Published on 17 October, 2012
अनिल नरेन्द्र
दिल्ली भारत की राजधानी है और दिल्ली का मूड ही पूरे देश में चल रही हवा का स्पष्ट संकेत होता है। अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, अरविन्द केजरीवाल, भाजपा के लगातार हो रहे आंदोलनों से दिल्ली में कांग्रेस के खिलाफ हवा बनना स्वाभाविक ही है। दो दिन पहले हुई दो घटनाओं से कांग्रेस नेतृत्व को जरूर चिंतित होना चाहिए। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सभा में चप्पल और अंडे फेंके जाने से जनता के मूड का पता चलता है। महंगाई, घोटालों और बिजली, पानी के बिलों के कारण लोगों का गुस्सा अब सामने आने लगा है। लोगों की नाराजगी या फिर इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नेता अरविन्द केजरीवाल के आंदोलन का असर हो सकता है पर जिस तरह दिल्ली के एक कद्दावर नेता को जनाक्रोश से बचकर या फिर बिना भाषण पूरा किए ही लौट जाना पड़ा उसे दिल्ली की राजनीति में एक चुनौती जरूर माना जा रहा है। यह भी सच है कि दिल्ली की सत्ता पर पिछले 14 साल से काबिज और दिल्ली को पेरिस बनाने का दावा करने वाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सामने यह शायद पहला अनुभव रहा होगा। इससे पहले तो शीला जी जहां गईं वहां उनके समर्थन में ही नारे लगते सुने होंगे। यह भी आश्चर्य की बात है कि जिस मुस्तफाबाद और नन्द नगरी क्षेत्र के लोगों के गुस्से का सामना शीला जी को करना पड़ा वहां कांग्रेस के विधायक वीर सिंह धिगान और हसन अहमद हैं और वहां के सांसद हैं जय प्रकाश अग्रवाल। यह एक दिल्ली का ओपन सीकेट है कि प्रदेश अध्यक्ष और सांसद जय प्रकाश अग्रवाल और शीला दीक्षित में पटती नहीं है और आला कमान के सारे प्रयासों के बावजूद दोनों में दूरियां कम नहीं हो रहीं। पिछले एक हफ्ते में शीला दीक्षित के साथ जो दो घटनाएं हुई हैं उन्हें दिल्ली की राजनीति में विरोध स्वरूप भी देखा जा रहा है। यही वजह है कि मुस्तफाबाद की घटना के बाद रविवार को रोहताश नगर में जय प्रकाश अग्रवाल और क्षेत्र के विधायक विनय शर्मा के विरोध में कांग्रेसियों ने ढोल-नगाड़े बजाए। दिल्ली कांग्रेस आज बुरी तरह बंटी हुई है और एक-दूसरे पर कीचड़ उछलवाने से पीछे नहीं रहती। तेज दौड़ते बिजली के मीटर, पानी का निजीकरण और बढ़ती महंगाई से परेशान जनता के सामने अब खुलकर सड़कों पर उतरना, नेताओं की जनसभाओं में विरोध करना उनकी मजबूरी दर्शाता है। जब सरकार और नेता जनता की जायज मांगों को ठुकरा देते हैं तो जनता सड़कों पर उतर आती है। एक के बाद एक घोटाले का पर्दाफाश होने से जनता को यह विश्वास होता जा रहा है कि यह संप्रग सरकार केंद्र में हो या राज्य में हो यह इन घोटालों में कुछ करने वाले नहीं। अगर ऐसा न होता तो सीएजी रिपोर्ट, शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट और दिल्ली के लोकायुक्त द्वारा दिल्ली के मंत्रियों के खिलाफ उठाई अंगुलियों का यह हश्र न होता जो हो रहा है। आखिर क्यों नहीं इन मुद्दों पर जांच कराई गई और कसूरवारों पर कार्रवाई की गई? कांग्रेस के प्रति मतदाताओं की नाराजगी नगर निगम चुनाव में वह देख चुकी है पर फिर भी वह सम्भल नहीं रही। जनता को फॉर ग्रांटेड लेना भारी भूल हो सकती है।
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