Thursday 18 October 2012

दिल्ली में जितना ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन होता है और कहीं नहीं


 Published on 18 October, 2012
 अनिल नरेन्द्र

गत सप्ताह मैं एक निजी कार्यकम में मुंबई गया था। दिल्ली और मुंबई में एक बहुत बड़ा फर्प जो मैंने देखा वह था ट्रैफिक नियमों का पालन। मुंबई में वाहन चालक चाहे वह कारों के हों, दो पहिया हों या फिर ऑटो के हों सभी अनुशासित ढंग से चलते हैं, ट्रैफिक नियमों का पालन करते हैं। दिल्ली में यह सही है कि वाहनों की संख्या मुंबई के मुकाबले तीन-चार गुना है पर शायद ही कोई ट्रैफिक नियमों का पालन करता हो। यही वजह है कि दिल्ली में जितने लोगों का मर्डर होता है, उसमें चार गुना अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरते हैं और सबसे दुखद बात यह है कि इसमें कोई सुधार नहीं हो रहा है और सड़कों पर मरने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। दुर्घटना का मामला दर्ज कर औपचारिक कार्रवाई के बाद फाइल ठंडे बस्ते में चली जाती है क्योंकि ऐसे मामलों में सजा का पावधान न के बराबर है। विडम्बना देखिए, हत्या को लेकर खूब हाय-तौबा मचती है। कहा जाता है कि दिल्ली नागरिकों के लिए सुरक्षित नहीं है लेकिन सड़कों पर हादसे कम हो, लोग जागरुक हों, इस ओर किसी का कोई ध्यान नहीं जाता। यातायात पुलिस बेशक समय-समय पर विशेष अभियान चलाकर व पाठ्य सामग्री जारी कर इस दिशा में कदम उठाती है पर जब तक वाहन चालक खुद थोड़ा अनुशासित नहीं होते समस्या कम नहीं हो सकती। सबको जल्दी लगी रहती है। लाइन के पीछे लगने को कोई तैयार नहीं, लाइन को काट कर आगे जाना चाहते हैं भले ही इससे सामने से आ रहे ट्रैफिक में बाधा क्यों न पड़े। दुर्घटनाएं हो रही हैं। लोग मर रहे हैं, लेकिन वाहन चलाने के तरीकों में सुधार नहीं हो रहा है। चालकों को पता है कि वह नियम विरुद्ध गाड़ी को सड़क पर दौड़ा रहे हैं, वाहन मालिकों को यह भी पता है कि उनके वाहन में नियमों का पालन नहीं हो रहा। लेकिन सब चलता है कि तर्ज पर वह अपने ढर्रे पर कायम हैं। चालकों को निक-नेक करते दौड़ा रहे हैं मानों लोगों की जान से खेलना उनकी आदत में शुमार हो चला है। आंकड़ों की कहानी बड़ी भयावह है। वर्ष 2011 में राजधानी में मर्डर की 543 वारदातें हुईं, वहीं सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों का आंकड़ा 2107 था। इस साल यातायात पुलिस ने सख्ती दिखाई जिसका असर दुर्घटनाओं में कमी के रूप में सामने आया। लेकिन अभी भी राजधनी के कई इलाकों में यातायात पुलिस की मुहिम सफल होती नजर नहीं आ रही। यह है शहर के सीमावर्ती इलाके। यहां सड़कों पर दौड़ती आरटीवी, तिपहिया व फटफट सवारी सेवा खुलेआम नियमों का उल्लंघन कर रही हैं। मालवाहक वाहनों में जहां सवारियां ढोई जा रही हैं। वहीं क्षमता से अधिक सवारियां ढोकर तिपहिया व आरटीवी आम लोगों की जान से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आते। इतना ही नहीं, शहर की तमाम सड़कों पर ऐसे अनगिनित व्यावसायिक वाहन दौड़ते मिल जाएंगे, जिनमें टेल लाइट या इंडिकेटर तो छोड़िए, नंबर प्लेट, हार्न तक नहीं होता। ऐसे में शहर की सड़कों पर चलने वाले नागरिकों की कहां तक जान सुरक्षित है आप खुद ही अंदाजा लगा लें?

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