Published on 7 November, 2012
पिछले कई दिनों से आसमान में छाए एक प्रकार के कोहरे ने दिल्ली वालों की सेहत बिगाड़ दी है। अगर यह कोहरा होता तो चिन्ता की बात न होती पर यह कोहरा नहीं है। जिसे आप और मैं सर्दियों का कोहरा समझ रहे हैं वो कोई आम कोहरा नहीं है। दिल्ली में छाई धुंध सर्दियों के कोहरे जैसे नहीं है, यह वो खतरनाक कोहरा है जिसमें छिपी है आपके जिस्म के अन्दर तक घुसकर नुकसान पहुंचाने वाली चीजें। इसे कहा जाता है स्मॉग। दरअसल दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों को भी दिक्कत हो रही है क्योंकि सड़क पर काली धुंध की वजह से विजिबिलिटी रेंज काफी कम हो चुकी है। यकीनन यह स्मॉग है जिसमें छिपे हैं खतरनाक कैमिकल और धूल। सवाल यह है कि दिल्ली पर यह खतरनाक चादर कैसे छा गई? इसके कई कारण हैं। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के तटीय इलाकों में गुजरे चक्रवाती तूफान नीलम की वजह से दिल्ली समेत उत्तर भारत के इलाके में इसका असर हुआ है पर सबसे बड़ी वजह है प्रदूषण। दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण एक बार फिर चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। चूंकि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर ज्यादा है ऐसे में कोहरे के साथ धूल के कणों ने मिलकर वातावरण में गंदगी की चादर बना दी है। यही वजह है कि आंखों में जलन से लेकर अस्थमा की समस्या बढ़ गई है। सेंटर फॉर साइंस एण्ड एनवायर्नमेंट के विशेषज्ञों के मुताबिक दिल्ली में एयर पॉल्यूशन दोबारा बढ़ने लगा है। 2001 में जब सीएनजी प्रोग्राम चालू हुआ था तब रिहायशी इलाकों में रेस्पिरेबल संस्पेडेड पर्टिकुलर मैटर (आरएसपीएम) का वार्षिक एवरेज स्तर 149 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था। 2008 में यह 209 तक पहुंचा था। कार्बन मोनोआक्साइड जो कि ज्यादातर इलाकों में अब तक स्टैंडर्ड लेवल से कम रहता था उसमें भी बढ़ोतरी पाई गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक दिल्ली में 2011 के मुकाबले इस साल कार्बन मोनोआक्साइड का स्तर औसत 1584.7 के मुकाबले 1772.9 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया है। रासायानिक कण (स्मॉग) का प्रकोप झेल रहे दिल्लीवासियों के लिए विशेषज्ञों ने कुछ एहतियाती कदम बरतने की सलाह दी है। उनका कहना है कि स्मॉग ऐसे कण हैं जो हवा में निचले स्तर पर आ जाते हैं। ये ऊपर से गर्म हवा और नमी के चलते हवा के नीचे की ओर चलते जाते हैं। यह प्रदूषक तत्व पीएम 10 और पीएम 2.5 (बेहद छोटे-छोटे कण) निचले स्तर पर आ जाते हैं। वातावरण में फैले प्रदूषक तत्वों के छोटे-छोटे कण वाहनों, औद्योगिक इकाइयों, पॉवर प्लांट व लकड़ियों के जलने से निकलते हैं। यह सॉलिड और लिक्विड कणों का मिलाजुला रूप है। यह आदमी के बाल से भी 100 गुना तक पतले होते हैं। वर्तमान में राजधानी में इनकी मात्रा 500 औसत माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। निचले स्तर पर आने से यह सांस के रोगियों के लिए खासी परेशानी इसलिए करते हैं क्योंकि छोटा होने की वजह से यह सीधे सांस की नली से फेफड़े तक पहुंच जाते हैं। यह भी चेतावनी दी गई है कि अगर इन दिनों बारिश होगी तो एसिड रेन का खतरा है। बेहतर होगा कि इस स्मॉग के रहते बारिश से बचा जाए। उम्मीद करते हैं कि यह स्मॉग जल्द घटे।
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