Thursday 29 November 2012

कांग्रेस का चुनावी हथकंडा ः कैश फॉर वोट

 
 Published on 29 November, 2012
 अनिल नरेन्द्र
यूपीए सरकार ने 2014 लोकसभा चुनाव की तैयारियां जोर-शोर से कर दी हैं। वह एक बार पुराने आजमाए हुए फार्मूले पर काम करने जा रही है। केन्द्र सरकार ने अपनी वोटें पक्की करने के लिए गरीबों को सीधे पैसे बांटने का फैसला किया है। कांग्रेस पार्टी को उम्मीद है कि जब सीधे लोगों के खाते में पैसा जमा होगा तो वह सारे घोटालों, भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, बिजली, पानी, कानून अव्यवस्था सब को भूल जाएंगे और कांग्रेस पार्टी को 2014 के चुनाव में वोट दे देंगे। ऐसा सम्भव भी हो सकता है और नहीं भी। यूपीए सरकार की योजना सफल हुई तो देश में सब्सिडी का स्वरूप 2013 के अंत तक पूरा ही बदल जाएगा। लेकिन यह काम इतना आसान भी नहीं है, पेचीदगियों से भरा हुआ है। सब्सिडी के कैश ट्रांसफर यानि लाभार्थियों को सीधे नकद सहायता देने की योजना में राजनीतिक जोखिम भी है। वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने घोषणा की कि 15 राज्यों के 57 जिलों में कैश ट्रांसफर का काम 1 जनवरी 2013 से शुरू होगा और सारे देश में इसे अगले साल के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। सोमवार देर रात सहयोगी मंत्रियों के साथ हुई बैठक में पधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गरीब लोगों के बैंकों में खाते खुलवाने की पकिया आसान बनाने पर भी जोर दिया। पधानमंत्री ने इस योजना को सफल बनाने के लिए हर सम्भव पयास करने पर बल दिया। इस योजना के तहत रसोई गैस एवं मिट्टी तेल, छात्रवृत्ति, मनरेगा की मजदूरी एवं कमजोर वर्गों को मिलने वाली अन्य सहायता को नकद रूप में उन तक पहुंचाया जाएगा। सरकार की योजना के मुताबिक आधार कार्ड के जरिए लाभार्थियों के बैंक खाते खोले जाएंगे, जिसमें उनके हिस्से की रकम हर महीने ट्रांसफर कर दी जाएगी। इस योजना के सफल होने में कई पशासनिक दिक्कतें आ सकती हैं। स्पष्टत यह योजना सफल हो इसके लिए बारीक तकनीकी कौशल एवं नए दर्जे की पशासनिक दक्षता की जरूरत होगी। इससे भारत की बैंकिंग व्यवस्था का कड़ा इम्तिहान होगा। चूंकि आधार कार्ड वितरण में अभी कई समस्याएं बाकी हैं इसलिए यह सवाल कायम है कि कहीं सहायता पाने के योग्य बहुत से लोग पशासनिक विफलताओं के कारण लाभ से वंचित तो नहीं हो जाएंगे? फिर खाद्य सब्सिडी का मुद्दा भी है। सब्सिडी से पिंड छुड़ाने की कोशिश करती आई सरकार की इस मामले में तेजी और इसकी समय-सीमा को देखते हुए यह अटकल लगाई जानी स्वाभाविक ही है क्या अगले चुनाव से इसका सीधा संबंध है? ब्राजील के उदाहरण से यह कहा जाने लगा है कि नकद सब्सिडी सत्तारूढ़ दल को चुनावी फायदा पहुंचा सकती है। अनेक सामाजिक संगठनों ने नकद सब्सिडी को लेकर कई अंदेशे जताए हैं। इनमें सबसे पमुख सवाल यह है कि गरीबों को नकद सब्सिडी देने से यह कैसे सुनिश्चित किया जा सकेगा कि उसका मकसद के अनुरूप ही इस्तेमाल होगा? बहुत से गरीब उधार और कर्जे में दबे रहते हैं। जैसे ही पैसा उनके खाते में आएगा बकाया बसूलने वाले सिर पर सवार होंगे। एक दूसरी आशंका यह है कि सब्सिडी के तौर पर मिलने वाली नकद राशि व्यसन या दूसरे गैर जरूरी खर्चों की भेंट न चढ़ जाए? जबकि सरकारी सहायता के चलते अगर जरूरतमंदों के घर में अनाज आता है तो यह भरोसा उन्हें जरूर रहेगा कि जीने के लिए उनके परिवार की सबसे बुनियादी जरूरत पूरी हो जाएगी। आधार कार्ड के इस्तेमाल से सरकार ने यह मान लिया है कि अनियमितता के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे। मगर जहां तमाम बीपीएल परिवारों की पहचान को लेकर ही बहुत सारी गड़बड़ी चल रही हो, वहां इस बारे में कम से कम हम तो आश्वस्त नहीं हो सकते। फिर यह भी कटु सत्य ही है कि अभी तक देश की आधी ग्रामीण आबादी के पास कोई बैंक खाता नहीं हैं, न बहुत सारे देहाती इलाकों में बैंकिंग सेवाएं हैं। क्या महज डेढ़ साल में यह ढांचागत कमी दूर हो जाएगी?

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