Tuesday 13 November 2012

सूरजपुंड मंथन से क्या अमृत निकलेगा?


Published on 13 November, 2012
अनिल नरेन्द्र
            शुक्रवार को सूरजपुंड (हरियाणा) में करीब साढ़े छह घंटे तक सरकार और संगठन के नेताओं में लम्बा विचार-विमर्श हुआ। इस लम्बे मंथन से मैं समझता हूं कि कुछ अच्छी बातें भी निकलीं। सरकार और कांग्रेस संगठन को इस बात का अहसास हुआ कि जनता में उसकी छवि बहुत खराब हो गई है। आगामी डेढ़ साल में कई राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2014 में होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी और संगठन दोनों को ही अपनी-अपनी छवि बदलनी होगी। आर्थिक सुधारों के नाम पर कड़े फैसले अब बहुत हो चुके। अगले डेढ़ साल में सरकार को कांग्रेस की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का एजेंडा पूरा करना होगा। सूरजपुंड में कांग्रेस की संवाद बैठक में सरकार के लिए यह संदेश उभरकर निकला है। संवाद बैठक में कांग्रेस नेतृत्व ने साफ कर दिया कि आम आदमी के नारे से पीछे नहीं हटा जा सकता। कड़े आर्थिक फैसलों के लिए मनमोहन सरकार को हरी झंडी इसी शर्त पर मिली थी कि सामाजिक योजनाओं के लिए जरूरी धन की व्यवस्था हो सके। मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों की एक तरह से सीधी आलोचना की गई कि एफडीआई समेत डीजल, एलपीजी के दाम इसलिए बढ़ाए गए थे ताकि आम आदमी को थोड़ी राहत मिले। उलटा महंगाई ने आम आदमी की कमर ही तोड़कर रख दी है। इस आशय का इजहार कांग्रेस अध्यक्ष के सबसे करीबी और रक्षामंत्री एके एंटनी ने एक तरह से मनमोहन सरकार की आर्थिक नीतियों को संवाद के दौरान कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने जब आम आदमी के प्रति सरकार को ज्यादा जवाबदेह होने और कांग्रेस की विचारधारा का सवाल उठाया तो इसका मंतव्य यही था। यहां तक कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मौजूदा सरकार की आर्थिक नीतियों का समर्थन करती नहीं दिखीं। सोनिया का साफ कहना था कि पार्टी जिस तरह से सरकार के साथ हर वक्त खड़ी रही, उसी तरह अब मंत्रियों की जिम्मेदारी है कि वे संगठन की सुनें। इतना ही नहीं, उन्होंने तमाम फैसलों के समय पर भी सवाल उठा दिए। हिमाचल चुनाव के पहले गैस सिलेंडर के दाम 25 रुपए बढ़ाने की तरफ उनका इशारा था। पार्टी मान रही है कि रोल बैक के बावजूद इसका तमाम नुक्सान हुआ। जनता को मनमोहन सिंह की न तो आर्थिक नीतियां समझ आ रही हैं और न ही उन्हें समझाया जा सकता है। महासचिव राहुल गांधी का कहना है कि वक्त के साथ कार्यक्रम और नीतियों में बदलाव जरूरी है। इसके साथ ही उन्होंने ऐसी प्रक्रिया अपनाने पर बल दिया जिसमें जल्द फैसले हो सकें। इसी कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के समय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। इसी कांग्रेस ने आर्थिक उदारीकरण शुरू किया, इसलिए वक्त के साथ बदलाव जरूरी है। हमारा मानना है कि शरीर में अगर कोई बीमारी आ जाए तो सबसे ज्यादा जरूरी होता है उस बीमारी का डायगनोज होना, क्या बीमारी है इसका पता करना। यह पता चलने के बाद ही इलाज हो सकता है। सूरजपुंड में  कांग्रेस को बीमारी का तो पता चल गया है। अब देखना यह होगा कि इस बीमारी का इलाज क्या किया जाता है। समय कम है और जनता को राहत के फैसले अगर तत्काल नहीं हुए तो कांग्रेस को कोई फायदा नहीं होने वाला।

1 comment:

  1. Anij ji SOnia ji ke bare me^ aapne sahi kahan bhut hi badhiyaa... SONIA AUR RAJIV KI shadi ka raax janane ke lie yaha clikc kare

    http://days.jagranjunction.com/2012/12/08/sonia-gandhi-profile-in-hindi-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%90%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A5%80/

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