Published on 3 November, 2012
अरविन्द केजरीवाल ने बुधवार को भी आरोपों की मिसाइल दागी। इस बार निशाने पर थे देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अम्बानी। केजरीवाल ने इस बार भी नई बोतल में पुरानी शराब के अन्दाज में कोई नया खुलासा तो नहीं किया पर हां इस बार उन्होंने ऐसा मुद्दा जरूर उठाया है जो जानते तो सब हैं पर बोलता कोई नहीं। अम्बानी के साथ-साथ केजरीवाल ने इस बार प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और भाजपा को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। आरोप लगाया गया है कि केंद्र में चाहे सरकार कांग्रेस नेतृत्व वाली हो या भाजपा नेतृत्व वाली, लेकिन ये सब बड़े औद्योगिक घरानों के इशारे पर संचालित होती हैं। बुधवार को अरविन्द केजरीवाल और उनके सहयोगी प्रशांत भूषण ने दावा किया है कि मुकेश अम्बानी के नेतृत्व वाला रिलायंस ग्रुप, यूपीए सरकार में कई बड़े राजनीतिक फैसलों को प्रभावित करने की ताकत रखता है। कई मंत्रालयों में मंत्री, इसी औद्योगिक समूह की मर्जी से बनाए जाते हैं। सबूत के तौर पर उन्होंने औद्योगिक लाबिस्ट नीरा राडिया के दो आडियो क्लिप भी जारी किए। केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पर कटाक्ष करते हुए कहा कि देश मनमोहन सिंह नहीं बल्कि मुकेश अम्बानी चला रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति और पूर्व वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी पर भी आरोप जड़े। कहा कि जब वे केजी बेसन में गैस उत्खनन मामले में मंत्रिसमूह के अध्यक्ष थे, तो उन्होंने अम्बानी के साथ पक्षपात किया। उन्होंने कहा कि प्रणब मुखर्जी ने सरकारी कम्पनी एनटीपीसी को रिलायंस की गैस 14 डॉलर में खरीदने के लिए मजबूर किया जबकि यह था कि 14 साल तक कम्पनी सवा दो डॉलर में गैस बेचेगी। रिलायंस की इस मनमानी से देश को 45 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। भ्रष्टाचार के मुद्दे से जूझ रही कांग्रेस पार्टी को थोड़ी राहत देते हुए अरविन्द केजरीवाल ने भाजपा को भी लपेट लिया। केजरीवाल ने वो आडियो टेप की क्लिप भी जारी की। इनमें बहुचर्चित लाबिस्ट नीरा राडिया और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य के बीच की बातचीत के अंश हैं। अरविन्द केजरीवाल के आरोपों का इतना असर तो जरूर हुआ है कि आज जनता के सामने दोनों कांग्रेस और भाजपा नंगे खड़े हैं। नितिन गडकरी और रंजन भट्टाचार्य दोनों मुद्दों से भाजपा की किरकिरी हुई है। कुछ समय पहले तक भ्रष्टाचार पर कांग्रेस को घेर रही भाजपा की हालत इसलिए डगमगा गई है, क्योंकि खुद उसके अध्यक्ष नितिन गडकरी वैसे ही आरोपों की चपेट में आ गए हैं जैसे आरोपों का सामना कांग्रेस के नेता कर रहे हैं। भाजपा ने रही-सही कसर गडकरी के बचाव करने में पूरी कर दी है। इसी वजह से सोनिया को यह कहने का मौका मिला कि भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के खिलाफ है। रही बात मुकेश अम्बानी और अरविन्द केजरीवाल की तो यह कोई नई बात नहीं कि रिलायंस इंडस्ट्री का केंद्र सरकारों पर विशेष प्रभाव रहा है। अकेले रिलायंस ही नहीं तमाम औद्योगिक घरानों की संप्रग सरकार के मंत्रियों से घनिष्ठता है यह सभी जानते हैं। यही वजह है कि मनमोहन सरकार आम आदमी के हितों से ज्यादा प्राथमिकता उद्योगपतियों को देती है। अरविन्द केजरीवाल द्वारा एक आरोप की झड़ी लगाने से खुद भी एक तरह विवाद का मुद्दा बनते जा रहे हैं। यह एक साथ इतने मोर्चे खोल रहे हैं कि जनता कंफ्यूज हो रही है कि आखिर यह चाहते क्या हैं? अन्ना हजारे ने तो कह भी दिया है कि अरविन्द केजरीवाल राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखते हैं और इस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। आए दिन नए-नए आरोप लगाने से केजरीवाल की खुद की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है। हमारी राय में अब उन्हें नए आरोप लगाने से बचना चाहिए और जितने आरोप वह लगा चुके हैं उन्हें ही आगे बढ़ाएं। यह उनके लिए भी बेहतर होगा और भारत जनमानस के लिए भी।
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