Tuesday 30 October 2012

रॉबर्ट वाड्रा को क्लीन चिट पर उठे सवाल


 Published on 30 October, 2012
 अनिल नरेन्द्र
         संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को हरियाणा सरकार की ओर से जल्दबाजी में दी गई क्लीन चिट पर सवाल खड़े होने स्वाभाविक ही हैं। इस मामले में खुलासा करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता अरविन्द केजरीवाल ही नहीं भाजपा और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने भी इसे राज्य सरकार की ओर से वाड्रा को बचाने की कोशिश करार दिया है। केजरीवाल ने शुक्रवार को कहा, क्या लोगों को बताया जाएगा कि कौन से कानून की किस धारा के तहत जांच की गई और किसने यह जांच की? सारे देश में उनका भ्रष्टाचार साफ नजर आया लेकिन हरियाणा सरकार ने उन्हें क्लीन चिट दे दी। केजरीवाल ने कहा कि सरकार से उनको यही उम्मीद थी। मामला सामने आने के कुछ घंटों के अन्दर ही सरकार के सभी मंत्रियों ने उन्हें सही बता दिया था, ऐसे में निष्पक्ष जांच हो ही नहीं सकती थी। ऐसे प्रभावशाली लोगों की जांच के लिए देश में कोई एजेंसी ही नहीं है। इसलिए निष्पक्ष लोकपाल बनाना जरूरी है। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावेडकर ने इसे `स्व प्रमाणन' बताते हुए कहा कि हरियाणा सरकार की जांच पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने वाड्रा के उस दावे की जांच की मांग की जिसमें उन्होंने कारपोरेशन बैंक से 7.94 करोड़ रुपए का ओवर ड्राफ्ट लेने की बात कही है जबकि कारपोरेशन बैंक ने इसका खंडन किया है। वरिष्ठ भाजपा नेता राजनाथ सिंह ने इस मामले की सुप्रीम कोर्ट से जांच कराने की मांग की। उन्होंने कहा कि जब इन्हीं उपायुक्तों ने जमीन अलॉट की थी तो वह क्यों कहेंगे गलत हुआ? इसलिए सच्चाई तभी सामने आएगी जब वाड्रा के भूमि सौदों की निष्पक्ष जांच हो। श्री ओमप्रकाश चौटाला ने इस मामले की सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज से जांच करवाने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार ही बेइमानी करे और वही जांच करे, इसके मायने क्या रह जाते हैं। बहरहाल कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता संदीप दीक्षित ने कहा कि सरकार तथ्यों के आधार पर काम करती है।आप बताइए कि किन नियमों का उल्लंघन हुआ है? बिना जांच के कोई अधिकारी बयान नहीं देता। उधर दैनिक अमर उजाला में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि फरीदाबाद, गुड़गांव, मेवात और पलवल के उपायुक्तों ने सरकार के पास अधूरी रिपोर्ट भेजकर वाड्रा को क्लीन चिट दी है। रिपोर्ट में वाड्रा या उनकी कम्पनियों ने कितनी जमीन किस नाम से खरीदी यह जानकारी तो दे दी गई है, लेकिन वाड्रा या उनकी कम्पनियों ने जमीन बेची या नहीं, यह जानकारी नहीं है। अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व को मेवात के उपायुक्त ने 23 अक्तूबर, पलवल और फरीदाबाद के उपायुक्तों ने यह 25 अक्तूबर को रिपोर्ट भेजकर कहा है कि स्टाम्प ड्यूटी या रजिस्ट्रेशन फीस में सरकार को कोई नुकसान नहीं हुआ। गुड़गांव के उपायुक्त ने रिपोर्ट ही नहीं भेजी है। उन्होंने 16 अक्तूबर को ही जानकारी दी थी कि वाड्रा ने डीएलएफ को जो 3.5 एकड़ जमीन बेची थी, उसमें स्टाम्प ड्यूटी का कोई नुकसान नहीं हुआ था। रजिस्ट्री भी ठीक थी और इंतकाल भी सही था। एक और बात यह है कि रॉबर्ट वाड्रा को बचाने के लिए हरियाणा की हुड्डा सरकार ने अपना कानून ही ताक पर रख दिया। सीलिंग एक्ट के मुताबिक जहां एक व्यक्ति, कम्पनी, परिवार, एसोसिएशन या अन्य कोई संस्था हरियाणा में अधिकतम दो फसल देने वाली सिंचाई योग्य जमीन 18 एकड़ और गैर-सिंचाई योग्य जमीन अधिकतम 54.5 एकड़ रख सकती है, वहीं वाड्रा और उनकी कम्पनियों के नाम दिसम्बर, 2010 तक करीब 148 एकड़ जमीन हरियाणा में थी। बावजूद इसके किसी जिले के उपायुक्त ने न तो उनकी जमीन सरप्लस घोषित की और न ही लैंड सीलिंग एक्ट के तहत कोई कार्रवाई की। सीलिंग एक्ट के मुताबिक वाड्रा ने खरीद में इस कानून का उल्लंघन किया है और फरीदाबाद, गुड़गांव, मेवात और पलवल के उपायुक्तों ने न केवल अधूरी जानकारी ही दी बल्कि राज्य के कानूनों का उल्लंघन भी किया। देखना अब यह है कि केंद्र और हरियाणा की कांग्रेसी सरकारें रॉबर्ट वाड्रा की डील्स को दबाने में सफल रहती हैं या फिर मामलों की सही और निष्पक्ष जांच होगी?

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