Published on 18 October, 2012
अनिल नरेन्द्र
सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा केस में एक नया मोड़ आ गया है। हरियाणा की कांग्रेसी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सरकार ने रॉबर्ट वाड्रा को बचाने के लिए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को बेशक हटा दिया पर जाते-जाते वह अधिकारी ऐसा कर गए कि वाड्रा के पिछले सात साल में किए गए जमीन संबंधी सभी सौदे अब जांच के दायरे में हैं। इस अधिकारी का नाम अशोक खेमका है और यह सन् 1991 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के अरविंद केजरीवाल जहां वाड्रा से जुड़े मामलों का रहस्योद्घाटन कर रहे थे तभी 11 अक्तूबर को हरियाणा के चकबंदी और भूमि अभिलेखा विभाग के महानिदेशक के पद से खेमका का तबादला कर दिया गया। अगले ही दिन 12 अक्तूबर को खेमका ने राजधानी दिल्ली के नजदीक हरियाणा के चार जिलों में वाड्रा के द्वारा पिछले सात सालों में भूखंडों के लिए किए सौदों की जांच के आदेश वहां के उपायुक्तों (जिलाधिकारियों) को दे दिया। अशोक खेमका की ईमानदारी की वजह से उनकी बीस साल की नौकरी में उनके 43 तबादले हो चुके हैं। जैसे ही खेमका को उनके तबादले की खबर मिली उन्होंने सरकार पर पलटवार करते हुए कहा कि ईमानदार होने और घोटालों को बेनकाब करने के कारण उन्हें दंडित किया जाना पूरी तरह से अनुचित है। उन्होंने मानेसर शिखोपुर में उस 3.5 एकड़ भूखंड की तब्दीली को रद्द करने का आदेश दिया था जिसे वाड्रा ने डीएलएफ को बेचा था। अशोक खेमका ने अपने तबादले को लेकर हरियाणा सरकार की सफाई पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने उन्हें दो पदों के पभार से मुक्त करने का आदेश दिया था लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें सभी पदों से मुक्त कर तबादला कर दिया है। खेमका के मुताबिक जिन चार पदों का पभार उनके पास था उनमें से दो पद ऐसे थे जिन पर उनके फैसले की समीक्षा का अधिकार खेमका के जूनियर अधिकारी को था। लिहाजा खेमका ने ऐसे पदों से खुद को हटाए जाने की मांग की थी लेकिन सरकार ने उन्हें चारों पदों से हटा दिया है। अशोक खेमका को उनकी ईमानदारी की वजह से हटाया गया या फिर वह सोची समझी रणनीति के तहत रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ हाथ धोकर पड़े थे इसका फैसला कैसे हो? कांग्रेसी सवाल कर रहे हैं कि खेमका ने अपने तबादले के आदेशों के बाद वाड्रा और डीएलएफ कंपनी के बीच हुए जमीन-जायदाद के सौदों की जांच के आदेश क्यों दिए? खेमका का तबादला 11 अक्तूबर को कर दिया गया था मगर खेमका ने 12 अक्तूबर को भूमि पंजीकरण, महानिरीक्षक के कार्यालय में जाकर केवल अखबारों में छपी खबरों को आधार बनाकर वाड्रा और डीएलएफ के बीच हुए जमीनी सौदों की जांच के आदेश दे दिए और बाद में अपनी अगली नियुक्ति राज्य बीज विकास निगम के पबंध निदेशक पद पर होने तक 15 अक्तूबर को गुड़गांव की उस जमीन का सौदा रद्द करने के आदेश दे दिए जिस साढ़े तीन एकड़ भूमि को वाड्रा ने डीएलएफ कंपनी को बेचा था। इससे खेमका की एक सरकारी अफसर के तौर पर काम करने वाली निष्पक्ष अधिकारी के रूप में नेकनीयता पर सवाल खड़ा हो गया है। कांग्रेसी खेमा यह भी कह रहा है कि सरकारी आचार संहिता के अनुरूप कोई भी आईएएस अधिकारी अपने तबादले के आदेश के बाद उस विभाग को देखना बंद कर देता है बेशक उसकी दूसरी पदस्थापना के आदेश दो-तीन दिन बाद ही आए। अशोक खेमका ने जान बूझकर रॉबर्ट वाड्रा-डीएलएफ के खिलाफ कार्रवाई की या फिर इस कार्रवाई की वजह से उनका तबादला हुआ यह विवाद का मुद्दा है। दोनों पक्ष अपनी दलीलें दे रहे हैं। इतना तय है कि अशोक खेमका का तबादला रॉबर्ट वाड्रा जांच के कारण ही किया गया। रॉबर्ट वाड्रा के साथ-साथ अब हरियाण की हुड्डा सरकार भी विवादों में फंसती जा रही है। रॉबर्ट वाड्रा ने कहां-कहां कितनी संपत्ति खरीदी, उसकी पूरी जानकारी देश को मिलनी चाहिए। हरियाणा सरकार में अगर दम है तो जो जांच अशोक खेमका ने करवाई उसके निष्कर्ष सार्वजनिक करें। यह मामला यहीं दबने वाला नहीं। अशोक खेमका पूरी तरह बागी हो चुके हैं। चैनलों में चीख-चीख कर इंसाफ की दुहाई कर रहे हैं। फिर इस देश में आईएएस लॉबी भी बहुत पभावशाली है। रॉबर्ट वाड्रा के घोटालों को अब दबाना मुमकिन नहीं लगता।
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