Friday, 23 November 2012

कसाब को फांसी ः भारत ने दुनिया को दिया संदेश हम सॉफ्ट स्टेट नहीं


 Published on 23 November, 2012
 अनिल नरेन्द्र
चार साल पहले मुंबई की गलियों को 165 बेगुनाहों के खून से रंगने वाले पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को बुधवार को यरवदा जेल में गुपचुप तरीके से फांसी पर लटका दिया गया। उसे सुबह साढ़े सात बजे फांसी दी गई। यह भी संयोग रहा कि कसाब और उसके नौ दहशतगर्द साथियों ने कत्लेआम के लिए बुधवार का दिन चुना था और यही दिन कसाब के लिए जिन्दगी की आखिरी सुबह लेकर आया। `सी 7096' नाम के इस बेहद खूनी मुजरिम मोहम्मद अजमल आमिर कसाब की लाश को जेल में ही दफन कर दिया क्योंकि उसके आकाओं ने उसका शव लेने से इंकार कर दिया था। ऑपरेशन एक्स को अत्यंत गोपनीय रखा गया। भारत सरकार ने जिस गुपचुप ढंग से लेकिन दृढ़तापूर्वक इस ऑपरेशन एक्स को अंजाम दिया वह सराहना योग्य है। यह कार्य आवश्यक ही नहीं था अनिवार्य भी था। कसाब महज एक आतंकी नहीं था वह आतंक का पर्याय प्रतीक बन गया था। कसाब को फांसी देने का फैसला `देर आयद दुरुस्त आयद' कहावत को चरितार्थ करने के साथ ही यह बताता है कि सरकारें ठान लें तो कठिन नजर आने वाले काम भी कहीं अधिक आसानी से किए जा सकते हैं। भारत के आत्मसम्मान को झकझोर देने वाले 26 नवम्बर 2008 को दुस्साहसिक आतंकी हमले के गुनहगार कसाब को फांसी पर लटका दिए जाने के बाद यह कहा जा सकता है कि मुंबई की धरती पर किए गए गुनाह का इंसाफ हो गया। कसाब को फांसी पर लटकाने की रणनीति में सरकार ने निश्चित तौर पर कई हिसाब-किताब का ध्यान रखा। सबसे पहले तो सरकार की कोशिश अपनी खत्म होती विश्वसनीयता को फिर से बहाल करने की थी और दूसरे 26 नवम्बर के गुनहगार को सजा देने के लिहाज से नवम्बर माह की अपनी अहमियत थी। इन सब गुणा-भाग से अधिक महत्व उस संदेश का है जो नई दिल्ली ने पूरी दुनिया को दिया है और यह संदेश है कि वह देश भी अपने आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने वाले आतंकी को सजा देने का साहस रखता है जिसे आमतौर पर आतंकवाद से निपटने के लिए सॉफ्ट स्टेट माना जाता है। वैसे कसाब के इस अन्त में असामान्य जैसा कुछ भी नहीं है। लेकिन पिछले वर्षों में भारत में दुर्दांत आतंकियों को सजा देने को लेकर जैसा लचर रवैया जाहिर होता रहा है, उस लिहाज से कसाब की फांसी पूरे देश के लिए आश्चर्य मिश्रित खुशी की तरह है। अपने इस एक कदम से सरकार ने खुद पर लग रहे आतंकवाद के प्रति नरम रहने के आरोप को खारिज करने की भी सफल कोशिश की है। इससे देश के दुश्मनों तक यह संदेश भी पहुंचा होगा कि वे भारत को `सॉफ्ट स्टेट' समझने की गलती न करें। आतंकवाद से मुकाबला प्रबल इच्छाशक्ति से ही किया जा सकता है। बेहतर होता कि इस इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करने में संकोच और हिचक का वैसा प्रदर्शन करने से बचा जाता जैसा अब तक किया जाता रहा और जिसके कारण भारत सरकार दुनिया की नजरों में तो कमजोर सत्ता के रूप में उभरी ही, देशवासियों के बीच भी उपहास का पात्र बनी। अब सारे देश की नजरें भारतीय संसद पर हमले के दोषी आतंकी अफजल गुरु पर टिकी हैं। बेशक इस लाइन में पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारों और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों पर भी टिकी हैं पर मैं समझता हूं कि सबसे पहले अफजल गुरु को फांसी पर लटकाना चाहिए। उन्होंने राष्ट्र पर तो हमला किया, राष्ट्र सम्मान को भी ठेस पहुंचाई है, किसी व्यक्ति विशेष को नहीं इसलिए उनका अपराध ज्यादा गम्भीर है। सम्भव है कि कश्मीर घाटी में इसकी थोड़ी-बहुत प्रतिक्रिया हो पर उसको कंट्रोल करने के लिए हमारे सुरक्षा बल काफी हैं। वैसे भी घाटी में तो असंतोष, छोटी-मोटी तोड़फोड़ चलती रहती है। इन सभी को फांसी में देरी का एकमात्र कारण संकीर्ण राजनीति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। इससे बड़ी विडम्बना और कोई नहीं हो सकती कि जो अपराधी किसी नरमी और रहम के काबिल नहीं उसे सजा देने में इसलिए देरी हो रही है क्योंकि कुछ राजनीतिक दल उसे लेकर राजनीति करने में लगे हैं। देखना अब यह होगा कि अफजल एवं अन्य आतंकियों को सजा देने में वैसा ही साहस प्रदर्शित किया जाता है या नहीं जैसा कसाब के मामले में किया गया। अब कसाब को फांसी लगने के बाद भारत को उसके आकाओं तक पहुंचने की पुरजोर कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि उन्हें सबक सिखाए बगैर मुंबई हमले के पीड़ितों का न्याय अधूरा ही रहेगा। इसके साथ ही यह वक्त सतर्प रहने का भी है। मुमकिन है कि कसाब के अन्त के बाद बदला लेने के मकसद से पाकपरस्त आतंकी संगठनों द्वारा भारत में किसी घटना को अंजाम देने की कोशिश हो। जरूरी तो यह है कि सतर्पता बरतते हुए हम कसाब से शुरू हुआ इंसाफ का सिलसिला अफजल गुरु और अन्य मौत की सजा पर चुके दुर्दांत आतंकियों तक भी पहुंचें।



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