Thursday 29 November 2012

प्लास्टिक बैन कितना कारगर साबित होगा


 Published on 29 November, 2012
 अनिल नरेन्द्र
राजधानी में प्लास्टिक की थैलियों पर पतिबंध की अधिसूचना दिल्ली सरकार ने 23 अक्तूबर 2012 को जारी की थी। अधिसूचना में पतिबंध को लागू करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया था। बृहस्पतिवार को यह समय सीमा समाप्त हो गई और सरकार ने भी शुकवार से प्लास्टिक की थैलियों पर पूरी तरह पतिबंध लगाने की तैयारी कर ली है। अब न तो प्लास्टिक थैलियों का उत्पादन व आयात किया जा सकेगा और न ही कोई दुकानदार, थोक बिकेता या रेहड़ी वाला सामान बेचने के लिए प्लास्टिक की थैलियों का पयोग व भंडारण कर सकेगा। यह पतिबंध निमंत्रण पत्रों के प्लास्टिक कवरों, प्लास्टिक फिल्मों व प्लास्टिक ट्यूब पर भी लागू होगा। इसका उल्लंघन करने पर एक लाख रुपए जुर्माना व पांच वर्ष की सजा का पावधान है। जैव चिकित्सीय कूड़ा पबंधन व सामान्य नियमावली 1998 के तहत पयोग होने वाली प्लास्टिक थैलियों पर पतिबंध नहीं लगेगा। एक विशेषज्ञ के मुताबिक फिलहाल दिल्ली में प्लास्टिक बैग बनाने की करीब 400 इकाइयां काम कर रही हैं और इनका सालाना कारोबार 800 करोड़ रुपए से लेकर 1000 करोड़ रुपए तक का है। दिल्ली सरकार ने बेशक प्लास्टिक थैलियों पर बैन लगा दिया है पर इसे लागू करना इतना आसान नहीं। विशेषज्ञों की मानें तो सरकार के पास जहां प्लास्टिक का उत्पादन कर रहीं फैक्ट्रियों का पूरा रिकॉर्ड नहीं है, वहीं वाया ट्रेन, प्लेन व बस दूसरे राज्यों से आ रहे प्लास्टिक पर भी इसका ज्यादा जोर नहीं चलेगा। केन्द्राrय पदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक रिपोर्ट बताती है कि संगठित क्षेत्र में प्लास्टिक का उत्पादन व रीसाइकिल करने वाले करीब 150 यूनिट हैं। जबकि इससे दस गुना से ज्यादा असंगठित क्षेत्र में हैं। वहीं दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक हजरत निजामुद्दीन, नई दिल्ली व दिल्ली रेलवे स्टेशन से रोजाना करीब 7000 किलोग्राम व अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट से 3.370 किलो प्लास्टिक कचरा आता है। ज्यादातर प्लास्टिक का उत्पादन असंगठित क्षेत्र की फैक्ट्रियों में होता है जहां सरकार के पास इस पर लगाम लगाने की ठोस रणनीति नहीं है। यही वजह है कि तीन वर्ष पहले 40 माइकोन से पतली प्लास्टिक पर लगाई गई पाबंदी कारगर नहीं हो सकी। दोबारा अड़चन यहीं से आएगी। जहां हम प्लास्टिक की थैलियों पर पतिबंध का स्वागत करते हैं और दिल्ली को बढ़ते पदूषण से बचाने के लिए एक ठोस कदम मानते हैं वहीं हकीकत यह भी है कि प्लास्टिक पर पाबंदी लगा पाना आसान नहीं है। यह रोजमर्रा का अहम हिस्सा बन चुकी है, जिसका सस्ता विकल्प भी बाजार में नहीं है। यही वजह रही कि सरकार के पहले फैसले सकारात्मक परिणाम नहीं दे सके। पाबंदी को कारगर तरीके से लागू करने के लिए पहले सरकार को बाजार में विकल्प लाना होगा। प्लास्टिक से संबंधित सीपीसीबी की नियमावली से साफ है कि जूट आदि से बनाए गए कंपोजिट बैग प्लास्टिक का विकल्प हो सकता है। कोर्ट ने पहले ही निर्देश दे रखा है कि कंपोजिट बैग के उत्पादन को पोत्साहित करने के लिए कर में छूट देनी चाहिए। साथ ही साथ प्लास्टिक थैलियों का सस्ता विकल्प भी जल्द मार्केट में लाना होगा। सभी चाहते हैं कि इन प्लास्टिक थैलियों से छुटकारा मिले।

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