Friday, 9 November 2012

करिश्माई ओबामा ने अपना जलवा फिर दिखाया


 Published on 9 November, 2012
 अनिल नरेन्द्र
बराक ओबामा ने बुधवार को अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी के खिलाफ शानदार जीत दर्ज की और आर्थिक चिन्ताओं के बीच दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। भारत के साथ मजबूत संबंध के पक्षधर ओबामा पहले अश्वेत अमेरिकी हैं जो व्हाइट हाउस तक पहुंचे हैं। वह कटु एवं अत्यंत महंगे प्रचार अभियान के बाद आसान जीत दर्ज करने में सफल रहे। कड़े मुकाबले में काफी कम मतों से होने वाले फैसले के पूर्वानुमान को गलत साबित करते हुए ओबामा को वर्जीनिया, मिशिगन, विस्कोनसिन, कोलेराडो, लोबा, ओहायो और न्यू हैम्पशायर में प्रथम चरण के मुकाबले के बाद काफी मत मिले। उन्हें 535 वोट कॉलेज में से 303 मत मिले जबकि रोमनी को 206 मत मिले। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में कांटे की टक्कर बताई जा रही थी। प्रतिष्ठित वॉल स्ट्रीट जनरल ने तो मतगणना होने से पहले भविष्यवाणी कर दी थी कि मिट रोमनी जीत रहे हैं। खुद मिट रोमनी ने अपनी जीत की स्पीच भी तैयार कर ली थी पर जब यह फैसला आया कि ओहायो ने बराक ओबामा को चुना है तब पासा पलटना शुरू हो गया। ठीक एक मिनट के भीतर पूरी दुनिया जान गई कि 51 साल के बराक हुसैन ओबामा अब चार साल के लिए फिर व्हाइट हाउस और दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण देश का ताज सम्भालेंगे। रिपब्लिकन मिट रोमनी के साथ इस करीबी मुकाबले में बाजी उन्हीं राज्यों ने पलटी जिन्हें जीत-हार तय करनी थी लेकिन ओहायो, फ्लोरिडा, वर्जीनिया के चुनाव में हार-जीत केवल एक-दो फीसद वोट के अन्तर से हुई। लोकप्रियता के वोटों में भी ओबामा की बढ़त एक फीसद रही। बराक ओबामा की यह दूसरी जीत अफ्रीकी अमेरिकी, लेटिन अमेरिकी, एशियाई और शहरी श्वेत मध्य वर्ग के समर्थन से हुई। अमेरिकी राजनीति की परम्परा के मुताबिक बोस्टन में रोमनी ने हार स्वीकार कर ली और ओबामा को बधाई दी। हारने के बाद मिट रोमनी ने देश का धन्यवाद देते हुए अपने संदेश में कहा ः `देश ने किसी और नेता को चुना है। `मैं' अपनी पत्नी ऐन और आप सबके साथ मिलकर नए राष्ट्रपति और अमेरिका के लिए दुआ करते हैं... राष्ट्र एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है। यह वक्त दलगत स्वार्थों और राजनीतिक नारे का नहीं है... मैं अमेरिका में विश्वास करता हूं, अमेरिकी जनता में विश्वास करता हूं। मैंने इसलिए चुनाव लड़ा क्योंकि मैं अमेरिका के लिए चिंतित हूं।' अब चुनाव खत्म हो गए हैं लेकिन हमारे सिद्धांत टिके रहेंगे और मैं यह विश्वास करता हूं कि हमारे सिद्धांत ही हमारा मार्गदर्शन करेंगे। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कांटे की टक्कर में दरअसल ओबामा शुरुआत से ही फायदे में दिखाई दे रहे थे। फायदा यह था कि वह अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति हैं और अमेरिकी जनता अपने कमांडर-इन-चीफ को हटाने के लिए ऐतिहासिक रूप से उदासीन रही है। मतदाता कदाचित ही किसी प्रतिद्वंद्वी पर दांव खेलते हैं और इसके लिए मतदाताओं को राजी करना रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी के लिए एक कठिन काम रहा। रोमनी को एक ऐसे राष्ट्रपति के खिलाफ लड़ाई लड़नी थी जो खराब अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बावजूद लोकप्रिय बना हुआ था। वास्तव में अगर हम अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों पर नजर डालें तो द्वितीय विश्व महायुद्ध की समाप्ति के बाद अब तक सिर्प तीन राष्ट्रपति ही चुनाव में पराजित हुए हैं। ये तीनों राष्ट्रपति हैं ः गेराल्ड फोर्ड (1975), जिमी कार्टर (1980) और जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश (1992)। इनमें से दो के पास वैसे भी कोई जनाधार नहीं था। फोर्ड राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के अधीन उपराष्ट्रपति थे और निक्सन के इस्तीफे के बाद वह राष्ट्रपति बन गए थे। वह कभी जनाधार नहीं तैयार कर पाए, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए कभी प्रचार अभियान नहीं चलाया। पूर्व उपराष्ट्रपति जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश अपने पूर्व बॉस राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के समर्थकों पर आश्रित थे और यह उनका दुर्भाग्य था कि उन्हें करिश्माई बिल क्लिंटन का ऐसे समय में सामना करना पड़ा, जब शीत युद्ध समाप्त ही हुआ था और एक नई अर्थव्यवस्था में प्रौद्योगिकी क्षेत्र की शुरुआत हुई थी। सिर्प कार्टर ही एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे, जिनके पास वास्तविक जन समर्थन आधार था। लेकिन रोनाल्ड रीगन के हाथों वह अंतत पराजित हो गए जो कि युद्ध के बाद के सबसे करिश्माई राष्ट्रपति थे। ओबामा न तो जिमी कार्टर हैं, न जॉर्ज बुश या गेराल्ड फोर्ड। ओबामा किसी पूर्व बॉस के बल पर कभी नहीं निर्वाचित हुए। वह एक करिश्माई और प्रेरक वक्ता हैं और तमाम अमेरिकियों के लगातार पसंदीदा बने हुए हैं। ऐसे में  उन्हें पराजित करना इतना आसान नहीं था। हम राष्ट्रपति बराक ओबामा को बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि भारत और अमेरिका के आपसी संबंध और मजबूत होंगे।

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