Sunday 11 November 2012

सत्तापक्ष को नागवार गुजरी सीएजी विनोद राय की राय


 Published on 11 November, 2012
 अनिल नरेन्द्र
कोल ब्लॉक और 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर अपनी रिपोर्ट पर कई बार मनमोहन सिंह सरकार की मुसीबत बढ़ा चुके नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) विनोद राय ने एक बार फिर सरकार पर सीधा हमला बोल दिया। बुधवार को गुड़गांव में विश्व व्यापार मंच के एक सत्र को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार जिस ढिठाई से फैसले ले रही है, वह अचम्भित करने वाले हैं। इस क्रम में उन्होंने यह भी कहा कि अगर भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण करना है तो केंद्रीय सतर्पता आयोग (सीवीसी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रस्तावित लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए। कैग का स्पष्ट मत है कि चूंकि सीबीआई और सीवीसी स्वतंत्र निकाय नहीं हैं, इसलिए लोग उन्हें सरकार की कठपुतली बताते रहते हैं। हम उनकी मांग से सहमत हैं। अगर इन दोनों संस्थाओं को भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावी औजार बनना है तो इन्हें सरकारी नियंत्रण व दबाव से मुक्त करना होगा। जब से भ्रष्टाचार के खिलाफ कई आंदोलन सामने आए हैं, तब से यह मांग जोर पकड़ती जा रही है। इसके पैरोकारों की दलील है कि प्रशासनिक और वित्तीय मामलों में सरकार पर निर्भरता इन दोनों संस्थाओं को सरकार की कठपुतली बना देती है और इनके हाथ बांध दिए जाते हैं। सीबीआई की स्वायत्तता की मांग राजनीतिक दल जब विपक्ष में होते हैं तो जरूर कहते हैं पर जब वे सत्ता में आ जाते हैं तो इसे ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। दरअसल कोई भी राजनीतिक दल नहीं चाहता कि सीवीसी और सीबीआई स्वतंत्र रूप से काम करें और सरकार को जवाबदेह न हों। कायदे अनुसार तो कार्यपालिका के पास बड़ी जवाबदेही होनी चाहिए। उसे हर नागरिक समुदाय के हितों का ध्यान रखना होता है और कई बार ऐसे फैसले भी करने पड़ते हैं जो दूसरों को अप्रिय लगें। देश को चलाने के लिए उनके पास अनेक ऐसी राष्ट्रीय एजेंसियों का होना जरूरी है जो उसके निर्देश पर काम करें। अगर वे एजेंसियां किसी और से निर्देशित होंगी तो एक तरह कार्यपालिका के हाथ बंध जाएंगे, जिससे उसके कई जरूरी काम प्रभावित हो सकते हैं यह कहना है सत्तापक्ष का। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने सीएजी के बयान पर कहा कि विनोद राय जिस सरकार पर ढिठाई भरे निर्णय लेने जैसी टिप्पणी कर रहे हैं, खुद राय इसी सरकार का हिस्सा रह चुके हैं इसलिए यह टिप्पणी उन पर भी लागू होती है। उन्होंने कहा, अगर वह (राय) फैसले लेने में ढीठपन की बात करते हैं तो मुझे लगता है कि उन्हें यह याद कराना उचित होगा कि वह 2004 से 2008 तक इसी सरकार का हिस्सा रहे थे। 2जी मामले से लेकर कोयला आवंटन तक जब भी सरकार कैग रिपोर्ट के चलते असहज हुई तब  सत्ताधारी पक्ष द्वारा विनोद राय को सत्तालोलुप बताने की कोशिश की गई। बेहतर होगा कि अब हमारा राजनीतिक वर्ग उन चेतावनियों को ध्यान से सुने, जो लोकतंत्र पर भ्रष्टाचार के नकारात्मक प्रभाव को लेकर समाज के बौद्धिक तबके द्वारा लगातार दी जा रही हैं। जांच और न्याय दोनों को प्रभावी बनाने की जरूरत है। जनता का अब दोनों पर से ही विश्वास उठता जा रहा है।   

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