Published on 24 November, 2012
अजमल आमिर कसाब को यूं गुपचुप तरीके से फांसी पर लटकाना क्या एक राजनीतिक फैसला था? फांसी को लेकर सियासत तेज होना स्वाभाविक ही है। भारत के अन्दर और बाहर दोनों ही जगहों पर सियासत तेज हो गई है। अजमल कसाब की फांसी पर भारत और पाकिस्तान के बीच नया कूटनीतिक दंगल छिड़ गया है। भारत के मुताबिक पाकिस्तान ने कसाब की फांसी से पहले भेजी गई औपचारिक सूचना लेने से ही इंकार कर दिया। इसके बाद पाकिस्तान ने कसाब के पार्थिव शरीर को भी लेने के बारे में कोई खबर भारत को नहीं दी। अब हालांकि पाक खेमा भारत सरकार के उक्त दावों से इंकार कर रहा है। भारत ने अब पाकिस्तान में मौजूद मुंबई हमले के साजिशकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए भी दबाव बढ़ा दिया है। इधर देश के अन्दर भी इस फांसी को लेकर सियासी दाव चले जा रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकारों ने पिछले चार सालों में 29.5 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इनमें आर्थर रोड जेल में उसके खाने-पीने, सुरक्षा, दवाइयों और कपड़ों पर किया गया खर्च शामिल है। वहीं कसाब को फांसी चढ़ाने वाले जल्लाद को इस काम के लिए 5 हजार रुपए दिए गए। सुरक्षा पर 30 करोड़ रुपए खर्च को कम किया जा सकता था? अगर जल्द फांसी दे दी जाती तो यह बच सकता था। हमें हैरानी तब सबसे ज्यादा हुई जब माननीय गृहमंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे ने यह कहा कि कसाब को फांसी दिए जाने के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी नहीं पता था। उन्हें टीवी देखने से ही पता चला कि कसाब को फांसी पर लटका दिया गया है। सवाल है कि आप पाकिस्तान को तो एडवांस में कसाब की फांसी के बारे में बता रहे हैं और देश के प्रधानमंत्री को नहीं बता रहे? यह मानना आसान नहीं है कि पीएम को नहीं पता था, कुछ ऊकचूक हो जाती तो जिम्मेदारी तो देश के हेड यानि पीएम की होती और उन्हें पता ही नहीं था। एक रिपोर्ट के अनुसार न केवल पीएम को मालूम ही था बल्कि यह ऑपरेशन सीधे प्रधानमंत्री की निगरानी में हुआ। ऑपरेशन के बारे में वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों तक को भी भनक नहीं लगी यह ठीक है। केवल प्रधानमंत्री ही नहीं रक्षामंत्री एके एंटनी को भी पूरी जानकारी थी। गृहमंत्री के रोम से इंटरपोल के सम्मेलन से लौटने के बाद ही तय हो गया था कि जल्द ही कसाब को गोपनीय तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरकरार रखी गई फांसी की सजा दे दी जाए। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जिस स्पीड से कसाब की दया याचिका रिजैक्ट की वह भी अभूतपूर्व था। महामहिम ने महज 13 दिनों में ही इतना महत्वपूर्ण फैसला ले लिया। इससे पहले तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने तो सात दिनों में ही दया याचिका पर फैसला सुना दिया था। भारत में यह दूसरा ऐसा मामला है जिसमें दया याचिका पर इतनी तेजी से फैसला हुआ है और गृहमंत्री हमें यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह सब प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष की जानकारी के बिना हुआ है? कसाब को फांसी से देश ने दुनिया को एक मजबूत संदेश दिया है। लेकिन इसकी टाइमिंग कई मायनों में बढ़िया रही। फांसी के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पास होने के एक ही दिन बाद कसाब को फांसी दी गई है। यह संयोग भी हो सकता है, लेकिन हमारे सिस्टम को तो यह काफी पहले से पता था कि यूएन में 19-20 नवम्बर को क्या प्रस्ताव पास होने वाला है। टाइमिंग के मसले पर संसद सत्र से पहले ही एक दिन भी देखा जा सकता है, सरकार की बढ़ती अस्थिरता देश में कांग्रेस के लिए मौजूदा माहौल, तटस्थ हिन्दू वोट, खासकर युवा वर्ग और फिर महत्वपूर्ण गुजरात विधानसभा चुनाव। अगर हम इस घटनाक्रम को देखें तो हमें तो यकीनन लगता है कि यह फैसला राजनीतिक ज्यादा था और सभी जानते हैं कि देश में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी की स्वीकृति के बिना पत्ता तक नहीं हिलता, यह तो बहुत ही बड़ा फैसला था।
Anij ji SOnia ji ke bare me^ aapne sahi kahan bhut hi badhiyaa... SONIA AUR RAJIV KI shadi ka raax janane ke lie yaha clikc kare
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