Wednesday 24 October 2012

जस्टिस इफ्तिखार चौधरी पाकिस्तान की सियासी दिशा बदलना चाहते हैं


 Published on 24 October, 2012
 अनिल नरेन्द्र
किसी भी देश में कभी-कभार कोई ऐसा व्यक्ति पैदा होता है जो देश की सियासत को बदलने की ताकत का प्रदर्शन करता है। दृढ़ संकल्प से वह ऐसे साहसी कदम उठाता है जिससे देश की सियासत को नई दिशा मिलती है। पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस इफ्तिखार चौधरी ऐसी श्रेणी में आते हैं। उन्होंने न केवल पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट को उसकी खोई पोजीशन ही बहाल की है  बल्कि कई ऐसे मामलों में हस्तक्षेप किया है जिन्हें पहले किसी ने छूने का साहस नहीं किया। बेशक इनमें से कुछ विवादास्पद भी हो सकते हैं। ताजा मामला पाकिस्तानी सेना व उसकी गुप्तचर शाखा आईएसआई का देश की राजनीति में हस्तक्षेप का है, चीफ जस्टिस इफ्तिखार चौधरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने गत शुक्रवार को सरकार को पूर्व सेना प्रमुख जनरल मिर्जा असलम बेग और पूर्व आईएसआई प्रमुख असद दुर्रानी के खिलाफ 1990 में हुए चुनावों में धांधली के लिए राजनीतिज्ञों को लाखों रुपए के भुगतान में भूमिका के लिए कानूनी कार्रवाई करने का आदेश दिया। प्रधान न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने साथ ही यह भी कहा कि सेना को पाकिस्तान की राजनीति में दखल देने की आदत से बाज आना चाहिए। 1996 में एक याचिका वायुसेना के एक सेवानिवृत एयर मार्शल ने दायर की थी। न्यायमूर्ति चौधरी ने कहा कि इस तरह की संस्थाओं की राजनीति या राजनीतिक गतिविधियों, सरकार के गठन या सरकारों की अस्थिरता में कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सेना और खुफिया एजेंसियों को किसी भी सूरत में किसी खास राजनीतिक दल अथवा राजनेताओं की तरफ झुकाव नहीं दिखाना चाहिए। हालांकि अभी यह साफ तो नहीं हुआ है कि इस व्यवस्था से सेना की शक्तियां सीमित होंगी अथवा नहीं, लेकिन इससे सेना और अदालत के बीच टकराव की आशंका जरूर बढ़ गई है। इस मामले में चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने पूर्व सेना प्रमुख जनरल मिर्जा असलम बेग और आईएसआई के पूर्व प्रमुख असद दुर्रानी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के आदेश भी दिए। पीठ ने कहा कि 1990 के आम चुनाव में धांधली के मकसद से दोनों ने करोड़ों रुपए बांटकर संविधान और कानून का उल्लंघन किया है। उनके कदमों से देश और सशस्त्र बलों की छवि प्रभावित हुई है। यह फैसला देश के राजनीतिक इतिहास की दिशा बदल सकता है। डॉन अखबार के अनुसार यह फैसला राष्ट्रपति कार्यालय में राजनीतिक गतिविधियों का हमेशा के लिए अंत भी कर सकता है। `द न्यूज' ने खबर दी है कि सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था ने जरदारी के लिए पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सह अध्यक्ष पद पर बने रहने या अपनी राजनीतिक गतिविधियों को जारी रखना असम्भव बना दिया है। अपने फैसले में पीठ ने साथ ही यह भी कहा कि राष्ट्रपति भवन, आईएसआई, सैन्य गुप्तचर या गुप्तचर ब्यूरो में कार्यरत किसी भी राजनीतिक इकाई को तत्काल बन्द किया जाए क्योंकि ऐसी कोई भी संस्था असंवैधानिक है। पीठ ने कहा कि ऐसी किसी इकाई के गठन के लिए जारी कोई भी अधिसूचना अमान्य होगी। अब देखना यह है कि पाक सेना क्या इस फैसले पर अमल करेगी?



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