Friday 23 November 2012

चेन स्नैचिंग अब एक आर्गेनाइज्ड धंधा बन गया है


 Published on 23 November, 2012
अनिल नरेन्द्र
आजकल अपराध भी एक हाई टैक बिजनेस हो गया है। दिल्ली एनसीआर में बाइकर्स रोजाना दर्जनों महिलाओं से स्नैचिंग की वारदात को अंजाम देते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली में हो रही अधिकतर वारदात के पीछे वैस्टर्न यूपी के कई बड़े गिरोह हैं जिनके निशाने पर खासकर राजधानी दिल्ली रहती है। इन गिरोहों का सालाना टर्नओवर करोड़ों में है। स्नैचिंग की गई ज्वेलरी सस्ते दामों में यह गिरोह पश्चिमी यूपी में सुनारों से गलवा देते हैं। इससे सुनारों का तो फायदा होता ही है, गिरोह को भी भारी रकम आसानी से मिल जाती है। यही वजह है कि दिल्ली एनसीआर में जब भी स्नैचरों को पुलिस पकड़ती है उनसे रिकवरी नाममात्र ही हो पाती है। सरगनाओं के इशारे पर गिरोह के सदस्य अलग-अलग इलाकों में रेकी करते रहते हैं और फिर हाथ लगे स्नैचिंग की वारदात करके फरार हो जाते हैं। गिरोह के हाथ रोजाना ही दर्जनों सोने की चेन, अन्य गहने और पर्स पहुंच जाते हैं। उनका बाकायदा लेखाजोखा रखा जाता है। जी हां, स्नैचरों को बाकायदा महीने की पगार यानि सैलरी भी दी जाती है। काबिलियत और फुर्ती के हिसाब से स्नैचरों की तनख्वाह तय की जाती है। जो इस काम में महारथ हासिल कर लेता है उसकी सैलरी 80 हजार रुपए महीने तक  हो जाती है। इसका खुलासा दिल्ली एनसीआर में स्नैचिंग की सेंचुरी बना चुके ब्रिजेन्द्र ने उस वक्त किया जब वह नोएडा में वारदात के बाद भागते हुए पब्लिक के शिकंजे में आ गया। उसने पुलिस के सामने जो खुलासा किया तो पुलिस वालों के होश उड़ गए। बेखौफ होने की सबसे बड़ी वजह यह है कि ज्यादातर महिलाएं डर और प्रतिष्ठा की वजह से थानों के चक्कर काटने की फजीहत से बचना चाहती हैं। पुलिस के हाथ आए स्नैचर ब्रिजेन्द्र का रिकॉर्ड खंगाला गया तो पता चला कि पिछले साल गाजियाबाद में कपड़ा व्यापारी से दो लाख की लूट में वह शामिल था। ब्रिजेन्द्र तीन बार जेल जा चुका है। बाबूगढ़ थाने में गैंगस्टर एक्ट में वांछित इस स्नैचर के कबूलनामे पर पता चला कि गिरोह में भर्ती किसी भी मेम्बर के पकड़े जाने पर उस गिरोह के आका जुगाड़ लगाकर जमानत पर छुड़ा लेते हैं। ब्रिजेन्द्र को पुलिस मामूली स्नैचर समझ बैठी थी पर उसकी पीठ पर तो कई बड़े गिरोहों का हाथ था। उसने बताया कि स्नैचरों की कद-काठी और उसकी फुर्ती को देखकर सैलरी तय की जाती है। फ्रैशर्स को हर महीने तकरीबन 30 हजार तक मिलते हैं। उसके बाद जैसे-जैसे स्नैचर का तजुर्बा बढ़ता है उसी हिसाब से सैलरी भी बढ़ती है। कइयों को तो 80 हजार रुपए तक तनख्वाह गिरोह अदा करता है। उसके अनुसार लूटी गई डेढ़ से दो तोले की चेन की कीमत 50 से 80 हजार रुपए होती है। एक दिन में दो-चार चेन उड़ा लीं तो लाखों की इन्कम सरगनाओं को होती है। गिरोह के सदस्यों को एरिया बांटे गए हैं। उनकी हर सप्ताह में शिफ्ट बदल दी जाती है। मसलन बाइक सवार दो स्नैचर एक सप्ताह गाजियाबाद इलाका देख रहे हैं तो वह अगले सप्ताह पूर्वी दिल्ली या साउथ दिल्ली भेज दिए जाते हैं और उनकी जगह दूसरे मेम्बर को शिफ्ट मिल जाती है। गिरोह में फ्रैशर समेत तकरीबन 30 मेम्बर हैं। उसके अनुसार गिरोह में शामिल ज्यादातर मेम्बर पूर्वी दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, लोनी, खोड़ा कॉलोनी, हापुड़, बुलंदशहर और सिकंदराबाद के हैं। जो अच्छी तरह इलाके की भौगोलिक स्थिति से वाकिफ हैं। कम से कम डेली दो-चार चेन झपटना गिरोह के हर मेम्बर को बाकायदा टारगेट दिया जाता है।

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