Sunday, 21 October 2012

और अब शरद पवार और मनमोहन सिंह की बारी


 Published on 21 October, 2012
 अनिल नरेन्द्र
 चारों तरफ से हमलों से घिरती संप्रग सरकार और कांग्रेस पार्टी को कोई उम्मीद की किरण फिलहाल तो नजर नहीं आ रही। ताजा हमला कांग्रेस नीत सरकार को समर्थन दे रही राकांपा प्रमुख शरद पवार पर हुआ है। एक पूर्व आईपीएस अधिकारी व अरविन्द केजरीवाल के सहयोगी रहे वाईपी सिंह ने लगाया है। उन्होंने गुरुवार को आरोप लगाया कि महाराष्ट्र के लवासा प्रोजेक्ट में गड़बड़ी करने में केंद्रीय मंत्री शरद पवार का पूरा परिवार शामिल है। सिंह महाराष्ट्र कैडर के 1985 बैच के अधिकारी रहे हैं। वे फिलहाल वकालत कर रहे हैं, सिंह का दावा है कि 2002 में 348 एकड़ जमीन लेक सिटी कारपोरेशन को 30 साल के लिए लीज पर दी गई। यह कम्पनी हिन्दुस्तान कंस्ट्रक्शन की सहायक कम्पनी है। जमीन आवंटित करने का काम शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र के तत्कालीन सिंचाई मंत्री अजीत पवार ने किया। पूरी जमीन लवासा को 23000 रुपए प्रति माह प्रति एकड़ पर 30 साल के लिए लीज पर दी गई। जब जमीन ट्रांसफर की गई तो पवार की बेटी सुप्रिया व उनके पति सदानन्द को लवासा लेक सिटी को 10.4, 10.4 फीसदी शेयर मिले। 2006 में सुप्रिया और सदानन्द ने अपने 20.8 फीसदी शेयर बेच दिए। इस हिसाब से सुप्रिया को अपने हिस्से के 10.4 प्रतिशत शेयर बेचने के लिए उनको 500 करोड़ रुपए मिले। शरद पवार ने इन आरोपों का खंडन किया है और सिरे से खारिज कर दिया है। मामला कोर्ट में चल रहा है, उम्मीद है कि कोर्ट में दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। दूसरा मामला खुद प्रधानमंत्री को लेकर है। यह मामला घोटाले का तो नहीं पर आरोप अत्यंत गम्भीर है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व कैबिनेट सचिव केएम चन्द्रशेखर ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सामने पेश होकर मनमोहन सिंह को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि पीएम को उन्होंने बाजार मूल्य 35 हजार करोड़ रुपए पर स्पेक्ट्रम नीलामी की सलाह दी थी। प्रधानमंत्री ने इस सलाह की अनदेखी कर दी। चन्द्रशेखर ने खुलासा किया कि उन्होंने पीएम को पत्र लिखकर स्पेक्ट्रम के आवंटन को एंट्री फीस बाजार दर पर करने की सिफारिश की थी। यह सलाह मानी गई होती तो देश के खजाने को कई हजार करोड़ रुपए का मुनाफा होता। पूर्व कैबिनेट सचिव द्वारा सुझाई गई कीमत आवंटन की कीमत से करीब 21 गुना ज्यादा है। यही नहीं चन्द्रशेखर ने जेपीसी में यह भी कहा कि 2008 में स्पेक्ट्रम की नीलामी सुनिश्चित करने में विफलता के लिए पी. चिदम्बरम भी जिम्मेदार ठहराने वाले मार्च 2011 के विवादित नोट के पीछे तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की भूमिका थी। पीएमओ को वित्त मंत्रालय द्वारा भेजे गए नोट में कहा गया था कि आवंटन के वक्त वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम `पहले आओ पहले पाओ' की नीति की बजाय नीलामी की प्रक्रिया अपनाने पर जोर दे सकते थे। चन्द्रशेखर की लिखित सलाह को नजरअंदाज करने से देश को बहुत भारी नुकसान हुआ है। उनकी सलाह न मानने से सरकार के खजाने को 1.76,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। क्या प्रधानमंत्री और उस समय के वित्त मंत्री इसके लिए सीधे जिम्मेदार नहीं? कैबिनेट सचिव देश के नौकरशाहों में से सबसे वरिष्ठ माना जाता है। अगर वह ऐसा संगीन आरोप लगाए तो उसका देश जवाब चाहता है। केवल खंडन करने, सफाई देने से बात नहीं बनेगी। प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को देश के सामने यह साबित करना होगा कि जो आरोप चन्द्रशेखर लगा रहे हैं वह गलत है और उलट है तो क्यों है। अपनी दलीलों को साबित करने के लिए उन्हें दस्तावेजी सबूत पेश करने होंगे। वैसे तो यह मामला अदालत में भी चल रहा है और अदालत श्री चन्द्रशेखर के बयान को गम्भीरता से लेगी और उचित कार्रवाई करेगी। इससे यह भी साबित हो जाता है कि जो आरोप विपक्ष प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री पर लगाता आया है वह सही हैं।

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