Sunday 25 November 2012

पोंटी और हरदीप चड्ढा की हत्या किसने की और क्यों? रहस्य बरकरार


 Published on 25 November, 2012
 अनिल नरेन्द्र
पोंटी चड्ढा और उनके भाई हरदीप चड्ढा को किसने मारा और क्यों मारा? यह प्रश्न इस हाई प्रोफाइल हत्याकांड के सात दिन बीत जाने के बाद भी स्पष्ट नहीं हो सके। शुरू में बताया गया कि छोटे भाई हरदीप ने पोंटी को मारा और उत्तराखंड अल्पसंख्यक के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव सिंह नामधारी के पीएसओ ने अपनी कार्बाइन से हरदीप को दो गालियां मार दीं। बुधवार को आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार पोंटी को सात गोलियां लगीं और हरदीप को दो गोलियां। पोंटी को दो गोलियां उनकी छाती पर लगी थीं। ये गोलियां दिल और लंग्स में फंस गईं जिससे दिल पंचर हो गया। पुलिस के अनुसार दो गोलियां उनके पेट और बाकी तीन शरीर के निचले भाग में लगीं। वहीं हरदीप को जो दो गोलियां लगी थीं वह शरीर से आर-पार हो गई थीं। पुलिस सूत्रों के अनुसार फार्म हाउस के अन्दर और बाहर यानि परिसर में करीब 80 राउंड गोलियां चली थीं। तकरीबन सभी खोखे पुलिस को मिल गए हैं। सवाल यह है कि जब इतनी गोलियां चलीं तो यह कैसे हुआ कि मरने वाले सिर्प पोंटी और हरदीप दो व्यक्ति थे? पोंटी के साथ नामधारी बैठे हुए थे, उनको कोई गोली क्यों नहीं लगी? पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद पुलिस के सामने यह बात साफ हो गई है कि चड्ढा बंधुओं को 9 गोलियां लगी थीं लेकिन एक दर्जन सवाल अभी भी अनुसलझे हैं। क्या भाइयों का झगड़ा केवल दो फार्म हाउसों को ही लेकर था? वारदात के दौरान मौके पर कौन-कौन मौजूद था? सुखदेव सिंह नामधारी की पूरे मामले में क्या भूमिका थी? क्या सुखदेव के कहने पर त्यागी ने गोली चलाई? मौके पर क्या अन्य रसूखदार लोग भी मौजूद थे? पीसीआर कॉल के बाद भी पुलिस को क्यों नहीं भनक लगी कि स़ढ़े 11 बजे यहां गोलियां चली हैं? क्या मौके पर जाने वाले पुलिसकर्मियों को हिंसा की जानकारी थी और वे किसी कारण चुपचाप रहे? किन-किन हथियारों से फायरिंग हुई? राजदेव वह शख्स है जिसने पोंटी व हरदीप के बीच हुए खूनी खेल को अपनी आंखों से देखा था। राजदेव पोंटी की बहू की लैंड कूजर गाड़ी का ड्राइवर है। उसने पुलिस को बताया कि वह फार्म हाउस नम्बर 21 में थे। शनिवार सुबह करीब साढ़े 11 बजे पोंटी चड्ढा बाहर आए और उनसे पूछने लगे कि वह कहां जा रहे हैं। इस पर राजदेव ने कहा कि मैडम कहीं जा रही हैं और वह उनका इंतजार कर रहा है। तब पोंटी ने उससे कहा कि मैडम बाद में जाएंगी पहले सेंट्रल ड्राइव फार्म हाउस नम्बर 42 चलो। राजदेव ने बताया कि उनके साथ मैनेजर नरेन्द्र स्कार्पियो गाड़ी से पीछे आ रहा था। जब नरेन्द्र अन्दर से चॉभी लेकर फार्म हाउस का ताला खोल रहा था उसी समय हरदीप आ गए। हरदीप ने नरेन्द्र को गाली देते हुए पैर में गोली मारी। जब हरदीप के लैंड कूजर के बोनेट पर गोली मारी तो राजदेव गाड़ी से उतरकर दूर चला गया। जब हरदीप ने पोंटी के ऊपर गोलियां चलानी शुरू की तो वह मौके से भाग खड़ा हुआ। अगर वह भागता नहीं तो मारा जाता। अंग्रेजी अखबरों में एक अन्य रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हरदीप ने पोंटी पर गोली उन्हें मारने के लिए नहीं चलाई थी। इन रिपोर्टों के अनुसार पहले पोंटी ने हरदीप को जमीन पर पटक दिया और जब वह गिर गए तो उन्होंने दोनों हाथों में पिस्तौल निकालकर पहले पोंटी की टांग पर गोली मारी यानि पहले उन्होंने पोंटी को मारने की नीयत से गोली नहीं चलाई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट इतनी तो पुष्टि करती है कि पोंटी की टांग में गोली लगी। पुलिस कन्फर्म करती है कि पोंटी को दो गोलियां उनकी जांघ में लगी और एक टांग में। फिर से सवाल उठता है कि पोंटी पर किसने गोलियां चलाईं और क्यों? इसमें सुखदेव सिंह नामधारी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। वह बार-बार न केवल अपना बयान बदल रहे हैं बल्कि कई दिनों से गायब थे। शुक्रवार को दिल्ली पुलिस ने उत्तराखंड पुलिस की मदद से उन्हें उत्तराखंड से गिरफ्तार कर लिया। सुखदेव को हरदीप के मैनेजर नन्द लाल द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत पर गिरफ्तार किया गया है। इस केस में यह आठवीं गिरफ्तारी है। पुलिस के गिरफ्त में आए सभी लोग पोंटी की तरफ के हैं। पुलिस ने बताया कि अब सुखदेव और सचिन त्यागी (सुरक्षाकर्मी) से पूछताछ के बाद वारदात की तस्वीर साफ हेने की सम्भावना है। सुखदेव सिंह आपराधिक पृष्ठभूमि रखते हैं और उस दिन अपने साथ गुंडे लेकर फार्म हाउस पर जबरन कब्जा करने के लिए पोंटी के साथ आए थे। हम तो अब इस नतीजे पर पहुंचते जा रहे हैं कि गोलीकांड में ट्रिगर चलाने वाला कोई और ही था। कभी-कभी काल्पनिक घटनाओं पर आधारित फिल्में भी सच्चाई को सामने लाने में कारगर साबित हो सकती हैं। 1994 में निर्देशक राजीव राय की थ्रिलर फिल्म `मोहरा' आई थी। पुलिस यह दबी जुबान से मान रही है कि किसी तीसरे पक्ष ने फायदा उठाने के लिए दोनों भाइयों को आमने-सामने कर उनकी हत्या करवा दी है। सूत्रों के अनुसार फैसला लिया गया है कि मामले की जांच कर रही पुलिस की 21 टीमों को यह फिल्म दिखाई जाएगी, जिससे खेल के असली मोहरे को सामने लाया जा सके। फिल्म में अभिनेता गुलशन ग्रोवर और रजा मुराद का शहर में अपना-अपना गुट होता है। नसीरुद्दीन शाह इन दोनों गैंगों का खात्मा कराकर खुद शहर पर राज करना चाहता है। इसके लिए वह अभिनेता सुनील शेट्टी को मोहरा बनाता है। नसीरुद्दीन की एक चाल पर रजा मुराद और ग्रोवर का गैंग आमने-सामने आ जाता है। इसी दौरान असलहों से लैस तीसरा गुट दोनों गुटों का सफाया कर देता है। मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी अक्षय कुमार को सारा माजरा काफी मशक्कत करने के बाद समझ आता है और वह नसीरुद्दीन शाह का खात्मा कर देता है। पोंटी से सबसे ज्यादा परेशान शराब सिंडीकेट था। पश्चिमी यूपी के 20 जिलों में पोंटी के एकछत्र राज व बाकी जिलों की 40 फीसदी दुकानों पर कब्जा करने से दूसरे कारोबारी परेशान थे। पोंटी के रसूख के चलते अब तक सिंडीकेट से जुड़े लोग विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाते थे। सम्भव है कि इस शराब माफिया ने यह कांड रचा हो। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में शराब कारोबार में कई कत्ल दफन हैं। 16-17 वर्षों के दौरान वेस्ट यूपी और उत्तराखंड में कई की हत्या कराई गई तो कइयों को पुलिस एनकाउंटर में ढेर करा दिया गया। मतलब साफ है कि जिन लोगों ने शराब के कारोबार में अपना सिक्का फिर से जमाना चाहा वह हर गतिरोधक को हटा सकते हैं। इस कांड का मास्टर माइंड कोई और है जिसने दोनों को एक जगह पहुंचा दिया और फिर दोनों को रास्ते से हटा दिया।

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