Published on 1 November, 2012
यह मनमोहन सिंह सरकार दावा तो करती है कि वह आम आदमी की सरकार है पर काम उद्योगपतियों के लिए करती है और रहा सवाल आम आदमी का तो उसका जो हाल इस सरकार के कार्यकाल में हो रहा है किसी से छिपा नहीं। महंगाई अपने चरम पर है और आम आदमी की थाली से दाल-सब्जी धीरे-धीरे गायब हो रही है। यह सरकार उद्योगपतियों की सरकार है और उनके इशारों पर ही नाचती है। ताजा मंत्रिमंडल फेरबदल से यह एक बार फिर साबित हो गया है। मनमोहन मंत्रिमंडल फेरबदल-विस्तार में सबसे बड़ा झटका पूर्व केन्द्राrय पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी को दिया गया। यह झटका उन्हें इसलिए दिया गया क्योंकि उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्री के मुखिया मुकेश अंबानी से पंगा लेने की जुर्रत दिखाई। उनका मंत्रालय बदल दिया गया और उनका डिमोशन किया गया। वे महत्वपूर्ण पेट्रोलियम मंत्रालय के मंत्री रहे हैं। फेरबदल में उन्हें कम महत्वपूर्ण मंत्रालय समझा जाने वाला विज्ञान और तकनीकी मंत्रालय का पभार दे दिया गया। अपना मंत्रालय बदले जाने से खफा जयपाल नए पेट्रोलियम मंत्री के पदभार ग्रहण के वक्त भी मंत्रालय नहीं पहुंचे। जब नए पेट्रोलियम मंत्री से इसके बारे में पूछा गया तो वह इसका कोई माकूल जवाब नहीं दे सके। हालांकि कांग्रेस के आला नेताओं से बातचीत के बाद जयपाल रेड्डी ने विज्ञान एवं पौद्योगिकी मंत्रालय का पदभार संभालने की अपनी स्वीकृति दे दी है। जयपाल को पेट्रोलियम मंत्रालय से हटाने के पीछे की कहानी कम रोचक नहीं है। उनके करीबी लोगों की मानें तो जयपाल रेड्डी पर रिलायंस की तरफ से यह दबाव बनाया जा रहा था कि वह केजी डी-6 बेसिन से निकलने वाले गैस की कीमत अपनी तय सीमा से पहले बढ़ा दें। उल्लेखनीय है कि रेड्डी ने 2011 में मुरली देवड़ा से पेट्रोलियम मंत्रालय का पदभार संभाला था। वर्ष 2010 में मंत्रियों के अधिकार पाप्त समूह ने रिलायंस के केजी डी-6 बेसिन से निकलने वाली गैस की कीमत 2010-14 तक के लिए तय कर दी थी। रिलायंस उद्योग खुदाई की कीमत में बढ़ोतरी का हवाला देकर गैस के मूल्य 2012 में ही बढ़ाने का दबाव पेट्रोलियम मंत्रालय पर डाल रहा था। रेड्डी ने एक तरफ तो रिलायंस के दबाव में आने से इंकार कर दिया वहीं दूसरी तरफ 2011-12 के दौरान कंपनी के उत्पादन में आई कमी पर कंपनी से सवाल-जवाब कर दिया। कंपनी ने कहा कि चूंकि केजी बेसिन का यह क्षेत्र ऐसी जगह पड़ता है जहां खुदाई मुश्किल है इसलिए उत्पादन पूर्व की अपेक्षा गिर गया है। जयपाल को यह तर्प हजम नहीं हुआ क्योंकि जिस क्षेत्र में 2010 में उत्पादन 53-54 मिलियन क्यूबिक मीटर था वह अचानक कैसे इतना कम हो सकता है? यही नहीं जयपाल ने मामले की जांच सीएजी से कराने के आदेश भी दे दिए। पेट्रोलियम मंत्रालय से अपनी दाल न गलते देख मुकेश अंबानी ने पधानमंत्री कार्यालय में अपने पभाव का उपयोग कर जयपाल पर दबाव बनाने की कोशिश की। मुकेश की कोशिश से नाराज जयपाल ने रिलायंस पर कम गैस उत्पादन के लिए 7 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना ठोंक दिया, साथ ही खर्च की बढ़ोतरी का हवाला देकर ब्रिटिश पेट्रोलियम को अपना कुछ शेयर बेचने की कोशिश में लगे रिलायंस को इसकी अनुमति देने से इंकार कर दिया। इस केस से इतना तो साबित हो ही जाता है कि इस सरकार पर उद्योगपतियों का कितना पभाव है।
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