Published on 8 October, 2012
अनिल नरेन्द्र
अब तो मनमोहन सिंह सरकार को लाइसेंस मिल गया है कि आर्थिक सुधारों के नाम पर जनता को जितना लूट सको लूट लो। ममता के सरकार से निकलने के बाद अब इस सरकार पर कोई नियंत्रण भी नहीं रहा। जो समर्थक दल इस संप्रग सरकार की मदद कर रहे हैं उन्हें भी जनता के दुख-दर्द से कोई सरोकार नहीं है। यही नहीं वह भी इस लूट में शामिल हैं। किसी को तो सीबीआई सता रही है, कोई इस चक्कर में है कि इस हमाम में तो सभी नंगे हैं तो क्यों न बहती गंगा में हाथ धो लें। गैस सिलेंडर वितरकों की कमीशन बढ़ाने के सरकार के फैसले के बाद घरेलू रसोई गैस सिलेंडर के दाम शनिवार को 11.42 रुपए प्रति सिलेंडर बढ़ा दिए गए। इसके साथ ही सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर के दाम दिल्ली में 410.42 रुपए हो जाएंगे। यह निर्णय सरकार के उस फैसले के कुछ ही सप्ताह के भीतर आ गया जिसमें सब्सिडीयुक्त सिलेंडर की आपूर्ति एक साल में छह सिलेंडरों तक सीमित कर दी गई थी। पेट्रोल और डीजल के दाम भी कुछ बढ़ सकते हैं। सरकार ने भले ही तेल कम्पनियों के नुकसान की भरपाई के नाम पर गत दिनों डीजल की कीमतें बढ़ाई हों लेकिन हकीकत में उसकी चालू वित्त वर्ष में 6400 करोड़ रुपए की अतिरिक्त कमाई होगी। साथ ही इस कमाई का बड़ा हिस्सा लगभग 1300 करोड़ रुपए राज्यों को भी जाएगा। खास बात यह है कि डीजल मूल्य वृद्धि के मुद्दे पर यूपीए सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर चुकी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के राज्य को भी इससे करीब 92 करोड़ रुपए की अतिरिक्त कमाई होगी। सरकार ने 13 सितम्बर को डीजल की कीमत में पांच रुपए का इजाफा किया था जिसमें 1.5 रुपए प्रति लीटर की दर से उत्पाद शुल्क भी शामिल है। बाकी 3.5 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी तेल कम्पनियों के नुकसान की भरपाई करने के लिए की गई है। सूत्रों के मुताबिक केंद्र ने जो उत्पाद शुल्क लगाया है उससे वित्त वर्ष 2012-13 के बाकी बचे करीब साढ़े छह महीनों में 6400 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व उत्पाद शुल्क के रूप में जुटने का अनुमान है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क का 20 फीसद हिस्सा राज्यों में बंटता है। डीजल, पेट्रोल और गैस की कीमतों को लेकर मनमोहन सरकार को समर्तन दे रही समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव केंद्र सरकार को लगातार कोस रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इस बहाने यूपी की समाजवादी सरकार अपना खजाना भरने में जुट गई है। सरकार चाहे तो डीजल पर लगने वाले वैट में कमी करके जनता को राहत दे सकती है लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इससे साफ इंकार कर दिया है। पेट्रोल, डीजल, गैस की कीमतें बढ़ाने के विरोध में 20 सितम्बर को हुए भारत बन्द में समाजवादियों ने पूरा सूबा ठप कर दिया था। हर तरफ लाल टोपी का हल्ला बोल नजर आया। कहीं रेलें रोकी गईं तो कहीं पुतले पूंके गए। सड़कों को जगह-जगह जाम किया गया। पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव दिल्ली में बन्द के बहाने तीसरे मोर्चे की गाड़ी स्टार्ट करते दिखे। लेकिन यह तस्वीर का सिर्प एक पहलू है। पूरा सच यह है कि यूपी सरकार डीजल पर 17.23 फीसदी वैट लगाती है जबकि हरियाणा में 9.24 फीसदी और बिहार में 16 फीसदी वैट है। दिल्ली में 12.50 फीसदी। यूपी में हर महीने करीब 70 करोड़ लीटर डीजल की खपत है। इस तरह डीजल की बढ़ी दरों में अखिलेश सरकार को हर लीटर डीजल पर 85 पैसे और मिलने लगे हैं यानि सरकार को हर महीने 60 करोड़ और 31 मार्च 2013 तक करीब 360 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आमदनी होगी। जाहिर है कि समाजवादी पार्टी जिस फैसले के लिए केंद्र सरकार को कोस रही है अखिलेश सरकार उससे अपना खजाना भरने में भी जुट गई है। यही हाल अन्य राज्यों का भी है। लगता है कि महंगाई इन समर्थक दलों के लिए महज एक राजनीतिक मुद्दा है जनता की बेचैनी से इनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। दरअसल इस हमाम में सभी नंगे हैं।
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