Tuesday 27 November 2012

तालिबानी फरमान ः शियाओं से आस्था का टकराव है और वह ईशनिंदक हैं


 Published on 27 November, 2012
 अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान में चाहे वह हिन्दू हो, ईसाई हो उन्हें तो टारगेट किया ही जाता है पर शियाओं को टारगेट क्यों किया जाता है, यह हमारी समझ से बाहर है। आए दिन शियाओं की मस्जिदों, जुलूसों को निशाना बनाया जाता है। ताजी घटना पाकिस्तान के अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में डेरा इस्माइल खान जिले की है। बाहरी इलाके में स्थित एक इमामबाड़े से निकले शिया जुलूस को निशाना बनाकर सड़क किनारे रखे गए एक बम विस्फोट से सात व्यक्तियों की मौत हो गई जबकि 18 अन्य घायल हो गए। प्रत्यक्षदर्शियों और पुलिस ने बताया कि बम को एक कूड़े के ढेर में छिपाया गया था। जुलूस शहर के मुख्य जुलूस में शामिल होने जा रहा था। विस्फोट में चार बच्चों सहित सात व्यक्तियों की मौत हो गई। घायलों में दो बच्चे और एक पुलिसकर्मी शामिल है। पुलिस ने बताया कि बम तकरीबन 10 किलोग्राम विस्फोटक पदार्थ और बॉल वियरिंग से तैयार किया गया था। टीवी के दृश्यों में कई मकानों की दीवारों में बॉल वियरिंग फंसी दिखाई दी। सन् 680 ई. में इमाम हुसैन की शहादत पर शोक मनाने के लिए असुरा पर शिया समुदाय के लोग जुलूस निकालते हैं। तमाम सुरक्षा इंतजाम के दावे खोखले साबित हुए। तालिबान ने हमले की जिम्मेदारी ली है। तालिबान के एक प्रवक्ता ने मीडिया को बताया कि आतंकवादियों का शियाओं के साथ `आस्था का टकराव' है। प्रवक्ता ने अल्पसंख्यकों को `ईशनिंदक' करार देते हुए कहा कि तालिबान उनको निशाना बनाता रहेगा। इस हमले से कुछ ही दिन पहले बृहस्पतिवार को रावलपिंडी में एक शिया जुलूस के दौरान हुए आत्मघाती हमले में 23 व्यक्ति मारे गए थे जबकि 60 से अधिक घायल हो गए थे। खैबर पख्तूनख्वा के लक्की मारवात में एक शिया इबादखाने के पास हमलावर ने खुद को उड़ा लिया, धमाके में दो व्यक्ति घायल हुए। इससे पहले उत्तरी पाकिस्तान के गिलगित बालटिस्तान क्षेत्र में अज्ञात बन्दूकधारियों ने शिया समुदाय के कम से कम 26 लोगों को तीन बसों से बाहर निकाला और गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। बन्दूकधारियों ने बस सवारों के पहचान पत्रों की पहले जांच की और फिर गोली मार दी। पाक टीवी रिपोर्टों के मुताबिक इस हमले में करीब 15 बन्दूकधारी शामिल थे, जिसे अधिकारियों ने जातीय हमला बताया। पहले भी गिलगित बालटिस्तान में बसों पर हमले में अल्पसंख्यक शिया समुदाय के दर्जनों लोग मारे जाते रहे हैं। सवाल यह उठता है कि भारत में तो छोटी से छोटी घटना पर शिया समुदाय सड़कों पर उतर आता है। पाकिस्तान में उनको चुन-चुनकर मारा जा रहा है और आज तक शिया समुदाय के गुरुओं और भारत के शियाओं ने इस बढ़ते अत्याचार पर आवाज क्यों नहीं उठाई? क्यों नहीं पाकिस्तान हाई कमीशन में इसके खिलाफ मुजाहिरा और विरोध किया? तालिबान की नजरों में पाकिस्तान में रह रहे शिया भी सुन्नी श्रेणी में आते हैं जिसमें हिन्दू, ईसाई व सिख हैं। तालिबान ने साफ कहा है कि यह मजहब का टकराव है और ईशनिंदा के तहत उन्हें भी निशाना बनाया जाता रहेगा।

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