Tuesday, 23 October 2012

सुभाष पार्क में अवैध निर्माण पर हाई कोर्ट का साहसी, सराहनीय फैसला


 Published on 23 October, 2012
 अनिल नरेन्द्र
 दिल्ली हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एमएल मेहता और जस्टिस राजीव शंकधर ने शुक्रवार को एक साहसी फैसला किया। मामला था दिल्ली के सुभाष पार्क में अवैध मस्जिद बनाने का। उल्लेखनीय है कि मेट्रो लाइन निर्माण के दौरान सुभाष पार्क में एक दीवार मिली थी, जिसे एक समुदाय ने कथित रूप से अकबरावादी मस्जिद का अवशेष बताते हुए वहां रातों-रात निर्माण कर दिया। इस मुद्दे को लेकर कुछ संगठन दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचे व इस अवैध निर्माण को हटाने की मांग की। हाई कोर्ट ने 30 जुलाई को पुलिस को यह अवैध निर्माण हटाने के लिए एमसीडी को फोर्स उपलब्ध करवाने का निर्देश दिया था। एमसीडी ने 31 जुलाई को पुलिस को पत्र लिखकर फोर्स देने का आग्रह किया ताकि अदालत के आदेश का पालन हो सके। पुलिस ने आवेदन दाखिल कर तर्क रखा कि रमजान, स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों के तहत पुलिस फोर्स व्यस्त है अत ऐसे में फोर्स देना सम्भव नहीं है। पीठ ने कहा कि उनकी नजर में पुलिस की ड्यूटी है कि वह शांति व कानून व्यवस्था बनाए व कोई भी कानून न टूटे। इतना ही नहीं पुलिस ने अपनी अर्जी में यह भी कहा था कि अवैध मस्जिद गिराने के लिए विधायक शोएब इकबाल को निर्देश जारी किया जाए। अदालत ने पुलिस की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि पुलिस मामले में जरूरी फोर्स नगर निगम को मुहैया कराए और यह कार्रवाई जल्दी की जाए। उधर विधायक शोएब इकबाल ने याचिका दायर कर एएसआई के कार्यों का निरीक्षण करने के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी बनाने की बात कही। इस पर अदालत ने कहा कि याचिका के माध्यम से विधायक ने एक बार फिर मामले को लम्बा खींचने का प्रयास किया है। अदालत अपने 30 जुलाई के आदेश में इन मामलों पर पहले ही विचार कर चुकी है। एएसआई पूरे मामले को देख रही है। यह एक तकनीकी कार्य है और इस पर न तो संदेह किया जा सकता है और न ही सवाल उठाए जा सकते हैं। शोएब इकबाल की याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि इस मामले में एक्सपर्ट कमेटी या लोकल कमिश्नर नियुक्त किए जाने की कोई जरूरत नहीं है। इस मामले में याचिकाकर्ता स्वामी साई बाबा ओम जी द्वारा उन पर हमले को लेकर की गई सुरक्षा व्यवस्था की मांग के मामले का निपटारा करते हुए पीठ ने कहा कि दिल्ली पुलिस याचिकाकर्ता की मांग पर विचार करते हुए इस पर उचित कार्रवाई करे। अदालत ने स्पष्ट किया कि एएसआई द्वारा उक्त स्थल के संबंध में 17 जुलाई को जारी नोटिस के तहत कार्रवाई की जाए। एएसआई ने अपने नोटिस में स्पष्ट रूप से कहा था कि लाल किला व सुनहरी मस्जिद संरक्षित क्षेत्र है और उसके आसपास किसी भी प्रकार का निर्माण, मरम्मत इत्यादि प्रतिबंधित है। सुभाष पार्क में हुआ निर्माण इसी क्षेत्र में आता है और इसे 15 दिन में हटाया जाए। इतना ही नहीं निर्माण करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की जाए। अंत में पीठ ने यह भी कहा कि पूरा विवादित स्थल सीलबंद है और वहां काम में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि उक्त स्थल पर सर्वे में मस्जिद होने की पुष्टि होती है तो भी यह संरक्षित इमारत होगी और ऐसे में वहां नमाज अता करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसे में नमाज अता करने की इजाजत देने का सवाल ही नहीं है। हम हाई कोर्ट की पीठ का स्वागत करते हैं और इस साहसी फैसले की सराहना करते हैं। सवाल एक अवैध निर्माण का ही नहीं बल्कि कानून की धज्जियां उड़ाने का है। ऐसे में रातों-रात कई पूजा स्थल खड़े हो जाएंगे। अब देखना यह है कि जो साहस हाई कोर्ट पीठ ने दिखाया है क्या दिल्ली पुलिस भी वैसा ही साहस दिखाएगी?

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