Published on 2 November, 2012
हमें खुशी है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दहेज मामलों में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। हमने वीर अर्जुन और प्रताप व सांध्य वीर अर्जुन में दहेज से संबंधित मामलों में पति के परिवार वालों को जबरन फंसाने के खिलाफ आवाज उठाई थी। हमने बताया था कि लड़की वालों के हाथ में एक ऐसा हथियार आ गया है कि वह पति के पूरे परिवार को दहेज मामलों में जबरन लपेट लेते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि दहेज से संबंधित मामलों में पति के परिवार वालों को सिर्प इसी आधार पर नहीं फंसा देना चाहिए कि उनका नाम एफआईआर में दर्ज है। अगर निश्चित तौर पर कोई आरोप बने तभी उनके खिलाफ एक्शन लिया जाना चाहिए। एफआईआर में नाम हो लेकिन एक्टिव रोल न हो तो संज्ञान लेना उचित नहीं होगा। जस्टिस ठाकुर व जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने कहा कि यदि एफआईआर में आरोपी के खिलाफ निश्चित आरोप स्पष्ट नहीं किया गया हो, खासकर सह-अभियुक्तों के खिलाफ जो वैवाहिक विवाद के दायरे से बाहर हों। ऐसे में एफआईआर में उनका नाम शामिल कर तकनीकी तौर पर ट्रायल के लिए भेजा जाना स्पष्ट तौर पर कानून और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता पत्नी को शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न देने में प्रथम दृष्टया लिप्त न पाए जाने वालों को बेवजह न्यायिक प्रक्रिया में नहीं उलझाया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार एफआईआर में संबंधियों पर लगाए गए आरोप के तथ्य स्पष्ट नहीं हों या शिकायतकर्ता की ओर से पूरे परिवार को एक ही मामले में फंसाया जाना प्रथम दृष्टया नजर आए तो अदालतों को सतर्प रवैया अपनाना चाहिए क्योंकि छोटी समस्याओं या घरेगू झगड़े से उपजे विवाद में अपने अहम की भरपाई के लिए शिकायतकर्ता ऐसा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि सह-आरोपियों के खिलाफ खास आरोप न होने के बावजूद अगर उन पर मुकदमा चलाया जाता है तो कानूनी प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल होगा। दहेज उत्पीड़न के एक मामले में आरोपी पति के भाई और बहन के खिलाफ चल रही कार्यवाही रद्द करते हुए कोर्ट ने यह फैसला दिया। कोर्ट ने हालांकि यह भी स्पष्ट कहा, इसमें शक नहीं कि यह कानून महिलाओं का उत्पीड़न रोकने के लिए बनाया गया है लेकिन इसका गलत इस्तेमाल न हो, यह अहतियात अदालतों को बरतनी होगी। कोर्ट को पहली नजर में देखना चाहिए कि किस परिजन का अपराध बनता है और किसे फंसाया जा रहा है। इस मामले में आरोपी के भाई और बहन ने अपील दाखिल की थी। कुछ वर्ष पहले तिहाड़ जेल के डीजी ने हमें तिहाड़ में कैदियों की सुविधाएं और उनके द्वारा किए जा रहे अच्छे कामों को दिखाने के लिए आमंत्रित किया था। मैंने तिहाड़ में कई ऐसे परिवार देखे जो दहेज उत्पीड़न की वजह से बन्द थे। एक परिवार में आरोपी पति उनके माता-पिता, छोटी बहन, छोटा भाई बन्द थे। एक परिवार तो ऐसा था जिसके सारे पुरुष बन्द थे। एक परिवार ने हमें बताया कि आरोपी व्यक्ति के भाई-जीजा जो दिल्ली में रहते ही नहीं, उन्हें भी अन्दर कर दिया गया क्योंकि लड़की वालों ने उनका नाम एफआईआर में लिखा दिया। कई महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ जेल में बन्द थीं क्योंकि इन बच्चों की देखभाल करने के लिए जेल के बाहर कोई परिवार वाला बचा ही नहीं था। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि इतनी सख्त कार्रवाई होने के बावजूद दहेज से संबंधित हत्याओं में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं आई है। समाज में आईं बुराइयों को रोकना जरूरी है। दहेज के खिलाफ आवाज उठानी होगी पर मौजूदा कानूनी व्यवस्था में सुधार होना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में सही कदम उठाया है।
No comments:
Post a Comment