Published on 15 October, 2012
अनिल नरेन्द्र
एक 14 साल की पाकिस्तानी लड़की मलाला यूसुफजई आजकल सारी दुनिया
के मीडिया में छाई हुई है। मलाला जैसी कई लड़कियां पाकिस्तान में स्त्राr शिक्षा के
लिए तालिबान जैसी कट्टरपंथी जमात के लिए खतरे की घंटी हैं। लड़कियों की शिक्षा की प्रबल
समर्थक इस निर्भीक किशोरी को तालिबान ने दो बार जान से मारने की धमकी दी। लेकिन मलाला
न सिर्प अपने रास्ते पर डटी रहीं बल्कि गरीब लड़कियों की शिक्षा के लिए उसने एक कोष
की स्थापना कर अपने अभियान को और तेज कर दिया। इसी का नतीजा था कि पिछले मंगलवार को
कुछ नकाबपोश बन्दूकधारियों ने स्कूल बस को घेरकर उससे उसका नाम पूछा फिर उसके सिर और
गर्दन पर गोलियां मारीं। तालिबान के प्रवक्ता ने टिप्पणी की कि यह उसके लिए सबक है
और अगर वह जिन्दा बच जाती है तो हम फिर से उसे मारने की कोशिश करेंगे। घायल मलाला की
हालत अभी भी खतरे से बाहर नहीं है। उसे पेशावर से रावलपिंडी के एक अस्पताल ले जाया
गया है। इस बीच मलाला के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए पूरे पाकिस्तान में विशेष नमाज
पढ़ी गई। 14 साल की मलाला यूसुफजई पर कायरतापूर्ण हमले की अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने
कड़े शब्दों में निन्दा की है। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने इस हमले को घृणित तथा दुखद
करार देते हुए मलाला को अमेरिकी सैन्य एम्बुलैंस और इलाज सहित हर सम्भव मदद की पेशकश
की है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने इस हमले पर गहरी नाराजगी जाहिर की। पाकिस्तान
में मलाला से हमदर्दी और समर्थन में तेजी आ गई है। मलाला पर हमले के विरोध में लोगों
ने गुरुवार को लाहौर में प्रदर्शन किए और मोमबत्ती लेकर जुलूस निकाला। पंजाब के अन्य
शहरों में भी ऐसे प्रदर्शन हुए और जुलूस निकाले गए। लोगों ने मलाला पर तालिबान के कायरतापूर्ण
हमले की निन्दा की। पाकिस्तान का पहला युवाओं के लिए राष्ट्रीय शांति पुरस्कार हासिल
करने वाली मलाला को इस्लामाबाद से 160 किलोमीटर दूर स्वात में मंगलवार को गोली मारी
गई। मलाला ने ब्लॉग में तालिबान की ज्यादतियों के बारे में जब से लिखना शुरू किया तब
से उसे कई बार धमकियां मिलीं। स्वात में 2008 में तालिबान ने लड़कियों के पढ़ने पर
प्रतिबंध लगा दिया था। तब मलाला ने `गुल मकई' के छद्म नाम से बीबीसी उर्दू के लिए ब्लॉगिंग
में अपनी पीड़ा और नाराजगी जाहिर की। साथ ही उसने और लड़कियों को आतंकियों के खतरे
के बावजूद पढ़ाई जारी रखने को कहा। सामाजिक संगठनों, छात्र संघों, शिक्षकों, वकीलों,
इस्लामी मजहबी नेताओं और डाक्टरों ने मलाला के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए अलग-अलग
प्रार्थना की। कई इस्लामी मजहबी नेताओं ने शुक्रवार को `यौम ए दुआ' (प्रार्थना दिवस)
के तौर पर मनाया। पाकिस्तान में महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली किशोरी मलाला
यूसुफजई की हत्या की कोशिश को गैर इस्लामी करार देते हुए 50 से ज्यादा सुन्नी मौलवियों
ने फतवा जारी किया है। पाकिस्तानी मौलवियों ने फतवे में देश के लोगों से अपील की कि
वे 14 वर्षीय मलाला के प्रति एकजुटता प्रकट करने के लिए बड़ी तादाद में निन्दा दिवस
में शामिल हों। सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल से जुड़े मौलवियों ने अपने संयुक्त फतवे में
कहा कि इस्लाम महिलाओं के शिक्षा ग्रहण करने पर रोक नहीं लगाता। हमलावरों ने इस्लामी
सिद्धांतों की अनदेखी की है। उदारवादी बेरहलवी विचारधारा से जुड़े इन मौलवियों ने तालिबान
द्वारा की जा रही इस्लाम की व्याख्या को असंगत बताते हुए कहा कि धर्म शिक्षा को न सिर्प
जरूरी बल्कि अनिवार्य बताता है। फतवे में आगे कहा है कि जिहाद की असली भावना को स्पष्टता
के साथ समझे जाने की जरूरत है, क्योंकि निर्दोष महिलाओं और बच्चों पर हमला करना जिहाद
नहीं है। हम मलाला के जल्द स्वस्थ होने की
प्रार्थना करते हैं और दुआ करते हैं।
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