Friday, 19 October 2012

केजरीवाल ने नितिन गडकरी को खड़ा किया कठघरे में


 Published on 19 October, 2012
 अनिल नरेन्द्र
 सत्तारूढ़ कांग्रेस के मंत्रियों और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को निशाना बनाने के बाद मुख्य विपक्षी दल भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी पर हमला करते हुए बुधवार को अरविन्द केजरीवाल ने मुख्य रूप से गडकरी पर तीन-चार आरोप लगाए। गडकरी ने किसानों की 100 एकड़ से अधिक जमीन निजी फायदे के लिए हथिया ली। गडकरी के पास पांच पॉवर प्लांट, तीन शुगर मिल सहित कोल, खाद, सुपर बाजार से जुड़े कई व्यापार हैं। अपने व्यापारिक हितों के लिए वह  भाजपा का इस्तेमाल कर रहे हैं। गडकरी ने ठेकेदारों की गलत तरीके से मदद के लिए अजीत पवार से लेकर केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल तक से सिफारिश करवाई। अजीत पवार से साठगांठ करके 100 एकड़ जमीन अपने ट्रस्ट के नाम करवा ली। बेशक श्री नितिन गडकरी ने केजरीवाल के आरोपों का प्वाइंट-दर-प्वाइंट जवाब दिया और बाद में सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने केजरीवाल के आरोपों को हवा में उड़ाने का प्रयास किया पर इससे गडकरी पाक-साफ साबित नहीं होते। यह तो गडकरी भी मानते हैं कि उन्हें 100 एकड़ जमीन अजीत पवार ने दी। यह जमीन कैसी है, कितने वर्षों के लिए लीज पर है, इसमें क्या उग रहा है, उसका क्या हो रहा है वह सब अपनी जगह ठीक है पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि एनसीपी नेता अजीत पवार ने सारे कानूनों को ताक पर रखकर गडकरी के संगठन को जमीन दी। केजरीवाल ने दरअसल भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। क्योंकि जो आरोप गडकरी पर फायदा लेने के हैं वही आरोप कांग्रेस और उसके सहयोगी राकांपा पर फायदा पहुंचाने के लिए स्वत आ जाते हैं। हालांकि कांग्रेस का कहना है कि अजीत पवार इस मामले में पहले ही अपना इस्तीफा दे चुके हैं और अब बारी नितिन गडकरी की होनी चाहिए। कल तक जिस केजरीवाल के सहारे भाजपा कांग्रेस को भ्रष्टाचार के नाम पर नंगा कर रही थी आज उसी केजरीवाल ने भाजपा को कठघरे में खड़ा कर दिया है। केजरीवाल द्वारा गडकरी पर लगाए गए आरोपों से जनता में यह संदेश जाता है कि दोनों राष्ट्रीय पार्टियां भ्रष्टाचार के दल-दल में खड़ीं होकर ही एक-दूसरे पर लांछन लगा रही हैं। केजरीवाल ने दोनों पार्टियों को जिस प्रकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता की अदालत में खड़ा किया है उससे यह बात तो साफ हो गई है कि कहीं न कहीं दोनों राष्ट्रीय पार्टियों में भ्रष्टाचार को लेकर गठजोड़ साफ दिखाई पड़ता है। यदि अब जांच गडकरी की होगी तो कांग्रेस और उसकी सहयोगी राकांपा भी इसके दायरे से अछूती नहीं रहेंगी। एक और बात केजरीवाल कुछ हद तक साबित करने में सफल रहे वह यह है कि नितिन गडकरी अगर एक उद्योगपति की श्रेणी में नहीं भी आते तो एक बड़े बिजनेसमैन जरूर हैं जिनकी अपनी शुगर मिले हैं। पॉवर प्लांट हैं और कई धंधे हैं और एक बिजनेसमैन का निजी स्वार्थ कभी-कभी पार्टी के हितों से समझौता करने पर मजबूर कर देता है। अरविन्द केजरीवाल के आरोप पूरी तरह सही हैं यह कहना मुश्किल है लेकिन गडकरी पर लगाए गए आरोप जिस तरीके से पेश किए गए उससे आम जनता के मन में संदेह गहराना स्वाभाविक है कि कुछ तो गड़बड़ है। आम जनता को कुछ ऐसा ही संदेह रॉबर्ट वाड्रा और सलमान खुर्शीद के मामलों को लेकर भी है। सवाल यह है कि इस संदेह का निवारण कैसे हो? जांच से? मुश्किल यह है कि आरोपों के घेरे में खड़े लोग केवल सफाई पेश कर और कुछ तथाकथित प्रमाण पेश कर खुद को पाक-साफ करार दे रहे हैं। आरोपों को सिरे से नकारने अथवा आरोप लगाने वालों की नीयत पर सवाल उठाने या फिर सलमान खुर्शीद की तरह उन्हें धमकाने से तो चोर की दाढ़ी में तिनके वाली कहावत ही चरितार्थ हो रही है। भाजपा नेता बेशक हर सम्भव सफाई दें पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि अध्यक्ष नितिन गडकरी की छवि को धक्का लगा है। भाजपा जब कांग्रेसी नेताओं पर इस प्रकार के आरोप लगाकर उनके इस्तीफे की मांग करती है तो आज अगर कांग्रेस गडकरी के इस्तीफे की मांग करती है तो उसमें गलत क्या होगा? एक और बात केजरीवाल के आरोपों से भाजपा के अन्दर चल रही अस्तित्व की लड़ाई को भी हवा मिलेगी। वैसे तो नितिन गडकरी को भाजपा अध्यक्ष का दूसरा कार्यकाल मिलना लगभग तय है लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो नहीं चाहता कि गडकरी दोबारा अध्यक्ष बनें। केजरीवाल के आरोपों के खिलाफ भले ही पूरी पार्टी गडकरी के पक्ष में खड़ी नजर आ रही हो पर अन्दरखाते भाजपा का एक वर्ग खुश है। भाजपा संघ के आगे मजबूर है पर अब सम्भव है कि भाजपा के अन्दर गडकरी का दोबारा टर्म मिलने पर खुलकर विरोध हो।


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