Wednesday, 31 October 2012

बढ़ती जा रही है लापता बच्चों की संख्या ः मासूमों की फिक्र किसे?


 Published on 31 October, 2012
 अनिल नरेन्द्र
            देश में बच्चे गुम हो जाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। यह सभी के लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए। एक वैलफेयर स्टेट और सभ्य समाज के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है कि देशभर में हर साल 90 हजार बच्चे गायब हो जाते हैं। राजधानी में ही इस साल 10 महीने के भीतर सौ पच्चास नहीं बल्कि 1040 बच्चे लापता हो चुके हैं। आखिर यह बच्चे कहां गए? यह इसलिए गायब हो रहे हैं क्योंकि यह गरीब घरानों से हैं। उनके मां-बाप उनके लिए अच्छा खाना, कपड़ा और शिक्षा का पर्याप्त इंतजाम नहीं कर सकते। उनमें से अधिकतर बच्चे कस्बों से होते हैं। उन्हें फुसलाकर, सब्ज-बाग दिखाकर, नौकरी के बहाने महानगरों में लाया जाता है। ऐसे बहुत से बच्चों को भीख मांगने या किसी खतरनाक काम में लगा दिया जाता है या फिर वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। कुछ खुशकिस्मत इस नरक से निकाल लिए जाते हैं, बाकी तमाम उम्र इसी नरकीय जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हो जाते हैं। राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में मासूमों का अपहरण कर यौन शोषण करने के बाद उनकी हत्या कर देने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। यह वारदातें जहां एक ओर आवारा घूमने वाले नशेड़ियों की धरपकड़ के प्रति प्रशासन की लापरवाही को रेखांकित करती हैं वहीं ये बच्चों की सुरक्षा के प्रति पुलिस-प्रशासन के लापरवाह रवैये को भी उजागर करता है। बृहस्पतिवार को दिल्ली में पुलिस ने बच्चों को अगवा कर यौन शोषण के बाद उनकी हत्या कर देने की घटनाओं को अंजाम देने वाले गैंग का एक बच्चे की मदद से भंडाफोड़ करते हुए दो आरोपियों को गिरफ्तार किया। दोनों आरोपियों की गिरफ्तारी से खजूरी क्षेत्र के भाई-बहन की हत्या व भजनपुरा इलाके में तीन वर्षीया बच्ची को यौन शोषण के बाद कूड़ेदान में फेंकने की वारदात का खुलासा हुआ है। गिरफ्तार किए गए आरोपी स्मैक के आदी हैं। नशा करने के बाद वे हैवान बन जाते हैं और बच्चों को कुछ लालच देकर अगवा कर लेते हैं। गौरतलब है कि 1974 में संसद ने बच्चों के लिए एक राष्ट्रीय नीति पर मुहर लगाई थी जिसमें उन्हें देश की अमूल्य धरोहर घोषित किया गया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 372 में नाबालिग बच्चों की खरीद-फरोख्त पर 10 साल की सजा का प्रावधान है लेकिन इस मामले में सजा दिए जाने की दर बेहद कम है। सरकारी तंत्र के ढीलेपन को देखते हुए ही कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब-तलब किया था। आज अपराधियों के कई गिरोह बच्चों को गायब करने में लगे हुए हैं। खुद सरकार ने 900 ऐसे संगठित गिरोहों की पहचान की है। इनका जाल कई राज्यों में फैला हुआ है। बच्चों की सुरक्षा खासकर दिल्ली में पुलिस-प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। बच्चों के गायब होने, अपहरण या हत्या कर दिए जाने की घटनाएं आए दिन रिपोर्ट होती हैं। इस वर्ष अब तक राजधानी में 1000 बच्चों के गायब होने के मामले दर्शाते हैं कि दिल्ली किस हद तक बच्चों के लिए असुरक्षित होती जा रही है। ऐसे मामलों में सख्ती से निपटना होगा। इसके लिए विभिन्न राज्यों की पुलिस के बीच बेहतर तालमेल करना होगा। बच्चों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों को और जागरूक करने हेतु विशेष जागरुकता अभियान चलाना ठीक रहेगा।

1 comment:

  1. अभिभावकों के जान और प्राण होते हैं बच्‍चे ..
    पर बिछुडने पर न जाने किस किस हालात में मिल जाएं ये ..
    बहुत दुर्भाग्‍यपूर्ण स्थिति है !!

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