Published on 28 October, 2012
आरोपों-प्रत्यारोपों के चले दौर में एक नया सनसनीखेज मामला सामने आया है। यह मामला अपने आप में अद्भुत है और शायद पहली बार इस तरह का किस्सा सामने आया है। कांग्रेस सांसद और उद्योगपति नवीन जिंदल ने समाचार चैनल जी न्यूज पर ब्लैकमेल करने का खुला आरोप लगाया है। कम्पनी द्वारा कराए गए स्टिंग ऑपरेशन का खुलासा करते हुए जिंदल ने कहा कि कोल ब्लॉक आवंटन से जुड़ी खबर नहीं दिखाने के एवज में चैनल ने 100 करोड़ रुपए मांगे थे। जवाब में जी न्यूज ने कहा कि कोयला घोटाले की खबर रुकवाने के लिए नवीन जिंदल इस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। कैग की रिपोर्ट में 1.86 लाख करोड़ के कोल घोटाले में जिंदल स्टील एण्ड पॉवर लि. (जेएसपीएल) का भी नाम है। नवीन जिंदल ने गुरुवार को प्रेस कांफ्रेंस में जी न्यूज के मैनेजिंग एडिटर सुधीर चौधरी और जी बिजनेस के सम्पादक समीर आहलूवालिया को जिंदल के अधिकारियों से बातचीत करते दिखाया गया है। जिंदल के बयान जारी करने के फौरन बाद सुधीर चौधरी और समीर आहलूवालिया ने सफाई दी। उन्होंने कहा कि वे जेएसपीएल की नीयत का खुलासा करना चाहते हैं। कम्पनी से डमी कांट्रेक्ट करने की कोशिश हो रही थी। सबूत के तौर पर उन्होंने एक दस्तावेज भी दिखाया और कहा कि नवीन जिंदल खबर रुकवाने के लिए 100 करोड़ रुपए का करार साइन करने को तैयार थे। ये पैसे विज्ञापन के मद से दिए जाने थे। अब वे तस्वीर का रुख बदलने की कोशिश कर रहे हैं। घोटाले उजागर करने में मीडिया की उल्लेखनीय भूमिका रही है। यही वजह है कि बौखलाए नेता अब सीधा मीडिया पर हमले कर रहे हैं। पहले कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने इंडिया टुडे ग्रुप पर नाम लेकर हमला किया। अब नवीन जिंदल ने नाम लेकर जी समूह पर हमला किया है। सवाल यहां यह महत्वपूर्ण है कि सच कौन बोल रहा है और यह कैसे साबित हो? आरोप लगाने वाले या आरोपी? बड़ा प्रश्न यह भी खड़ा हो गया है कि राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा के जाने वाले भ्रष्टाचार के नित खुलासों के इस दौर में जब मीडिया पर ही भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगें तो आम आदमी किस पर भरोसा करे? आज पैसे का युग है। अच्छे-बुरे किसी भी रास्ते से धन का प्रवाह अपनी ओर करने की जुगत में हर वह शख्स लगा हुआ है जिसे इसकी लत लग गई है। नैतिक और अनैतिक माध्यमों से धन कमाने जैसी बातें अब पिछड़ेपन का पर्याय बन गई हैं। हम इस बात को नहीं मानते कि बुरे माध्यम से कमाए गए धन से कोई सामाजिक भलाई का काम सफलतापूर्वक हो सकता है। अत यही माना जाए कि ऐसे धन के उपयोग से केवल व्यक्तिगत जीवन को ही एश्वर्यवान बनाया जा सकता है। लोकतंत्र के चारों स्तम्भों विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया से जुड़े अधिकांश शख्स जब अपने-अपने क्षेत्र के शीर्ष पर पहुंचने के लिए हर उचित-अनुचित तरीका अपनाते हुए संघर्ष कर रहे हों तो ऐसे माहौल में यदि मीडिया पर खबर रुकवाने या चलवाने के लिए धन के आरोप लगें तो यही निष्कर्ष निकलना चाहिए कि आजादी के 65 वर्ष बाद हम किस दिशा पर चल रहे हैं। राजनेताओं की साख तो आज मिट्टी में मिली ही हुई है पर अब मीडिया की साख भी दांव पर है, खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया की। प्रिंट मीडिया अभी भी बचा हुआ है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अपनी टीआरपी रेटिंग बढ़ाने के लिए कुछ चैनल सनसनीखेज खबरों, ब्रेकिंग न्यूज का सहारा लेते हैं जो कभी-कभी सही साबित नहीं होतीं। इंडिया टुडे समूह और जी समूह दोनों ही प्रतिष्ठित व विश्वसनीय समूह माने जाते हैं। अब अपने आपको सही साबित करने की जिम्मेदारी इन पर बनिस्पत राजनेताओं से ज्यादा है। इन्हें अपने आपको सही साबित करना होगा। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आज मीडिया की साख व विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाने की कोशिश हो रही है। नवीन जिंदल तो ऐसे कामों के लिए पहले से ही बदनाम हैं। उन्हें शायद इससे फर्प न पड़े उलटा एक तरह से फायदा भी हो जाए अगर चैनलों ने उनके भ्रष्टाचार की खबरें प्रसारित करने पर रोक लगा दी।
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