Published on 8 October, 2012
श्री अरविन्द केजरीवाल ने न केवल अपनी पूर्व योजना के मुताबिक 2 अक्तूबर को अपनी नई पार्टी की घोषणा ही कर दी पर मानना पड़ेगा कि उन्होंने एक धमाकेदार शुरुआत भी की है। अरविन्द केजरीवाल ने उन मुद्दों को उठाया है जिनको प्रकाश में लाने की जरूरत थी। रॉबर्ट वाड्रा का मुद्दा रहा हो या दिल्ली में बिजली-पानी के बढ़े हुए बिलों का मुद्दा रहा हो टीम केजरीवाल ने उन लोगों की यह शिकायत तो दूर कर ही दी जो अन्ना आंदोलन को अस्पष्ट और बिना धार के बता रहे थे। ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो केजरीवाल के राजनीति में कूदने के फैसले को कुछ शंका की नजर से देखते थे। लेकिन मौजूदा राजनीतिक दलों के प्रति लोगों में बढ़ती निराशा में टीम केजरीवाल ने एक उम्मीद की किरण जरूर दिखाई है। उन्होंने अब तक जो मुद्दे उठाए हैं वह भी सीधा जनता से जुड़े हैं। अरविन्द केजरीवाल ने बढ़े हुए बिजली और पानी के बिलों की दरों में बढ़ोतरी के खिलाफ और एक श्रमिक के घर की बिजली कनेक्शन को बहाल कर बिजली-पानी सत्याग्रह शुरू कर दिया है। उल्लेखनीय है कि श्रमिक द्वारा बिल का भुगतान नहीं करने पर उसका कनेक्शन काट दिया गया था। ये विरोध प्रदर्शन शनिवार को सुबह टिगरी कॉलोनी में उस समय शुरू हुआ जब केजरीवाल और उनके समर्थकों ने श्रमिक का कनेक्शन बहाल कर दिया। इस श्रमिक ने दावा किया था कि पिछले महीने उसका बिल 15 हजार रुपए आया था और भुगतान नहीं करने के कारण उसका कनेक्शन काट दिया गया था। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में बिजली-पानी सत्याग्रह शुरू हो गया है। दिल्ली सरकार जब तक बढ़ी हुई दरों को वापस नहीं लेती तब तक जनता बिजली और पानी के बिल देना बन्द करे। चलिए एकजुट हों और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ें। दरअसल भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक जंग लड़ने और व्यवस्था परिवर्तन के जरिए `दूसरा स्वराज' का सपना आमजनों को दिखाने वाले अपने इरादों में भले चाहे जितने ईमानदार रहे हों पर आंदोलन की वैचारिक दिशा और कार्यक्रमों को लेकर अन्ना हजारे की कमी शुरू से ही रेखांकित होती रही है। यही कमी ही कहीं न कहीं अन्ना की जमात के विभाजन का कारण भी बनी। टीम अन्ना के विभाजन से जन्मी केजरीवाल की पार्टी ने इससे सबक लिए और इस कमी को दूर करने के प्रयास किए हैं। नई पार्टी के विजन डाक्यूमेंट का जो ड्राफ्ट जारी हुआ है, उसमें आमजन की भूमिका को लोकतांत्रिक आंदोलन की कोख से जन्मी इस पार्टी का पहला मकसद भी है कि लोकपाल की नियुक्ति जल्द से जल्द हो ताकि आमजन रोजमर्रा के भ्रष्टाचार से मुक्ति पा सकें। केजरीवाल की सबसे बड़ी चुनौती देशभर में संगठन खड़ा करना है। उन्होंने दिल्ली विधानसभा और फिर अगले लोकसभा चुनाव में भी उतरने का मन बना लिया है। इतने कम समय में चुनाव लड़ने लायक संगठन खड़ा कर पाना उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है। उन्हें चुनावी कामयाबी कितनी मिल पाती है यह तो वक्त ही बताएगा। मगर उनके काम को इस कसौटी पर परखना ज्यादा उपयुक्त होगा कि वे देश की सियासत की दिशा बदलने और सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता का माहौल कितना बना पाते हैं और राजनीति को अधिक से अधिक जनोन्मुखी दिशा देने में कहां तक कामयाब हो पाते हैं। इतना जरूर कहा जा सकता है कि उन्होंने अच्छी शुरुआत जरूर की है और जनता को एक नई सियासी दिशा मिल सकती है।
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