Friday, 16 November 2012

संघ अपने वर्चस्व और साख की लड़ाई लड़ रहा है




    Published on 16 November, 2012   
 अनिल नरेन्द्र
मैंने इसी कॉलम में पिछले लेख में नितिन गडकरी विवाद पर लिखा था कि अब लड़ाई भाजपा बनाम आरएसएस है। यह लड़ाई अब खुलकर सामने आ चुकी है। भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के एक सदस्य जगदीश शेट्टीगर ने मांग की कि पूर्ति समूह को संदिग्ध वित्त पोषण के आरोपों के मद्देनजर नितिन गडकरी को इस्तीफा दे देना चाहिए। शेट्टीगर ने कहा, गडकरी स्वयंसेवक संघ (संघ कार्यकर्ता) भी हैं जिनका धर्म सबसे पहले देश हित है फिर पार्टी हित की रक्षा करना है, इसलिए अंतरात्मा से स्वयंसेवक होने के नाते मुझे यकीन है कि वह समूचे देश और संगठन के हित में सर्वश्रेष्ठ कदम उठाएंगे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शेट्टीगर की बात का जवाब तो नहीं दिया पर उलटा मामले को उलझाने का प्रयास किया। आरएसएस के पूर्व प्रवक्ता व विचारक एमजी वैद्य ने अपने ब्लॉग में लिख दिया कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को बदनाम करने के पीछे नरेन्द्र मोदी का हाथ है। गडकरी अगर पद पर बने रहे तो शायद नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी में परेशानी हो सकती है। वैद्य ने कहा कि लाल कृष्ण आडवाणी और गडकरी ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की कोई लालसा नहीं है। हमने कहीं नहीं पढ़ा कि नरेन्द्र मोदी उन खबरों से इंकार करते रहे हों कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की कोई इच्छा नहीं। वैद्य ने अपनी टिप्पणी पर कायम रहते हुए कहा, यह मेरा विचार है... ऐसा इसलिए क्योंकि जेठमलानी ने गडकरी के इस्तीफे और नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाए जाने को एक साथ उठाया इसलिए शक की सूई गुजरात की ओर जाती है। नितिन गडकरी को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की दुविधा और दोहरा चरित्र दोनों एक साथ बेनकाब हो रहे हैं। संघ में इतना अंतरविरोध है कि एक दिन एक बयान आता है तो दूसरे दिन दूसरा जो पहले से बिल्कुल विपरीत होता है। उदाहरण है नितिन गडकरी को क्लीन चिट देने वाले संघ विचारक और चार्टर्ड एकाउंटेंट एस. गुरुमूर्ति का ताजा बयान। अब गुरुमूर्ति कहते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल के अध्यक्ष को व्यवसाय नहीं करना चाहिए। सोमवार को गुरुमूर्ति ने एक के बाद एक कई ट्विट करते हुए इस मामले में अपनी स्थिति साफ करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि वह किसी ऐसे आदमी को क्लीन चिट नहीं दे सकते जिन्हें अच्छी तरह नहीं जानते और गडकरी को मैं बिल्कुल नहीं जानता। गुरुमूर्ति ने कहा कि गडकरी की समस्या राजनीतिक समस्या है और इससे बीजेपी जैसे निपटती है उसका अपना मामला है। खास गौर करने की बात यह है कि यह बयानबाजी सरसंघ चालक मोहन भागवत के अचानक दिल्ली पहुंचने के बाद तेज हुई है। हम इसका क्या मतलब निकालें? आज संघ की साख दांव पर है। संघ के वर्चस्व को भाजपा के अन्दर से चुनौती मिल रही है और इससे वह बौखला गया है। भाजपा ने पहले भी कई बार संघ के वर्चस्व को समाप्त करने के असफल प्रयास किए हैं। बस जब अटल जी प्रधानमंत्री थे तब कहा जा सकता था कि उनके कार्यकाल में संघ ड्राइवर सीट पर नहीं था। अब जब एक बार फिर संघ को चुनौती मिल रही है तो वह अपने वर्चस्व और साख की लड़ाई लड़ने पर तुला हुआ है।

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