अमेरिकी हवाई हमले में 24 पाकिस्तानी सैनिक के मारे जाने के कारण बना हुआ है। इस हमले के बाद से पाकिस्तान ने अपने देश के भीतर से नाटो के लिए सामान ढोने वाले ट्रकों की आवाजाही पर रोक लगा रखी है। अमेरिका ने इस उम्मीद से जरदारी को नाटो सम्मेलन में बुलाया था कि वह पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा को नाटो की सप्लाई लाइन खोलने को राजी हो जाएंगे। लेकिन पाकिस्तान ने इस सप्लाई रूट को खोलने और अपनी सड़कों के इस्तेमाल के बदले में तीन मांगें रखी हैं। यह मांगें हैः पाकिस्तानी सैनिकों की मौत के लिए सार्वजनिक क्षमा, पाकिस्तान के भीतर ड्रोन हमलों की अमेरिकी नीति पर पुनर्विचार और पाकिस्तानी सड़कों को इस्तेमाल करने के लिए मौजूदा फीस को ढाई सौ डालर से बढ़ाकर पांच हजार डॉलर किया जाए। अमेरिका पाकिस्तान की इन मांगों को मानने के मूड में नहीं लगता। दो दिनों के इस नाटो सम्मेलन में 28 सदस्यों समेत 50 देशों के राष्ट्राध्यक्षों और पतिनिधियों ने हिस्सा लिया। नाटो सप्लाई के मुद्दे पर ओबामा ने सम्मेलन के बाद कहा कि हमें उम्मीद नहीं थी कि इस सम्मेलन के दौरान नाटो सप्लाई का यह गतिरोध खत्म हो जाएगा लेकिन हम पाकिस्तान के साथ इसको सुलझाने के लिए अथक पगति कर रहे हैं। बराक ओबामा ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि पिछले कुछ महीनों से अमेरिका और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में तनाव रहा है लेकिन यह हमारे और पाकिस्तान दोनों के हक में है कि हम मिलकर चरमपंथ के खिलाफ काम करें। हालांकि ओबामा ने यह माना कि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण अफगानिस्तान में अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंच सकता है। अंतिम समय में शिकागो सम्मेलन में जरदारी को न्यौता मिलने के बाद लगा था कि शायद अब दोनों देशों में दूरिया कम हो रही हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। जरदारी इस उम्मीद से ओबामा के गृह शहर शिकागो पहुंचे थे कि शायद उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति से सीधी बातचीत का अवसर मिले। यह अवसर अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई को तो मिला लेकिन आसिफ जरदारी को नहीं। जिस थोड़े वक्त के लिए ओबामा ने जरदारी से बात की उसके बारे में करजई ने सीएनएन को बताया कि वह महज एक फोटोग्राफ खिंचवाने का अवसर भर था। तनाव जारी है। अमेरिका को 2014 तक अफगानिस्तान से निकलना है और हमें नहीं लगता कि पाकिस्तान के समर्थन के बगैर वह ऐसा कर सके। इसलिए यह नूराकुश्ती कुछ और समय तक जारी रहेगी, सौदेबाजी होती रहेगी और अंत में अमेरिका को ही झुकना पड़ेगा।
Anil Narendra, Asif Ali Zardari, Daily Pratap, Obama, Vir Arjun

Wednesday, 23 May 2012

कितने सुरक्षित हैं हमारे बच्चे?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23 May 2012
अनिल नरेन्द्र
देश में छोटे बच्चों के गायब होने की खबरें अकसर अखबारों में छपती रहती हैं। यह एक गम्भीर समस्या व चुनौती है। गत दिनों राज्यसभा में गृह राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने चौंकाने वाले आंकड़े बताए। एक प्रश्न के जवाब में मंत्री ने बताया कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा उपलब्ध जानकारी के मुताबिक तीन वर्षों में बच्चों के अपहरण के 28,595 मामले सामने आए हैं। 2008 में जहां 7862 बच्चों का अपहरण हुआ वहीं 2009 में 9,436 और 2010 में ऐसे 11,297 मामले दर्ज किए गए। इसी अवधि में कुल एक लाख 84 हजार छह सौ पांच (1,84,605) बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट मिली। लापता बच्चों के बारे में गृह मंत्रालय ने 31 जनवरी 2012 को एक एडवाइजरी की है जिसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश को बाल तस्करी रोकने और बच्चों का पता लगाने के लिए जरूरी कदम उठाने की नसीहत दी गई है। इनमें रिकॉर्ड्स को कम्प्यूटरीकृत करना, डीएनए जांच, सामुदायिक जागरुकता कार्यक्रम चलाना आदि शामिल है। इससे पहले 14 जुलाई 2011 को केंद्र की ओर से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजी गई एडवाइजरी में सुरक्षा इंतजाम बेहतर बनाने के लिए सभी उचित कदम उठाने को कहा गया था।
हमारे देश के नेता बातें तो बहुत लम्बी-चौड़ी करते हैं पर शहरों में गरीब बच्चों की कितनी दुर्दशा है इस पर कोई विचार नहीं करता, यूनिसेफ की एक रिपोर्ट है। हालांकि यह रिपोर्ट पूरी दुनिया की है पर उसे जारी करने के मौके पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. शांता सिंह ने जो उदाहरण दिया वह सचमुच कंपाने वाला है। आंध्र प्रदेश के सातवें सबसे बड़े शहर नेल्लोर में गरीब बच्चों ने उजाड़े जाने के भय से शमशान में अपना आशियाना बना लिया है। उन्हें लगता है कि कम से कम वहां से उन्हें कोई नहीं उजाड़ेगा। मरे लोगों के कंकाल एवं हड्डियां ही बच्चों के खिलौने हैं। इससे साबित होता है कि गरीब बच्चों के लिए भारत के शहरों-नगरों में कम वीभत्स स्थितियां नहीं हैं। रिपोर्ट जारी करने के मौके पर बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने आशंका जताई कि इस दोतरफा मार से बच्चे ही पिसते हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार एवं स्वयंसेवी संगठनों की भागीदारी से प्रभावी हस्तक्षेप नहीं हुआ तो शहरी बच्चों की स्थिति और नरकीय होने वाली है। एक तरफ बच्चों का गायब होना दूसरी तरफ इन्हें शमशान जैसी जगह पर रहने पर मजबूर होना मेरे भारत महान पर तमाचा है। सरकार और स्वयंसेवी संगठनों को अविलम्ब इन लाचार, बेसहारा, अत्यंत गरीब बच्चों की दुर्दशा पर ध्यान देना होगा। इनके लिए विशेष योजनाएं चलाने की जरूरत है। बाल तस्करी रोकने के लिए सख्त से सख्त कानून बनने चाहिए। पुलिस को भी और संवेदनशील होना पड़ेगा। आखिर यह बच्चे ही देश का भविष्य हैं और अगर यह सुरक्षित नहीं तो देश का भविष्य भी सुरक्षित नहीं माना जा सकता।
देश में छोटे बच्चों के गायब होने की खबरें अकसर अखबारों में छपती रहती हैं। यह एक गम्भीर समस्या व चुनौती है। गत दिनों राज्यसभा में गृह राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने चौंकाने वाले आंकड़े बताए। एक प्रश्न के जवाब में मंत्री ने बताया कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा उपलब्ध जानकारी के मुताबिक तीन वर्षों में बच्चों के अपहरण के 28,595 मामले सामने आए हैं। 2008 में जहां 7862 बच्चों का अपहरण हुआ वहीं 2009 में 9,436 और 2010 में ऐसे 11,297 मामले दर्ज किए गए। इसी अवधि में कुल एक लाख 84 हजार छह सौ पांच (1,84,605) बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट मिली। लापता बच्चों के बारे में गृह मंत्रालय ने 31 जनवरी 2012 को एक एडवाइजरी की है जिसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश को बाल तस्करी रोकने और बच्चों का पता लगाने के लिए जरूरी कदम उठाने की नसीहत दी गई है। इनमें रिकॉर्ड्स को कम्प्यूटरीकृत करना, डीएनए जांच, सामुदायिक जागरुकता कार्यक्रम चलाना आदि शामिल है। इससे पहले 14 जुलाई 2011 को केंद्र की ओर से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजी गई एडवाइजरी में सुरक्षा इंतजाम बेहतर बनाने के लिए सभी उचित कदम उठाने को कहा गया था।
हमारे देश के नेता बातें तो बहुत लम्बी-चौड़ी करते हैं पर शहरों में गरीब बच्चों की कितनी दुर्दशा है इस पर कोई विचार नहीं करता, यूनिसेफ की एक रिपोर्ट है। हालांकि यह रिपोर्ट पूरी दुनिया की है पर उसे जारी करने के मौके पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. शांता सिंह ने जो उदाहरण दिया वह सचमुच कंपाने वाला है। आंध्र प्रदेश के सातवें सबसे बड़े शहर नेल्लोर में गरीब बच्चों ने उजाड़े जाने के भय से शमशान में अपना आशियाना बना लिया है। उन्हें लगता है कि कम से कम वहां से उन्हें कोई नहीं उजाड़ेगा। मरे लोगों के कंकाल एवं हड्डियां ही बच्चों के खिलौने हैं। इससे साबित होता है कि गरीब बच्चों के लिए भारत के शहरों-नगरों में कम वीभत्स स्थितियां नहीं हैं। रिपोर्ट जारी करने के मौके पर बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने आशंका जताई कि इस दोतरफा मार से बच्चे ही पिसते हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार एवं स्वयंसेवी संगठनों की भागीदारी से प्रभावी हस्तक्षेप नहीं हुआ तो शहरी बच्चों की स्थिति और नरकीय होने वाली है। एक तरफ बच्चों का गायब होना दूसरी तरफ इन्हें शमशान जैसी जगह पर रहने पर मजबूर होना मेरे भारत महान पर तमाचा है। सरकार और स्वयंसेवी संगठनों को अविलम्ब इन लाचार, बेसहारा, अत्यंत गरीब बच्चों की दुर्दशा पर ध्यान देना होगा। इनके लिए विशेष योजनाएं चलाने की जरूरत है। बाल तस्करी रोकने के लिए सख्त से सख्त कानून बनने चाहिए। पुलिस को भी और संवेदनशील होना पड़ेगा। आखिर यह बच्चे ही देश का भविष्य हैं और अगर यह सुरक्षित नहीं तो देश का भविष्य भी सुरक्षित नहीं माना जा सकता।
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क्लाइमैक्स पर पहुंचता आईपीएल

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23 May 2012
अनिल नरेन्द्र
आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) अपने क्लाइमैक्स में पहुंच गया है। मंगलवार से नाकआउट स्टेज आरम्भ हो गई है। अपने-अपने विचार हो सकते हैं। मुझे तो यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मैंने आईपीएल मैचों का पूरा मजा लिया है। पिछले लगभग डेढ़ महीने से जब से आईपीएल शुरू हुआ है मैंने तकरीबन सारे मैच देखने का प्रयास किया है। मजबूरी की वजह से इक्का-दुक्का रह गए हों तो और बात है पर हर शाम मैंने मैचों का रोमांच लिया है। मेरी राय में यह एंटरटेनमेंट का बहुत अच्छा साधन रहा। औरतों को भी मजबूरी में सीरियल छोड़कर मैच देखने पड़े। हमने इन मैचों में देखा कि किसी सपाट पिच पर 180 के लक्ष्य का बचाव किया जा सकता है। 160 के स्कोर पर भी चुनौती पेश की जा सकती है और 140 के लक्ष्य को आसानी से पाया जा सकता है। कुछ टीमें लक्ष्य का पीछा करते हुए मैच को आखिरी बॉल तक ले गए और कई मैचों में आखिरी बॉल पर हार-जीत का फैसला हुआ। इससे ज्यादा किसी भी मैच में और क्या रोमांच हो सकता है? हमने टूर्नामेंट में देखा कि यदि आखिरी दो ओवर में जीत के लिए 25 रन की भी जरूरत रही तो बल्लेबाजों ने उसे हासिल कर लिया। टी-20 में गेंदबाजों की भूमिका भी साफ हुई। क्रिस गेल जिस टीम (रॉयल चैलेंजर बेंगलुरु) में हों और वह नाकआउट से बाहर हो जाए तो दर्शाता है कि डेल स्टेन जैसा बॉलर कितना कहर ढा सकता है। वैसे फाइनल स्टेज पर पहुंचने वाली चार टीमों ने डेक्कन चार्जर्स का दिल से शुक्रिया अदा किया होगा कि उन्होंने क्रिस गेल को फाइनल स्टेज से बाहर कर दिया। क्योंकि क्रिस गेल रहते तो वह किसी भी टीम के अकेले अपने दमखम पर नाक में दम कर देते। इससे यह भी साबित हुआ कि अकेले बल्लेबाजों से टीम नहीं जीतती, उसकी बॉलिंग और फील्डिंग भी उतनी ही जरूरी है। बैलेंस्ड टीम होनी चाहिए। दिल्ली डेयर डेविल्स मुझे सबसे ज्यादा बैलेंस्ड टीम लगती है। जिगरी दोस्त वीरेन्द्र सहवाग और गौतम गम्भीर आमने-सामने होंगे। दिल्ली को सुनील नारायण की काट निकालनी होगी। एक तरफ वीरू और मोर्पल होंगे तो दूसरी तरफ गौतम और सुनील नारायण। अगर किस्मत की बात करें तो मेरी राय में सबसे धनी किस्मत के हैं महेन्द्र सिंह धोनी। डेक्कन की बेंगलुरु पर जीत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि महेन्द्र सिंह धोनी और चेन्नई सुपरकिंग्स सचमुच भाग्य के धनी हैं। पिछली दो बार की चैंपियन चेन्नई को 2010 की तरह इस बार भी आईपीएल से लगभग बाहर माना जा रहा था। पूरी तरह से वह दूसरी टीमों के परिणाम पर निर्भर थे और तीनों परिणाम उनके अनुकूल रहे। चेन्नई ने 17 अंक के साथ लीग चरण का समापन किया था और किंग्स इलेवन पंजाब, राजस्थान रॉयल्स और बेंगलुरु उससे आगे निकलने की स्थिति में थे। चेन्नई तभी प्ले ऑफ में पहुंच पाता जबकि पंजाब और राजस्थान दोनों अपना एक-एक मैच हार जाते। दोनों के तब 14-14 अंक थे और उन्हें दो मैच खेलने थे। पंजाब और राजस्थान दोनों हार गए। अब सबकी निगाहें चार्जर्स और बेंगलुरु मैच पर टिकी थी। बेंगलुरु मैच जीतने पर प्ले ऑफ में पहुंच जाता और चेन्नई बाहर हो जाता पर क्रिस गेल और विराट कोहली जैसे दिग्गजों की टीम बेंगलुरु मैच हार गई और धोनी पहुंच गए प्ले ऑफ स्टेज पर। है न किस्मत के धनी? आईपीएल जैसे बड़े टूर्नामेंट में थोड़े विवाद तो जरूर होंगे। कहा जा रहा है कि इसमें ब्लैक मनी का खुला इस्तेमाल हुआ है। हुआ होगा, उसे रोकने की कोशिश भी होनी चाहिए पर इसकी वजह से आईपीएल बन्द कर दिया जाए, हम सहमत नहीं हैं। रेव पार्टियों में इक्का-दुक्का क्रिकेटर का शामिल होना, स्पॉट फिक्सिंग के आरोप, महिला पर लड़ाई यह सब चलता है। हमें इस टूर्नामेंट के पाजिटिव बातों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। दो महीने बाद वर्ल्ड टी-20 टूर्नामेंट हेने जा रहा है। कितने भारतीय युवा खिलाड़ी आईपीएल में उभरकर आए हैं। इनमें अजिक्म रहाणे जैसे भारतीय टीम-20 में शामिल किए जा सकते हैं और भी कुछ युवा खिलाड़ी हैं जिन्हें मौका दिया जा सकता है। यह तभी सम्भव हुआ जब यह आईपीएल में अपनी फार्म और हुनर दिखा सके। फिर दर्जनों उन खिलाड़ियों, कोचों, फिजियों व अन्य लोगों को मौका मिल रहा है जो वैसे तो खेलने के लिए फिट हैं पर उम्र की वजह से नेशनल टीमों से बाहर हैं। होटलों, एयरलाइनों, ट्रांसपोर्ट उद्योग को भी कितना लाभ हुआ है। बेहतर चीजों का तजुर्बा करने का मौका मिला है। भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी खिलाड़ियों के साथ खेलने, सीखने का मौका मिलता है। कुल मिलाकर यह एक अच्छा फार्मेट है जो जारी रहना चाहिए। देखें कौन-सी टीम खिताब जीतती है? वही जीतेगी जो मैच के दिन बेहतरीन खेल खेलेगी।
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Tuesday, 22 May 2012

तीन जजों पर हमला रोडरेज का मामला नहीं हत्या के प्रयास का है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22 May 2012
अनिल नरेन्द्र
साकेत कोर्ट के तीन जजों पर जानलेवा हमला करने वाले चारों आरोपियों को शनिवार को अदालत ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। आरोपियों के नाम दक्षिणपुरी निवासी अनिल राज, सुनील राज व संगम विहार निवासी रोहित और प्रशांत उर्प हन्नी हैं। अनिल राज और सुनील राज सगे भाई हैं। गिरफ्तार किए गए आरोपी अनिल राज के खिलाफ अम्बेडकर नगर में पहले से ही दो मामले दर्ज हैं। दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त (लॉ एण्ड ऑर्डर) धर्मेन्द्र कुमार के मुताबिक जजों के कार चालक चमन लाल और बाइक सवार आरोपियों के बीच रोडरेज के कारण कहासुनी हुई थी। पहले तो उन्होंने मामले को रफा-दफा करने की सोची पर जब उसने देखा कि कार पर जज का स्टिकर लगा है, उसने वहां अपने साथियों को भी बुला लिया। विशेष आयुक्त धर्मेन्द्र कुमार के अनुसार अनिल राज से पूछताछ पर जो पता चला वह बेहद ही चौंका देने वाला है। हमले का एक कारण यह भी था कि अनिल राज को एक मामले में इन्हीं जजों ने सजा सुनाई थी। एडिशनल पुलिस कमिशनर दक्षिण-पूर्वी जिला अजय चौधरी के मुताबिक पूछताछ में चारों आरोपी अनिल राज, सुनील राज, रोहित व प्रशांत ने कबूल किया है कि उन्होंने जानबूझ कर जजों पर हमला किया था। शनिवार को चारों की टीआईपी (शिनाख्त परेड) कराई गई, जिसमें इनकी पहचान कर ली गई। ज्ञात रहे साकेत कोर्ट में तैनात अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एमके नागपाल, इन्द्रजीत सिंह मेहता व महानगर दंडाधिकारी अजय गर्ग कार से बृहस्पतिवार की शाम करीब पांच बजे फरीदाबाद स्थित अपने-अपने घर जा रहे थे। कार चालक चमन लाल चला रहा था। सभी मदनगीर की तरफ से जा रहे थे। जैसे ही उनकी कार दक्षिणपुरी जे ब्लॉक, काली बिल्डिंग के पास पहुंची, सामने से गलत दिशा में आ रही मोटर साइकिल कार से टकरा गई। इससे बिना हेलमेट के मोटर साइकिल सवार तीनों युवक नीचे गिर पड़े। जजों द्वारा उन्हें उठाने के बाद दोनों पक्षों में बहस हो गई। मामला शांत होने पर जब जज कार में बैठकर वहां से चलने लगे तभी तीनों ने अपने एक अन्य साथी को भी मौके पर बुला लिया। चमन लाल कार लेकर चला ही था कि चारों ने उनकी कार रुकवाकर जजों व चालक पर हमला बोल दिया। ईंट व पत्थर से कार को क्षतिग्रस्त कर दिया। घटना में जज इंद्रजीत सिंह के हाथ और सिर से तथा जज मनोज कुमार नागपाल के सिर के पिछले हिस्से और हाथ में चोट आई। घटना के तुरन्त बाद एक आरोपी अनिल राज ने खुद ही अपना सिर फोड़कर एम्स ट्रामा सेंटर जा पहुंचा। उसने पुलिस को दिए बयान में जजों पर मारपीट का आरोप लगाया ताकि क्रॉस केस हो जाने पर वह सजा से बच सके किन्तु ट्रामा सेंटर में चालक चमन लाल ने उसकी पहचान कर ली और उसे गिरफ्तार करवा दिया। उसके बयान के बाद देर रात ही अन्य तीनों को भी दबोच लिया गया। लगता है कि मामला रोडरेज का नहीं, जजों की हत्या के प्रयास का था। इन तीनों-चारों को सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए ताकि दूसरों के लिए यह सबक व चेतावनी बन सके। जजों पर यूं हमला किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
साकेत कोर्ट के तीन जजों पर जानलेवा हमला करने वाले चारों आरोपियों को शनिवार को अदालत ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। आरोपियों के नाम दक्षिणपुरी निवासी अनिल राज, सुनील राज व संगम विहार निवासी रोहित और प्रशांत उर्प हन्नी हैं। अनिल राज और सुनील राज सगे भाई हैं। गिरफ्तार किए गए आरोपी अनिल राज के खिलाफ अम्बेडकर नगर में पहले से ही दो मामले दर्ज हैं। दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त (लॉ एण्ड ऑर्डर) धर्मेन्द्र कुमार के मुताबिक जजों के कार चालक चमन लाल और बाइक सवार आरोपियों के बीच रोडरेज के कारण कहासुनी हुई थी। पहले तो उन्होंने मामले को रफा-दफा करने की सोची पर जब उसने देखा कि कार पर जज का स्टिकर लगा है, उसने वहां अपने साथियों को भी बुला लिया। विशेष आयुक्त धर्मेन्द्र कुमार के अनुसार अनिल राज से पूछताछ पर जो पता चला वह बेहद ही चौंका देने वाला है। हमले का एक कारण यह भी था कि अनिल राज को एक मामले में इन्हीं जजों ने सजा सुनाई थी। एडिशनल पुलिस कमिशनर दक्षिण-पूर्वी जिला अजय चौधरी के मुताबिक पूछताछ में चारों आरोपी अनिल राज, सुनील राज, रोहित व प्रशांत ने कबूल किया है कि उन्होंने जानबूझ कर जजों पर हमला किया था। शनिवार को चारों की टीआईपी (शिनाख्त परेड) कराई गई, जिसमें इनकी पहचान कर ली गई। ज्ञात रहे साकेत कोर्ट में तैनात अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एमके नागपाल, इन्द्रजीत सिंह मेहता व महानगर दंडाधिकारी अजय गर्ग कार से बृहस्पतिवार की शाम करीब पांच बजे फरीदाबाद स्थित अपने-अपने घर जा रहे थे। कार चालक चमन लाल चला रहा था। सभी मदनगीर की तरफ से जा रहे थे। जैसे ही उनकी कार दक्षिणपुरी जे ब्लॉक, काली बिल्डिंग के पास पहुंची, सामने से गलत दिशा में आ रही मोटर साइकिल कार से टकरा गई। इससे बिना हेलमेट के मोटर साइकिल सवार तीनों युवक नीचे गिर पड़े। जजों द्वारा उन्हें उठाने के बाद दोनों पक्षों में बहस हो गई। मामला शांत होने पर जब जज कार में बैठकर वहां से चलने लगे तभी तीनों ने अपने एक अन्य साथी को भी मौके पर बुला लिया। चमन लाल कार लेकर चला ही था कि चारों ने उनकी कार रुकवाकर जजों व चालक पर हमला बोल दिया। ईंट व पत्थर से कार को क्षतिग्रस्त कर दिया। घटना में जज इंद्रजीत सिंह के हाथ और सिर से तथा जज मनोज कुमार नागपाल के सिर के पिछले हिस्से और हाथ में चोट आई। घटना के तुरन्त बाद एक आरोपी अनिल राज ने खुद ही अपना सिर फोड़कर एम्स ट्रामा सेंटर जा पहुंचा। उसने पुलिस को दिए बयान में जजों पर मारपीट का आरोप लगाया ताकि क्रॉस केस हो जाने पर वह सजा से बच सके किन्तु ट्रामा सेंटर में चालक चमन लाल ने उसकी पहचान कर ली और उसे गिरफ्तार करवा दिया। उसके बयान के बाद देर रात ही अन्य तीनों को भी दबोच लिया गया। लगता है कि मामला रोडरेज का नहीं, जजों की हत्या के प्रयास का था। इन तीनों-चारों को सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए ताकि दूसरों के लिए यह सबक व चेतावनी बन सके। जजों पर यूं हमला किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
Anil Narendra, Daily Pratap, delhi Police, Judiciary, Vir Arjun

सवाल बाबा रामदेव के ट्रस्टों को 58 करोड़ के नोटिस का

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22 May 2012
अनिल नरेन्द्र
योग गुरु बाबा रामदेव आजकल फिर सुर्खियों में हैं। पिछले कई दिनों से बाबा रामदेव ने विदेशों में जमा देश के काले धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने का अभियान चला रखा है, जन प्रतिनिधियों के खिलाफ खासकर सांसदों के प्रति सख्त भाषा का प्रयोग करना इसका एक हिस्सा बन चुका है। दूसरे शब्दों में यह कहा जाए कि बाबा रामदेव इस सरकार की आंखों की किरकिरी बन चुके हैं। सरकार ने भी बाबा पर जवाबी हमला करना आरम्भ कर दिया है। सरकार का कहना है कि योग गुरु रामदेव को आयकर चुकाने से मिली छूट खत्म हो गई है। उनके ट्रस्टों को 58 करोड़ रुपये चुकाने का नोटिस थमाया गया है। आयुर्वेदिक दवाएं बेचने से हुई कमाई पर आयकर चुकाने के लिए रामदेव के ट्रस्टों को नोटिस जारी कर दिया गया है। सूत्रों ने बताया कि आंकलन वर्ष 2009-10 के दौरान हुई 120 करोड़ रुपये की कमाई पर कर चुकाने के लिए हरिद्वार स्थित पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट, दिव्य योग ट्रस्ट और भारत स्वाभिमान ट्रस्ट को यह नोटिस जारी किया गया है। आयकर विभाग ने इन्हें वाणिज्यिक गतिविधियां मानकर नोटिस दिए हैं। विदेशों में जमा भारतीय नागरिकों के काले धन को देश में वापस लाने की मुहिम चला रहे रामदेव एक ऐसे संगठन के प्रमुख हैं जो भारत और दूसरे देशों में आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण और बिक्री का प्रबंधन करने वाले ट्रस्ट संचालित करते हैं। परमार्थ कार्य करने वाले संगठनों से जुड़े प्रावधानों के तहत पिछले कुछ सालों से उनके ट्रस्टों को आयकर चुकाने से छूट मिली हुई थी। अब आयकर विभाग कहता है कि जांच के बाद उन्होंने पाया कि आयुर्वेदिक दवाओं और इससे जुड़ी दूसरी पाचन सामग्रियों की बिक्री एक वाणिज्यिक गतिविधि है और इन्हें आयकर चुकाने से छूट नहीं मिल सकती। बाबा रामदेव ने इस नोटिस पर सख्त प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मैंने जो मुहिम चलाई हुई है उससे सरकार घबरा चुकी है और आनन-फानन में मुझ पर दबाव डालने का प्रयास कर रही है। मगर वे जिस लक्ष्य को लेकर आगे बढ़े हैं उससे कभी पीछे नहीं हटेंगे। बाबा रामदेव ने कहा कि आयकर विभाग ने 58 करोड़ का कर थोपने का जो नोटिस दिया है, वह एक नियोजित चाल है। आयकर विभाग के निर्णय के खिलाफ आयकर आयुक्त के यहां अपील दायर कर दी गई है। ट्रस्ट पहले भी सही दिशा में चल रही थी और आगे भी सही चलेगी। योग गुरु ने कहा कि सरकार मुझे फांसी देना चाहती है और सेवा करना कोई अपराध नहीं है। आखिर मुझे किस बात की सजा दी जा रही है? मैंने कोई चोरी या देश से गद्दारी नहीं की है। देश से गद्दारी करने वाले व उनकी संतानें तो देश में राज कर रही हैं। वे तो काले धन वापस लाने तथा भ्रष्टाचार को फेंकने की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन इससे सरकार का सिंहासन हिलता है, क्योंकि व्यवस्था पर भ्रष्ट लोगों का कब्जा है। काले धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर सरकार पर लगातार निशाना साध रहे बाबा की मुश्किलें सिर्फ आयकर नोटिस से ही खत्म नहीं होंगी। प्रवर्तन निदेशालय उनके तमाम ट्रस्टों के खिलाफ विदेश विनियम अधिनियम (फेमा) के उल्लंघन के आरोपों की भी जांच कर रहा है, क्योंकि इन ट्रस्टों की व्यावसायिक गतिविधियां विदेशों में भी जारी है। यह पहली बार नहीं जब बाबा रामदेव की गतिविधियों पर सवाल खड़े हुए हैं। इससे पहले भी उनकी दवाओं की शुद्धता व विश्वसनीयता पर विशेषज्ञ सवाल उठा चुके हैं। बाबा के सबसे विश्वस्त सहयोगी बालकृष्ण की भारतीय नागरिकता पर उठा विवाद अब भी न्यायालय में विचाराधीन है। बाबा को सरकार को चुनौती देने का पूरा अधिकार है और यह भी सही माना जा सकता है कि बाबा के अभियान के खिलाफ सरकार बदले की कार्रवाई पर उतर आई है पर यह भी सच है कि बाबा अपनी दवाओं को कामर्शियल बेसिस पर चला रहे हैं, उनकी ग्लोबल मार्पिटिंग कर रहे हैं और अगर वह इन्हें आधुनिक कामर्शियल एक्टिविटी की तरह चला रहे हैं तो उस पर कर की मांग गलत नहीं हो सकती।
Anil Narendra, Baba Ram Dev, Daily Pratap, Vir Arjun

Sunday, 20 May 2012

राजधानी की सड़कों पर आम पब्लिक तो क्या जज भी सुरक्षित नहीं


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 20 May 2012
अनिल नरेन्द्र
दिल्ली की सड़कें इतनी असुरक्षित होती जा रही हैं कि अब तो सड़क पर चलने से डर लगने लगा है। आम लोग तो अब दूर की बात है, राजधानी में तो जज तक सुरक्षित नहीं हैं। हाल ही में लाजपत नगर इलाके में रोडरेज की घटना में एक जज के साथ मारपीट हुई थी अब बृहस्पतिवार शाम को एक बार फिर कार सवार तीन जजों पर हमला हो गया। यह वारदात दक्षिणपुरी इलाके में हुई जहां एस्टीम कार में सवार तीन जजों की गाड़ी मामूली रूप से एक बाइक से टच हो गई थी। इस बात को लेकर शुरू हुई कहासुनी के बाद विवाद इतना बढ़ गया कि बाइक सवार युवकों ने जज की गाड़ी पर ईंटें बरसाकर हमला कर दिया। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (एमएम) अजय गर्ग और दो एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज (एजीडे) मनोज कुमार नागपाल और इन्द्रजीत सिंह शाम को साकेत कोर्ट से एक ही कार से फरीदाबाद स्थित अपने घर जा रहे थे। दक्षिणपुरी के जे ब्लॉक में उनकी गाड़ी एक प्लेटिना बाइक से टकरा-सी गई। इससे बाइक पर सवार दो युवक भड़क गए और उन्होंने कार चालक चमन लाल को बाहर खींच लिया। युवकों ने पहले तो कार में सवार जजों के साथ बदसलूकी की और फिर उनके साथ हाथापाई की। थोड़ी देर बाद बाइक सवार दो और युवक वहां पहुंच गए और उन्होंने भी मारपीट शुरू कर दी। हमलावरों ने आसपास पड़े ईंट-पत्थरों से कार की तोड़फोड़ शुरू कर दी। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक पीछे की सीट पर बैठे दोनों एडीजे मनोज कुमार नागपाल और इन्द्रजीत सिंह पास स्थित एक मकान की तरफ भागे। दोनों एडीजे को मामूली चोट आई जबकि एमएम अजय गर्ग और ड्राइवर चमन लाल के सिर में चोटें आई हैं। हमलावर चारों युवक अपनी बाइकें घटनास्थल पर ही छोड़कर फरार हो गए। ये दोनों बाइकें दिल्ली नम्बर की हैं। पुलिस ने वारदात के बाद घटना में शामिल अनिल नामक युवक को अम्बेडकर नगर से पकड़ा और उसकी निशानदेही पर दो अन्य युवकों को भी हिरासत में लिया है। इसमें से अनिल ने खुद को पत्तर से घायल कर लिया है। वह अभी अस्पताल में दाखिल है। दिल्ली में रोडरेज की घटनाएं दिन-प्रति-दिन बढ़ती ही जा रही हैं। वर्ष 2011 में कुल हत्याएं 17 फीसदी रोडरेज के चलते हुईं, 2010 में यह तादाद 15 फीसदी थी। वक्त आ गया है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सजग हुआ जाए। सिर्प पुलिस को कोसने से कुछ खास नहीं होगा। बेशक अपराध नियंत्रण का जिम्मा पुलिस का है पर रोडरेज में पुलिस क्या कर सकती है? दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले लोगों का आत्म संयम कम होता जा रहा है। मामूली-सी रगड़ लग जाए, साइड न मिले तो अपना आपा खो देते हैं। इन्हें अब इसकी परवाह भी नहीं कि जिस पर हमला कर रहे हैं वह व्यक्ति कौन है। किस उम्र का है? हाल में `एम्स' के एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि दिल्ली के तकरीबन 20 फीसदी से अधिक युवक रक्तचाप यानि ब्लड प्रेशर से ग्रस्त हैं। आधुनिक जीवन की आपाधापी और गलाकाट प्रतिस्पर्धा ने युवाओं को दिमागी तथा शारीरिक स्तर पर प्रभावित किया है अब जाहिर है। यही कारण है कि घर के भीतर-बाहर अपराध बढ़ रहे हैं। राजधानी में मौसम के पारे के साथ-साथ सड़क पर युवाओं का पारा भी बढ़ता जा रहा है। सड़कें तंग होती जा रही हैं, वाहन बढ़ते जा रहे हैं। जजों पर हमला करने वाले युवकों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इनको तो सड़क पर चलने ही नहीं देना चाहिए। इनके लाइसेंस ही रद्द कर दो। तभी रोडरेज के यह बढ़ते मामले रुकेंगे।

कसाब की मेहमाननवाजी पर खर्च हो रहे 20 करोड़ को वहन कौन करे?


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 20 May 2012
अनिल नरेन्द्र
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दया याचिकाओं के मामले में उसके सामने दो मामले लम्बित हैं और इन मामलों में वह कुछ ऐसे निर्देश दे सकता है जो राष्ट्रपति के पास लम्बित दया याचिकाओं को प्रभावित कर सकता है, इसलिए बेहतर होगा कि वह दया याचिकाओं के निपटारे के लिए कोई समय सीमा निर्धारित करे। जस्टिस जीएस सिंघवी और एसजे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि केंद्र समय सीमा निर्धारित करने पर विचार करे, हालांकि वह माफी देने के राष्ट्रपति के विशेषाधिकारों पर कोई निर्देश नहीं देना चाहती। कोर्ट ने कहा, `हम यह भी नहीं चाहते कि सरकार जल्दबाजी में फैसला ले क्योंकि इससे उसके सामने लम्बित केसों पर असर पड़ सकता है।' कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा, `हालांकि हमने देखा है कि सरकार ने भुल्लर के मामले में सक्रियता तभी दिखाई जब उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।' उसकी याचिका के एक माह बाद ही सरकार ने उसे खारिज कर दिया। इससे यह सवाल उठा है कि क्या उसके केस का उचित गुण-दोष के आधार पर निर्णय हुआ है। राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिकाओं के वर्षों तक लटकने के खिलाफ मृत्यदंड प्राप्त दो दोषियों ः देवेन्द्र सिंह भुल्लर और महेन्द्र नाथ दास ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनका कहना है कि उन्हें अनुच्छेद-21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है, इसलिए उनकी सजाओं को अब उम्र कैद में बदल दिया जाए। दोनों याचिकाओं पर राष्ट्रपति के यहां लगभग सात वर्षों से अधिक की देरी तो हो चुकी है। उधर सूखा राहत के मामले पर दिल्ली से खाली हाथ लौटे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा है कि आर्थर रोड जेल में बन्द अजमल कसाब की सुरक्षा का खर्च महाराष्ट्र के सिर डालना सरासर गलत है। चव्हाण ने केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम को एक पत्र लिखकर मांग की है कि कसाब की सुरक्षा में करीब 20 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं और इस खर्च को केंद्र सरकार को वहन करना चाहिए। चव्हाण ने यह चिट्ठी एनसीपी नेता और राज्य के गृहमंत्री आरआर पाटिल के उस बयान के बाद लिखी है जिसमें उन्होंने कसाब की इतनी लम्बी देखभाल को गलत बताया था। अजमल कसाब की सुरक्षा में लगी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस ने महाराष्ट्र सरकार के पास 28 मार्च 2009 से लेकर 30 सितम्बर 2011 तक के करीब 20 करोड़ रुपये का बिल भेज दिया है। यह बिल आईटीबीपी के उन कर्मचारियों के वेतन और भत्तों पर खर्च हुआ है जो कसाब की सुरक्षा में लगे हैं। पहले से ही आर्थिक संकट झेल रही महाराष्ट्र सरकार पर यह 20 करोड़ रुपये का खर्च किसी बोझ से कम नहीं है, इस बात पर जोर देते हुए मुख्यमंत्री चव्हाण ने चिदम्बरम को चिट्ठी भेज दी है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच रस्साकशी का यह मसला आने वाले दिनों में तूल पकड़ सकता है। कसाब को कथित तौर से राजकीय मेहमान के तौर पर रखे जाने को लेकर शिवसेना कई बार केंद्र और राज्य सरकार पर हमला कर चुकी है। एनसीपी को भी अब लगने लगा है कि मराठी मानुष के मुद्दों से दूर होते जाने की वजह से ही हाल के स्थानीय निकाय चुनावों में मुंबई के मतदाताओं ने उसे पूरी तरह नकार दिया है। प्रश्न यह उठता है कि कब तक अजमल कसाब की देश यूं खातिरदारी करता रहेगा? आखिर कोई समय सीमा तो तय करनी ही होगी।
Anil Narendra, Daily Pratap, Vir Arjun, Qasab, Maharashtra, NCP,

Saturday, 19 May 2012

शाहरुख खान फिर फंसे विवाद में

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19 May 2012
अनिल नरेन्द्र
आईपीएल यानि इंडियन प्रीमियर लीग अभी स्टिंग ऑपरेशन का सदमा झेल रही थी कि एक नया विवाद पैदा हो गया। मामला फिल्मों के सुपर स्टार किंग खान से संबंधित है। कोलकाता नाइट राइडर्स के मालिक शाहरुख खान महाराष्ट्र क्रिकेट संघ के अधिकारियों से कथित तौर पर भिड़ गए। मामला कुछ यूं था ः शाहरुख खान कुछ बच्चों के साथ कोलकाता नाइट राइडर्स बनाम मुंबई इंडियन मैच की समाप्ति पर वानखेड़े स्टेडियम पहुंचे और अपनी टीम के खिलाड़ियों से मिलने ड्रेसिंग रूम की तरफ चले गए और उनके साथ आए बच्चे मैदान में जाने का प्रयास करने लगे तो सुरक्षा गार्डों ने उन्हें रोक दिया। शाहरुख को जब इसका पता चला तो वह बाहर आकर सुरक्षा गार्डों से भिड़ गए और आपस में कहासुनी शुरू हो गई। एमसीए (महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन) अधिकारियों ने उन्हें बताया कि वे मैदान में नहीं जा सकते हैं। इस पर शाहरुख ने कहा कि मैं टीम का मालिक हूं और मुझे कैसे रोका जा सकता है? शाहरुख और एमसीए अफसर से बहस हो रही थी तभी यूसुफ पठान बीच-बचाव करने पहुंचे। सहायक पुलिस आयुक्त इकबाल शेख ने मौके की नजाकत समझी और वह शाहरुख को समझा-बुझाकर अपनी गाड़ी में बैठाकर स्टेडियम से ले गए। एमसीए की शुक्रवार को आपात बैठक होगी जिसमें शाहरुख पर स्टेडियम में प्रवेश पर आजीवन प्रतिबंध लगाने पर विचार होगा। दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर बदसलूकी और उकसाने का आरोप लगाया है। एमसीए ने शाहरुख के खिलाफ मैरीन ड्राइव थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी। उधर शाहरुख का कहना है कि वह नशे की हालत में नहीं थे और एमसीए अधिकारियों ने उनके बच्चों के साथ बदतमीजी की। शाहरुख ने आनन-फानन में बुलाई प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि मैं इस बात से इंकार नहीं करूंगा कि मैंने गाली दी, लेकिन यह सब तब शुरू हुआ जब एक शख्स पीछे से आया और मराठी में कुछ ऐसा अभद्र कहा जिसे मैं दोहराना नहीं चाहता। मैंने शराब नहीं पी रखी थी। मैं अपने बच्चों को लेने गया था। मेरे बच्चों के साथ सुरक्षा अधिकारियों ने हाथापाई की, जिसके बाद मेरा एमसीए अधिकारियों के साथ झगड़ा हुआ। सुरक्षा के नाम पर बच्चों के साथ हाथापाई नहीं की जा सकती। यह माफ करने लायक बात नहीं है। उन्हें मुझसे माफी मांगनी चाहिए। मामला पेचीदा है। यह ठीक है कि सेलीब्रेटी स्टेटस होने के कारण फिल्म सितारों की छोटी सी छोटी बात हैडलाइंस बन जाती है पर फिल्म सितारों को भी इसका अहसास होना चाहिए कि वह क्या कर रहे हैं और उसके क्या परिणाम होंगे। कुछ फिल्मी सितारे अपने आपको देश के कानून से ऊपर मानते हैं और हर जगह अपनी चलाना चाहते हैं। पुलिस और शाहरुख के बयानों में बहुत फर्प है। मामला दर्ज हो चुका है और छानबीन से ही पता चलेगा कि आखिर हुआ क्या? इस मामले में एक और नुकसान शाहरुख को यह भी हो सकता है कि उनकी टीम ने मुंबई की टीम को हराया था। सचिन को हराया था और शाहरुख मुंबई के खिलाफ ही मैदान में उतर गए। आखिर शाहरुख आज जो भी हैं वह मुंबई की वजह से हैं। मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री की वजह से हैं। एक ट्विट आया कि शाहरुख को अपनी टीम का नाम कोलकाता नाइट राइडर्स से बदलकर कोलकाता नाइट फाइटर्स कर लेना चाहिए।
Anil Narendra, Daily Pratap, Kolkata, Mumbai, Shah Rukh Khan, Vir Arjun