Published on 14 October, 2012
अनिल नरेन्द्र
ऐसे समय में जब देश के अन्दर राजनीति का स्तर इतना गिर गया है और विभिन्न राजनीतिक दल एक दूसरे पर निम्न स्तर के आरोप-प्रत्यारोप लगाने से बाज नहीं आते वहीं जब अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कोई भारतीय नेता विरोधी राजनीतिक दल की किसी नीति की तारीफ करता है तो उसकी सराहना होनी चाहिए। यह श्रेय बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को जाता है। उन्होंने साबित कर दिया कि देश हित सर्वोपरि होता है और अंतर्राष्ट्रीय मंचों से देश में हो रहीं अच्छी बातों का ही जिक्र होना चाहिए। आडवाणी जी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में जिस तरह राजनीतिक भेदभाव से ऊपर उठकर यूपीए सरकार की कुछ नीतियों की तारीफ की, वह अपने आप में एक मिसाल है। जाहिर-सी बात है कि कुछ लोगों को इस पर थोड़ा आश्चर्य भी हुआ होगा। अपने देश में पिछले कुछ समय से राजनीति इतनी ओछी हो गई है कि विपक्ष और सत्ता पक्ष सिर्प एक-दूसरे की आलोचना ही करते हैं पर आडवाणी जी को यह अहसास था कि वे संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारतीय अवाम के प्रतिनिधि के तौर पर बात रख रहे थे और दुनिया उनसे भारत के बारे में बहुत कुछ जानना चाहती है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 67वें सत्र में सामाजिक विकास विषयक चर्चा में शामिल श्री आडवाणी ने कहा कि मनरेगा से सामाजिक विषमता दूर करने तथा समावेशी विकास हासिल करने में मदद मिली है। आज के संकीर्ण होते राजनीतिक वातावरण में यदि आडवाणी जी देश के भीतर के किसी मंच से अपनी धुर विरोधी यूपीए सरकार के किसी कार्यक्रम की ऐसी तारीफ करते तो बहुतों को यह नागवार होता। ऐसे माहौल में यदि विश्व मंच पर श्री आडवाणी ने घरेलू राजनीतिक आग्रहों से ऊपर उठकर सरकार की वस्तुनिष्ठ तारीफ की है तो यह अच्छी बात जरूर है। वे चाहते तो सरकारी स्कीमों की चर्चा से परहेज कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने वहां सियासी मतभेदों को राष्ट्र हित से ऊपर नहीं होने दिया। यह भारतीय जनतंत्र की परिपक्वता है कि विपक्ष के नेता ने संयुक्त राष्ट्र में सत्ता पक्ष की नीति को सराहा। उन्होंने भारत में महिलाओं और कमजोर वर्गों के हित में उठाए गए अन्य कदमों की भी चर्चा की। इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य और विकलांगों के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की भी जानकारी दुनिया को दी। आडवाणी जी ने यूपीए सरकार की उपलब्धियों को स्वीकार करके न केवल अपना बड़प्पन ही दिखाया बल्कि एक सच्चे स्टेट्समैन का भी परिचय दिया है। किसी भी मजबूत लोकतंत्र का आदर्श यही है कि राजनीतिक मतभेदों और संघर्षों के बीच भी आम आदमी के हितों का धर्म आगे बढ़ता रहे। देश की उन्नति ही तो सत्ता और विपक्ष दोनों का समान लक्ष्य होता है। जनता ने तो एक तरह से मान लिया है कि विपक्ष का काम केवल सरकार की आलोचना करना रह गया है और उसके हर काम में अड़ंगा लगाना है। ऐसे माहौल में आडवाणी जी का भाषण निश्चित रूप से सुखद हवा के झोंके की तरह है। उम्मीद की जाती है कि सत्ता पक्ष के नेता भी इससे कुछ सबक लेंगे।
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