Published on 28 November, 2012
खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा एक आदमी बताने वाले अरविन्द केजरीवाल ने अब अपनी पार्टी का नाम भी तय कर लिया है। अरविन्द केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक पार्टी के लिए नाम `आम आदमी पार्टी' तय किया है। शनिवार को 300 से ज्यादा संस्थापक सदस्यों की बैठक ने संविधान को मंजूरी दी गई। पार्टी ने सोमवार से औपचारिक रूप से कामकाज शुरू कर दिया। केजरीवाल का दावा है कि इसके जरिए वे राजनीति में आम लोगों को खास जगह दिलवाएंगे अभी तक तो गैर राजनीतिक संगठन के रूप में हलचल पैदा करने और सुर्खियां बटोरने में सफल रही टीम केजरीवाल अर्थात आम आदमी पार्टी के समक्ष चुनौतियां इसलिए ज्यादा दिख रही हैं, क्योंकि उससे अपेक्षाओं में इजाफा हो गया है। इन अपेक्षाओं का एक कारण यह भी है कि अन्ना हजारे के सिपहसलार बनकर अपनी पहचान बनाने वाले केजरीवाल ने कुछ ऐसे मुद्दे उठाने का साहस दिखाया जो आज तक किसी अन्य राजनीतिक दल ने नहीं दिखाया। इससे जनता में न केवल उनकी अलग पहचान ही बनी बल्कि अपेक्षा भी बढ़ गई। अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी की पार्टी दूसरे राजनीतिक दलों से अलग कैसे है? इस प्रश्न के उत्तर में केजरीवाल ने बताया कि हम सारे चन्दे और खर्च का पूरा ब्यौरा नियमित रूप से सार्वजनिक करेंगे। हमारी पार्टी में एक परिवार के एक ही सदस्य को पार्टी टिकट मिलेगा या पद। हर प्राथमिक इकाई को दो संयोजकों में एक महिला होना अनिवार्य होगा। पार्टी अधिकारियों व कार्यकारी सदस्यों पर आरोपी की सुनवाई के लिए आंतरिक लोकपाल होगा। केजरीवाल द्वारा नई पार्टी की घोषणा करने से ही विवाद शुरू होना स्वाभाविक था। पार्टी प्रवक्ता और सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि लोकतांत्रिक देश में पार्टी बनाना सभी का हक है। देश में 1300 दल हैं। एक और शामिल होगा तो लोकतंत्र और मजबूत होगा। 1885 से ही `आम आदमी' कांग्रेस का पर्याय रहा है। कोई भी इसे हाइजैक नहीं कर सकता। उधर भाजपा प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, केजरीवाल को हमारी शुभकामनाएं। वे पार्टी का नाम आम रखें चाहे खास। चुनाव के मैदान में आए हैं। अब तक जो कहते आए हैं, उसे करने का वक्त आ गया है। जिन मुद्दों को लेकर अब तक सबको कठघरे में खड़ा करते रहे हैं अगर उन्हें दुरुस्त कर सकें तो हम खुश होंगे। वैसे केजरीवाल के हक में यह जरूर जाता है कि उन्होंने अपनी आम आदमी की पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर लोकपाल और राज्य व जिला स्तर पर लोकायुक्त का प्रावधान रखा है। ये रिटायर्ड जज होंगे। पार्टी एग्जीक्यूटिव मेम्बर्स के खिलाफ इनसे शिकायत की जा सकेगी। पहली बार किसी राजनीतिक दल में अगर नेशनल कौंसिल चाहे तो नेशनल एग्जीक्यूटिव मेम्बरों को वापस बुला सकेगी। स्टेट कौंसिल राज्यों में भी एग्जीक्यूटिव मेम्बरों को रिकॉल कर सकेंगे। फिलहाल इन आश्वासनों पर यकीन न करने की कोई वजह नहीं है लेकिन उन्हें यह आभास होना चाहिए कि अब उन्हें इन अनेक सवालों से जूझना होगा जिनसे अभी तक उनका वास्ता नहीं पड़ा अथवा जिनके जवाब देने की उन्हें जरूरत नहीं पड़ी। अभी आम आदमी पार्टी का पूरा स्वरूप और उनका दृष्टिकोण सामने आना शेष है, लेकिन उसका गठन जिस तरह से वामदलों की तर्ज पर हुआ है और अनेक मुद्दों पर समाजवादी और वामपंथी रुझान प्रकट किया गया है उससे कुछ संदेह-सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। उदाहरण के तौर पर उनकी नई पार्टी की उद्योग जगत विशेषकर बड़ी औद्योगिक परियोजनाओं व एफडीआई जैसे मुद्दों पर क्या नीति होगी? अरविन्द केजरीवाल पर यह आरोप भी लगता रहा है कि वह मुद्दे तो उठाते हैं पर उन्हें आगे बढ़ाते नहीं हैं। उन्हें अन्त तक नहीं ले जाते। क्या पार्टी में भी यह रुख रहेगा? आम जनता के हितों की सार्वजनिक सभाओं में बात उठाना और बात है पर इन्हें जमीन पर अमल कराना ज्यादा मुश्किल है। चुनाव लड़ने के लिए हर प्रकार के सामर्थ्य की जरूरत पड़ेगी। देखना यह होगा कि केजरीवाल को चन्दा कहां से और कितना मिलता है? पूरे देश में कार्यकर्ताओं की जमात खड़ा करना भी कम चुनौती नहीं है पर इन सब दिक्कतों के बावजूद उनकी आम आदमी की पार्टी की इसलिए सराहना की जाएगी क्योंकि फिलहाल उनके तौर-तरीके और इरादे अन्य सियासी पार्टियों से अलग नजर आ रहे हैं।
आम आदमी जिंदाबाद
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