Published on 17 November, 2012
अनिल
नरेन्द्र
2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से बड़ी उम्मीदें
लगाए बैठी सरकार को जोर का झटका लगा है। नीलामी लगभग फ्लॉप रही। सरकार को इससे करीब
9,400 करोड़ रुपए ही मिलेंगे जबकि वह उम्मीद लगाए बैठे थी कि उसे 40,000 करोड़ रुपए
आएंगे। दिल्ली और मुंबई के लिए तो दूसरे दिन भी कोई खरीददार नहीं मिला। सिर्प बिहार
के लिए कम्पनियों ने दिलचस्पी दिखाई और इस सर्पिल का लाइसेंस पाने के लिए जबरदस्त कम्पीटीशन
रहा। पैन इंडिया लाइसेंस हासिल करने के लिए कोई भी सामने नहीं आया। दो दिनों की नीलामी
के दौरान आधे से भी कम स्पेक्ट्रम के लिए बोलियां लगाई गईं। टेलीकॉम कम्पनियां शुरू
से ही नीलामी के लिए रखे गए मिनिमम बेस प्राइस (न्यूनतम आधार कीमत) का विरोध कर रही
थीं। उनका कहना था कि इतनी बड़ी कीमत पर नीलामी में हिस्सा लेना मुमकिन नहीं था। कम्पनियों
के विरोध की वजह से सरकार ने मिनिमम प्राइस को 18,000 करोड़ से घटाकर 14,000 करोड़
कर दिया लेकिन इस पर भी कम्पनियों ने नाखुशी जाहिर की थी। दरअसल 3जी स्पेक्ट्रम नीलामी
से तकरीबन 67,000 करोड़ रुपए मिलने के बाद सरकार उम्मीद कर रही थी कि इस बार भी वही
जादू दोहराया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी को लेकर कम्पनियों
का उत्साह ठंडा रहने से सरकार को राजकोषीय घाटा नियंत्रण करने में दिक्कत हो सकती है।
वित्त वर्ष 2012-13 में राजकोषीय घाटा का संशोधित लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)
का 5.3 प्रतिशत रखा गया है। 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से 40,000 करोड़ रुपए प्राप्त
करने का लक्ष्य था लेकिन इससे केवल 9,407 करोड़ रुपए मिलेंगे। यह दूरसंचार मंत्रालय
द्वारा निर्धारित 28,000 करोड़ रुपए के आरक्षित मूल्य से कहीं कम है। इतना ही नहीं,
पूरी राशि चालू वित्त वर्ष में उपलब्ध होने की सम्भावना कम ही है क्योंकि दूरसंचार
कम्पनियों के पास तीन साल में किश्तों में भुगतान का विकल्प है। सरकार को झटके पर झटके
लग रहे हैं। सरकार ने सार्वजनिक कम्पनियों में विनिवेश से 30,000 करोड़ रुपए के राजस्व
का लक्ष्य रखा है लेकिन चालू वित्त वर्ष के सात महीने में किसी भी सार्वजनिक कम्पनी
में हिस्सेदारी नहीं बेची जा सकी। आरक्षित मूल्य से भी कम पर 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी
सम्पन्न होने पर दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के पूर्व चेयरमैन नृपेन्द्र मिश्र ने ट्राई
को ही दोषी करार दे दिया है। उन्होंने कहा कि इतनी कम राशि हासिल होने की मुख्य वजह
प्राधिकरण का अव्यावहारिक नजरिया है। उन्होंने कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम नीलामी से कम
राशि हासिल होने की तुलना वर्ष 2010 के 3जी नीलामी से हासिल राशि से नहीं की जा सकती
है, न ही इसके लिए 2008 की स्थिति का उल्लेख किया जाना चाहिए। उस समय बाजार बेहतर स्थिति
में था। बाजार में नए ऑपरेटरों के लिए पर्याप्त जगह थी। प्रति ग्राहक कम्पनियों की
आय अधिक थी। अगर कम राशि हासिल हुई है तो इसकी सबसे बड़ी वजह गैर-वाजिब आरक्षित मूल्य
रखना। फिर एक सैचूरेशन प्वाइंट भी तो आता है जब बाजार में और गुंजाइश नहीं होती। दिल्ली
और मुंबई सर्पिल में यह सैचूरेशन प्वाइंट आ चुका है। सरकार को इस फ्लॉप नीलामी के दुष्परिणामों
पर गम्भीरता से अब सोचना पड़ेगा।
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