Thursday 25 October 2012

अबू जिंदाल के बाद फसीह की गिरफ्तारी दूसरी महत्वपूर्ण सफलता


 Published on 25 October, 2012
 अनिल नरेन्द्र

आतंकवादी फसीह मोहम्मद का सऊदी अरब से प्रत्यार्पण आतंकवाद विरोधी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण विजय है। इंडियन मुजाहिद्दीन के संदिग्ध इस आतंकी की गिरफ्तारी को केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने बेहद महत्वपूर्ण बताया। फसीह मुहम्मद के दिल्ली बम विस्फोट और बेंगुलरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में बम विस्फोट में आतंकवादी वारदात के लिए तलाशा जा रहा था। फसीह की गिरफ्तारी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से मुमकिन हो सकी। फसीह के प्रत्यार्पण में विदेश मंत्रालय को सऊदी अरब से काफी मशक्कत करनी पड़ी। लम्बी जद्दोजहद के बाद यह सम्भव हो पाया है और इस प्रत्यार्पण से जहां भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती मिली है वहीं पाकिस्तान को इससे एक स्पष्ट संकेत भी मिला है। फसीह मोहम्मद की गिरफ्तारी भारत के लिए आतंक के खिलाफ लड़ाई में दूसरी कूटनीतिक जीत है। सरकार का कहना है कि अबू जिंदाल के बाद फसीह को सौंप कर सऊदी अरब ने खासतौर पर पाकिस्तान को यह संदेश दिया है कि आतंकियों को संरक्षण देने से इस्लामी देशों की सुरक्षा को खतरा है। सऊदी अरब में पहली बार फसीह के खिलाफ सबूत को अपर्याप्त बताकर कुछ और दस्तावेजी सबूत मांगे थे। लेकिन सरकार का दावा है कि सऊदी हुक्मरानों ने इंडियन मुजाहिद्दीन के इस सरगना को नहीं सौंपने का संकेत कभी नहीं दिया। शीर्ष सूत्रों के मुताबिक सऊदी अरब ने सबूतों की दूसरी खेप सौंपने के कुछ हफ्तों में ही जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर दीं। इससे पहले मुंबई हमलों में अहम सम्पर्प सूत्र की भूमिका निभाने वाले अबू जिंदाल को सऊदी अरब से भारत लाने में अमेरिका के प्रभाव की काफी चर्चा थी। सूत्र मान रहे हैं कि जिंदाल मामले में अमेरिका ने जो रुचि दिखाई उसका असर फसीह मामले में भी रहा। 28 वर्षीय फसीह को दिल्ली पहुंचने पर हवाई अड्डे से गिरफ्तार कर लिया गया। वह सऊदी अरब में पांच माह से हिरासत में था। आतंकी फसीह की गिरफ्तारी से पुलिस को सबसे बड़ी मदद इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) के उस नेटवर्प को तोड़ने में मदद मिलेगी जिसका ताना-बाना फसीह ने करीब चार साल पूर्व खुद बुना था। पेशे से इंजीनियर फसीह इंडियन मुजाहिद्दीन का संस्थापक रहा है और उसी के प्रयासों से आईएम संगठन से बड़ी संख्या में डाक्टर, एमबीए, इंजीनियर और अन्य पेशेवर को जोड़ा गया। बेंगलुरु में पिछले दिनों पुलिस गिरफ्तार किए लोगों से भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है। लेकिन आईएम से जुड़े पेशेवरों के इस नेटवर्प के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी खुफिया एजेंसियों को नहीं है। कुछ महीने पहले मुंबई के 26/11 आतंकी हमलों के प्रमुख अपराधी अबू जिंदाल को भी सऊदी अरब से प्रत्यर्पित करवाने में भारत को कामयाबी मिली थी। यह सिलसिला जारी रहा तो पश्चिम एशिया के अरब देश आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकाने नहीं रह पाएंगे। सऊदी अरब अब धीरे-धीरे आतंकवाद विरोधी लड़ाई में जो सहयोग कर रहा है, उसके पीछे कई वजहें हैं। सऊदी अरब के हुक्मरानों को यह लग रहा है कि अपने देश को आतंकवादियों की पनाहगाह बनने देने से कई खतरे हैं। एक तो इससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में छवि खराब होती है। दूसरे ऐसे खतरनाक अपराधियों का देश में बना रहना उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है। भले ही वह अमेरिका विरोधी किसी वारदात में शामिल हों या न हों। पश्चिम एशिया के कई देशों में जन विद्रोहों में कट्टरवादी या आतंकी समूहों की हिस्सेदारी बहुत अहम रही है। इसलिए भी सऊदी अरब उग्र विचार और आतंकवादी रुझाने वाले लोगों को अपन देश में रखने का खतरा मोल नहीं लेना चाहता। यह खुशी की बात है कि आतंकवाद के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आपसी सहयोग बढ़ रहा है और एक माहौल तैयार हो रहा है। मैकेनिकल इंजीनियर फसीह मोहम्मद के बारे में सुरक्षा एजेंसियां जितना अनुमान लगा रही थी, उससे कहीं ज्यादा पूछताछ में खुलासे हो रहे हैं। अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम ने तकरीबन एक साल पहले फसीह की खुलकर तारीफ की थी। दाऊद ने पाकिस्तान में लश्कर चीफ और आईएसआई से कहा था फसीह काम का बन्दा है। फसीह की तारीफ की सबसे बड़ी वजह कम्प्यूटर और इंटरनेट में फसीह का तेज-तर्रार होना माना गया है। अबू जिंदाल के बाद फसीह मोहम्मद की गिरफ्तारी भारत के आतंक विरोधी अभियान में दूसरी उपलब्धि है।

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