Published on 14 November, 2012
समय-समय पर कुछ रूढ़ीवादी धार्मिक नेता ऐसा फरमान जारी कर देते हैं जो समझ से बाहर होता है। मुंबई के हाजी अली दरगाह के प्रबंधन ने दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाने का आदेश दिया है। मुंबई के वर्ली कोस्ट पर समुद्र तट से लगभग 500 मीटर समुद्र के भीतर स्थित 15वीं शताब्दी के सूफी-संत पीर हाजी अली शाह बुखारी की दरगाह है। यहां दशकों से विदेशी सैलानी तथा तीर्थ यात्री बेरोक-टोक आते रहे हैं तथा हाजी अली की मजार पर जाकर अपना सिर झुकाते रहे हैं। आस्था भावनाओं के अनुसार यहां हर धर्म समुदाय तथा प्रत्येक लिंगभेद के लोगों द्वारा मांगी जाने वाली मुरादें भी पूरी होती हैं। दर्शनार्थियों को लेकर कभी किसी प्रकार का भेदभाव इस दरगाह के पीर या दरगाह के प्रबंधकों की ओर से सुनने में नहीं आया। हाजी अली दरगाह के कुछ मौलवियों ने यह फतवा जारी किया है कि महिलाएं दरगाह में जाकर केवल दरगाह परिसर में घूम-फिर सकती हैं अथवा प्रार्थना कर सकती हैं परन्तु उनका मजार शरीफ के करीब जाना तथा उसके निकट लगी पवित्र जाली को पकड़कर प्रार्थना आदि करना प्रतिबंधित कर दिया है। यह फैसला वर्ली स्थित पीर हाजी अली की प्रसिद्ध दरगाह के अतिरिक्त मुंबई की सात अन्य दरगाहों पर भी लागू किया गया है। प्रबंधन ने यह बात साफ कर दी है कि यह काफी पवित्र स्थान है और इस्लाम में महिलाओं का प्रवेश पहले से ही स्वीकार्य नहीं है, इसलिए दरगाह प्रबंधन ने आदेश दिए हैं कि महिलाएं सिर्प दरवाजे के बाहर खड़ी हो सकती हैं लेकिन अन्दर जहां 15वीं सदी के सूफी संत पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र है वहां नहीं जा सकती हैं। जाने-माने वकील और दरगाह के एक ट्रस्टी रिजवान मर्चेंट ने कहा है कि महिलाएं बाहर से फूल अर्पित कर प्रार्थना कर सकती हैं, लेकिन उन्हें अन्दर जाने से बिल्कुल इंकार किया है। मर्चेंट ने बताया कि शरिया कानून के तहत यह फतवा जारी किया गया है। हालांकि यह फतवा छह महीने पहले ही जारी किया गया था, जिसको लेकर काफी विरोध भी हुआ था लेकिन अब इसमें कुछ सुधार करके इसे सख्ती से लागू किया जाएगा। अब भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने इस फैसले का विरोध किए जाने का न सिर्प फैसला किया है बल्कि ऐसे रूढ़ीवादी फतवों के विरुद्ध व्यापक जन समर्थन जुटाने की भी कोशिश शुरू कर दी है। महिलाओं के इस संगठन को जहां अधिकतर महिलाओं का समर्थन प्राप्त है वहीं उदारवादी व आधुकि सोच रखने वाले पुरुष समाज भी इनके साथ खड़ा हो गया है। देश में चारों ओर से ऐसे हिटलरशाही रूपी फतवों के विरुद्ध आवाजें बुलंद होने लगी हैं। धर्म के ठेकेदार तथा शरीयत कानून के रखवालों से सवाल यह पूछा जा सकता है कि 15वीं शताब्दी के सूफी संत पीर हाजी अली शाह की दरगाह पर शरीयत कानून लागू किए जाने की जरूरत आज क्यों महसूस हुई? अभी तक उन्हें शरीयत कानून की याद क्यों नहीं आई? दूसरी बात यह है कि यदि महिलाओं की अपवित्रता या उनकी आपत्तिजनक पोशाकें दरगाह के भीतरी हिस्से में प्रतिबंध का कारण हैं तो पवित्रता के लिए महिलाएं तथा सम्पूर्ण वस्त्र पहनकर दरगाह परिसर में आने वाली महिलाएं ऐसे प्रतिबंध का शिकार क्यों? इससे एक सवाल यहां भी पूछा जा सकता है कि क्या दरगाह के भीतरी भाग अर्थात मजार शरीफ तक जाने वाला प्रत्येक पुरुष पवित्र होता है? पवित्रता या अपवित्रता की सीमाओं का निर्धारण करने का या इसकी जांच-पड़ताल करने का अधिकार या तरीका आखिर किसके पास है? कोई शराबी भी अपवित्र हो सकता है? सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है यह प्रतिबंध आज के उस दौर में देखने को मिल रहा है जब हम अत्यंत आधुनिक समाज व वातावरण में प्रवेश कर चुके हैं। अब हमारे देश की दुर्गा या देवी कही जाने वाली महिलाएं पुरुषों की बराबरी में खड़ी हैं। देश में तीन अतिमहत्वपूर्ण पदों पर आज भारत में महिलाएं आसीन हैं जिनमें सत्तारूढ़ यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, लोकसभा की अध्यक्ष मीरा कुमार और नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज प्रमुख उदाहरण हैं। हम उम्मीद करते हैं कि दरगाह हाजी अली के प्रबंधक अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करेंगे और इस फतवे को वापस लेंगे।
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